अयोध्याः ज़मीन की खरीद में नियम, क़ानून, पारदर्शिता सब ताक पर रखे गये; शासन-प्रशासन सबकी मिलीभगत

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अयोध्या में ज़मीन खरीद में धांधली और ट्रस्ट महासचिव चंपत राय, मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और रवि मोहन तिवारी की मिलीभगत के एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं। वहीं बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अयोध्या के बाग बिजेसी क्षेत्र में जहां ज़मीन खरीदी है वहां इस ज़मीन के आस पास कब्रिस्तान की भूमि है। जिस पर वक्फ का नियंत्रण है। इसके अलावा नजूल की भूमि है जिसकी बिक्री नहीं की जा सकती। आसपास के क्षेत्र में खरीदने और बेचने योग्य कोई जमीन फिलहाल मौजूदा समय में नहीं है।

7 जून को ट्रस्ट द्वारा ढाई गुना कम कीमत पर खरीदी गयी ज़मीन

ताजा खुलासा हुआ है कि आज से ठीक 10 दिन पहले यानि 7 जून 2021 को श्री रामजन्मभूमि ट्रस्ट द्वारा 3,040 वर्ग मीटर ज़मीन एक करोड़, 90 लाख रुपये में खरीदी गयी। ये ज़मीन 18.5 करोड़ में खरीदी गयी 12,080 वर्ग मीटर वाली ज़मीन के पास ही है। दोनों ही ज़मीन सौदों में एक कॉमन कनेक्शन है। कनेक्शन यह है कि 7 जून को हुयी ज़मीन की इस रजिस्ट्री में वही रवि मोहन तिवारी गवाह हैं, जिसने राम मंदिर ट्रस्ट को दो करोड़ की जमीन 18.5 करोड़ में बेची थी।

7 जून को अयोध्या के बिजेसी बाग गांव, परगना हवेली अवध में 3,040 वर्ग मीटर ज़मीन का सौदा महेंद्र नाथ मिश्रा और दीप नारायण के बीच एक करोड़ 90 लाख रुपए में हुआ है। जिसका बाज़ार मूल्य भी एक करोड़ 90 लाख ही था। यानी 7 जून को हुआ जमीन का यह सौदा सर्किल रेट पर ही हुआ।

यानि 7 जून को हुए इस सौदे के हिसाब से देखें तो 3,040 वर्ग मीटर की यह ज़मीन 6250 रुपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से खरीदी गयी। जबकि 4 महीने पहले 18 मार्च, 2021 को राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई 12,080 वर्ग मीटर ज़मीन 15,314 रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से खरीदी गई थी।

कौन है रवि मोहन तिवारी, मेयर से क्या रिश्ता है

ज़मीन खरीद में घोटाला उजागर होने के बाद से ही विहिप और भाजपा पुराने एग्रीमेंट के राग अलाप रहे हैं। इस बाबत आप सांसद संजय सिंह का कहना है कि राम जन्म भूमि ट्रस्ट, भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद जिस एग्रीमेंट का बार-बार जिक्र कर रहे थे वह 18 मार्च को कैंसिल हो गया था, उसमें रवि मोहन तिवारी का नाम नहीं था तो फिर बैनामे में उसका नाम क्यों शामिल कराया गया? बता दें कि रवि मोहन तिवारी अयोध्या के बड़े प्रापर्टी डीलर में से एक हैं। उनके दिवंगत पिता सीतापति तिवारी नायब तहसीलदार रहे हैं।

सबसे अहम बात यह है कि ज़मीन सौदों में ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय गवाह थे। वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह बताते हैं कि ज़मीन की डील भाजपा मेयर ऋषिकेश उपाध्याय के घर पर हुई है। विक्रेता रवि नंदन तिवारी और गवाह मेयर ऋषिकेश उपाध्याय दोनों का पता सीताकुंड स्थित एक ही घर का दिया गया है। आखिर कथित विक्रेता रवि मोहन तिवारी और गवाह मेयर का आपस में क्या कनेक्शन है। 

आप सांसद संजय सिंह बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और रवि मोहन तिवारी रिश्तेदार हैं। रवि मोहन तिवारी मेयर ऋषिकेश उपाध्याय के समधी का साला है। रवि मोहन तिवारी का नाम एग्रीमेंट में इसलिए डाला गया ताकि इनके खाते में रुपए डाल कर करोड़ों रुपए की बंदरबांट की जा सके। भारतीय जनता पार्टी के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय ने 7 जून को भतीजे दीप नारायण उपाध्याय के नाम पर महेंद्र नाथ मिश्रा से 1.90 करोड़ रुपए की ज़मीन खरीदी। इसके आय के स्रोतों की जांच होनी चाहिए। सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी के खातों की जांच होनी चाहिए कि उनके खाते में जो 17 करोड़ गए तो वह कहां गये।

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने आरोप लगाया है कि जो जमीन किसी को सर्किल रेट पर मिल रही है, वहीं ज़मीन राम मंदिर ट्रस्ट ने चार गुना अधिक दाम पर खरीदी है। घोटाला बड़े पैमाने पर हुआ है और राम भक्तों के साथ ट्रस्ट के लोगों ने धोखा किया है। उन्होंने आगे कहा है कि 7 जून को मेयर ऋषिकेश उपाध्याय के भतीजे दीपनारायण ने 1 करोड़ 90 लाख में एक ज़मीन ख़रीदी, इसमें गवाह है ट्रस्ट को 18.5 करोड़ में ज़मीन बेचने वाला मेयर का रिश्तेदार रवि मोहन तिवारी। समझ में आया माल कहाँ गया? उन्होंने पूछा है कि मेयर के भतीजे दीपनारायण के आय का स्रोत क्या है?   

एक ही दिन में खरीदी दो ज़मीनों के अलग अलग रेट कैसे

18 मार्च 2021 को जिस दिन राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी से दो करोड़ की ज़मीन 18.5 करोड़ में खरीदी गयी, ठीक उसी दिन ज़मीन का दूसरा टुकड़ा ट्रस्ट द्वारा 8 करोड़ रुपये में खरीदा गया। दूसरी ज़मीन हरीश पाठक और कुसुम पाठक से सीधे खरीदी गयी थी। 1.037 हेक्टेयर की इस ज़मीन का गाटा संख्या 242 था। जिसे हरीश पाठक और कुसुम पाठक से सीधे 8 करोड़ में राम मंदिर ट्रस्ट ने खरीदा था। 11 मई को इसी टुकड़े से 695.678 स्क्वायर मीटर ज़मीन कौशल्या भवन के यशोदा नंदन त्रिपाठी और कौशल किशोर त्रिपाठी ने राम मंदिर ट्रस्ट को मुफ्त में दी।

जबकि राम मंदिर ट्रस्ट के द्वारा 18 मार्च को गाटा संख्या 242, 243, 244 और 246 से खरीदी गई 1.208 हेक्टेयर जमीन पहले हरीश पाठक और कुसुम पाठक के द्वारा सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी को दो करोड़ में रजिस्ट्री की गयी और फिर यह ज़मीन कुछ मिनट बाद ही 18.5 करोड़ में राम मंदिर ट्रस्ट के द्वारा खरीद ली गयी थी।

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश प्रभारी संजय सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा है कि राम मंदिर के लिए 12080 वर्ग मीटर ज़मीन 18.50 करोड़ रुपये में ख़रीदी गयी, जबकि उसके बग़ल में 10370 वर्ग मीटर ज़मीन सिर्फ 8 करोड़ रुपये में खरीदी गई. इससे साफ पता चलता है कि ज़मीन की ख़रीद में भ्रष्टाचार किया गया है। संजय सिंह ने आगे कहा ”अगर 8 करोड़ में 10370 वर्ग मीटर ज़मीन ख़रीदने के रेट को सही मान लें तो भी 18.50 करोड रुपये में क़रीब 26000 वर्ग मीटर ज़मीन ख़रीदी जा सकती थी। जबकि साढ़े अट्ठारह करोड़ में सिर्फ़ 12080 वर्ग मीटर ज़मीन ही ख़रीदी गयी।

राजस्व विभाग के मुताबिक़ किसी भी ज़मीन को अगर सरकार लेती है तो शहरी क्षेत्र में सर्किल रेट से दोगुना और ग्रामीण क्षेत्र में 4 गुना से ज्यादा मुआवज़ा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन राम मंदिर ट्रस्ट के द्वारा अयोध्या नगर क्षेत्र में जो ज़मीन ख़रीदी गई वो सर्किल रेट से तीन गुना दर पर ली गयी है। 

अमूमन जब कोई निजी व्यक्ति, संस्था या ट्रस्ट ज़मीन ख़रीदती है तो वह कम से कम क़ीमत देने की कोशिश करती है, ताकि पैसा बचाया जा सके, लेकिन 1.208 हेक्टेयर ज़मीन ख़रीद के मामले में राम मंदिर ट्रस्ट पर सर्किल रेट से तीन गुना पैसा देने का आरोप लग रहा है।

रजिस्ट्री दफ़्तर के रजिस्टर के एक पन्ने पर तीन ऑर्डर हुये एक ही ज़मीन को लेकर

18 मार्च 2021 को रजिस्ट्री दफ़्तर में रजिस्टर के एक ही पन्ने पर रजिस्ट्रार द्वारा एक ही ज़मीन से जुड़े तीन आर्डर दिये गये हैं।

1-       एग्रीमेंट टू सेल निरस्त हुआ, फिर

2-       बैनामा हुआ, (पाठक दम्पत्ति ने अल्ताफ हुसैन रवि मोहन तिवारी को बैनामा किया), फिर

3-       एग्रीमेंट टू सेल हुआ (रवि मोहन तिवारी, अल्ताफ़ हुसैन ने राम जन्मभूमि ट्रस्ट को)

ट्रस्ट के मामले में गवाह बना अनिल मिश्रा जो खुद ट्रस्टी हैं औऱ भाजपा मेयर ऋषिकेश उपाध्याय।  

विवादित ज़मीन का इतिहास

  • 18.5 करोड़ में खरीदी गयी ज़मीन का इतिहास फरेब की कहानी को उजागर कर देता है। आज से 97 साल पहले सन 1924  में हाजी फकीर मोहम्मद जागीरदार थे। उनके कोई संतान नहीं थी। अतः उन्होंने अपनी तमाम संपत्ति और ज़मीनों को वक्फनामे के तहत रजिस्टर्ड करा दिया। और उन्होंने उसका संचालन करने के लिए एक कमेटी बनाई और पहले मुतवल्ली खुद बन गये।

    इस कमेटी में जो लोग रखे गए, उनके नाम सैय्यद अब्दुल, बाबू केशव प्रसाद और जगन्नाथ सिंह थे। नियमों में इस बात का खास तौर पर उल्लेख था कि उनके खानदान का ही कोई व्यक्ति उनके बाद मुतवल्ली बनता रहेगा और उनके खानदान के लोग ही उसका चुनाव करेंगे। अगर कोई मुतवल्ली गलत कार्य करता है तो कमेटी के लोगों को अधिकार होगा कि उसको हटाकर मुतवल्ली के लिए दूसरे व्यक्ति का चुनाव कर लें। साथ यह भी व्यवस्था थी कि उक्त प्रॉपर्टी से जो भी आमदनी होगी उसे गरीब बच्चों की पढ़ाई में खर्च किया जाएगा।

    सन् 1955 में हाजी फकीर मोहम्मद के इंतकाल फरमा गये। उनके बाद खानदान के लोगों ने मो. रमजान को मुतवल्ली चुना। उनके नाम यह संपत्ति राजस्व अभिलेखों में उनके इंतकाल 1982 तक रही।
  • सन् 1982 में मो. फायक को मुतवल्ली बनाया गया और यह संपत्ति उनके नाम दर्ज़ हुयी। मो. फायक के बाद
  • सन् 1986 में मो. फायक के इंतकाल के मो. आलम को मुतवल्ली चुना गया और सन् 1994 में तकाल होने तक उनके नाम यह संपत्ति दर्ज थी।
  • मो. आलम के इंतकाल के बाद सन् 1996-2015 तक मो. असलम मुतवल्ली बने। कमेटी में मकबूल अहमद, अलाउद्दीन, मो. युनुस, मो. अयूब, शकील अहमद, मो. याकूब समेत सात लोग थे। वक्फबोर्ड के तत्कालीन मुतवल्ली मो. असलम ने तहसीलदार के यहां पूर्ववर्ती मुतवल्ली मो. आलम का नाम खारिज़ करके अपना नाम दर्ज़ कराने का आवेदन किया। तब उन्हें पता चला कि मो. आलम के चारों पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम ने 15 अक्तूबर 1997 को वक्फ की संपत्ति की पैतृक संपत्ति के रूप में वरासत दर्ज़ करा ली है और भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम ने साल 2011 में हरिदास पाठक (हरीश पाठक) और उनकी पत्नी कुसुम के साथ मोहम्मद इरफान (सुल्तान अंसारी का पिता) के नाम 01 करोड़ रुपये में कुल जमीन 2.3340 हेक्टेयर, जिसमें गाटा संख्या 242/1, 242/2, 243, 244, 246 थे को 3 साल के लिए एग्रीमेंट कर दिया। 

इसके विरोध में वक्फबोर्ड के तत्कालीन मुतवल्ली मो. असलम ने वर्ष 2009 में तहसीलदार कोर्ट में वाद संख्या 1053 असलम बनाम महफूज आलम दाखिल किया था। जिसमें उन्होंने प्रॉपर्टी को वक्फ का बताते हुए विरासत के आधार पर उक्त लोगों के खतौनी के दावे को गलत बताया और उनके नाम खतौनी से निरस्त करने की मांग की।
तत्कालीन तहसीलदार ने खानदान के लोगों की वंशावली बनवाई और मौके पर निरीक्षण भी किया। कानूनगो ने रिपोर्ट में कहा कि अगर इस संपत्ति पर मुतवल्ली मो. आलम के पुत्रों का नाम दर्ज़ होता है तो उस खानदान में और भी लोग हैं जिनका नाम दर्ज़ होना चाहिए। इस रिपोर्ट के आधार पर तहसीलदार ने 29 जून 2009 को महमूद आलम के पुत्रों के नाम खतौनी में दर्ज़ होने के आदेश को स्थगित कर दिया था।

इसके बाद भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम के पक्ष वाले 29 जून 2009 के ऑर्डर को बहाल कर दिया गया। यानी ये लोग एक बार फिर उक्त भूमि के मालिक बन गए थे। लेकिन 2015 में तत्कालीन मुतवल्ली मोहम्मद असलम की मृत्यु हो गई। इसके बाद भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम के पक्ष में हुए ऑर्डर को मोहम्मद असलम के भाई मोहम्मद नईम ने चैलेंज करते हुए अपर आयुक्त की कोर्ट में निगरानी दाखिल की। इस पर तत्कालीन अपर आयुक्त ने निगरानी स्वीकार करते हुए 01 सितंबर 2017 को मालिक बनाने वाले आदेश को स्टे कर दिया। 

इसके बाद भी भूतपूर्व मुतवल्ली महमूद आलम के पुत्र महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फिरोज आलम ने उक्त भूमि को 15 नवम्बर 2017 को 2 करोड़ रुपये में हरिदास उर्फ हरीश कुमार पाठक और उसकी पत्नी कुसुम पाठक को बेच दिया। लेकिन इस बार 2011 के एग्रीमेन्ट में इनके साथ रहे इरफान अंसारी (सुल्तान अंसारी का पिता) का नाम जमीन की रजिस्ट्री में शामिल नहीं था।

इसके बाद कुसुम पाठक और हरीश पाठक के बैनामे को चैलेंज करते हुए मोहम्मद नईम और वहीद अहमद की तरफ से खारिज दाखिल के समय 2 आपत्तियां दायर की गईं। जिसमें कहा गया कि यह वक्फ की प्रॉपर्टी है और यह खानदानी वक्फ है, लिहाजा जमीन की रजिस्ट्री शून्य है। 

ज़मीन खरीदने के बाद ही हरीश पाठक और उनकी पत्नी कुसुम पाठक ने उक्त जमीन को 20 नवम्बर 2017 को 2 करोड़ 16 लाख में बीकापुर क्षेत्र से बसपा विधायक रहे जितेंद्र सिंह बबलू को रजिस्टर्ड एग्रीमेन्ट दिया। लेकिन दो साल के लंबे इंतजार के बाद भी जब ज़मीन का खारिज दाखिल हरीश पाठक और कुसुम पाठक के पक्ष में नहीं हो पाया तो जितेंद्र सिंह बबलू ने उनसे एग्रीमेन्ट में दिया पैसा वापस ले लिया और एग्रीमेन्ट कैंसिल करा दिया। 

ठीक उसी समय हरीश पाठक के ऊपर धोखाधड़ी के मामले में मुकदमे दर्ज हो रहे थे और आर्थिक रुप से भी मुश्किल में फंसे हरीश पाठक ने 17 सितंबर 2019 को 9 लोगों से इस बार इसी जमीन का एग्रीमेन्ट 2 करोड़ रुपये में कर लिया।

2011 में हुए इसी जमीन के एग्रीमेन्ट में जहां अयोध्या के प्रॉपर्टी डीलर इरफान अंसारी शामिल थे, वहीं 8 साल बाद इसी जमीन के एग्रीमेन्ट में उनका बेटा सुल्तान अंसारी, उनकी जगह उन 9 लोगों में शामिल था जिन्होंने इस जमीन का एग्रीमेन्ट हरीश पाठक और कुसुम पाठक से कराया।

राम जन्मभूमि ट्रस्ट का प्रवेश

18 मार्च 2021 को इस ज़मीन पर विधिक रूप से श्री रामजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट की एंट्री हुयी और सबसे पहले सुल्तान समेत 9 लोगों के एग्रीमेंट समाप्त कराये गये। उसके बाद हरीश पाठक और कुसुम पाठक, सुल्तान अंसारी और एक नये व्यक्ति रवि मोहन तिवारी को दो करोड़ रुपए में उक्त भूमि का बैनामा कर देते हैं। जिसके महज 5 मिनट बाद ट्रस्ट इसी भूमि को सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी से 18.5 करोड़ रुपये में बैनामा ले लेता है।

ज़मीन का क़ानूनी विवाद एक महीने में खत्म कराया गया
गौरतलब है कि उक्त जमीन हरीश पाठक और कुसुम पाठक के नाम रजिस्टर तो थी, लेकिन दाखिल ख़ारिज (मालिकाना हक नामांतरण) उनके नाम नहीं हुआ था। जमीन खरीदने के बाद से ही इसको लेकर विवाद बरकरार था। लेकिन 18 मार्च को राम जन्मभूमि ट्रस्ट द्वारा ज़मीन की बिक्रीनामा (एग्रीमेंट टू सेल) कराने के ठीक अगले ही महीने यानि 19 अप्रैल 2021 को फैज़ाबाद तहसील के मौजूदा नायब तहसीलदार हृदय राम तिवारी की अगुवाई में करवा लिया गया। 

यानी 18 मार्च 2021 को ज़मीन बेंचने के बाद पाठक दम्पत्ति के नाम पहली बार वास्तविक रूप से मालिक के रूप में ज़मीन की खतौनी में दर्ज़ हुआ। एग्रीमेन्ट के बाद जमीन का बैनामा जब श्री रामजन्मभूमि ट्रस्ट के पक्ष में होगा, तब इसके 35 दिन बाद पाठक दम्पत्ति का नाम खारिज कर पहले सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी का नाम खतौनी में दर्ज होगा, उसके बाद ट्रस्ट का नाम मालिक के तौर पर खतौनी में दर्ज होगा।
गौरतलब है कि श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को रजिस्ट्री के एक महीने बाद 19 अप्रैल को हरीश पाठक और कुसुम पाठक के पक्ष में हुए नामांतरण में सभी आरोप खारिज़ कर दिए। वक्फ डीड के परीक्षण का हवाला देते हुए तहसीलदार ने लिखा है कि जिन पुराने नंबरों से नये नंबर का दावा किया जा रहा है, वह गलत है। वक्फ की ज़मीन के पुराने गाटा संख्या 271, 272, 273, 274, 275, 276 व 277 का कोई भी क्षेत्रफल नई गाटा संख्याओं 242, 243, 244, 246 में शामिल नहीं है। बल्कि इसका गाटा संख्या 256, 257,258, 259, 260 और 262 है। 13 मई 1924 को फकीर मोहम्मद पुत्र निरह व उनकी पत्नी बख्तावर बीबी निवासी बरवारी टोला अयोध्या की कोई औलाद नहीं होने से अपनी समस्त भूमि अल्लाहताला के नाम वक्फ को देने का आवेदन किया। तब पूरी मिल्कियत की मालियत 12 हजार थी, जो दफा-30 के तहत 20 मई 1924 को रजिस्टर्ड हो गया था। इसके साथ संपत्ति को बेचना, खरीदना, गिरवी रखना अवैध हो गया। रजिस्टर्ड वक्फनामा में भूमि बंदोबस्त के पहले के नंबर गाटा संख्या 271, 272, 275, 276, 274, 273 व 277 से मौजा बाग बिजैसी दर्ज था, इसे लेकर दावे किए गए कि भूमि बंदोबस्त के बाद बदलकर उक्त गाटा संख्या 242/1, 242/2, 243, 244 246 हो गया। 

वक्फ कर्ता बख्तावर बीबी व फकीर मोहम्मद के नाम फसली 1344 में खाता संख्या 3 में अंकित गाटे 242, 243, 244 व 240 मौजा बाग बिजेसी अंकित है। खतौनी उर्दू में है। इससे बने नए गाटे पूरी तरह स्पष्ट हैं। गाटा संख्या 274 व 276 से नया गाटा 242 बना है। 

जबकि गाटा संख्या 272 से गाटा संख्या 243 और गाटा संख्या 273 व 275 से नया गाटा संख्या 244 बना है। जबकि गाटा संख्या 277 व 270 से नया गाटा संख्या 246 बना है। बोर्ड में पंजीकृत दस्तावेज में व्यवस्था दी गई है कि खानदान का एक सदस्य इसका मुतवल्ली होता रहेगा। जबकि कुछ लोग सदस्य चुने जाएंगे। वक्फ की प्रॉपर्टी समाज के लिए प्रयोग की जाएगी व्यक्तिगत नहीं। मुतवल्ली के नाम प्रॉपर्टी की वरासत दर्ज होती रहेगी। पहली कमेटी हिंदू-मुस्लिम एकता की परिचायक थी, इसमें सैयद अब्दल, बाबू केशव प्रसाद और जगन्नाथ सिंह शामिल थे।

मौजूदा सर्किल रेट के आधार पर लगता है स्टाम्प ड्यूटी

अधिवक्ता राम कृपाल यादव फूलपुर तहसील में पिछले 25 साल से ज़मीन की रजिस्ट्री और एग्रीमेंट संबंधित मामले देखते आ रहे हैं। वो बताते हैं कि बिक्रीनामा और बैनामा में स्टाम्प ड्यूटी मौजूदा सर्किल रेट के आधार पर लगती है। 

अधिवक्ता राम कृपाल बताते हैं कि जब भी किसी ज़मीन का सौदा होता है तो उसके लिए तयशुदा रकम, उस रकम की अदायगी कब की जाएगी, कितने दिन में पूरी रकम खरीददार दे देगा और अगर तय वक्त के बाद खरीददार रकम नहीं दे पाएगा तो यह एग्रीमेंट आगे बढ़ेगा या रद्द हो जाएगा, ऐसी तमाम शर्तें बिक्रीनामा (एग्रीमेंट टू सेल) में लिखी होती हैं। इस रजिस्टर्ड एग्रीमेंट में स्टाम्प ड्यूटी लगती है जोकि रजिस्टर्ड एग्रीमेंट में ज़मीन की कुल कीमत में लगने वाली रजिस्ट्री का दो फीसदी स्टाम्प ड्यूटी लगती है। और फिर जब ज़मीन की रजिस्ट्री होती है तो उसकी कुल स्टाम्प ड्यूटी से यह दो फीसदी कम कर दिए जाते हैं।

अधिवक्ता राम कृपाल यादव आगे बताते हैं कि एग्रीमेंट के बाद ज़मीन का बैनामा (रजिस्ट्री) होता है। जब किसी ज़मीन का अंतिम सौदा होता है जिसमें ज़मीन की पूरी कीमत अदा होने के बाद ज़मीन का मालिक पूरा हक़ नये मालिक यानी खरीददार को दे देता है। रजिस्ट्री में शहरी विकसित क्षेत्र में सात फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में भूमि की कुल कीमत का पांच फीसदी स्टाम्प ड्यूटी लगती है।

ज़मीन की रजिस्ट्री होने के बाद दाखिल खारिज की प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया भू राजस्व अभिलेखों में नए मालिक का नाम दर्ज़ करने के लिए करवाई जाती है। ज़मीन की रजिस्ट्री के 35 दिन बाद दाखिल खारिज का प्रावधान है। इन 35 दिनों में अगर किसी भी व्यक्ति को ज़मीन के सौदे को लेकर कोई आपत्ति हो, मामला कोर्ट में विचाराधीन हो तो उसका दाखिल खारिज नहीं होगा लेकिन अगर कोई आपत्ति नहीं आती तो सरकार के भू राजस्व अभिलेखों में पुराने मालिक का नाम काटकर नए मालिक का नाम दर्ज़ कर दिया जाता है।

विहिप के प्रवेश के बाद शुरु हुआ अयोध्या में वक्फ बोर्ड की ज़मीनों पर कब्जा करने का चलन

वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह बताते हैं कि विवादित ज़मीन के आस पास की ज़मीनें वक्फ बोर्ड की है। अयोध्या में ज़मीनों को लेकर सुन्नी वक्फ बोर्ड का मुक़दमा चलता रहा है। अयोध्या में विहिप के आने के बाद उनकी ज़मीनों पर भूमाफियाओं द्वारा ज़मीन कब्जा करने का हथकंडा चलता रहा है। तो बहुत सी ज़मींनें जो नजरूल की हैं, सुन्नी वक्फ बोर्ड की हैं उन पर अवैध कब्जा करने की कोशिशें लगातार जारी रही है। राम मंदिर आंदोलन के दौर से ही अयोध्य में जो पुराने स्ट्रक्चर हैं बिल्डिंग हैं, मंदिर मस्जिद हैं उनका रिनोवेशन कराने के लिये डीएम से परमिशन लेना पड़ता है। ज़्यादातर मुस्लिम मामलों में पुलिस प्रशासन रोक लगा देती है। ये कहकर कि इससे लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ेगा। फिर धीरे-धीरे कागजी हेर फेर करके उन ज़मीनों पर कब्जा कर लेते हैं भू माफिया।  

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट)

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