प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था में गिरावट को स्वीकार किया है। उन्होंने माना है कि जीडीपी कम हुई है लेकिन उनके कार्यकाल में एक बार कम हुई है। यूपीए के कार्यकाल में आठ बार गिर कर 5.6 पर आई थी। वित्त मंत्री भी जी एस टी में सुधार की बात कर रहे हैं। पहले कोई स्वीकार ही नहीं कर रहा था कि जीएसटी से किसी को दिक्कत है। दोनों की स्वीकृति से ट्रोल को पता चलेगा कि इतने दिनों से जो अर्थव्यवस्था के संकेतों को पहचानकर लिख रहे थे वो मोदी विरोध नहीं कर रहे थे। बल्कि जो हो रहा था उसे साफ साफ बताने का जोखिम उठा रहे थे। मैंने खुद लिखा है कि यह अच्छा नहीं है क्योंकि इससे हम सबका जीवन प्रभावित होता है।
दोनों के पास इस सच्चाई को स्वीकार करने के अलावा कोई स्कोप नहीं बचा था। अर्थव्यवस्था में गिरावट कभी स्थाई नही होती, सुधार भी होते हैं और कभी न कभी होंगे। मगर इतने से हालात नहीं बदलने वाले। रोज़गार और निवेश की हालत अच्छी नहीं है। प्रधानमंत्री ने बताया कि किस सेक्टर में उछाल है। उन्हें निजी निवेश, सीमेंट, स्टील और मैन्यूफ़ैक्चरिंग जैसे कई सेक्टर का भी आँकड़ा दोना चाहिए था जिसमें गिरावट की ख़बरें आ रही थीं।
कल ही भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2017-18 के पूरे वित्त वर्ष के लिए GVA के अनुमान को 7.3 प्रतिशत से घटाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है। यह सामान्य गिरावट नहीं है। बहस हो रही है कि क्या नोटबंदी जैसे कदम से धक्का लगा है? चाहें जितने दावे कर लिए जाएँ मगर इतिहास बार बार लौट कर यही बताता रहेगा कि यह बेमतलब का फैसला था जो थोपा गया।
जीएसटी की जटिलताओं से व्यापार को काफी मुश्किलें आई हैं। लगातार तीन महीने भयंकर घाटा उठाना पड़ा है। अब इसमें सुधार की बात हो रही है तो अच्छा है। चुनाव जीतते रहेंगे इसके दंभ पर सूरत के व्यापारियों की नहीं सुनी गई। जबकि चुनाव जीतना अलग मामला है और रोज़मर्रा की समस्याओं पर बात करना उसे सुनना अलग मामला है। व्यापारी लुटते रहे, रोते रहे। अब जाकर राजस्व सचिव कह रहे हैं कि सरल करने के कदम उठाए जा रहे हैं। रेट भी कम किए जा सकते हैं। सभी व्यापारियों को एक सिरे से चोर कहना ठीक नहीं। व्यापारी प्रक्रिया की अति जटिलता से तंग आ गए हैं। वकील और सीए भी। अब देखते हैं असलीयत में क्या होता है।
करप्शन आज भी है। बस पकड़ा नहीं जा रहा। अच्छी बात है कि विपक्ष का कम से कम पकड़ा जा रहा। यह भी अच्छा है। अगुस्ता मामले में एक पकड़ा गया है। ये यूपीए के समय हेलिकाप्टर ख़रीद का मामला था। करप्शन कम होता तो राजनीति का खर्च आसमान पर नहीं होता। समझ नहीं आता कि जो नेता कांग्रेस तृणमूल में है वो बीजेपी में आकर कैसे ईमानदार हो जाता है?
(रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार)
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