गाजीपुर। भाजपा के साल 2019 लोकसभा के चुनावी अभियान का चर्चित नारा “मैं भी चौकीदार” भले ही एक सियासी सफलता का प्रतीक बन गया हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के ग्राम प्रहरियों की स्थिति इस नारे से बिल्कुल विपरीत है। ग्राम प्रहरी, जिन्हें पहले चौकीदार कहा जाता था, आज भी समाज के सबसे उपेक्षित वर्गों में से एक हैं। गाजीपुर के मुन्नर जैसे बुजुर्ग ग्राम प्रहरी दशकों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 61 वर्षीय मुन्नर बताते हैं कि उन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के जमाने से सेवा की है, लेकिन उनकी हालत जस की तस है। 11 रुपये से शुरू हुआ उनका मानदेय अब 2500 रुपये तक पहुंचा, पर आज की महंगाई के दौर में यह रकम नाकाफी है।
मुन्नर का दर्द केवल उनका नहीं है। गाजीपुर के हर ग्राम प्रहरी की कहानी ऐसी ही है। चाहे वह गांव की सूचनाएं थाने तक पहुंचाने का काम हो, या थानों में झाड़ू-पोंछा और नाली की सफाई जैसे अमानवीय कार्य, ग्राम प्रहरियों को लगातार पड़ता है। योगी सरकार ने चौकीदारों का नाम बदलकर “ग्राम प्रहरी” तो कर दिया, लेकिन नाम बदलने से हालात नहीं बदले। ग्राम प्रहरी लाल पगड़ी, फटे-पुराने कपड़े और घिसे हुए जूते-चप्पल पहनकर अपनी ड्यूटी निभाते हैं। गाजीपुर जिले के कई प्रहरियों का कहना है कि उन्हें वर्षों से वर्दी, साइकिल और जैकेट जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिली हैं।
यूपी के सभी थाने के सिपाही और अधिकारी प्रायः इन ग्राम प्रहरियों से अतिरिक्त कार्य करवाते हैं, जो उनकी ड्यूटी में शामिल नहीं हैं। इनमें थानों की सफाई, बर्तन धोना, और अन्य निजी कार्य प्रमुख हैं। यदि कोई ग्राम प्रहरी इनसे इनकार करता है, तो उसे धमकियां दी जाती हैं और वेतन काट लिया जाता है।
गाजीपुर के ग्रामीण इलाकों में सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले ग्राम प्रहरियों की जिंदगी किसी अंतहीन संघर्ष से कम नहीं है। हर दिन वे अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं, लेकिन बदले में उन्हें मिलती है सिर्फ उपेक्षा और मामूली पगार। ये कहानियां उनकी पीड़ा, उनकी उम्मीदों और उनके संघर्षों का जीवंत चित्रण हैं। रईसपुर गांव के बच्चे लाल पिछले कई सालों से ग्राम प्रहरी के रूप में कार्यरत हैं। उनकी जिंदगी में हर दिन नई मुश्किलें खड़ी होती हैं। उनकी पगार महज 2500 रुपये है, जो उनकी जरूरतों के सामने बौनी साबित होती है।
बच्चे लाल अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहते हैं, “2500 में सिर्फ सब्जियां खरीदी जा सकती हैं, लेकिन जिंदगी की गाड़ी नहीं खींची जा सकती।” महंगाई आसमान छू रही है, और इतने कम पैसे में परिवार का पालन-पोषण करना उनके लिए असंभव हो गया है। बच्चे लाल को उम्मीद थी कि बीजेपी सरकार के आने के बाद उनकी स्थिति में सुधार होगा। लेकिन उनकी जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला। वह कहते हैं, “हमें लगा था कि हमारा भविष्य सुधरेगा, लेकिन हम वहीं खड़े हैं जहां पहले थे। हमारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह है कि हमें हमारी सेवाओं के अनुरूप वेतन दिया जाए।”
बच्चे लाल बताते हैं कि उनकी नौकरी में थाने पर ड्यूटी देना भी शामिल है। हालांकि यह ड्यूटी उनके लिए कई बार अपमानजनक बन जाती है। वह यह भी कहते हैं, “थाने पर हमें दरोगा की गाड़ियां धोनी पड़ती हैं और दूसरे काम भी। इसके बदले हमें 2500 मिलते हैं।”
पिछले साल अक्टूबर में बच्चे लाल की तबीयत खराब हो गई थी। थाने की ड्यूटी पर नहीं जा पाए, और उन्हें उस महीने का वेतन भी नहीं मिला। वह कहते हैं, “बीमार होने पर पगार कट जाती है। यह हमारे लिए सबसे बड़ा अन्याय है।”
थकान से भरा जीवन
गाजीपुर के डहराकला गांव के रविंद्र पासवान की कहानी बच्चे लाल की कहानी से मिलती-जुलती है। वह कहते हैं, “गांव की सुरक्षा के लिए हर समय तैयार रहना होता है, लेकिन बदले में हमें इतनी मामूली पगार मिलती है कि बच्चों की पढ़ाई और परिवार की देखभाल करना असंभव हो जाता है।”
रविंद्र बताते हैं कि, “ग्राम प्रहरियों से हर छोटे-बड़े काम कराए जाते हैं। गांव में सुरक्षा देने से लेकर थाने पर झाड़ू-पोछा लगाने तक, हर काम उनसे करवाया जाता है। हमारी नौकरी का कोई स्थायित्व नहीं है। हमें सरकार से मांग है कि हमारी सेवाओं को स्थायी किया जाए और कम से कम ₹20,000 का वेतन दिया जाए।”
रविंद्र की पीड़ा यहीं खत्म नहीं होती। वह बताते हैं, “कई बार उनके साथ हमेशा दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। हमसे उम्मीद की जाती है कि हम पुलिस की तरह काम करें, लेकिन हमारे साथ नौकर जैसा व्यवहार किया जाता है।”
पहाड़ जैसी हैं मुश्किलें
गाजीपुर के रईसपुर के बच्चेलाल भी ग्राम प्रहरी है। इनके जीवन की मुश्किलें भी पहाड़ जैसी है। बच्चे लाल कहते हैं, “ढाई हजार रुपए से सिर्फ सब्जियां खरीदी जा सकती हैं जिंदगी की गाड़ी नहीं खींची जा सकती। महंगाई आसमान छू रही है और इतने कम पैसे में परिवार चला पाना आसान नहीं। सरकार को चाहिए कि हमें वेतन दें और हमारी नौकरी को स्थाई करें। हमें कम से कम इतना पैसा तो मिलना ही चाहिए कि हम गांव की सुरक्षा कर सकें और थाने पर ड्यूटी भी दे सकें।”
“बीजेपी सरकार आई थी तो हमें उम्मीद जगी थी कि हमारा भविष्य सुधरेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हम उसी जगह खड़े हैं जहां पहले थे। हमारी मुख्यमंत्री से मांग है की हमारे सेवाओं के अनुरूप हमें वेतन देने का प्रबंध करें और इतना पैसा मिलना ही चाहिए कि हम अपने बच्चों की परवरिश और उनकी पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठा सकें।
बच्चे लाल अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए कहते हैं कि हमें थाने पर ड्यूटी बजनी पड़ती है और थानेदारों के हर आदेश का पालन करना पड़ता है और इसके बदले में हमें सिर्फ 2500 रुपये पगार मिलता है। बीमार होने पर कई बार हमें पूरे महीने के पारिश्रमिक से भी हाथ धोना पड़ता है। वह बताते हैं कि अक्टूबर महीने में पिछले साल उनकी तबीयत काफी खराब हो गई थी और उन्हें पूरे महीने का पारिश्रमिक नहीं मिल पाया। प्रहरियों से जितना काम लिया जाता है, उसके हिसाब से हमारा वेतन बेहद कम है। हमें हर महीने की 1 तारीख को वेतन मिलना चाहिए, लेकिन यह महीनों लेट हो जाता है। इससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। चुनाव के समय हमें बड़े-बड़े वादे किए गए। योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि ग्राम प्रहरियों का वेतन बढ़ाकर 10,500 रुपये किया जाएगा, लेकिन यह सब जुमलेबाजी निकली।”
ग्राम प्रहरियों का कार्य पुलिस रेगुलेशन के तहत परिभाषित है। उनके मुख्य कार्य गांव में शांति व्यवस्था बनाए रखना और थानों को सूचनाएं देना हैं। लेकिन हकीकत यह है कि उन्हें कई ऐसे काम करने पड़ते हैं, जो उनके कार्यक्षेत्र से बाहर हैं। गाजीपुर के कई ग्राम प्रहरियों ने बताया कि उन्हें न तो कोई संचार सुविधा दी गई है, और न ही सुरक्षा के पर्याप्त साधन। ऐसे में उनसे अपराधियों का मुकाबला करने और त्वरित सूचना देने की अपेक्षा करना बेमानी है।
गाजीपुर के मुंडियार गांव में रहने वाले गंगाराम पिछले कई दशकों से ग्राम प्रहरी के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वह न केवल गांव की सुरक्षा का भार उठाते हैं, बल्कि अपने परिवार का भी सहारा बने हुए हैं। उनके जीवन की कहानी उन लाखों ग्रामीण भारत के लोगों की कहानी है, जो हर दिन संघर्ष करते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।
गंगाराम की सुबह जल्दी होती है। गांव की पगडंडियों पर हल्की धुंध छाई रहती है, और उनके कदमों की आहट ही गांव के लोगों के लिए सुरक्षा का अहसास है। 70 के दशक में ग्राम प्रहरी के पद पर नियुक्त हुए गंगाराम को शुरुआत में उम्मीद थी कि यह नौकरी उनके परिवार के लिए स्थिर आय का स्रोत बनेगी। लेकिन, ₹2500 की मामूली पगार में घर चलाना किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं है।
गंगाराम के चार बच्चे हैं। उनकी बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। शादी के वक्त उन्होंने अपने सीमित साधनों के बावजूद बेटी को खुशी-खुशी विदा किया। बड़ा बेटा मामूली काम करता है, जिससे परिवार को थोड़ा सहारा मिलता है। बाकी दो बच्चे अभी पढ़ाई कर रहे हैं। गंगाराम के चेहरे पर उस वक्त चिंता की लकीरें गहरी हो जाती हैं, जब वह बताते हैं कि बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाना कितना मुश्किल है?
गंगाराम बताते हैं, “इतनी कम पगार में दो वक्त की रोटी जुटाना और बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल है। कभी-कभी तो सोचना पड़ता है कि राशन लाऊं या बच्चों की फीस जमा करूं।” उनकी आवाज में झलकता दर्द और आंखों में उम्मीद का न खत्म होने वाला चिराग, दोनों ही दिल को छू जाते हैं। गंगाराम के पास थोड़ी-सी खेती है, जो उनके परिवार का दूसरा सहारा है। लेकिन, बारिश और मौसम की अनिश्चितता ने इस सहारे को भी कमजोर बना दिया है। वह कहते हैं, “खेती से बस इतना ही होता है कि घर का राशन आ जाए। लेकिन अगर फसल खराब हो जाए तो फिर उधार लेना पड़ता है।”
खेती के अलावा, गंगाराम को गांव के लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखना होता है। उनका कहना है कि वह गांव में किसी भी विवाद या घटना के वक्त सबसे पहले पहुंचते हैं। यह उनकी जिम्मेदारी है, लेकिन इसके लिए मिलने वाली मामूली पगार उनके संघर्षों का मखौल उड़ाती नजर आती है। गंगाराम का संघर्ष केवल आर्थिक नहीं हैं। वह बताते हैं कि ग्राम प्रहरी का पद कई बार उपेक्षा का शिकार हो जाता है। उन्हें अपने अधिकारों और वेतन के लिए कई बार प्रशासन से गुहार लगानी पड़ी, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिलता है। काफी जद्दोजहद के बाद मिल पाती है मामूली सी पगार।
गंगाराम कहते हैं, “हमारा काम सिर्फ थाने पर ड्यूटी करना नहीं है। गांव के लोगों की सुरक्षा और शांति बनाए रखना भी हमारी जिम्मेदारी है। लेकिन हमारी पगार इतनी कम है कि कई बार लगता है कि हमसे न्याय नहीं हो रहा।”
गंगाराम के जीवन में कठिनाइयों की कोई कमी नहीं है, लेकिन उनके हौसले में कोई कमी नहीं है। वह अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर एक बेहतर भविष्य देने का सपना देखते हैं। उनकी आंखों में चमक तब आ जाती है, जब वह कहते हैं, “मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे पढ़-लिख कर बड़े आदमी बनें। मैं जितना कर सकता हूं, कर रहा हूं।”
गंगाराम की कहानी केवल उनकी नहीं है; यह उन लाखों लोगों की कहानी है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। हमें उनकी ओर से उठ खड़ा होना होगा, ताकि उनका जीवन थोड़ा सहज हो सके और उनका संघर्ष केवल उनके परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन सके।
गंगाराम जैसे लोग न केवल अपने परिवार के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा हैं। गंगाराम की जिंदगी का हर दिन एक संघर्ष है, लेकिन यह संघर्ष हमें उन सवालों से रूबरू कराता है, जिन्हें अक्सर हम अनदेखा कर देते हैं। क्या ऐसे लोगों के लिए समाज और प्रशासन को कदम नहीं उठाने चाहिए? क्या यह हमारा दायित्व नहीं है कि हम उनके अधिकारों और जरूरतों के लिए आवाज उठाएं?
विधि आयोग की सिफारिशें
ग्राम प्रहरी, न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाए रखने में सहायता करते हैं, बल्कि गांव के सामाजिक, सांस्कृतिक और सामुदायिक ताने-बाने को सुरक्षित रखने में भी योगदान देते हैं। राज्य विधि आयोग ने इस भूमिका की महत्ता को स्वीकारते हुए ग्राम प्रहरियों के लिए विशेष कानून बनाए जाने की सिफारिश की है। राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल ने ग्राम प्रहरियों के लिए कानून का मसौदा प्रदेश सरकार को भेजा है।
21वें प्रतिवेदन में ग्राम प्रहरियों की नियुक्ति प्रक्रिया, सेवा शर्तें, दायित्व और सामाजिक सुरक्षा की जरूरतों को स्पष्ट किया गया है। इस प्रतिवेदन में ग्राम प्रहरियों के कार्यों और अधिकारों को विधि द्वारा सुनिश्चित करने का प्रस्ताव रखा गया है। विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि ग्राम प्रहरियों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए। इसके तहत:
- न्यूनतम शैक्षिक योग्यता: ग्राम प्रहरियों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता निर्धारित की जानी चाहिए ताकि वे अपने कर्तव्यों को समझ सकें और प्रभावी ढंग से निभा सकें।
- आयु और शारीरिक दक्षता: ग्राम प्रहरियों की आयु और शारीरिक क्षमता के लिए मानक तय किए जाने चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वे शारीरिक रूप से सक्षम हैं और अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकते हैं।
- नियुक्ति प्रक्रिया: ग्राम प्रहरियों की नियुक्ति जिलाधिकारी के माध्यम से की जानी चाहिए। इससे चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनी रहेगी।
- मानदेय और भुगतान: मासिक मानदेय का नियमित भुगतान सुनिश्चित किया जाए ताकि ग्राम प्रहरियों को आर्थिक असुरक्षा का सामना न करना पड़े।
सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी उपाय
ग्राम प्रहरियों की सुरक्षा और उनके परिवारों के हितों को ध्यान में रखते हुए विधि आयोग ने कुछ प्रमुख सिफारिशें की हैं:
- बीमा योजना: ग्राम प्रहरियों को सामूहिक बीमा योजना का लाभ दिया जाना चाहिए। यह उनकी आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करेगा।
- मृत्यु के बाद लाभ: ड्यूटी के दौरान या सेवाकाल में ग्राम प्रहरी की मृत्यु होने पर उनके आश्रितों को समुचित लाभ दिया जाना चाहिए।
- सामाजिक सुरक्षा: ग्राम प्रहरियों के लिए विशेष सामाजिक सुरक्षा उपाय लागू किए जाएं ताकि वे अपने कर्तव्यों को बिना किसी चिंता के निभा सकें।
ग्राम प्रहरियों के दायित्व
विधि आयोग ने ग्राम प्रहरियों के दायित्वों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। इसके तहत:
- अपराधों की सूचना:
हत्या, लूट, चोरी, बलात्कार, अग्निकांड, अपहरण, और अन्य अपराधों की सूचना तुरंत संबंधित पुलिस अधिकारी को देनी होगी।
- सामाजिक तनाव और विवाद
किसी विवाद से जातीय, सांप्रदायिक तनाव या दंगा भड़कने की आशंका होने पर तुरंत पुलिस को सूचित करना होगा।
- संदिग्ध गतिविधियां
किसी भी संदिग्ध, अप्राकृतिक या आकस्मिक मृत्यु के बारे में पुलिस को जानकारी देना।
- आपदाओं की सूचना
किसी भी प्रकार की प्राकृतिक या मानवीय आपदा, जैसे घर का गिरना या अग्निकांड, के बारे में पुलिस को तत्काल सूचित करना।
विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि ग्राम प्रहरियों से जुड़े कानूनों में इस्तेमाल होने वाले शब्दों को स्पष्ट और सटीक रूप से परिभाषित किया जाए। इसमें ‘ग्राम प्रहरी,’ ‘गांव,’ ‘पुलिस अधीक्षक,’ ‘बीट,’ और ‘नियुक्ति प्राधिकारी’ जैसे शब्द शामिल हैं। यह सुनिश्चित करेगा कि कानून की व्याख्या में कोई भ्रम न हो।
ग्राम प्रहरियों की भूमिका केवल गांव की सुरक्षा तक सीमित नहीं है। वे गांव में सामाजिक शांति और सामुदायिक सहयोग को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ग्राम प्रहरियों की वर्तमान स्थिति में कई चुनौतियां हैं, जैसे अपर्याप्त मानदेय, सामाजिक सुरक्षा का अभाव और कार्य के दौरान असमानता और उपेक्षा।
विधि आयोग की सिफारिशें इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं। यदि इन सिफारिशों को लागू किया जाता है, तो यह न केवल ग्राम प्रहरियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाएगा, बल्कि ग्रामीण सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत करेगा।
ग्राम प्रहरियों की भूमिका ग्रामीण भारत की सुरक्षा व्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण है। विधि आयोग की सिफारिशें इस दिशा में एक बड़ा कदम हैं। सरकार को इन सिफारिशों को शीघ्रता से लागू कर ग्राम प्रहरियों के जीवन में बदलाव लाना चाहिए। यह न केवल उनके जीवन स्तर को सुधारने में मदद करेगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था को भी मजबूत करेगा।
गाजीपुर के सैदपुर निवासी प्रतिष्ठत कारोबारी संतोष दुबे कहते हैं कि ग्राम प्रहरियों की जिंदगी उनके अदम्य साहस और सहनशीलता का प्रतीक है। उनकी कहानियां हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या वे उस सम्मान और सुविधा के हकदार नहीं हैं जो उन्हें उनके कार्य के बदले मिलनी चाहिए? सरकार और समाज को उनके संघर्षों को समझना होगा और उनकी जरूरतों को प्राथमिकता देनी होगी। ये लोग केवल अपने परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज की सुरक्षा के लिए काम करते हैं। अब समय है कि उनकी आवाज को सुना जाए और उनके अधिकारों को दिलाया जाए।”
(आराधना पांडेय स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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