छत्तीसगढ़ में दिए सांप्रदायिक बयान को लेकर असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा को EC का नोटिस

रायपुर। इन दिनों छत्तीसगढ़ में चुनावी माहौल गर्म हो गया है। चुनाव में मुख्य रूप से कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला है। 2018 के चुनाव में सत्ता में आए भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार को इस बार हराने के लिए भाजपा अपना पूरा दमखम लगा रही है। पीछे से आरएसएस भी सांप्रदायिक हवा भरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

इसी बीच भाजपा के चुनाव अभियान के दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी शामिल हुए, जिन्हें कांग्रेस की शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने कारण बताओ नोटिस थमा दिया है। दरअसल विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशियों की नामांकन रैली छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में 27 अक्टूबर को चल रही थी, जिसमें सरमा भी शामिल थे। इसी सभा में की गई हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस ने शिकायत दर्ज कराई थी।

सरमा ने क्या कहा था?

कवर्धा में भाजपा की चुनावी रैली में सरमा ने कहा कि “एक अकबर अगर एक जगह पर आता है तो वो सौ अकबर को बुला कर लाते हैं, ये बात भूलिए मत। इसलिए जितनी जल्दी हो सके उस अकबर को आप विदा कीजिए नहीं तो मां कौशल्या की यह भूमि अपवित्र हो जाएगी।”

सरमा ने आगे कहा कि “हमारे देश में कांग्रेस के शासन काल में लव जिहाद की शुरुआत हुई। आज छत्तीसगढ़ के आदिवासियों और हमारे असम जैसे राज्यों में आदिवासियों को हर दिन धर्मांतरण के लिए उकसाया जाता है। जब उनके खिलाफ आवाज उठती है तो भूपेश बघेल बोलते हैं हम लोग सेक्यूलर हैं। हिंदू को मारना-ठोकना क्या आपका सेक्यूलरिज्म है? ये देश हिन्दू का देश है और ये देश हिन्दू का ही रहेगा, सेक्यूलरिज्म की भाषा हमें मत सिखाइए।”

शिकायत और आगे

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस ने इस मामले को सज्ञान में लेते हुए इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की, जिसके बाद आयोग के अधिकारी ने सरमा को कारण बताओ नोटिस देकर 3 दिन का समय दिया। पर इस मामले में आयोग किस तरह की कार्रवाई करेगा? यह आने वाला समय ही बताएगा।

इस बीच राजनीतिक हल्कों में यह भी चर्चा का विषय है कि जब राहुल गांधी कर्नाटक में एक चुनावी रैली के दौरान अपने भाषण में नरेंद्र मोदी को लेकर बातें की तब ढेर सारे मोदी सरनेम वाले लोगों ने उनके खिलाफ कानूनी मामला दर्ज कराया। अब भाजपा के सरमा ने देश के अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर मुसलमान और ईसाइयों को उनकी आस्था के आधार पर आड़े हाथों लेकर बातें रखी हैं, तो उनके खिलाफ किस तरह की कार्रवाई होगी।

गौरतलब है कि विगत दशक में भारत में मुसलमान और ईसाई समुदायों के खिलाफ जो हिंसात्मक घटनाएं हुई हैं, उसका नजारा देश विदेश के लोगों ने देखा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई संस्थाओं-संगठनों ने इन मामलों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मीडिया और राजनीतिक हलके में इस बात का इंतज़ार है कि सरमा पर चुनाव आयोग किस तरह की कार्रवाई करेगा।

कवर्धा में हिन्दू-मुस्लिम दंगा

बताते चलें कि पिछले कुछ सालों में कवर्धा जिला हिन्दू-मुस्लिम दंगों का केंद्र बना रहा है। जिले की मुस्लिम आबादी लगभग 7.76 फीसदी है। 2021 में कवर्धा शहर में बड़ा तनावपूर्ण माहौल रहा और यहां 3 से 7 अक्टूबर 2021 के बीच हिंदू और मुसलमानों के बीच धार्मिक हिंसा की घटनाएं हुईं।

3 अक्टूबर 2021, को कवर्धा शहर के लोहारा नाका चौक पर धार्मिक झंडे लगाने को लेकर मुसलमानों और हिंदुओं के एक समूह के बीच बहस हो गई थी। मामला तब गर्माया जब लोहारा नाका चौक स्थित विंध्यवासिनी मंदिर के करीब ईद-उल-फितर और नवरात्रि को लेकर दो समुदायों द्वारा झंडा लगाया जा रहा था और लाइटिंग की जा रही थी।

पीड़ित पक्ष के अनुसार एक झूठी अफवाह फैलाई गई कि हिंदू धर्म के प्रतीक भगवा झंडे को बिजली के खंभे से उतारकर फेंक दिया गया और जलाया गया। इस अफवाह के चलते दोनों पक्षों में जमकर मारपीट और पत्थरबाजी हुई है। वहीं हिन्दू पक्ष के द्वारा मुसलमान समुदाय की दुकानों में तोड़फोड़ की घटना को अंजाम दिया गया। जिला प्रसाशन ने तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए धारा 144 लगा दी थी।

इसके दो दिन बाद 5 अक्टूबर को विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और अन्य हिंदू संगठनों ने लगभग 3,000 लोगों की रैली निकाली थी, जिसकी अनुमति प्रशासन ने नहीं दी थी। रैली के दौरान भीड़ हिंसक हुई जिसमें कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए तथा मुस्लिम इलाके के लोगों को संपत्ति का भी नुकसान उठाना पड़ा। तब प्रसाशन ने कर्फ्यू लगा दिया था।

उक्त रैली को नेतृत्व देने तथा भड़काऊ भाषण देने के मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए एफआईआर भी दर्ज की थी, जिसमें राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र के सांसद संतोष पांडेय, पूर्व सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह, भाजपा के राज्य सचिव विजय शर्मा और कुछ अन्य पार्टी नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया।

मीडिया खबरों के अनुसार, इस रैली में लोगों ने ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते हुए मुस्लिमों के घरों और वाहनों को निशाना बनाया और पुलिस पर पत्थर बरसाए। घटना में पुलिकर्मियों समेत एक दर्जन से अधिक लोग घायल हुए थे।

तब से लेकर आज तक हिन्दू-मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव का माहौल बना हुआ है। 2021 से लेकर आज तक कई सारी घटनाएं हुई हैं, जिनमें से कुछ मामले बिलासपुर हाईकोर्ट में चल रहे हैं। पीयूसीएल और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इस पर अपना जांच पड़ताल रिपोर्ट भी जारी की है।

छत्तीसगढ़ में ईसाइयों की स्थिति

छत्तीसगढ़ में ईसाई आज हिंसा की राजनीति को लेकर दबाव महसूस कर रहे हैं। एक तरफ अनगिनत शारीरिक हिंसा की घटनाएं हैं, तो दूसरी तरफ संरचनात्मक हिंसा (स्ट्रक्चरल वायलेंस) में बढ़ोत्तरी के जरिये भारत के जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के भीतर नई खाईं खोदी जा रही है।

प्रदेश में विगत एक दशक के दौरान ईसाइयों के खिलाफ हुई हिंसा पर पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान कहते हैं कि रूढ़ि और परंपरा के नाम पर ऐसी जातीय बर्बरता एक सभ्य समाज में स्वीकार्य ही नहीं है। निश्चित रूप से जातीय सत्ता और हिन्दू फासिस्ट तत्वों का गठजोड़ इन सुनियोजित हमलों के पीछे काम कर रहा है। वास्तव में ‘धर्मांतरण’ एक राजनीतिक गिमिक के सिवाय कुछ और नहीं है।

जिस रैली में हिमंत बिस्वा ने यह विवादस्पद बयान दिया, उसमें उसी तरह का माहौल था, जैसे अक्टूबर 2021 में था। लव जिहाद, गोमांस, धर्मांतरण, डिलिस्टिंग, घर वापसी इत्यादि लफ्ज केवल भाजपा के गलियारों में ही नहीं हैं, बल्कि देश को धर्म और जाति के नाम से बांटने में विश्वास रखने वाले सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठन और उनकी  विचारधाराओं में निहित हैं।

सरमा का बयान देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की दृष्टि से बहुत गंभीर और घातक है। समय रहते यदि चुनाव आयोग उचित कदम नहीं उठता है तो बड़ी विपत्तिजनक स्थिति उत्पन्न होगी।

(गोल्डी एम. जॉर्ज स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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