ओडिशा के बालासोर रेल हादसे में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 288 लोगों की जान जा चुकी है। सैकड़ों लोग गंभीर रूप से घायल हैं। देश और दुनिया यह जानना चाहती है कि आखिर यह रेल हादसा क्यों हुआ, इसके लिए कौन जिम्मेवार है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा दिसंबर 2022 में प्रस्तुत रिपोर्ट इस हादसे की असली वजह और अपराधियों के बारे में बताती है। यह रिपोर्ट बताती है कि जो कुछ हुआ वह अचानक नहीं हुआ।
सीएजी की ओर से कुछ माह पहले ही दिसंबर 2022 में ही भारतीय रेलवे में डेरेलमेंट पर परफॉरमेंस ऑडिट रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में देश के कानून निर्माताओं को रेलवे की स्थिति के बारे में कुछ अहम जानकारियां पेश की गई थीं, जिस पर देश की सर्वोच्च नीति-निर्धारक संस्था को फैसला लेना था। आइये एक नजर उन बिंदुओं पर डालते हैं:
- 2017-18 से लेकर 2020-21 के बीच हुई कुल 217 महत्वपूर्ण रेल दुर्घटनाओं में से तीन चौथाई दुर्घटना रेलगाड़ी के पटरी से उतर जाने के कारण हुई थीं।
- 217 रेल दुर्घटनाओं में से 163 में डेरेलमेंट अहम कारक था।
- रेल में आग लगने से होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या 20 थी।
- मानवरहित लेवल-क्रासिंग की 13 घटनाएं
- रेल की टक्कर की घटना 11
- मानव अवस्थित लेवल-क्रासिंग दुर्घटना की संख्या 8
- अन्य कारक 2 रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि पिछले कुछ वर्षों से ट्रैक नवीनीकरण के काम के लिए निर्धारित किये जाने वाले धन में भी कटौती की गई। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि जो फण्ड आवंटित भी किया गया था, उसे भी पूरी तरह इस्तेमाल में नहीं लाया जा सका।
सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि रेलवे के द्वारा दुर्घटनाओं को दो श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है। पहली श्रेणी में गंभीर दुर्घटनाओं (एक या उससे अधिक मानव जीवन की हानि, रेलवे संपत्ति को नुकसान, रेलवे ट्रैफिक में व्यवधान को शामिल किया जाता है। इसके अलावा अन्य सभी दुर्घटनाओं को ‘अन्य ट्रेन दुर्घटना’ की श्रेणी में रखा जाता है। इसके तहत 2017-18 से लेकर 2020-21 के बीच कुल 1,800 दुर्घटनाओं को दर्ज किया गया है। इसमें भी 68% (1,229 दुर्घटनायें) पटरी से उतरने की घटनाएं हैं। गंभीर एवं अन्य दुर्घटनाओं (217+1,800) में से 1,392 दुर्घटना (69%) डेरेलमेंट के अंतर्गत आती हैं। चूंकि रेलवे दुर्घटनाओं में पटरी से ट्रेन के उतर जाने की संख्या बहुतायत में हैं, इसी वजह से सीएजी ने इस विषय पर जोर देते हुए अपनी रिपोर्ट पेश की थी।
सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि इसके लिए रेलवे की 16 जोनल एवं 32 डिवीजन से प्राप्त 1129 एन्क्वायरी रिपोर्ट के विश्लेषण से 1,392 डेरेलमेंट दुर्घटनाओं का पता चलता है और करोड़ों का नुकसान हुआ।
इन डेरेल होने की घटनाओं का विश्लेषण 23 महत्वपूर्ण कारकों को चिंहित कराता है:
- ट्रैक मरम्मत का काम (167 मामले)
- ट्रैक पैरामीटर की निर्धारित सीमा से बाहर जाने की घटना (149 मामले)
- खराब ड्राइविंग/निर्धारित सीमा से तेज गति से ट्रेन संचालन (144 मामले)
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (आरआरएसके) के प्रदर्शन का भी आकलन किया है। इसके लिए 2017-18 में 5 वर्षों के लिए 1 लाख करोड़ रूपये का कार्पस बनाया गया था, जिसमें प्रति वर्ष 20,000 करोड़ रूपये जमा करने थे। इसमें 15,000 करोड़ रूपये का अंशदान बजट से और शेष 5,000 करोड़ रूपये रेलवे को अपने संसाधनों से जुटाने थे। बजट से तो हर साल धनराशि मिली, लेकिन रेलवे से पिछले 4 वर्षों में यह धनराशि नहीं जुटाई गई। इस प्रकार 4 वर्षों में रेलवे की कुल देय राशि जहां 20,000 करोड़ बनती है, उसमें 15,777 करोड़ रूपये की कमी रही, जो कि 78.88% लक्ष्य से पीछे है, और इस प्रकार आरआरकेस फण्ड के निर्माण का प्राथमिक उद्येश्य ही खत्म हो जाता है।
ट्रैक नवीनीकरण
इस काम के लिए भी फण्ड आवंटन में कमी की गई है। वर्ष 2018-19 में जहां ट्रैक नवीनीकरण के लिए 9,607.65 करोड़ रूपये आवंटित किये गये थे, वर्ष 2019-20 में इसे घटाकर 7,417 करोड़ रूपये कर दिया गया। इतना ही नहीं, ट्रैक रिन्यूअल के लिए निर्धारित फण्ड का भी 100% उपयोग नहीं किया जा सका। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है, “2017-21 के दौरान 1,127 रेल डेरेल की दुर्घटनाओं में से 289 दुर्घटनायें ट्रैक नवीनीकरण न होने के करण हुई थीं।”
पीएम मोदी ने दुर्घटना स्थल पर जाकर स्थिति का मुआयना किया और घोषणा की है कि इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों के ऊपर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि सीएजी की रिपोर्ट में तो साफ-साफ़ दोषियों की पहचान हो रही है। संसद के पटल पर दिसंबर 2022 की सीएजी की रिपोर्ट असल में सरकार और रेलवे के नीति-नियंताओं को कटघरे में खड़ा कर रही है। कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन किस पर और कौन सजा देगा? यह बड़ा सवाल बना हुआ है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक पद है, जिसके पास भारत सरकार सहित सभी प्रादेशिक सरकारों एवं पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के सभी तरह के एकाउंट्स की ऑडिट करने का अधिकार प्राप्त है। पूर्ण स्वायत्त संस्था के रूप में काम करने के कारण सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त है, जिसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। संविधान सभा में चर्चा के दौरान आंबेडकर ने कहा था “भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी है। उसका काम है कि वह देखे कि संसद द्वारा अनुमोदित खर्च की सीमा से अधिक धन खर्च न हो, और निर्धारित मदों में ही खर्च हो।”
लेकिन सीएजी नामक संस्था का नाम हम पिछली दफा यूपीए शासन काल में ही सुन पाए थे। पिछले 9 वर्षों में सीएजी कौन हैं, उसकी रिपोर्ट क्या कहती है और यह संस्था काम भी कर रही है, या बंद हो चुकी है के बारे में देश अनभिज्ञ है। आज जब देश अपने इतिहास के सबसे बड़े रेल हादसे से जूझ रहा है तो कुछ समाचारपत्रों ने सीएजी की रिपोर्ट और संस्तुतियों को खंगालने का काम किया है, वर्ना अभी तो जो मोदी सरकार ने कह दिया वही ब्रह्म-वाक्य बन चुका था।
( रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)