Tuesday, April 30, 2024

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ करेगी देशद्रोह की चुनौती पर सुनवाई, सरकार की सुनवाई टालने की याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई टालने के केंद्र सरकार के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस तथ्य के मद्देनजर अनुरोध किया कि सरकार भारतीय दंड संहिता को एक नए कोड, भारतीय न्याय संहिता के साथ बदलने का प्रस्ताव कर रही है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई टालने के अनुरोध को खारिज कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि हम एक से अधिक कारणों से 124ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली सुनवाई को स्थगित करने के अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के अनुरोध को अस्वीकार करते हैं।

कोर्ट ने कहा कि 124ए क़ानून की किताब में बना हुआ है और दंडात्मक क़ानून में नए कानून का केवल संभावित प्रभाव होगा और अभियोजन की वैधता 124ए के बने रहने तक बनी रहेगी और इस प्रकार चुनौती का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राजद्रोह कानून की चुनौती की सुनवाई या तो पांच न्यायाधीशों या सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ द्वारा की जाएगी।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि बड़ी बेंच के संदर्भ की आवश्यकता है, क्योंकि 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के फैसले में 5 न्यायाधीशों की पीठ ने इस प्रावधान को बरकरार रखा था। छोटी पीठ होने के नाते केदारनाथ मामले पर संदेह करना या उसे खारिज करना उचित नहीं होगा।

पीठ ने आदेश में कहा कि केदारनाथ का फैसला उस समय प्रचलित मौलिक अधिकारों की संकीर्ण समझ के आधार पर किया गया था। साथ ही केदारनाथ ने इस मुद्दे की जांच केवल अनुच्छेद 19 के पहलू से की, उस समय प्रचलित संवैधानिक कानून की समझ के अनुसार मौलिक अधिकार अलग-अलग साइलो में संचालित होते हैं। बाद में कानून की यह समझ बाद के निर्णयों के मद्देनजर बदल गई, जिसमें कहा गया कि अनुच्छेद 14, 19 और 21 सद्भाव में काम करते हैं।

पीठ ने भारतीय दंड संहिता को बदलने के लिए संसद में नया विधेयक पेश किये जाने के कारण सुनवाई टालने के केंद्र सरकार के अनुरोध को भी ठुकरा दिया। पीठ ने कहा कि भले ही नया विधेयक कानून बन जाए, आईपीसी की धारा 124ए के तहत पिछले मामले प्रभावित नहीं होंगे, क्योंकि नया दंड कानून केवल भावी तौर पर लागू हो सकता है। इसलिए नया कानून प्रावधान की वैधता पर संवैधानिक निर्णय की आवश्यकता को समाप्त नहीं करेगा।

पीठ ने आदेश में कहा कि “हमारे विचार में उचित कदम यह है कि कागजात को सीजेआई के समक्ष रखे जाने का निर्देश दिया जाए, जिससे यह विचार किया जा सके कि मामलों के बैच की सुनवाई कम से कम 5 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जा सकती है। हम रजिस्ट्री को कागजात को सीजेआई के समक्ष रखने का निर्देश देते हैं। ताकि प्रशासनिक पक्ष की ओर से कम से कम 5 न्यायाधीशों की पीठ बनाने के लिए उचित निर्णय लिया जा सके।

सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि 5 जजों की बेंच कह सकती है कि मौलिक अधिकारों की समझ का विस्तार करने वाले बाद के फैसलों को देखते हुए केदारनाथ अब बाध्यकारी मिसाल नहीं हैं। मामले को वापस 3 जजों की बेंच के पास भेज सकते हैं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 5 जजों की बेंच के पास केदारनाथ सिंह पर पुनर्विचार करने के लिए 7 जजों की बेंच को आगे भेजने का विकल्प भी है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने भी कहा कि केंद्रीय दाऊदी बोहरा मामले में आदेश के अनुसार, सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ 7 न्यायाधीशों की पीठ को सीधा संदर्भ दे सकती है। दातार ने बताया कि केएस पुट्टास्वामी मामले में पहली पीठ ने 9 न्यायाधीशों की पीठ का सीधा संदर्भ दिया था।

केंद्र ने नए बिल का हवाला देकर कोर्ट से सुनवाई टालने का अनुरोध किया। बेंच का कहना था कि नए कानून का पिछले मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जब मामला उठाया गया तो भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पीठ को नए विधेयक (भारतीय न्याय संहिता) के बारे में सूचित किया, जिसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को बदलने के लिए लोकसभा में पेश किया गया। एजी ने कहा कि नया विधेयक, जिसमें राजद्रोह का अपराध शामिल नहीं है, उसको संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया है। पीठ से विधायी परिणाम की प्रतीक्षा करने के लिए सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया गया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए कहा कि नए विधेयक में भी ऐसा ही प्रावधान है, जो “बहुत खराब” है। दातार ने भी इस दलील से सहमति जताते हुए कहा, “नए बिल में राजद्रोह मौजूद है, बस उन्होंने एक नया लेबल दे दिया है।”

सीजेआई चंद्रचूड़ ने एजी से कहा कि भले ही नया विधेयक कानून बन जाए, यह केवल संभावित रूप से लागू हो सकता है और पिछले मामलों पर आईपीसी के अनुसार मुकदमा चलाया जाएगा। इसलिए आईपीसी की धारा 124ए को चुनौती नए कानून की परवाह किए बिना प्रासंगिक बनी रहेगी।

सीजेआई ने कहा कि यह मानते हुए कि कानून लागू हो गया है, यह भविष्य के अभियोजन को कवर करेगा… जहां तक अभियोजन 124ए से संबंधित है, वे जारी रहेंगे। हालांकि मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश के कारण इस प्रावधान को अब स्थगित रखा गया है। सीजेआई ने कहा, “कानून के सवाल का जवाब दिया जाना चाहिए।” सीजेआई ने आगे कहा, “नए कानून का पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं हो सकता। इसलिए हमें 124ए की जांच करनी होगी।”

सिब्बल ने केदार नाथ सिंह फैसले के प्रासंगिक पैराग्राफ को पढ़ने के बाद कहा कि मुद्दे का मूल यह था कि इसने “राज्य” को “सरकार” के साथ जोड़ दिया। सिब्बल ने कहा, “सरकार के प्रति असंतोष राज्य के प्रति असंतोष नहीं है… राज्य सरकार नहीं है और सरकार राज्य नहीं है।” दातार ने प्रावधान की औपनिवेशिक उत्पत्ति का जिक्र करते हुए कहा, जब 124ए तैयार किया गया था तो राज्य और सरकार के बीच कोई अंतर नहीं था।”

सुनवाई के दौरान, सीजेआई चंद्रचूड़ यह जानकर भी आश्चर्यचकित थे कि जब प्रावधान मूल रूप से अधिनियमित किया गया तो यह गैर-संज्ञेय अपराध था, लेकिन 1973 में नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता अधिनियमित होने पर इसे संसद द्वारा संज्ञेय अपराध बना दिया गया। सीजेआई ने कहा, “तो औपनिवेशिक शासन में यह गैर संज्ञेय था। हमने इसे संज्ञेय बना दिया।”

केदारनाथ का बचाव करते हुए एजी ने कहा कि इसमें आनुपातिकता के सिद्धांतों को लागू किया गया है। हालांकि, सीजेआई ने कहा कि जब केदारनाथ का फैसला सुनाया गया था तो एके गोपालन मामले में निर्धारित न्यायशास्त्र, जिसने अनुच्छेद 21 की संकीर्ण समझ को प्रतिपादित किया था, प्रभावी रहा था। सीजेआई ने यह भी बताया कि केदारनाथ ने अनुच्छेद 14 के तहत तर्कसंगतता के न्यायशास्त्र के पहलू पर विचार नहीं किया, जो बाद में विकसित हुआ।

 एजी वेंकटरमणी और भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संदर्भ के बिंदु पर सरकार की बात सुनी जानी चाहिए।

सिब्बल ने कहा, “माई लॉर्ड 7 न्यायाधीशों की पीठ को संदर्भित कर सकते हैं, क्योंकि अंततः 124ए की संवैधानिकता को खत्म करना होगा… मैं ऐसी स्थिति नहीं चाहता जहां 5 न्यायाधीशों की पीठ इसकी सुनवाई करे और फिर 7 न्यायाधीशों की पीठ को संदर्भित करने का निर्णय ले।”

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles