नई दिल्ली। एक बार फिर मोदी सरकार ने सबसे बड़ा हमला देश के सबसे कमजोर तबके यानी दलितों पर बोला है। सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़ी संस्था सीबीएसई ने दलित छात्रों की फीस में 24 गुना की बढ़ोत्तरी कर दी है। इसके लागू हो जाने पर दलित छात्रों का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा से पूरी तरह से वंचित हो जाएगा। डॉ. भीमराव आंबेडकर का केंद्रीय नारा था शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो। लेकिन सरकार ने दलित छात्रों को शिक्षा से दूर कर अब इस नारे की कमर ही तोड़ने की तैयारी कर ली है। अगर पिछले 6 सालों की भाजपा सरकार की गतिविधियों पर नजर दौड़ाएं तो उसने सबसे ज़्यादा सौतेला व्यवहार दलितों और आदिवासी समाज के साथ किया है। सरकार ने न केवल इन समुदायों के अधिकारों पर हमले किये हैं बल्कि उन्हें एक बार फिर हर तरीके से हाशिये पर डालने की कोशिश की है। नतीजतन दलित भाजपा की राजनैतिक उपेक्षा, सामाजिक शोषण व आर्थिक अनदेखी के शिकार बने हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सीबीएसई (CBSE)ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों के लिए 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा शुल्क में 24 गुना वृद्धि कर दी है। उन्हें अब 50 रुपये की जगह 1200 रुपये फ़ीस भरनी होगी।
इसी प्रकार सामान्य वर्ग के छात्रों की फ़ीस में 100 फीसदी की बृद्धि की गयी है। यह अब 750 से बढ़ाकर 1500 रुपये कर दी गयी है। कांग्रेस ने इसका तीखा विरोध किया है। पार्टी के प्रवक्ता रणदीपसिंह सुरजेवाला ने कहा कि सबका साथ, सबका विकास भाजपा का वादा ना ज़मीन पर है और ना ही काग़ज़ों पर है। सिर्फ़ मुट्ठी भर लोगों का विकास और ग़रीबों से विश्वासघात भाजपा सरकार की नीयत व नीति है। उन्होंने कहा कि शोषण और असमानता से लड़ने तथा दलित एवं पिछड़ों को ताक़त देने के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई है लेकिन भाजपा सरकार देश को “रिवर्स गीयर” में चला रही है।
ऊना में दलितों के साथ घृणित कार्य, रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर करना व आरएसएस / भाजपा द्वारा संविधान में दिए आरक्षण पर हमला करना इसका जीता जागता सबूत है। भाजपा सरकार में हर 12 मिनट में एक दलित अत्याचार सहने को मजबूर है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार दलितों के साथ संस्थागत स्तर पर अन्याय करती आ रही है और अब देश के भविष्य नई पीढ़ी पर सीधा हमला कर दिया है। उन्होंने सवालिया अंदाज में पूछा कि विकास – न्याय – शिक्षा और स्वास्थ्य की बात करने वाली मोदी सरकार क्यों दलितों को शिक्षा के हक़ से वंचित कर रही है?
मामला यहीं तक सीमित नहीं है। सरकार दलित छात्रों को मिलने वाले वजीफे में लगातार कटौती कर रही है। संस्थागत तरीक़े से दलितों के साथ भेद-भाव व अत्याचार का इससे जवलंत उदाहरण कोई दूसरा नहीं मिलेगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 के बजट में कक्षा 10 में पढ़ने वाले दलित छात्रों की छात्रवृत्ति के मद में तकरीबन 3000 करोड़ रुपये की कटौती कर दी गयी है। 2018-19 में जो राशि 6 हजार करोड़ रुपये थी उसे घटाकर 2926 करोड़ रुपये कर दिया गया। दलित शोध छात्रों की स्कॉलरशिप में भी 400 करोड़ रुपये की कटौती हुई है। 2014-15 में इस मद में 602 करोड़ रुपये दिये जाते थे लेकिन 2019-20 में इसे घटाकर 283 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसी तरह से मैला साफ करने वाले गरीबों के मकान और कारोबार के लिए दिए जाने वाले बजट में भी 300 फीसदी की कटौती की गयी है। इसे 439 करोड़ रुपये से घटाकर 110 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
अनुसूचित जातियों के आरक्षण पर हमला
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत व प्रचार मंत्री मनमोहन वैद्य ने खुलेआम आरक्षण को खत्म करने की वकालत की है। भाजपा के लोग सदैव गरीबों के आरक्षण के खिलाफ रहे हैं। पूरा देश जानता है कि पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एजेंडा तय करता है और भाजपा की सरकार फिर इसे लागू करती है। अब भी आरक्षण से छेड़छाड़ भाजपा का षड्यंत्रकारी एजेंडा है।
एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून को खत्म करने की भाजपा की साजिश
20 मार्च, 2018 में भाजपा सरकार के षड्यंत्रकारी व मुक़दमे की पैरवी की जानबूझ कर अनदेखी के चलते अनुसूचित जाति व आदिवासियों पर अत्याचार रोकने वाले कानून को अदालत में खारिज कर दिया था। इस क़ानून को अनुसूचित जातियों पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए बनाया गया था। बाद में जब इसके खिलाफ पूरे देश में बवाल खड़ा हो गया और दलित सड़कों पर आ गए। तब सरकार को मजबूरन इसे फिर से संसद से पारित करना पड़ा।
परंतु भाजपा सरकार ने फिर नया षड्यंत्र रचते हुए दलितों के अधिकारों के संरक्षण वाले इस संशोधन कानून को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिलवा रखी है। दरअसल बीजेपी अंदर से इस कानून के खिलाफ है। वह चाहती है कि गरीबों के शोषण को रोकने वाला यह कानून हमेशा के लिए कानून की किताब से खत्म हो जाए।
एससी-एसटी सब-प्लान का खात्मा
साल 2010 में केंद्र सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया था कि सरकार के बजट में दलितों व आदिवासियों की जनसंख्या के आधार पर बजट का हिस्सा सुनिश्चित करना अनिवार्य है। यानि जितने प्रतिशत दलितों व आदिवासियों की जनसंख्या होगी, बजट का उतना ही प्रतिशत दलितों/आदिवासियों के लिए देना होगा। लेकिन अब इस शर्त को समाप्त कर दिया गया है। यानि अब दलितों की जनसंख्या के आधार पर उनके कल्याण के लिए बजट देना अनिवार्य नहीं।
दलितों पर बेहिसाब अत्याचार
राष्ट्रीय क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक दलित अत्याचार के 40,801 मामले दर्ज किए गए, यानि हर 12 मिनट में देश में एक दलित पर अत्याचार की घटना हो रही है। यह दलितों के खिलाफ हो रहे अपराध में 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी है। भाजपा सरकार ने दलित अत्याचार के 2016-17 के बाद के आंकड़े ही छिपा दिए हैं, क्योंकि ये बहुत ही अधिक हैं।