Friday, April 26, 2024

तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए विदेशी नागरिकों को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया: हाई कोर्ट

बांबे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने  सरकारी दावों और 24 घंटे चलने वाले गोदी मीडिया के उन दावों की हवा निकल दी, जिसमें देश भर में प्रोपगंडा फैलाया गया था कि देश में कोविड-19 को फैलाने के लिए तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल विदेशी नागरिक जिम्मेदार थे।

बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि इस साल मार्च में दिल्ली में तबलीगी जमात के एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों को बलि का बकरा बनाया गया और उन पर आरोप लगाया गया कि देश में कोविड-19 को फैलाने के लिए वे जिम्मेदार थे।

न्यायमूर्ति टीवी नलावडे और न्यायमूर्ति एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने 29 विदेशियों के खिलाफ दायर प्राथमिकियों को खारिज करते हुए 21 अगस्त को यह तल्ख टिप्पणी की कि तबलीगी लोगों की गिरफ्तारी से अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय मुसलमानों को चेतावनी दी गई कि किसी भी रूप में और किसी भी चीज के लिए कार्रवाई की जा सकती है। पीठ ने इसे लेकर मीडिया के द्वारा किए गए प्रोपेगेंडा की भी तीखी आलोचना की ।

पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि एक राजनीतिक सरकार किसी महामारी या आपदा के दौरान बलि का बकरा खोजती है और हालात इस बात को दिखाते हैं कि ऐसी संभावना है कि इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाया गया है। पहले के हालात और भारत के ताज़ा आंकड़े यह दिखाते हैं कि इन लोगों के ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।’ अदालत का मतलब इन विदेशियों पर दर्ज एफ़आईआर को लेकर था।

पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस ने मामले में यंत्रवत ढंग से काम किया है, जबकि राज्य सरकार ने राजनीतिक बाध्यता के तहत काम किया है। राष्ट्रीय राजधानी में स्थित निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के एक कार्यक्रम में पर्यटन वीजा शर्तों का कथित तौर पर उल्लंघन करने के सिलसिले में 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं, महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।

पीठ ने कहा है कि दिल्ली में मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ बड़ा दुष्प्रचार किया गया था। तबलीबी जमात के खिलाफ दुष्प्रचार अवांछित था। जमात 50 साल से गतिविधि चला रही है। भारत में कोविड-19 के संक्रमण के हालात और ताजा आंकड़े बताते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी। पीठ ने कहा कि इन विदेशियों के भारत में मस्जिद जाने पर रोक नहीं थी और यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि यह गतिविधि सरकार द्वारा स्थायी रूप से प्रतिबंधित है। 

तबलीगी जमात की गतिविधि दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा के बाद ही बंद हो गई थी और तब तक (घोषणा तक) यह चल रही थी। पीठ ने कहा कि कोविड-19 महामारी से पैदा हुई स्थिति के दौरान, हमें अधिक सहिष्णुता दिखाने की जरूरत है और अपने मेहमानों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है, विशेष रूप से वर्तमान याचिकाकर्ताओं की तरह।

तबलीगी जमात के लोग।

पीठ ने कहा कि उनकी मदद करने के बजाय, हमने उन पर यह आरोप लगाकर जेलों में डाल दिया कि वे यात्रा दस्तावेजों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं और वे कोरोना वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं। सरकार विभिन्न देशों के विभिन्न धर्मों के नागरिकों के साथ अलग-अलग बर्ताव नहीं कर सकती है। पीठ घाना, तंजानिया, बेनिन और इंडोनेशिया जैसे देशों के आरोपी नगारिकों द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी।

जस्टिस नलवाड़े ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों के अनुसार विदेशियों के धार्मिक स्थलों में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। जस्टिस नलवड़े ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेज दिखाते हैं कि तबलीगी जमात मुस्लिमों का कोई अलग संप्रदाय नहीं है, बल्कि यह केवल धर्म सुधार का आंदोलन है। सुधार के कारण प्रत्येक धर्म वर्षों में विकसित हुआ है, क्योंकि समाज में बदलाव के कारण सुधार हमेशा आवश्यक होता है।

उन्होंने कहा कि यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि दूसरे धर्म के व्यक्तियों को इस्लाम में परिवर्तित करके विदेशी लोग इस्लाम धर्म का प्रसार कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आरोप प्रकृति में बहुत अस्पष्ट हैं और इन आरोपों से इसमें किसी भी स्तर पर दखल देना संभव नहीं है कि वे इस्लाम धर्म का प्रसार कर रहे थे और उनका इरादा धर्मातंरण का था।

तबलीगी जमात के कार्यक्रम में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों के मीडिया में चित्रण की आलोचना करते हुए जस्टिस नलवाड़े ने कहा कि दिल्ली में मरकज में शामिल होने आए विदेशियों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बहुत दुष्प्रचार चलाया गया और ऐसी छवि बनाने की कोशिश की गई कि ये विदेशी भारत में कोविड-19 फैलाने के जिम्मेदार थे। इन विदेशियों का आभासी तौर पर उत्पीड़न किया गया।

अतिरिक्त सरकारी वकील एमएम नर्लिकर ने कहा कि 950 विदेशियों को केंद्र सरकार द्वारा ब्लैकलिस्ट करने के मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, इसलिए उस मामले में फैसला आने तक फैसला न सुनाया जाए। हालांकि हाई कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ताओं ने पीठ से कहा कि उन्होंने अहमदनगर पहुंचने पर जिले के डीएसपी को बता दिया था और 23 मार्च से लॉकडाउन लगने के कारण होटल, लॉज बंद थे और उन्हें मसजिद में रुकने की जगह मिल सकी। उन्होंने कहा कि वे किसी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं थे और उन्होंने जिलाधिकारी के किसी आदेश का उल्लंघन नहीं किया। पीठ ने कहा कि हमें इसे लेकर पछतावा होना चाहिए और उन्हें हुए नुक़सान की भरपाई के लिए कुछ सकारात्मक क़दम उठाने चाहिए।

बांबे हाई कोर्ट ने बहुत ही कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए फैसले में 29 विदेशी नागरिकों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया। आईपीसी, महामारी रोग अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी नागरिक अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज यह एफआईआर टूरिस्ट वीजा का उल्‍लंघन कर दिल्ली स्थिति निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने के आरोप में दर्ज की गई थी।

गौरतलब है कि सारी दुनिया जब कोरोना से लड़ने में अपनी सारी ताकत लगा रही थी तब गोदी मीडिया तबलीगी जमात के जरिए मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में लगी थी। इस तरह की सुर्खियां चलाई जा रहीं थीं ‘मौलानाओं ने बिरियानी मांगा, इस खबर का सूत्र कौन था? मौलानाओं ने अर्धनग्न होकर नर्सों को घूरा, इस खबर का सूत्र कौन था?

मौलानाओं ने थूका, इस खबर का सूत्र कौन था? मौलानाओं ने नर्सों के सामने पेशाब किया? जब देश को कोरोना से लड़ने के तौर-तरीकों पर बहस करने की ज़रूरत थी तब मीडिया मौलानाओं की नंगी टांगों पर बहस करा रही थी। क्या बांबे हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद गोदी मीडिया को शर्म आएगी?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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