बिहार विधान सभा चुनाव संपन्न हो चुका है। एग्जिट पोल महागठबंधन की सरकार बना रहे हैं। इस एग्जिट पोल ने किसी को खुश किया है तो किसी को निराश। अब समीक्षा का दौर जारी है। नीतीश से कहां चूक हुई। तेजस्वी कम पढ़े-लिखे, कम अनुभव और कम उम्र के बावजूद नीतीश कुमार से कैसे आगे निकलते दिख रहे हैं। राजनीति के बड़े-बड़े पंडित भी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं। मैं मानता हूं इसका कारण विकास नहीं है, भाजपा है। नीतीश कुमार तब तक सभी वर्गों के दिलों में बसते थे, जब तक वह भाजपा से अलग थे।
भाजपा के साथ होते ही उनका आचार-व्यवहार, बोली-विचार भी उसी तरह का होने लगा, जिस तरह का भाजपा का है। भाजपा जिस तरह अलगाव की बात कहकर, नफरत की राजनीति की नींव डालकर सत्ता में बने रहना चाहती है, नीतीश कुमार भी उसी राह पर चल पड़े। वह भी चुनाव में भाजपा की तरह लालू यादव के कथित जंगल राज से लेकर उनके जेल जाने की चर्चा करने में अपने को पीछे नहीं रखे। उनके इस तरह के भाषण ने पिछड़े वर्ग को ज्यादा नाराज किया। सभी मानते हैं कि नीतीश कुमार पहले ऐसा नहीं थे। वह किसी पर व्यक्तिगत प्रहार नहीं करते थे।
सभी को याद होगा यही नीतीश कुमार भाजपा की ब्लैकमेल वाली राजनीति से तंग आकर उससे सभी तरह का नाता तोड़ लिए थे। तब उन्होंने यहां तक कह डाला था कि मैं मर जाऊंगा लेकिन अब भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा। तब के समय में नीतीश कुमार, देश भर में पिछड़े वर्ग का मजबूत नेता माने जाने लगे थे, बहुत से लोग उन्हें देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में भी देखने लगे थे, लेकिन भाजपा ने अंदर खाने ऐसा दांव खेला कि नीतीश कुमार उसके प्रेमजाल में इस कदर फंसे कि उनका भी सब कुछ भाजपा की तरह हो गया। नीतीश कुमार समय पर यह समझ नहीं पाए। वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तो बने रहे, लेकिन अपनी जमीन खोने लगे। इसी का फायदा राजद नेता तेजस्वी यादव ने उठाया।
राजद के तेजस्वी यादव ने चुनाव में पूरा फोकस बेरोजगारी पर किया। इससे युवा वर्ग तो प्रभावित हुआ ही, पिछड़ा वर्ग तेजस्वी में ही बिहार का बेहतर भविष्य देखने लगा। अब बिहार की पूरी तस्वीर साफ दिखने लगी है। नतीजे आने के बाद नीतीश कुमार को भी इस बात का एहसास हो जाएगा कि भाजपा के साथ आकर उन्होंने सही नहीं, गलत किया। बिहार की सत्ता नीतीश के हाथ से फिसलने के बाद उन्हें अब देश के लोगों का विश्वास जीतने में समय लगेगा। वह भी तब संभव होगा, जब वह भाजपा का साथ छोड़कर खुद के विवेक से आगे की राजनीति तय करेंगे।
मुख्यमंत्री योगी ने भी बिगड़ा खेल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का खेल कुछ हद तक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदत्यिनाथ ने भी बिगाड़ा। सभी को पता है के नीतीश भाजपा वाली सोच नहीं रखते। वह सभी संप्रदाय को साथ लेकर चलने वाले नेता हैं। फिर यह बात उन्हें क्यों समझ में नहीं आई कि बिहार में योगी का चुनाव प्रचार करना, उनके लिए फायदेमंद नहीं नुकसानदायक होगा। याद होगा इसी चुनाव में बिहार के कटिहार में भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रचार करते समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने कहा था कि विरोधी दल घुसपैठियों को सहयोग देते हैं, बहुत ही जल्द घुसपैठियों को बाहर निकाला जाएगा।
यह बात नीतीश कुमार को अच्छी नहीं लगी थी। उन्हें उसी वक्त इस बात का एहसास हो गया कि राजनीति का खेल भाजपा के चलते बिगड़ रहा है। तभी तो किशनगंज में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने कहा था, वह कौन दुष्प्रचार करता है, फालतू बात करता है, यहां से कौन किसको देश से बाहर करता है। ऐसा किसी में दम नहीं है। नीतीश तो यहां तक बोल गए कि कुछ लोग चाहते हैं, समाज में हमेशा रगड़ा–झगड़ा चलता रहे। हालांकि इस बात के कई मायने निकाले जाने लगे, लेकिन समझने वाले नीतीश की पूरी मंशा को समझ चुके थे।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि योगी के इन शब्दों ने बिहार में तीसरे चरण के चुनाव में ज्यादा नुकसान किया। इसलिए कि इस चरण के चुनाव में अति पिछड़ा और मुस्लिम समुदाय के लोग अधिक संख्या में थे। नीतीश कुमार उन वोटरों को नाराज करना नहीं चाहते थे, लेकिन अब देर हो चुकी थी। नीतीश कुमार को यह बात पहले ही समझ जानी चाहिए थी, योगी अपने भाषणों में जिस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं, क्या उससे समाज के सभी वर्ग खुश हो सकते हैं। योगी के इस भाषण के बाद नीतीश कुमार को इस बात का एहसास हो चुका था कि भाजपा के चलते उनका खेल बिगड़ चुका है, इसीलिए उन्होंने जनता में यह दांव खेला कि यह उनका आखरी चुनाव है, लेकिन बिहार की जनता इससे पहले ही यह तय कर चुकी थी कि उन्हें किसके साथ रहना है। नतीजे आने के बाद नीतीश कुमार अपनी इस गलती पर अवश्य मंथन करेंगे।
मैं तो कहता हूं केवल नीतीश कुमार ही नहीं, भाजपा के अन्य नेताओं को भी यह बात जल्द समझ जानी चाहिए कि समाज को बांट कर की जाने वाली राजनीति ज्यादा दिनों तक टिकाऊ नहीं हो सकती। केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भी भाजपा के नेता राजनीति में ज्यादा दिनों तक टिके नहीं रह सकते। उन्हें जमीन पर काम करना होगा। हर वर्ग को साथ लेकर चलना होगा, दबंगई की भाषा छोड़नी होगी, आचरण में सुधार करना होगा। अभी के समय में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। समस्याओं को लेकर जनता की नाराजगी बढ़ती जा रही है, लेकिन भाजपा नेता और उनके अधिकारी ऊपर तक यही संदेश देने में जुटे हैं कि धरती पर सभी लोग हर दिन दूध-भात खा रहे हैं।
बिहार चुनाव का यूपी पर भी होगा असर
बिहार विधान सभा का चुनाव यूपी की राजनीति को भी प्रभावित करेगा। संभव है भाजपा इस पर गहन मंथन करे। मुख्यमंत्री योगी पर भी विचार करे। इसलिए कि पिछड़े वर्ग की यूपी में भी गोलबंदी शुरू हो चुकी है। यहां भी विकास के मुद्दे कम हैं, दबंगई और तानाशाही से ज्यादा लोग तंग हैं। हाथरस कांड, विकास दुबे एनकाउंटर, बलिया का दुर्जनपुर मर्डर कांड आदि मामले यूपी में अभी भी चर्चा में हैं। बिहार विधान सभा चुनाव में तेजस्वी को भाजपा की ओर से जंगलराज का युवराज कहा गया। लालू प्रसाद यादव पर भी कई तरह के कटाक्ष खुले मंच से हुए, अब यूपी की बारी है। यहां सपा के युवराज अखिलेश यादव हैं।
2022 में यूपी में विधान सभा के चुनाव होने हैं। पिछडे वर्ग में अखिलेश यादव सबसे मजबूत नेता हैं। भाजपा केवल उच्च वर्ग की पार्टी बनते दिख रही है। अभी कुछ दिनों पहले बसपा सुप्रीमो मायावती का कनेक्शन भी भाजपा से जुड़ते देखा गया। ऐसे में दलित वर्ग भी संभव है मायावती के बाद अखिलेश यादव में ही अपनी भलाई देखे। यूपी में सुहेलदेव पार्टी के ओमप्रकाश राजभर भी भाजपा से अलग होने के बाद अपने समाज को लेकर लगातार भाजपा पर प्रहार करते दिख रहे हैं। सपा की ओर ब्राह्मणों का भी झुकाव देखा जा रहा है। लंबे समय से किनारे पर खड़ी कांग्रेस भी प्रियंका गांधी के माध्यम से अपनी जमीन मजबूत करने लगी है। प्रियंका गांधी यूपी के हर छोटे, बड़े मामलों में दख़ल दे रही हैं। आगे के राजनीतिक समीकरण चाहे जो हों, लेकिन वर्तमान हालात देख यही कहा जा सकता है कि भाजपा की जमीन कई राज्यों से खिसकने वाली है। अभी बिहार, 2022 में यूपी में भी बड़े उलटफेर के संकेत अभी से ही मिलने लगे हैं।
(एलके सिंह, बलिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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