बीजापुर। बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले की सीमा पर वन क्षेत्र से घिरे पूमबाड (बड्डेपारा) गांव में आदिवसी ग्रामीण कथित ‘आरपीजी’ हमले की जांच की मांग को लेकर काफी आक्रोशित हैं। पूमबाड गांव बीजापुर जिले के बीजपुर ब्लाक के गंगालूर तहसील के अंतर्गत पूसनार पंचायत का गांव है। यहां विगत मार्च 3, 2022 को कथित तौर पर आरपीजी की ओर से हमला किया गया जिसके बाद गांव में दहशत फैली हुई है।
रॉकेट-चालित ग्रेनेड (आरपीजी) युद्ध के दौरान उपयोग में लाया जाने वाला एक मिसाइल हथियार है जो एक रॉकेट लांचर से लॉन्च किया जाता है। इसे एक रॉकेट मोटर से जोड़कर लक्ष्य की तरफ दागा जाता है। इनमें कुछ आरपीजी नए रॉकेट-चालित हथगोले के साथ फिर से लोड करने योग्य होते हैं, जबकि अन्य एकल-उपयोग वाले होते हैं।
क्या है पूरी कहानी
मुरिया जनजाति और महरा जाति का पूमबाड गांव घने जंगलों के भीतर स्थित है और वह माओवादियों का भी गढ़ है। यहां माओवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों के द्वारा काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन भी जारी है। गंगालूर के इलाके में सुरक्षाबल (सीआरपीएफ) के 10 से ज्यादा कैंप हैं, जिसमें से कुछ स्थापित हो चुके हैं और कुछ एक के लिए जमीन अधिग्रहण जारी है। पूसनार में, जिसमें पूमबाड गांव भी आता है, एक और नया कैंप स्थापित किया जा रहा है, जिसके खिलाफ स्थानीय लोग विगत कई महीनों से आंदोलन कर रहे हैं।
मार्च 3 की इस घटना के बाद पूमबाड से लेकर बीजापुर तक आदिवासी समाज के अंदर कई तरह के चर्चे जारी हैं। हथियार का स्वरुप देखकर डर और भय का माहौल और तेज होता नज़र आ रहा है। हालांकि इस मामले में पुलिस ने बयान दिया कि यह माओवादियों की करतूत है, पर गांव वाले इसके विपरीत कुछ अलग ही कहानी सुनाते हैं। पुलिस की ओर से जारी बयान में यह बताया गया कि पूमबाड बड्डेपारा में माओवादी खाना पकाकर खा रहे थे। खबर पाकर जब सुरक्षा बल के जवान वहां पहुंचे तो वे उन्हें देखकर भागने लगे। बयान में यह भी कहा गया कि लगभग एक घंटे तक आपसी गोलीबारी और मुठभेड़ भी हुई जिसके बाद माओवादी घने जंगल का सहारा लेकर भाग निकले। पुलिस के अनुसार मुठभेड़ के दरमियान माओवादियों ने आरपीजी से हमला किया।
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक उस दिन न ही कोई माओवादी उस गांव में आया, न खाया और न कोई एनकाउंटर या गोलीबारी हुई। गांव वाले आगे बताते हैं कि उस दिन सुरक्षा बल का एक दस्ता गश्ती लगाते हुए दंतेवाड़ा की पहाड़ी के रास्ते गांव के पिछले हिस्से से प्रवेश किया। यह डीआरजी का दल था जो मूलतः स्थानीय आदिवासियों से भरा हुआ है। डीआरजी यानी डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड्स जिसमें युवा आदिवासी होते हैं, जो एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए जंगल-झड़ी पहाड़-पर्वत का रास्ता बखूबी जानते हैं। इसके आलावा इन्हें जंगल में जानवरों से होने वाले खतरों से बचाव और जंगली जानवरों के चलने फिरने का मार्ग अच्छी तरह से मालूम होता है। इनमें से कुछेक को माओवादियों के आने-जाने का मार्ग भी पता रहता है। इन तमाम कारणों से इन्हें अंदरूनी इलाकों में गस्ती लगाने के लिए सीआरपीएफ के जवानों साथ भी भेजा जाता है।
गांव वालों के अनुसार सुरक्षाबल के जवान गांव में दिन के लगभग 12 और 1 बजे के बीच में पीछे से प्रवेश किये। गांव में प्रवेश करते ही मंगू पुनेम के घर से सूअर लाकर काटे और आयातु कोसा के घर से पकाने के बर्तन लेकर गए। शाम को 4 बजे तक सब लोग खाये-पीए और फिर गश्ती गांव की बस्ती की ओर बढ़ी। उस समय कुछ लोग तेंदूपत्ता तोड़ रहे थे और कुछ लोग ताड़ के पेड़ पर काम कर रहे थे। काम करते लोगों को देखकर सुरक्षाबल की ओर से आरपीजी से हमला किया जाने लगा। हमला देखकर लोग जल्दी से भागकर अपने-अपने घरों में चले गए।
गांव वालों ने स्वयं पंचनामा बनाया
पूमबाड में हुई इस घटना के उपरांत, पूरे इलाके के लोगों ने एकजुट होकर सारी जानकारी एकत्रित की। 9 मार्च, 2022 को सारी आरपीजी का पंचनामा बनाया। जो हथियार फटा और जो नहीं फटा दोनों का विस्तार से पंचनामा बनाया गया। दागे गए आरपीजी में से दो नहीं फटे यानी वो अभी भी जिन्दा हैं। ग्रामीणों ने फटे आरपीजी के हिस्से को भी पंचनामा में शामिल किया।
इस पूरे हमले के कई गांववाले चश्मदीद गवाह हैं। मोती पुनेम के अनुसार उन्होंने इसे गिरते हुए देखा, जबकि संकी पुनेम ने सुरक्षाबल के जवानों द्वारा लोगों को मारने के चलते भागते हुए देखा। पोंडा पुनेम ने ताड़ के पेड़ के ऊपर से देखा की सुरक्षाबाल के जवान लोगों को दौड़ा रहे थे।
दागे गए आरपीजी में से दो पेड़ों से जा टकराए और एक बस्ती से 300 मीटर दूर गिरा और एक बस्ती के बीच में। आरपीजी के बस्ती के बीच गिरने के समय वहां छोटे छोटे बच्चे खेल रहे थे। लोगों ने तीन बड़े धमाके सुने, जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि तीन आरपीजी फटे होंगे। इनमें से दो पेड़ों से जा टकराए जबकि तीसरा कहां फटा इसका कोई सुराग अभी तक नहीं मिल सका है।
गांव से भगाने का षड्यंत्र: सोनी पुनेम
स्थानीय मूलवासी बचाओ मंच की अध्यक्ष सोनी पुनेम का आरोप है कि सुरक्षाबल चाहता है कि गांववाले गांव छोड़कर कहीं चले जायें। उन्होंने कहा कि “कुछ समय से हमारे गांव में एक नया कैंप बनाने की बात चल रही है। तब से गांव वाले इसका विरोध कर रहे हैं और धरना-आंदोलन पर बैठे हैं।”
आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी के अनुसार यह एक तरीका है कि भोले भाले आदिवासिओं को डराया धमकाया जाए ताकि लोग ऐसे हमलों से दहशत में आये।
कई ग्रामीणों ने शंका जताई कि इस हमले का मूल उद्देश्य गांव को खाली करवाने के साथ-साथ पूरे इलाके को माओवाद के खिलाफ अभियान के बहाने कैंप लगाकर जल, जंगल, जमीन को आने वाले समय में कॉर्पोरेट सेक्टर के हाथों में हस्तांतरित कर दिया जाए।
एसपी और कलेक्टर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नोटिस
पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने इस पूरी घटना का विरोध किया है। चौहान का कहना है कि यह घटना मानवाधिकार का घोर उल्लंघन है। इसमें जिस तरह का संदेश ग्रामीण लोगों के बीच दिया जा रहा है, वह भी स्पष्ट है कि उनके ऊपर भी इस तरह के हमले हो सकते हैं, जिसका ठीकरा माओवादियों के ऊपर थोपा जान आसान है। सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा करने के बजाय उन्हें डरा धमकाकर अपने मंसूबे को पूरा कर रही है।
इस बीच पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के प्रदेश सचिव रिनचिन ने सूचना दी कि इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने लाया गया है। आयोग ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए बीजापुर जिला के एसपी और कलेक्टर को नोटिस जारी कर दिया है। नोटिस में चार हफ्ते का समय दिया गया कि वे इस मामले में जांच कर अपना प्रतिवेदन आयोग के सामने रखें।
इन तमाम संदर्भ और परिस्थितियों के बीच चाहे वो आरपीजी से हमला हो या फिर माओवाद के खिलाफ चलाये जाने वाले अभियान हों या फिर जल, जंगल, जमीन व संसाधन छीनने की योजना हो, स्थानीय आदिवासी समुदाय ही पिसता है।
(बीजापुर से डॉ. गोल्डी एम जॉर्ज की रिपोर्ट।)