कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार तेजी से एक के बाद एक फैसले लेती जा रही है। अब बारी स्कूली पाठ्यकमों की है, जिसे पिछली भाजपा सरकारों ने 9 वर्षों में एक-एक कर लागू किया था। कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तिकाओं में कुल मिलाकर 45 बदलाव किये गये हैं। बता दें कि कर्नाटक सरकार ने गुरुवार के दिन पाठ्य पुस्तकों में संशोधन की कार्यवाई पूरी करते हुए घोषणा की है कि आरएसएस संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार सहित चक्रवर्ती सुलिबेले से जुड़े पाठ को पाठ्यक्रम से हटा दिया है। कांग्रेस सरकार की इस पहलकदमी पर भाजपा का कहना है कि अगर पाठ्यकम में बदलाव किया जाता है तो वह खामोश नहीं बैठने वाली है।
सावित्रीबाई फुले, आंबेडकर और नेहरू से जुड़े अध्यायों को पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल में पाठ्यक्रम से हटा दिया गया था, उन्हें कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने वापस जगह देने का फैसला लिया है। इसके साथ ही कर्नाटक सरकार ने सभी सरकारी कार्यालयों में संविधान की प्रस्तावना की तस्वीर लगाने को अनिवार्य बना दिया है।
कर्नाटक के शिक्षा मंत्री मधु बंगरप्पा ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा, “आज मंत्रिमंडल की बैठक में हमने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किये गये वादे को पूरा करते हुए कुछ बदलाव किये हैं। पिछली भाजपा सरकार ने जो भी बदलाव किये थे, उन्हें वापस लिया गया है।”
उन्होंने आगे बताया कि “बच्चों के हितों के लिए जो भी आवश्यक है उसे किया जायेगा। अभी सिर्फ कक्षा 6 से लेकर कक्षा 10 तक की पाठ्यपुस्तकों में कन्नड़ एवं सामाजिक विज्ञान की पुस्तिका में ये बदलाव किये गये हैं। भाजपा सरकार द्वारा पाठ्यक्रम में संशोधन से पहले जो पाठ पढाये जा रहे थे, उन्हें नहीं हटाया जा रहा है।”
उन्होंने कहा, “भाजपा सरकार के दौरान पाठ्यक्रम के कुछ हिस्सों को व्यक्तिगत प्राथमिकता के आधार पर हटा दिया गया था। भाजपा द्वारा समाज सुधारिका सावित्रीबाई फुले पर पाठ को हटा दिया गया था, उसे बहाल कर दिया गया है और दक्षिणपंथी चक्रवर्ती सुलिबेले के पाठ को हटा दिया गया है।”
शिक्षा मंत्री ने आगे कहा, “चूंकि वर्तमान सत्र के लिए छात्रों के बीच पाठ्य-पुस्तकें पहले ही वितरित की जा चुकी थीं, हलांकि कुछ प्रमुख विषयों की ही पढ़ाई हुई है, शिक्षक एक माह बाद भाषा सहित अन्य विषय पढ़ाएंगे। ऐसे में मूल पाठ्य पुस्तकों को हटाने की जगह पूरक बुकलेट की आपूर्ति 10 दिनों के भीतर सभी स्कूलों तक पहुंचा दी जायेगी।”
उन्होंने बताया, “बदलाव के लिए 5 सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी, जिसमें मुख्यमंत्री सहित कई लोग भी शामिल रहे हैं। इसी कमेटी की देख-रेख में ये बदलाव किये गये हैं। अभी हमने जितना बेहद आवश्यक था उतना ही बदलाव किया है।”
शिक्षा मंत्री ने कहा है, “भाजपा सरकार द्वारा पिछले वर्ष पाठ्यपुस्तकों जो बदलाव किये थे, हमने उन्हीं को हटाया है। अभी हमारी ओर से कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। हां, हेडगेवार के पाठ को पाठ्यक्रम से हटाया गया है। वास्तव में कई छोटे-मोटे बदलाव किये जाने थे, जिन्हें फिलहाल नहीं किया गया है। एक महीने के भीतर पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन के लिए एक नई कमेटी का गठन किया जायेगा, और उसकी सिफारिशों के आधार पर अगले शैक्षणिक सत्र के लिए संशोधन किया जायेगा।”
शिक्षकों को क्या पढ़ाना है और क्या नहीं, इसके बारे में आवश्यक निर्देश भी दिए जायेंगे। साथ ही मंत्रिमंडल ने सभी स्कूलों में भारतीय संविधान की प्रस्तावना को पढ़ाए जाने को अनिवार्य बना दिया है। सामाजिक कल्याण मंत्री एचसी महादेवप्पा ने कहा कि “सभी छात्रों को संविधान की प्रस्तावना को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सभी सरकारी एवं अर्ध-सरकारी प्रतिष्ठानों में संविधान की प्रस्तावना की तस्वीर का प्रदर्शन अनिवार्य किया जायेगा।”
हिन्दुत्ववादी समूहों की ओर से अखंड भारत की परिकल्पना में आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार, सावरकर और गोलवलकर पूज्यनीय हैं। लेकिन चंद दिनों बाद ही कर्नाटक में स्कूली पाठ्य पुस्तिका से उन्हें निकाल बाहर करने के इस कदम से उनका तिलमिलाना स्वाभाविक है।
एक ओर जहां अखिल भारतीय स्तर पर देश में छात्रों को क्या पढ़ाना है और क्या नहीं, को लेकर एक-एक कर केंद्र सरकार कदम बढ़ा रही है, ऐसे में सिद्धारमैया सरकार जिस तेजी से इसे कर्नाटक में निर्मूल करती जा रही है, उसकी अनुगूंज देश भर में जल्द सुनाई दे सकती है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)