प्रदूषित राजनीति में इंडिया ग्रींस की ताजी हवा

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बसंत रावत

देश में एक नयी राजनीति की शुरुआत करने के संकल्प और जज़्बे के साथ, इंडिया ग्रींस नाम से एक नया राजनीतिक दल पर्यावरण संरक्षण और राजनीतिक प्रदूषण से लड़ने के लिय मैदान में उतरा है। पेशे से पत्रकार सुरेश नौटियाल इस नव गठित दल के प्रेसिडेंट चुने गए हैं। सर्व सहमति से निर्वाचित होने के बाद नौटियाल ने जम्मेदारियों का कंटीला ग्रीन ताज पहनते ही राजनीति में कारगर दख़ल देने के लिए एक ‘ऐक्शन प्लान’ पर काम कर के अपनी पार्टी की मौजूदगी दर्ज कराने का संकल्प लिया। उनका मानना है कि इंडिया ग्रींस देश की प्रदूषित राजनीति में एक ताज़ी हवा की तरह बहेगी। और मील का पत्थर साबित होगी। देश की राजनीति में ग्रीन कारवां दस्तक है ग्रीन पार्टी के रूप में।

प्रस्तावित ऐक्शन प्लान के तहत बहुत से इकोलाजी और पर्यावरण के मुद्दों पर जागरूकता अभियान चलाने के साथ-साथ इंडिया ग्रींस अगले साल होने वाले लोक सभा चुनावों के लिय पीपुल्स मैनिफ़ेस्टो तैयार करेगी और ज़ाहिर है दर्शक बनकर नहीं रहेगी। इंडिया ग्रींस राजनीति का एजेंडा सेट करने की कोशिश करेगी- राजनीति की दशा और दिशा बदलने के लिए। लोकतंत्र के नाम पर फल-फूल रहा बदनाम भीड़तंत्र को पोषित करने के लिए पहले से मौजूद 1866 राजनीतिक दलों के दलदल में एक नया दल, इंडिया ग्रींस, ऐसा क्या कर सकेगा कि इस दल की एक अलग पहचान बन सके? यह अलग दिख सके? क्या यह दल भी दलों की दलदल में धंसेगा या जुगनू की तरह टिमटिमाएगा ? 

अभी कुछ नहीं कह सकते। ग्रीन ऐक्टिविस्ट बहुत सजग हैं। और आशावान भी। ख़बरों के बीच रहने वाले, न्यूज़ एजेन्सी में एडिटोरियल कन्सल्टेंट की हैसियत से ख़बरों की चीरफाड़ करने में दक्ष, नौटियाल को ख़बर है कि चुनौती बहुत बड़ी है। इसलिए उन्हें कोई मुग़ालता भी नहीं है। उन्हें पता है कि दल छोटा है और मुद्दे बड़े। पर इससे वे मायूस नहीं हैं। जुझारूपन इस ग्लोबल ऐक्टिविस्ट के डीएनए में है। कोई भी नयी चुनौती उनका हौसला और भी बढ़ाती है। चुनौती उन्हें जीने का मक़सद देती है। दल बहुत हैं और मुद्दे भी। फिर भी पर्यावरण की बात करने वाले दल बहुत कम। और यही बात उन्हें कुछ ठोस नया करने का और कामयाब होने का हौसला देता है। नौटियाल का मानना है कि ग्रीन कन्स्टिचूएन्सी बहुत बड़ी है।

और ग्रीन पार्टी की सोच भी बहुत बड़ी, व्यापक और समावेशी है-लोकल टू ग्लोबल। स्कूली जीवन से सक्रिय राजनीति में भागीदारी रखने वाले, उत्तराखंड आंदोलन और पर्यावरण में गहरी दिलचस्पी के चलते नौटियाल का ग्रीन ज़िहादी बनना स्वाभाविक था । आख़िर वे उस प्रदेश से वास्ता रखते हैं जहां पर्यावरण आंदोलन के दो बड़े नेता चंडीप्रसाद भट्ट और सुन्दरलाल बहुगुणा ने ग्रीन राजनीति के बीज बोए । नौटियाल इन्हीं दो बड़े नेताओं के राजनीतिक ग्रीन वंशज हैं। एक अर्थ में उनका मानसपुत्र। एक ऐक्टिविस्ट के तौर पर नौटियाल अपनी जनवादी आस्था का नया ग्रीन अवतार भी हैं और ये उनका एक नया सफ़र भी – नयी यात्रा, एक नया पड़ाव भी है। इंडिया ग्रींस का दो दिवसीय- 17-18 नवंबर को दिल्ली में आयोजित- कन्वेन्शन जिसमें पार्टी का संविधान एडाप्ट किया गया और प्रेसिडेंट के साथ पार्टी की पोलिटिकल अफ़ेयर्स कमेटी और नेशनल एग्जीक्यूटिव गठित की गयी।

इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि दिल्ली के मीडिया ने इंडिया ग्रींस के गठन को एक नान इवेंट मान कर ब्लैकआउट कर दिया। वैसे भी आज के दौर में दूसरी सनसनीख़ेज़ मसालेदार ख़बरों के सामने इंडिया ग्रींस की न्यूज़ वैल्यू कितनी आंकी जा सकती है इस पर प्रश्न चिन्ह है। कह सकते हैं कि ख़बर ब्लैकआउट नहीं हुई, ख़बर ने जगह नहीं पायी। इंडिया ग्रीन अभी चटपटी ख़बर नहीं है जब तक नौटियाल की पार्टी देश में ग्रीन जेहाद का एलान न कर दे। वैश्वीकरण ,बाज़ारीकरण और जलवायु परिवर्तन के इस दौर में ग्रीन पार्टी की मौजूदगी नितांत आवश्यक है ।

ग्रीन एक्टिविस्ट को साफ़ दिखता है भू संसाधनों के उपयोग का लोकतंत्रीकरण के बजाय लगभग सभी दलों ने सर्वसम्मति से विकास के एक ऐसे मॉडल को स्वीकार कर लिया है जो बहुसंख्यक आबादी की जीविका से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों को कमज़ोर करता जा रहा है और अंतत: विनाश का कारण बन रहा है। इंडिया ग्रींस ने इन चुनौतियों का सामना करने का प्रारूप तैयार किया है। क्योंकि ‘ग्रीन भविष्य है और भविष्य ग्रीन’ है।

(बसंत रावत “दि टेलीग्राफ” के अहमदाबाद में ब्यूरो चीफ रहे हैं।)

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