स्वतंत्रता दिवस विशेष: जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की आजादी का सवाल

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आज 15 अगस्त है, आप कहेंगे स्वतंत्रता दिवस का दिन। आप हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूरी निष्ठा से झंडोत्तोलन करेंगे, राष्ट्रीय गान गाएंगे, कुछ कार्यक्रम कर इसे सेलिब्रेट करेंगे और अपने घर पर टीवी पर देखेंगे कि इस साल की झांकी हर साल से किस बिंदु पर स्पेशल है। पर इस सेलिब्रेशन के पहले दोस्तों आपने सोचा है कि स्वतंत्रता शब्द आज की स्थिति में कितनी फिट बैठती है?

स्वतंत्रता की तस्वीर बताती जेलों के आंकड़े

देश की जेल, जेलों में कैदियों की संख्या, उनके प्रकार, उनके अपराध इस बात का प्रमाण देते हैं कि देश की स्थिति क्या है?
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत में कैदियों की कुल संख्या साढ़े 5 लाख से भी ऊपर है, जिसके साथ भारत जेलों में बंद सबसे ज्यादा कैदियों के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर है।

हमारे देश में हर जेल में क्षमता से कहीं ज्यादा कैदी हैं, यह जानकर आपको हैरानी जरूर होगी कि इन बंदियों में 77% कैदी विचाराधीन है। यानि जेल में बंद 77℅ लोग बस बंद है। इनमें से कई-कई तो वर्षों से बंद हैं क्योंकि आर्थिक स्थिति से कमजोर होने के कारण इन्हें न ही अपना अधिकार पता है, न ही उसे पाने की क्षमता। बार-बार इसमें सुधार की बात की जाती है, मगर इसमें इजाफा ही हुआ है‌‌।

हमारे देश के जिला जेलों में 51.4℅ , सेंट्रल जेलों में 36.2℅ तथा सब जेलों में 10.4℅ विचाराधीन कैदी बंद है। इन बंदियों में 66℅ ST/ SC तथा OBC समुदाय के लोग हैं, जिनमें से 25% विचाराधीन बंदी ऐसे है जो अनपढ़ है। हम समझ सकते हैं कि ये वही वर्ग है जो शिक्षा, मूलभूत जरूरतों, सुविधाओं से वंचित है। और ज्यादातर इस तरह केस में फंसने का कारण भी इनकी स्थिति रही होगी। आखिर आजादी के इतने वर्षों बाद भी क्यों नहीं बदली है यह स्थितियां?

आज भी विकास के रूप में चमचमाती सड़कें, हाई-वे, फैक्ट्री, पर्यटन जैसे काम तो नजर आते है, पर क्यों नहीं नजर आते हर हाथ को काम, हर मुंह को निवाला? आज भी हाईवे के ऊपर चमचमाती गाड़ियां दौड़ती हैं, तो नीचे लोग जिंदगी बसाते हैं क्यों? गरीबी, बदहाली से इन्हें आजादी क्यों नहीं? क्या ये आंकड़े हमें जरा भी शर्मिंदा नहीं करते?

सुधार के प्रयास और प्रयासों पर कुठाराघात

इसके अलावा एक और बात जिसे हम आज का ट्रेंड बना देख सकते हैं। इन विचाराधीन कैदियों की लिस्ट में वे लोग भी शामिल हैं जो देश और समाज की बदतर तस्वीर को खुबसूरत बनाने का काम करते हैं। क्या हम भूल सकते हैं आदिवासी जनता के नायक शहीद स्टेन स्वामी को, जिनकी 84 वर्ष की उम्र में जेल की बदतर व्यवस्था ने जान ले ली, या जेल में बंद आदिवासी जनता के मुद्दों की सच्ची तस्वीर उभारने वाले पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को जिन्हें 2 वर्ष से ऊपर हो चुके हैं, जो आज जेल के अंदर बंदी अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे हैं।

क्या वकील सुधा भारद्वाज जो हासिये में पड़े लोगों के जीवन सुधार के लिए काम करती रहीं, के जेल में बिताए 3 वर्षों को या छात्रों की पसंदीदा प्रोफेसर सोमा सेन के जेल में खोए 6 वर्षों को, जनता की बात लिखने वाले बेबाक कवि वरवरा राव के जेल द्वारा छीने गए महत्वपूर्ण 4 वर्षों को।

कई ऐसे है जो वर्षों बाद भी बा-ईज्जत बरी किए गए हैं। क्या यह बात नजरअंदाज की जा सकती है कि हाल ही में बा-इज्जत बरी होने वाले प्रोफेसर साई बाबा को जिन्होंने अपनी शारीरिक शक्ति का बड़ा हिस्सा 7 साल के जेल जीवन में खो दी, या क्या भूला जा सकता है, इस लिस्ट में शामिल पांडु नेरोटे का नाम, जिसने जेल में अपना जीवन ही खो दिया।

इनके साथ रिहा हुए बाकी सभी के जिंदगी के 7-8 वर्षों का वह हिस्सा, जो जेलों में खो गया। ऐसे अनगिनत नाम हैं, जिनपर कार्रवाई इसलिए होती है कि वे जनता की मुखर आवाज बनते हैं और जिससे सत्ता के काम की खामियां उजागर होती है।

कितने ही सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, कवि, जर्नलिस्ट, वकील अभी बेल पर बाहर तो हैं पर जेलों में अपने जीवन का 2, 4, 5, 8 …. साल उन्होंने खो दिया है और बाहर आकर भी वे पुरानी जिंदगी में लौट नहीं पाए।

एक बहुत लम्बी लिस्ट है, जहां देश के सबसे खतरनाक कानून की धाराएं, सबसे गंभीर धाराएं लगाकर हमारे देश में समाज के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता, लेखक, कलाकार, पत्रकार, संगीतकार, शिक्षक, वकील….जेलों में भरे जा रहे हैं। जनता की आवाजों का अपराधी लिस्ट में शामिल किया जाना क्या स्वतंत्रता शब्द पर दाग नहीं है?

वर्तमान स्थिति का सच

स्वतंत्रता शब्द की जब बात आती है तो आंखों के सामने भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों की तस्वीर उभरती है। जिन्होंने देश नामक किसी जमीन के टुकड़े के लिए नहीं बल्कि उत्पीड़ित जनता से भरे देश की स्वतंत्रता के लिए शहादत दे दी। वही स्वतंत्रता जिसका एक तरफ आज हम महोत्सव मनाते है और दूसरी तरफ उसी जनता के उन्हीं मूल्यों के लिए आवाज़ उठाने वाले को जेलों में भरा देखते हैं।

कल के ब्रिटिश सत्ता के अपराधी यदि भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, सूर्यसेन…जैसे क्रांतिकारी थे, तो आज के अपराधी भी जनता की मूलभूत जरूरतों के लिए बोलने-लिखने वाले कार्यकर्ता, लेखक, कलाकार, पत्रकार, संगीतकार, शिक्षक, वकील, छात्र, नौजवान हैं। उन्हें फांसी मिली, इन्हें देशद्रोह, यूएपीए की धाराएं लगाकर वर्षों तक जेलों में कैद रखा जाता है। क्या वर्तमान की यह स्थिति आपको शर्मिंदा नहीं करती?

जिस देश में अपराधियों के लिस्ट में समाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी लेखक, कवि, संस्कृतकर्मी, जुझारू पत्रकार, वकील , जागरूक छात्र, …शामिल होने लगें उस देश की व्यवस्था के बारे में एक बार देश के हर नागरिक को जरूर सोचना चाहिए।

खास कर उन्हें तो जरूर, जो सचमुच अपने देश, समाज, न्याय और स्वतंत्रता शब्द से प्यार करते हैं। इस स्वतंत्रता दिवस को मनाने से पहले स्वतंत्रता शब्द की स्थिति पर एक बार जरूर सोचिए दोस्त!

(इलिका प्रिय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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