मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने शनिवार को बहुचर्चित हनीट्रैप मामले को लेकर दायर पांच अलग-अलग याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए आदेश में कहा है कि हनी ट्रैप मामले की ‘विशेष जांच दल’ (एसआईटी) के द्वारा की जा रही जांच से अदालत संतुष्ट है, अदालत ने मामले की जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग को ख़ारिज कर दिया है। हाईकोर्ट को बंद लिफाफों में सौंपी गई एसआईटी की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुचर्चित हनी ट्रैप मामले के आरोपितों के रिश्ते प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों समेत 44 लोगों से थे।
इससे पहले खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रख लिया था। शनिवार को खंडपीठ के प्रशासनिक न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायाधीश शैलेन्द्र शुक्ला ने आदेश जारी करते हुए कहा कि सभी पांच याचिकाकर्ताओं की प्रमुख मांग थी कि मामले की जांच राज्य की एसआईटी से लेकर सीबीआई को सौंप दी जाए। जिसके फलस्वरूप खंडपीठ ने एसआईटी से मामले की जांच की प्रगति रिपोर्ट और अन्य साक्ष्यों को तलब किया था।
खंडपीठ ने एसआईटी द्वारा जांच की प्रगति रिपोर्ट और अन्य साक्ष्यों का अवलोकन किया। अदालत ने एसआईटी की जांच प्रगति पर संतोष जाहिर किया है। अदालत ने साथ ही कहा कि याचिकाकर्ताओं में से कोई भी पक्ष अदालत को मामले की जांच सीबीआई को सौंपे जाने के समर्थन में पर्याप्त आधार और कारण बताने में असमर्थ रहे। लिहाजा मामले की जांच को सीबीआई को सौंपे जाने की मांग को अदालत ख़ारिज करती है। खंडपीठ ने मामले की जांच कर रही एसआईटी को विधि सम्मत जांच जारी रखने का आदेश दिया है। साथ ही समय-समय पर जांच की प्रगति रिपोर्ट से न्यायालय के रजिस्ट्रार को अवगत कराने का आदेश दिया है।
उल्लेखनीय है कि 17 सितंबर 2019 को इंदौर नगर निगम के तत्कालीन सिटी इंजीनियर हरभजन सिंह की शिकायत पर इंदौर की पलासिया पुलिस ने एक प्रकरण दर्ज किया था। पीड़ित हरभजन सिंह ने आरोप लगाया था कि उनके अंतरंग पलों का वीडियो बनाकर भोपाल निवासी एक महिला सहित अन्य लोग उन्हें तीन करोड़ की राशि के लिए ब्लैक मेल कर रहे हैं। जिस पर तत्कालीन राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए एक एसआईटी गठित की थी। हनीट्रैप मामले में मध्य प्रदेश पुलिस पर रसूखदारों को बचाने का आरोप लगाते हुए मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में इस मामले की जांच सीबीआई से कराने को लेकर याचिका दायर की गई थी।
पुलिस द्वारा मामले में तीन भोपाल निवासी महिला सहित कुल छह आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ़्तारी के बाद से ही सभी आरोपी इंदौर की जेल में न्यायिक अभिरक्षा में रह रहे हैं। इस मामले में एसआईटी जांच को चुनौती देने के साथ अन्य मुद्दों पर अलग-अलग पांच याचिकाएं दायर की गई थीं। पांचों याचिकाओं में प्रमुख रूप से मामले की जांच सीबीआई से कराये जाने की मांग की गई थी।
खंडपीठ ने माना कि याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट के समक्ष ऐसा कोई तथ्य नहीं रखा जिसके आधार पर कहा जा सके कि इस मामले में जांच सही तरीके से नहीं हुई है। एसआईटी ने कोर्ट की निगरानी में जांच की है और समय-समय पर प्रोग्रेस रिपोर्ट भी पेश की है। ऐसी स्थिति में ऐसा कोई तथ्य कोर्ट के समक्ष नहीं है जिसे आधार बनाकर जांच सीबीआई को सौंपी जाए। 27 पेज के फैसले में कोर्ट ने सभी याचिकाओं का निराकरण करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि जांच सीबीआई को नहीं सौंपी जाएगी।
हाईकोर्ट को बंद लिफाफों में सौंपी गई जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुचर्चित हनीट्रैप मामले की आरोपितों के रिश्ते प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों समेत समेत 44 लोगों से थे। जांच रिपोर्ट में इन अफसरों के रिश्तों का राजफाश किया गया है। रिपोर्ट में जिनके नाम हैं उनमें प्रदेश के एक पूर्व शीर्ष अफसर, दो रिटायर्ड अतिरिक्त मुख्य सचिव, एक प्रमुख सचिव, एक मौजूदा अतिरिक्त प्रमुख सचिव एवं एक सचिव स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं। अब तक की जांच में किसी भी आईपीएस अधिकारी का नाम सामने नहीं आया है, जबकि एक पूर्व मंत्री के आरोपितों से करीबी रिश्ते सामने आए हैं।
इंदौर हाईकोर्ट ने मामले की जांच कर रही एसआईटी से स्टेटस रिपोर्ट के साथ ही अब तक कि जांच में सामने आए नामों की सूची मांगी थी। एसआईटी ने गुरुवार को तीन बंद लिफाफे में नामों की सूची समेत स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में जमा कर दी है। सुनवाई के दौरान एसआईटी चीफ राजेन्द्र कुमार भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित हुए थे। हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा था कि जांच के दौरान एसआईटी ने ‘पिक एंड चूज’ पद्धति को अपनाया है। इस मामले में अभियुक्तों और गवाहों के बयान की वीडियोग्राफी नहीं की गयी है। इस सूची में 44 लोगों के नाम हैं। उनमें एक वरिष्ठ राज नेता और 6 सीनियर अधिकारी हैं। इनके नाम कथित तौर पर आरोपियों ने जांच के दौरान लिए हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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