ग्राउंड से चुनाव: पार्टियों के चुनावी एजेंडे से गायब है पूर्वी राजस्थान का पेयजल संकट

सवाई माधोपुर। पूर्वी राजस्थान के तेरह जिलों के लिए बनायी गयी ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ईआरसीपी) की परिकल्पना राष्ट्रीय जल परियोजना के तौर पर की गयी थी, लेकिन गहलोत सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार के बीच लगातार टकराव के चलते इस परियोजना का काम ठप पड़ा है। इसके चलते पेयजल और सिंचाई संकट से जयपुर शहर समेत राज्य की 4 करोड़ आबादी के लिए आने वाले दिनों में और भी विकट मुश्किलें खड़ी होंगी।

पिछली वसुंधरा सरकार ने ईआरसीपी का काम आगे बढ़ाने के लिए 39,000 करोड़ की एक बड़ी परियोजना का आधारभूत खाका खींचा था। लेकिन अब कांग्रेस का कहना है कि केंद्र के असहयोग के बावजूद 2018 में गहलोत सरकार की राष्ट्रीय परियोजना घोषित करवाने की गंभीर कोशिशें बेकार गयीं। केंद्र ने इस परियोजना से मुंह मोड़ना पांच साल तक जारी रखा।

यह सब तब हुआ, जब राजस्थान के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत केंद्र में जल शक्ति मंत्री हैं। प्रथम चरण में पूर्वी राजस्थान के जिन जिलों को इस योजना का लाभ मिलना था, उनमें सवाई माधोपुर, बूंदी, करोली और दौसा जिले के हजारों गांव शामिल हैं।

इस जल परियोजना के साथ शुरुआती दौर से जुड़े रहे चीफ इंजीनियर रामराज मीणा मानते हैं, “केंद्र व राज्य सरकार में टकराव के चलते जन कल्याण की इस परियोजना के लाभ से ये पूरा क्षेत्र वंचित है।“ उनका मानना है कि राज्य सरकार को अधिक दिलचस्पी दिखाकर केंद्र के भरोसे बैठने के बजाए अपने स्तर पर परियोजना का काम तेज करना चाहिए था। ताकि कम से कम प्रथम चरण में चिन्हित किये गए जिलों के हजारों गांव लाभान्वित होते।

राजस्थान में चुनाव लोकसभा के हों या विधानसभा के, हर बार पूर्वी राजस्थान की करीब साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा आबादी की प्यास बुझाने के खूब वायदे होते हैं लेकिन आज भी बड़ी आबादी कई दिनों के इन्तजार के बावजूद बोरिंग और टैंकरों के पानी पर आश्रित है। जल संकट का स्थायी समाधान सियासी खींचातानी की भेंट चढ़ जाने से संकट और गहराने के आसार हैं।

सबसे बड़ा संकट जयपुर शहर और उन बहुमंजिली इमारतों और आवासीय परिसरों के निवासियों को झेलना पड़ रहा है जहां पानी का बहुत कम दबाव है। सवाई माधोपुर के अशोक नगर निवासी महेंद्र शर्मा कहते हैं कि “जल संकट निश्चित ही मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है, लेकिन इस तरह की गंभीर समस्याएं चुनाव के मौकों पर जाति बिरादरी, और धर्म की आड़ में होने वाले आरोप प्रत्यारोपों के बीच दबकर रह जाती हैं।”

सवाई माधोपुर भाजपा के जिलाध्यक्ष सुशील दीक्षित कहते हैं, “गहलोत सरकार की निष्क्रियता पेय जल संकट के लिए जिम्मेदार है” जबकि कांग्रेस कार्यकर्ता रामकुमार सैनी कहते हैं कि “राष्ट्रीय परियोजना घोषित ना करने के लिए राजस्थान सरकार नहीं बल्कि केंद्र सरकार सीधे तौर पर जिम्मेदार है। केंद्र को आगे बढ़कर राजनीतिक मतभेदों के बावजूद इस परियोजना के काम को आगे बढ़ाकर कम से कम पहले चरण का काम जल्दी पूरा करना चाहिए था।”

विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे भले ही लोगों के मन में ज्यादा नहीं दिखाई देते लेकिन भाजपा हो या कांग्रेस, जाति बिरादरी के खांचों से कोई बाहर नहीं निकलना चाहता।

छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवारों में ज्यादातर जातिगत वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं। उनमें से ज्यादातर को जल संकट, महंगाई या जिलों में बढ़ते अपराधों को नियंत्रित करने की कोई गंभीर चिंता नहीं झलकती।

(राजस्थान से वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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