कोई प्रभावशाली समूह यदि डॉक्टरों का भयादोहन करके अनुचित लाभ लेता है, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। एक मामले से डरे हुए डॉक्टर अपनी भूमिका सीमित कर लेंगे। इससे भविष्य में लाखों मरीजों का नुकसान होगा। कोई भी डॉक्टर खुद अपनी प्रतिष्ठा और जान की परवाह पहले करेगा।
आठ नवंबर को जयपुर के एक अस्पताल में हुई घटना पूरे देश के मेडिकल समुदाय के लिए चिंताजनक है। यहां एक एडवोकेट मरीज का लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टमी पद्धति से ऑपरेशन हुआ। इसके बाद कतिपय मेडिकल जटिलता के कारण मृत्यु हुई। मरीज पक्ष के लोगों ने अस्पताल में हंगामा कर दिया। तोड़फोड़ की। सड़क जाम भी लगाया।
इसके बाद दबाव में पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में तथाकथित ‘मध्यस्थता’ कराई गई। अस्पताल से कुल 26 लाख वसूलने की शर्त पर तथाकथित वीडियो जारी कर मामला खत्म बताया गया।
जबकि इस मामले में ‘राजस्थान मृत शरीर का सम्मान अधिनियम 2023’ का भी उल्लंघन हुआ है। इस कानून के तहत कार्रवाई करने के बजाय पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में समझौता करवाया जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
पुलिस संरक्षण में भयादोहन पर आधारित ‘त्वरित न्याय’ का यह मॉडल हमारी न्यायिक प्रणाली पर सवालिया निशान है। यह त्वरित न्याय किसी खाप पंचायत के समान है। तथाकथित त्वरित न्याय के इस मॉडल की विस्तृत विवेचना होनी चाहिए। कानून के छात्रों को इसका अध्ययन करना चाहिए।
मेडिकल एसोसिएशंस के लिए यह गहरे चिंतन का विषय है। यह पहली घटना नहीं है। पहले भी अस्पतालों ने दबाव में पैसे देकर अपनी जान बचाई है। चूरू जिले के सादुलपुर कस्बे में गत वर्ष ग्यारह लाख रुपए की वसूली हुई थी।
उस वक्त मेडिकल एसोसिएशंस ने पत्र लिखकर चिंता जाहिर की थी। लेकिन सरकार ने संज्ञान नहीं लिया। अब पानी सर के ऊपर निकल गया है। संभवतः यह पहला मामला है, जिसमें वीडियो बनाकर समझौते की जानकारी दी गई है।
यह निजी अस्पतालों के लिए चिंताजनक स्थिति है। आज हर चिकित्सक के मन में भयादोहन की चिंता है। भय है कि आकस्मिक मृत्यु पर मुआवजा मांगा जा सकता है। क्या पुलिस प्रशासन ऐसे मामलों में अस्पतालों पर अनुचित दबाव बनाएंगे?
चिकित्सकों और अस्पतालों के विरुद्ध शिकायत निवारण के कई विकल्प उपलब्ध हैं। इनके बजाय क्या अब तथाकथित मेडिकल नेग्लीजेंस मामलों का निस्तारण पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में पैसे देकर होगा? कौन-सा कानून ऐसे कथित त्वरित न्याय की अनुमति देता है?
राजस्थान के कुछ सुदूर इलाकों में किसी रोगी की आकस्मिक मृत्यु के मामले में परिजन शव को सड़क पर या अस्पताल के सामने रखकर मुआवजा मांगते थे। इस भयादोहन को रोकने के लिए राजस्थान सरकार ने वर्ष 2023 में एक महत्वपूर्ण कानून बनाया था।
‘राजस्थान मृत शरीर का सम्मान अधिनियम 2023’ पारित किया गया था। यह कानून मृत शरीर की गरिमा सुनिश्चित करता है। शव के साथ विरोध प्रदर्शन करने वालों पर जुर्माने तथा पांच साल तक जेल की सजा का प्रावधान है।
यह कानून बनने के बाद आशा थी कि मौताणा के नाम पर डॉक्टरों का भयादोहन नहीं होगा। मगर यह हो न सका। पहले यह कुरीति कुछ आदिवासी क्षेत्रों तक सीमित थी। जयपुर की घटना ने साबित किया कि यह अब राजधानी में पुलिस प्रशासन के संरक्षण में बढ़ रही है।
चिकित्सक समुदाय के लिए आने वाला समय बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। निजी अस्पताल घोर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं के कारण निजी अस्पतालों की आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई है।
ऐसे में कथित त्वरित न्याय का यह मॉडल राजस्थान की निजी स्वास्थ्य सेवाओं को और कमजोर करेगा। इससे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर मरीजों का दबाव बढ़ेगा। राजस्थान ही नहीं, पूरे देश के लिए इसके दूरगामी परिणाम होंगे।
प्रसंगवश, एक सवाल तो बनता है। जिस अदालती मुकदमे में किसी पक्ष की हार हो जाए, उसमें क्लाइंट को अपने वकील से मुआवजा मिलेगा क्या?
(डॉ राज शेखर यादव वरिष्ठ फिजिशियन होने के साथ यूनाइटेड प्राइवेट क्लिनिक्स एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान के प्रदेश संयोजक हैं।)
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