संसद में प्रस्तावित 3 बिलों से जम्मू-कश्मीर में उच्च-जाति के पहाड़ी भी अनुसूचित जनजाति में शामिल होने जा रहे हैं, जिसके विरोध में गुज्जर और बकरवाल समुदाय का विरोध उत्तरोतर तीव्र हो रहा है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि संसद में प्रस्तावित उक्त बिल को सरकार वापस नहीं लेती है तो वे अपने मवेशियों के साथ सड़क पर आ जायेंगे।
समाचार पत्र द हिंदू के संवावदाता से अपनी बातचीत में एक प्रमुख गुज्जर युवा नेता और अधिवक्ता गुफ्तार अहमद चौधरी का कहना था, “हमारी लड़ाई संविधान बचाने की है। यह लड़ाई न सिर्फ जम्मू-कश्मीर में रहने वाले जनजातियों के अधिकारों को बचाने की राजनैतिक लड़ाई है, बल्कि इसका संबंध समूचे देश में रह रहे जनजातीय समुदायों से है। भाजपा की ओर से उच्च जाति के पहाड़ियों को इसमें शामिल करने की मुहिम के गंभीर भड़काऊ नतीजे निकल सकते हैं। मणिपुर में आज क्या हो रहा है, आप इसे देख सकते हैं। भाजपा जनजातियों के खिलाफ रही है, और उसका इरादा एक समुदाय को दूसरे से लड़ाने का है।”
रविवार की शाम जम्मू शहर में चौधरी और उनके समर्थकों के द्वारा केंद्र सरकार की ओर मौजूदा मानसून सत्र में तीन अलग-अलग बिलों को पेश किये जाने के विरोध में मशाल जुलूस आयोजित किया। पहले इन विधेयकों को बजट सत्र में ही पारित कराने की योजना थी, जिनमें संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक 2023, संविधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसूचित जाति आदेश (संशोधन) विधेयक 2023 और जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 पारित होने के लिए लंबित हैं।
यदि बिल पारित हो जाते हैं तो जम्मू, कश्मीर एवं लेह-लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्रों में रह रहे पहाड़ी, गद्दा ब्राह्मण और कोली समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में स्थान मिल जायेगा। केंद्र सरकार का इरादा वाल्मीकि समुदाय को भी अनुसूचित जाति में शामिल करने का है। चौधरी के अनुसार, “गृह मंत्री के साथ की वार्ता विफल साबित हुई। हम अनुसूचित जनजाति में पहाड़ी और ब्राह्मण को शामिल किये जाने की अनुमति नहीं देंगे।”
प्रस्तावित विधेयकों से लाभान्वित होने वाले सामाजिक समूहों एवं वर्गों पर यदि एक नजर डालें तो पता चलता है कि भाजपा इसके जरिये जम्मू-कश्मीर में चुनाव जीतने की जुगत में है। विधेयक के केंद्र में जम्मू के पीर-पंजाल क्षेत्र में बसे पहाड़ी लोगों तक पहुंचने की भाजपा की महत्वाकांक्षी योजना है, जो जम्मू-कश्मीर का एकमात्र क्षेत्र है जहां पर गुज्जर-पहाड़ी विभाजन के कारण जातिगत दोष मौजूद हैं। पहाड़ी लोग जम्मू और कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले मुस्लिम, हिंदू और सिख हैं। पहाड़ियों को अनुसूचित जनजाति घोषित करने से वे परिसीमन आयोग द्वारा पहले से अधिसूचित एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के पात्र हो जाते हैं। पीर-पंजाल में पहाड़ी भाषी आबादी तक भाजपा की पहुंच का कारण पीर पंजाल क्षेत्र के आठ में से सात क्षेत्रों में इनका बहुमत में होना है।
पहले परिसीमन के जरिये जम्मू में विधानसभा की 6 सीट का इजाफा और कश्मीर घाटी में मात्र 1 सीट से भाजपा पहले ही खेल कर चुकी है। जम्मू-कश्मीर में जनसंख्या को आधार बनाने के बजाय भौगौलिक स्थिति को आधार बनाने और देश में लोकसभा की सीटों के लिए जनसंख्या को आधार बनाने की उलटबांसी भाजपा-आरएसएस की मंशा को स्पष्ट करती है। ऊपर से अब अनुसूचित जनजाति कोटे में पहाड़ी और ब्राहमण, कोल को शामिल कर वास्तव में कहीं न कहीं मणिपुर मॉडल को दुहराया जा रहा है।
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)