ग्राउंड से चुनाव: बीजेपी का आख़िरी मुस्लिम उम्मीदवार!

डीडवाना, राजस्थान। वह 21 नवंबर की हल्की सर्द शाम थी, जब राजस्थान के मारवाड़ इलाके के डीडवाना शहर के लोग अपने घरों के बाहर निकल आए थे। रास्तों के किनारे गाड़ियों के अम्बार लगे थे और ऐन रास्तों के बीच में नहरी पानी की तरह लोग अपने नेता के इंतजार में आवाजाही कर रहे थे। कुछ देर बाद, चमकदार लाइटों से सजी और डीजे से लदी पिकअप से आ रही रोशनी और संगीत की आवाज से सभी लोग चौंकन्ने हो गए और कानाफूसी चंद सैकड़ों में एक रौले में बदल गई, “यूनुस भाई” आ गए।

उस तेज कंपन चढ़ाने वाले मारवाड़ी गानों वाले डीजे के पीछे थिरकते हुए युवाओं का एक हुजूम था। हुजूम के बीच सजी हुई एक घोड़ी और घोड़ी पर डीडवाना के निर्दलीय उम्मीदवार यूनुस खान। वह हाथ उठाकर लोगों का अभिवादन कर रहे थे।

करीब एक किलोमीटर बाद शहर के फतेहपुर गेट के भीतर एक उनकी एक बड़ी जनसभा हुई। अपनी जनसभा से पहले उन्होंने हमें बताया, “आप मेरे लोगों की भीड़ देखिए। मेरे लोगों का जूनुन देखिए। पार्टी ने मुझे बेशक मुझे टिकट न दिया हो, मेरी जनता ने मुझे टिकट दिया है और मैं अभी इसे इन्जॉय कर रहा हूं।”

राजस्थान में पिछली भाजपा सरकार (2013-18) में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे यूनुस खान को इस बार भाजपा से टिकट न मिलने पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार शबीक उस्मानी ने मुझे बताया, “वह भाजपा से डीडवाना विधानसभा क्षेत्र से टिकट के दावेदार थे, लेकिन इस बार भाजपा ने 200 में से एक भी मुस्लिम को विधानसभा टिकट नहीं दिया है, जबकि 30 सीटों पर मुस्लिम सीधे असर डालते हैं। राष्ट्रीय राजनीति में मोदी-शाह के उभार से पहले यूनुस खान को राजस्थान की भाजपा में पावरफुल नेता और मिनिस्टर माना जाता था। वसुंधरा की सरकार में वह सबसे पावरफुल मंत्री माने जाते रहे। लेकिन साल 2018 के बाद उनके दिन लद गए।”

शबीक ने मुझे बताया, “यूनुस के दिन उस दिन लद गए थे जब राष्ट्रीय नेतृत्व ने गजेन्द्र शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भेजा था। यूनुस उनका विरोध करने दिल्ली भी गए थे, लेकिन वे दिल्ली से खाली हाथ लौट आए।”

साल 2018 का चुनाव कवर करने वाले राजस्थान के पत्रकार आनंद चौधरी ने मुझे बताया, “18 के चुनाव में ही यह तय हो गया था कि भाजपा यूनुस खान को टिकट नहीं देने वाली है, लेकिन वसुंधरा राजे के कारण उनका टिकट न काट सकी। उन्हें बिल्कुल आखरी के दिन टिकट दिया गया, जब चुनावी नामांकन प्रक्रिया में सिर्फ एक दिन बचा था। वह भी टोंक से, जो उनके कार्यक्षेत्र मारवाड़ से काफी दूर है। टिकट मिलने के बाद, आनन-फानन में उनको डिडवाना से ही अपने कार्यकर्ताओं की बसें भरनी पड़ीं, ताकि नामांकन में भीड़ दिखा सकें।”

साल 2018 के चुनाव में वे टोंक से सचिन पायलट के सामने हार गए और उसके बाद वापस डीडवाना आकर काम करने में जुट गए। प्रदेश भाजपा कमेटी के एक सीनियर नेता ने मुझे बताया, “2018 के बाद से ही यूनुस को पार्टी के कार्यक्रमों में निमंत्रण देना बंद कर दिया गया था। उनको पार्टी के मुख्य कार्यक्रमों से दूर रखा जाने लगा। हालांकि वह अपने विधानसभा क्षेत्र में लोगों के बीच लगातार सक्रिय रहे। इस बार भी उनको ऐन आखरी वक्त तक लगता रहा कि उनको ही टिकट मिलेगा। वह वसुंधरा राजे के जरिए लगातार लॉबिंग करते रहे लेकिन उनको कोई भाव नहीं दिए गए।”

इसी महीने 2 नवंबर की तारीख को अपने समर्थकों से घिरे यूनुस खान का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह अपनी टिकट कटने पर अपने समर्थकों को संबोधित होते दिखाई दे रहे हैं। अपने समर्थकों को यूनुस खान कहते हैं कि जिन्हें टिकट दिया गया है उन्हें उससे कोई दिक्कत नहीं है वह भी उनके छोटे भाई जैसे हैं, पार्टी टिकट न भी देती, कम से कम से बात तो करती। लेकिन पार्टी ने मुझे इस लायक भी नहीं समझा। अब फैसला जनता के हवाले है। यूनुस खान का यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ।

उनके इसी कथन को सवाल बनाकर जब मैंने उनसे पूछा तो वह सीधा जवाब देने से बचे और उन्होंने अपने जवाब में बीजेपी का सीधा नाम भी नहीं लिया। उन्होंने मुझसे कहा, “अभी मुझे जनता का जो प्यार मिल रहा है उसे इंजॉय करने दो। 25 को एकबार मतदान हो जाए। 3 तारीख को एकबार परिणाम आ जाए, उसके बाद मैं स्टेटमैंट करूंगा। परिणाम आने के बाद सब चीजों का जवाब अपने आप मिल जाएगा।”

अपने समर्थकों से घिर यूनुस खान बड़ी चतुराई से मेरे सवालों को जवाब दे रहे थे। उन्होंने अपने आपको बीजेपी से अलग करने की बात भी नहीं कबूली और न ही यह बताया कि वह जीतने के बाद बीजेपी में वापस जाएंगे या नहीं। करीब दस मिनट बातचीत करने के बाद उन्होंने अपने पीआर टीम के एक आदमी को मेरा हाथ पकड़ा दिया और कहा कि आप इनसे बात कीजिए।

उनके इस जलसे में हजारों की भीड़ जमा थी। वह मंच पर भाषण देने के लिए चले गए और उनकी पीआर टीम के सदस्य ने मुझे बताया, “अबकी बार बीजेपी की क्लियर मैजोरिटी नहीं आ रही है। 90-95 पर अटक जाएगी। ऐसे में सीएम भी वसुंधरा राजे बनेंगी और नेशनल लेवल की बीजेपी जो चाहती है वह नहीं होगा। इस बार निर्दलियों की पूछ करनी ही पड़ेगी, चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस।”

उनकी पीआर टीम के सदस्य भी हमारे बीजेपी से अलग हो जाने के सवालों से बचते रहे। ऐसा लग रहा था मानों उन्हें यकीन हो कि जीतने के बाद सब सही हो जाएगा और उन्हें वापस सम्मान दिया जाएगा।

80 के दशक में यूनुस खान अपने कैरियर के शुरूआती दिनों में जब जयपुर में एलआईसी में नौकरी करने लगे तो उस समय उनका संपर्क भैरोसिंह शेखावत के पक्ष में काम करने वाली एक क्षत्रिय महासभा से हुआ। यूनुस कायमखानी मुस्लिम हैं जोकि मुस्लिम राजपूत माने जाते हैं। उन्हीं दिनों यूनुस, भैरोसिंह शेखावत की कैबिनेट में मंत्री रहे रमजान खान से मिलने जुलने लगे थे।

क्षत्रिय महासभा और रमजान खान के कारण भैरोसिंह शेखावत से भी यूनुस की नजदीकियां बढ़ने लगीं और शेखावत ने उन्हें मारवाड़ और शेखावटी के मुस्लिम राजपूतों के नेता के तौर पर उभारने के लिए साल 1998 में डीडवाना से टिकट दे दिया। वह अपना पहला चुनाव हार गए, लेकिन साल 2003 में बीजेपी ने उनको ही दोबारा टिकट दिया और वह उस साल कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर पहली बार विधानसभा में दाखिल हुए।

वह जितने भैरोसिंह शेखावत के करीबी रहे, उससे कहीं ज्यादा वसुंधरा राजे के नजदीकी बन गए और उनकी सरकार में जूनियर मंत्री के तौर पर काम करने लगे। साल 2008 का चुनाव वह फिर हार गए लेकिन 2013 के चुनाव में उन्हीं को टिकट दिया गया। साल 2013 के चुनाव में वह सिर्फ अपनी सीट पर न रहकर बाकी की उन सीटों पर भी चुनाव प्रचार करने गए जिनपर मुस्लिमों की ठीक-ठाक संख्या है।

राजस्थान बीजेपी में वह मुस्लिम चेहरे के तौर पर स्थापित होने लगे थे। साल 2013 का यह चुनाव उन्होंने अपने नाम किया और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मंत्रिमंडल में पीडब्ल्यूडी मंत्री बनकर काम करने लगे। साल 2013 से लेकर 2018 तक उन्हें भाजपा सरकार के सबसे पावरफुल मंत्री भी माना गया।

लेकिन साल 2018 के बाद से ही उन्हें बीजेपी ने इतना अलग-थलग कर दिया कि भाजपा की जिला इकाई भी अपने कार्यक्रमों से उन्हें दूर रखने लगी। न ही जिला लेवल पर और न ही राज्य स्तर पर उन्हें किसी कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया।

उनके एक करीबी ने मुझे बताया, “वसुंधरा जी, अभी भी यूनुस जी की बहुत कद्र करती हैं। उन्हें दो चीजों की सजा एकसाथ मिल रही है। एक तो वसुंधरा के करीबी होने की और एक मुसलमान होने की। लेकिन वह अपने मुसलमान होने की सजा पर कभी बात नहीं करते। हमारे जैसे एकाध कार्यकर्ता अगर कह भी दें तो वह कहते हैं कि हवा पलट रही है। देशस्तर पर बदलाव होगा तो यहां भी हमारे दिन दोबारा फिरेंगे। अबकी बार भाजपा हिंदू-मुस्लिम करके ही चुनाव लड़ रही है इसलिए तो एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया।”

राजस्थान में यूनुस खान भाजपा के आखरी मुस्लिम उम्मीदवार थे। अब वह अपने आखरी होने के दुख से निकलकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। कम से कम 3 दिसंबर तक तो वह निर्दलीय तो हैं ही। बाकी राजस्थान के राजनैतिक लोगों को पसंदीदा जुमला “भविष्य के गर्भ में होने” से यह रिपोर्ट बंद होती है।

(राजस्थान से मनदीप पुनिया की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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Tolaram jakhar
Tolaram jakhar
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4 months ago

बहुत रोचक रिपोर्ट मनदीप जी , शुक्रिया। तोलाराम जाखड़