जज यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगने का सटीक कारण अभी स्पष्ट नहीं है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, यह घटना 14 मार्च 2025 की रात लगभग 11:35 बजे दिल्ली के लुटियंस क्षेत्र में स्थित उनके आवास पर हुई। आग स्टोर रूम में लगी थी, जहां स्टेशनरी और घरेलू सामान रखा हुआ था। दिल्ली अग्निशमन सेवा के अनुसार, आग पर 15 मिनट में काबू पा लिया गया और कोई हताहत नहीं हुआ। उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली से बाहर थे, और उनके परिवार वालों ने फायर ब्रिगेड को सूचित किया था।
हालांकि, आग के कारण, आग कैसे लगी ,किसने लगायी, को लेकर कोई आधिकारिक बयान या तकनीकी जांच का निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं किया गया है।अभी यह स्पष्ट नहीं है कि आग प्राकृतिक रूप से लगी या किसी ने जानबूझकर लगाई। 14 मार्च 2025 की रात को हुई इस घटना के बाद कई सवाल उठे हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला है।दिल्ली अग्निशमन सेवा ने इसे एक सामान्य आग की घटना के रूप में दर्ज किया, जो स्टोर रूम में शुरू हुई और जल्दी काबू में आ गई।
15 मार्च 2025 की सुबह जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले से जले नोटों का मलबा किसने हटाया, इस बारे में अभी कोई स्पष्ट और आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय की जांच रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस आयुक्त ने 16 मार्च 2025 को अपनी रिपोर्ट में बताया कि बंगले पर तैनात गार्ड के बयान के आधार पर, आग लगने वाले कमरे से मलबा और आंशिक रूप से जली हुई वस्तुएं 15 मार्च की सुबह हटा दी गई थीं। हालांकि, यह नहीं बताया गया कि इसे किसने हटाया—क्या यह घरेलू स्टाफ, सुरक्षाकर्मी, या किसी अन्य व्यक्ति ने किया।
जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपने जवाब में कहा कि न तो उन्हें और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य को जले हुए नोटों की बोरियां दिखाई गईं या सौंपी गईं, और आग के बाद मलबा अभी भी उनके आवास के एक हिस्से में मौजूद है। लेकिन कहाँ है किसी को नहीं मालुम। मलबे को कौन हटाने के लिए जिम्मेदार है और वह कहां गया। अभी तक, इस सवाल का जवाब अनिश्चित बना हुआ है।
दरअसल 14 और 15 मार्च 2025 की रात को दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में एक आग लगी। ये आग उनके स्टाफ क्वार्टर्स के पास बने एक स्टोर रूम में लगी थी। शुरू में इसे छोटी-मोटी घटना समझा गया, लेकिन जब आग बुझाने वाले और पुलिस वाले वहाँ पहुँचे, तो खबर फैली कि कमरे में जली हुई नकदी के ढेर मिले।
ये बात इतनी तेज़ी से फैली कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय तक पहुँच गई। इसके बाद शुरू हुआ सवाल-जवाब, जाँच और पत्राचार का सिलसिला। जस्टिस वर्मा ने 22 मार्च 2025 को चीफ जस्टिस उपाध्याय को एक लिखित जवाब भेजा, जिसमें उन्होंने सारे आरोपों को खारिज करते हुए इसे अपने खिलाफ साज़िश बताया। इस रिपोर्ट में हम जस्टिस वर्मा के जवाब की हर बात को शामिल करेंगे, उस पर गहराई से चर्चा करेंगे, और विवेचनात्मक सवाल उठाएंगे ताकि सच का हर पहलू सामने आए। इसे आसान हिंदुस्तानी भाषा में लिखा जा रहा है, ताकि हर कोई समझ सके।
घटना का पूरा ब्यौरा: जस्टिस वर्मा की ज़ुबानी
जस्टिस वर्मा ने अपने जवाब में लिखा कि आग 14 और 15 मार्च 2025 की रात को उनके बंगले के स्टोर रूम में लगी। ये स्टोर रूम स्टाफ क्वार्टर्स के पास था और आमतौर पर पुराने सामान को रखने के लिए इस्तेमाल होता था। उनके मुताबिक, इसमें पुराना फर्नीचर, बोतलें, क्रॉकरी, गद्दे, पुराने कालीन, पुराने स्पीकर, बगीचे के औज़ार और CPWD का सामान रखा जाता था। वो कहते हैं कि ये कमरा हमेशा खुला रहता था और इसे कोई भी इस्तेमाल कर सकता था-चाहे वो स्टाफ हो, माली हो, या CPWD के लोग। ये उनके मुख्य बंगले से अलग था, और इसके दो रास्ते थे-एक सामने का गेट और दूसरा स्टाफ क्वार्टर्स का पिछवाड़ा। एक दीवार इस कमरे को उनके रहने की जगह से अलग करती थी।
उस रात जस्टिस वर्मा दिल्ली में नहीं थे। वो अपनी पत्नी के साथ भोपाल गए थे। आग की खबर उन्हें उनकी बेटी ने फोन करके दी। बंगले पर मौजूद स्टाफ ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को बुलाया। आग बुझने के बाद खबर फैली कि कमरे में जली हुई नकदी मिली। लेकिन जस्टिस वर्मा का कहना है कि जब वो 15 मार्च की शाम को इंडिगो फ्लाइट नंबर 6E 2303 से दिल्ली लौटे और कमरे को देखा, तो वहाँ कोई नकदी नहीं थी। उनके मुताबिक, ये बात उनके पर्सनल प्राइवेट सेक्रेटरी (PPS) की रिपोर्ट से भी साबित होती है, जो चीफ जस्टिस के कहने पर उस रात वहाँ गया था। वो कहते हैं कि कमरे को चीफ जस्टिस के आदेश पर उसी हालत में रखा गया है, जैसा आग बुझने के बाद था।
अब सवाल है कि दिल्ली के लुटियन ज़ोन में हाई सिक्योरिटी के इस बंगले का अगर स्टोर रूम हमेशा खुला रहता था, तो क्या वहाँ नकदी रखना मुमकिन था बिना किसी की नज़र में आए? जस्टिस वर्मा कहते हैं कि कमरा उनके रहने की जगह से अलग था। लेकिन क्या ये इतना अलग था कि वहाँ कुछ भी हो और उन्हें खबर न लगे? उनकी बेटी ने आग की खबर दी, लेकिन क्या उसने नकदी की बात भी बताई? अगर नहीं, तो क्या बेटी को भी इसकी जानकारी नहीं थी?
नकदी का आरोप और जस्टिस वर्मा का इनकार
जस्टिस वर्मा ने अपने जवाब में साफ़-साफ़ कहा कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने कभी उस स्टोर रूम में नकदी रखी। वो इस बात को “बेतुका” और “हास्यास्पद” बताते हैं कि कोई इतनी सारी नकदी एक खुले, सबके लिए ऐक्सेसिबल कमरे में रखेगा, जो उनके रहने की जगह से पूरी तरह अलग था। वो कहते हैं कि ये कमरा एक आउटहाउस था, जो उनके घर से दीवार से बँटा हुआ था। उनके मुताबिक, अगर वहाँ नकदी थी, तो वो उनकी नहीं थी, और न ही उन्हें इसकी कोई जानकारी थी।
वो लिखते हैं कि ये सोचना भी अजीब है कि कोई जज इतनी नकदी एक ऐसे कमरे में रखेगा, जो स्टाफ, माली और बाहरी लोगों के लिए खुला हो। वो कहते हैं कि अगर सचमुच नकदी थी, तो ये उनके लिए हैरानी की बात है, क्योंकि न तो उन्हें, न उनके परिवार को और न ही स्टाफ को इसकी भनक थी। वो मीडिया पर भी नाराज़गी जताते हैं कि बिना जाँच के उनकी बदनामी कर दी गई।
सवाल है कि अगर नकदी उनकी नहीं थी, तो क्या ये किसी और की हो सकती थी-जैसे स्टाफ, माली या सीपीडब्लूडी वालों की? वो कहते हैं कि कमरा सबके लिए खुला था। तो क्या ये मुमकिन है कि लुटियन ज़ोन में हाई सिक्योरिटी के इस बंगले में कोई बाहर का शख्स वहाँ नकदी रख गया और न उन्हें पता न चला न उनके यहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों को?
वीडियो और फोटो का रहस्य
जस्टिस वर्मा ने बताया कि 17 मार्च को चीफ जस्टिस ने उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट गेस्ट हाउस में बुलाया और पुलिस कमिश्नर से मिले वीडियो और फोटो दिखाए। इनमें जली हुई नकदी साफ़ दिख रही थी। जस्टिस वर्मा का कहना है कि ये देखकर वो दंग रह गए, क्योंकि जब वो खुद कमरे में गए थे, तो वहाँ ऐसा कुछ नहीं था। इसी वजह से उन्होंने इसे अपने खिलाफ साज़िश बताया। वो कहते हैं कि दिसंबर 2024 में भी सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैली थीं, जिसकी जानकारी उन्होंने चीफ जस्टिस को दी थी। उनके मुताबिक, ये सारी घटनाएँ एक सोची-समझी साज़िश का हिस्सा हैं, जिसका मकसद उनकी साख को खराब करना है।
सवाल है कि अगर वीडियो में नकदी दिख रही थी, तो वो कमरे से गायब कैसे हुई? क्या पुलिस ने उसे हटा लिया? जस्टिस वर्मा कहते हैं कि वीडियो में जो दिखा, वो मौके पर नहीं था। तो क्या वीडियो नकली था या बाद में बनाया गया? साज़िश की बात करते हैं, लेकिन क्या उनके पास इसका कोई ठोस सबूत है? क्या दिसंबर 2024 की अफवाहें इस घटना से जुड़ी हो सकती हैं? फिर अगर नकदी नहीं थी, तो पुलिस के पास जो सबूत हैं, वो कहाँ से आए?
मलबा और नकदी हटाने का सवाल
जस्टिस वर्मा ने लिखा कि उनके स्टाफ ने कमरे से सिर्फ़ मलबा और कुछ बेकार सामान निकाला, जो अभी भी बंगले में एक तरफ रखा है। वो कहते हैं कि कोई नकदी नहीं हटाई गई, क्योंकि वहाँ कोई नकदी थी ही नहीं। उनके मुताबिक, न उनकी बेटी को, न PS को और न ही किसी स्टाफ को कोई जली हुई नकदी दिखाई गई। वो कहते हैं कि अगर नकदी थी, तो उसे उनके सामने पेश किया जाना चाहिए था। वो ये भी कहते हैं कि वो और उनकी पत्नी 15 मार्च की शाम को ही दिल्ली लौटे थे, तो सुबह मलबा हटाने की बात से उनका कोई लेना-देना नहीं है। उनके स्टाफ ने भी कहा कि उन्होंने कोई नकदी नहीं हटाई।
सवाल है कि अगर स्टाफ ने सिर्फ़ मलबा हटाया, तो पुलिस के वीडियो में नकदी कैसे दिख रही है? अगर सुबह मलबा हटाया गया, तो जले नोट का मलबा कहाँ गया ?
चीफ जस्टिस के सवालों का जवाब
चीफ जस्टिस डी के उपाध्याय ने 21 मार्च की चिट्ठी में जस्टिस वर्मा से तीन सवाल पूछे थे। उनका जवाब इस तरह है:
कमरे में नकदी कैसे थी?
जस्टिस वर्मा कहते हैं कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। न उन्होंने, न उनके परिवार ने वहाँ नकदी रखी। जब वो कमरे में गए, तो वहाँ कुछ नहीं था। वो कहते हैं कि न उनके परिवार को और न ही स्टाफ को कोई नकदी दिखाई गई।
नकदी का स्रोत क्या था?
वो कहते हैं कि क्योंकि उन्हें नकदी की कोई जानकारी नहीं, तो स्रोत बताने का सवाल ही नहीं उठता। उनके मुताबिक, ये इल्ज़ाम ही गलत है।
जली हुई नकदी किसने हटाई?
वो इस बात से साफ़ इनकार करते हैं कि उनके परिवार या स्टाफ ने कोई नकदी हटाई। वो कहते हैं कि जो मलबा निकाला गया, वो अभी भी बंगले में रखा है। वो उस वक्त भोपाल में थे, तो हटाने की बात उनके लिए मुमकिन नहीं। उनके स्टाफ ने भी कहा कि कोई नकदी नहीं हटाई गई।
दिल्ली पुलिस ने अपनी रिपोर्ट दी है, जिसमें वीडियो और फोटो हैं। इनमें जली हुई नकदी दिख रही है। लेकिन जस्टिस वर्मा कहते हैं कि ये वीडियो उस वक्त का नहीं हो सकता, जब वो कमरे में गए थे। उनका कहना है कि अगर नकदी थी, तो उसे बरामद क्यों नहीं किया गया? दिल्ली पुलिस ने उनके फोन के कॉल डिटेल्स भी चेक किए हैं, जो 1 सितंबर 2024 से अब तक के हैं। अभी इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड का इंतज़ार है।
अब सबकी नज़रें तीन जजों की कमेटी की रिपोर्ट पर हैं। अगर कमेटी को लगता है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, तो उन्हें बरी कर दिया जाएगा। लेकिन अगर सबूत मिले, तो सीजेआई उनसे इस्तीफा माँग सकते हैं। अगर वो इस्तीफा नहीं देते, तो संसद में उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू हो सकती है। अभी जस्टिस वर्मा को कोर्ट में कोई काम नहीं दिया गया है, और उनका तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट के लिएरुक गया है।
ये मामला सिर्फ़ जस्टिस वर्मा की कहानी नहीं है-ये न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही का सवाल है। एक आग ने न सिर्फ़ नकदी को उजागर किया, बल्कि सवालों की आग भी भड़का दी। अब देखना ये है कि ये आग सच को जलाती है या सच को सामने लाती है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं)
+ There are no comments
Add yours