उत्तर प्रदेश। चंदौली जिले की चकिया कोतवाली क्षेत्र के चकिया वन रेंज के चकरा जंगल में वन विभाग और ग्रामीण एक फिर आमने-सामने हो गए। रविवार को चकरा जंगल में अतिक्रमण हटाने पहुंची वन विभाग की टीम को ग्रामीणों का जबर्दरस्त विरोध झेलना पड़ा।
महिलाओं का कहना है कि कार्रवाई के दौरान फ़ोर्स ने उनकी एक झोपड़ी को आग के हवाले कर दिया। आगजनी के बाद ग्रामीण व आदिवासी आगबबूला हो गए। पुलिस फोर्स व वन विभाग की टीम को ग्रामीणों के जबरदस्त विरोध प्रदर्शन के चलते उस समय वापस लौटना पड़ा, जब कई महिलाएं बुलडोजर के सामने लेट गयीं।
देखते ही देखते आसपास के जंगल में आदिवासी और किसान इकठ्ठा हो गए। बढ़ते विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए वन विभाग और पुलिस विभाग बैकफुट पर आ गया और अतिक्रमण हटाने के अभियान को बंद करके उसे वापस लौट आना पड़ा।
लोगों के आक्रोश को देखते हुए वन विभाग एवं पुलिस की टीम ने विरोध कर रहे सुनील तथा राजा देवी को पकड़कर चकिया कोतवाली ले आये। इस करवाई से आसपास के क्षेत्रों में आक्रोश व्याप्त है।
पहले भी दर्जनों गांवों में वन विभाग फसलों को कर चुका है नष्ट
विदित हो कि इससे भी पहले वन विभाग और प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर आदिवासियों और मेहनतकश किसानों की खड़ी फसल को जेसीबी से नष्ट कर दिया था। चकिया तहसील से मात्र 15 किलोमीटर दूर वन क्षेत्र के आसपास के गांवों रामपुर, मुसाहीपुर, भभौरा, पीतपुर, केवलाखाड़ कोठी, बहेलियापुर के गरीब व मेहनतकश किसानों की लगभग 80 हेक्टेयर कृषि योग्य उपजाऊ जमीन को वन विभाग ने अपना बताते हुए जब्त कर लिया है।
वन विभाग ने बिना कोई नोटिस दिए, अचानक भारी पुलिस बल का इस्तेमाल करते हुए, लोगों के अंदर दहशत पैदा कर सरसों, आलू, चना, अरहर, मसूर, गेहूं आदि खड़ी फसल को नष्ट कर दिया और उनके खेतों में जेसीबी से खाई खोदनी शुरू कर दी थी।
पीड़ित आदिवासी व किसानों ने पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों को बताया कि वे कई पीढ़ियों से इस जमीन को जोतते और खेती करते आ रहे हैं। उनमें से कुछ ने अपने पट्टे भी दिखाए। लेकिन ताकत के मद में चूर वन विभाग व सरकारी नुमाइंदों ने उनकी एक न सुनी। इस कार्रवाई के खिलाफ अभी आदिवासी और किसान एकजुट ही हो रहे थे कि प्रशासन की ताजा कार्रवाई ने आग में घी का काम किया है।
जेसीबी मशीन से झोपड़ियां गिराईं
ग्रामीणों ने बताया कि चकिया इलाके के खोजापुर, रामशाला, बनभीषमपुर सहित कई गांव में लोग तकरीबन छह दशकों से से वन विभाग की जमीनों पर झोपड़ी-मकान बनाकर अपना जीविकोपार्जन करते आ रहे हैं।
इतना ही नहीं आसपास की लगभग 25 से 30 हेक्टेयर भूमि पर खेती-बाड़ी भी करते हैं। पीड़ित भगवानी देवी ने बताया कि “पुलिस फ़ोर्स के साथ आई वन विभाग की टीम घरों के सामने खेतों में जेसीबी से खाई खोदनी शुरू कर दी।
वहीं कुछ पुलिस वाले महिलाओं को झोपड़ी से निकाल कर भगाने लगे। जैसे ही वन विभाग की टीम ने एक झोपड़ी को अपने जेसीबी मशीन से गिराया। हम लोगों से देखा नहीं गया। हम लोग जेसीबी के सामने लेट गयीं”।
इस दौरान भगवानी देवी, बिंदा, सरोजा इत्यादि महिलाओं ने जमकर हंगामा किया और वन विभाग की जमीन पर वर्षों से काबिज लोगों को हटाने का विरोध किया।
स्थानीय प्रशासन का वही पुराना राग
स्थानीय लोगों का कहना है कि “लगभग छह दशकों से हमारे परिवार के लोग इसी जंगल में रहते आ रहे हैं। खेती-बाड़ी करके अपनी आजीविका चलाते हैं। अचानक बिना किसी सूचना के वन विभाग और पुलिस की कार्रवाई उचित नहीं है”।
रेंजर योगेश सिंह ने बताया कि “आरक्षित भूमि पर कुछ लोग बरसों से कब्जा जमाए हुए हैं। उसी को खाली कराने के लिए टीम गई थी। तभी एक महिला ने मड़ई में आग लगा दी और सरकारी कार्य में बाधा डालने का प्रयास किया है। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और आरक्षित भूमि को खाली कराकर वहां पर पौधे लगाए जाएंगे।
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(चन्दौली से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट। )
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