इरोम शर्मिला: मणिपुर की इस अमानवीयता को माफ नहीं किया जा सकता

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नई दिल्ली। मणिपुर में दो महिलाओं का शर्मनाक वीडियो आने के बाद देश भर में शर्मनाक वातावरण बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार पर सख्त टिप्पणी की है। लेकिन मणिपुर की ‘आयरन लेडी’ और “मेंगौबी- निष्पक्ष महिला” के नाम से प्रसिद्ध इरोम चानू शर्मिला ने कहा कि “जब मैंने मणिपुर में दो महिलाओं पर सार्वजनिक रूप से क्रूर और बेहद शर्मनाक हमले का वीडियो देखा, तो मैं टूट गयी। इस अमानवीयता को कोई भी माफ नहीं कर सकता या उचित नहीं ठहरा सकता। यह घटना कुछ गहरे मुद्दों को भी सामने लाती है।”

उन्होंने कहा कि “मणिपुर में सार्वजनिक जीवन और विरोध प्रदर्शनों में महिलाओं की एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक भूमिका रही है-चाहे वह इमा कीथेल (महिला बाजार) की इमामा हो या मीरा पैबिस या यहां तक कि वे महिलाएं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नुपी लाल (महिला युद्ध) का नेतृत्व किया था। हालांकि, ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है और राज्य में महिलाएं गहरे उत्पीड़न का शिकार हैं।”

इरोम शर्मिला ने कहा कि, मैं अपने अनुभव से बोल सकती हूं। मैंने अपनी 16 साल की लंबी भूख हड़ताल के दौरान पानी तक नहीं पीया तो मुझे एक प्रतीक बनाकर रख दिया गया। मेरे संघर्षों के बावजूद, मुझे लगा कि लोग मुझे “सिर्फ एक महिला” के रूप में देख रहे हैं। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि यह राज्य (मणिपुर) महिलाओं को ‘राज्य की संपत्ति’ समझता है। महिलाओं के प्रति लोगों का यही रवैया है।

मेरे संघर्ष के संबंध में, एकमात्र चिंता यह प्रतीत होती थी कि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को निरस्त किया जाएगा या नहीं। संघर्ष की स्थिति में, महिलाओं को हमेशा निशाना बनाया जाता है-मैं इसे अपने अनुभव से जानती हूं। और एक औरत ही दूसरी औरत का दर्द समझ सकती है।

तीन महीने पहले हिंसा शुरू होने के बाद से मैं बेंगलुरु में मणिपुर की खबरों पर नजर रख रही हूं, जहां मैं अब रहती हूं। जब मैंने पहली बार संघर्ष के बारे में सुना तो मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। मणिपुर एक बहु-जातीय, बहु-सांस्कृतिक समाज है। राज्य में विभिन्न समुदायों के बीच मतभेद गहरे हैं और बहुत लंबे समय से मौजूद हैं।

मैंने मणिपुर में एक मैतेई मित्र से बात की और जो कुछ हो रहा है उसका एक विवरण प्राप्त किया। फिर मैंने बेंगलुरु में एक कुकी मित्र से बात की और मुझे एक बिल्कुल अलग बात सुनने को मिला। वे दोनों बिल्कुल विपरीत विचार रखते थे। मुझे लगता है कि जिन कारणों से हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं उनमें से एक कारण केंद्र का दशकों से सामान्य रूप से पूर्वोत्तर और विशेष रूप से मणिपुर की उपेक्षा है।

एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने राज्य की अनदेखी की है। मणिपुर में समुदायों के बीच संघर्ष को कभी भी सुलझाने की कोशिश नहीं की गई। कुकियों द्वारा भूमि पर अतिक्रमण करने और म्यांमार से बड़ी संख्या में अवैध अप्रवासियों के होने का आरोप समस्याग्रस्त है। अप्रवासी शरणार्थी हैं और वे मणिपुर आए क्योंकि वे अपने देश में उत्पीड़न और हिंसा से भाग रहे थे। हमें इस मुद्दे को और अधिक संवेदनशीलता से देखने की जरूरत है- अप्रवासियों के साथ मानवीय व्यवहार करने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकारों को आप्रवासी मुद्दे से बेहतर तरीके से निपटना चाहिए था।

दरअसल पूरा मामला जमीन के इर्द-गिर्द घूमता नजर आ रहा है। लेकिन लोगों को यह समझने की जरूरत है कि जब वे मरेंगे तो वे अपनी जमीन का टुकड़ा अपने साथ नहीं ले जायेंगे। केंद्र सरकार को भी मणिपुर के लोगों के साथ माता-पिता के स्नेह के साथ व्यवहार करने की ज़रूरत है। जैसे कि वे उनके परिवार का हिस्सा हैं-और निर्णय लेते समय हर समुदाय से परामर्श करना चाहिए। यहीं पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों विफल रही हैं-यह नेतृत्व की कमी को दर्शाता है। राज्य सरकार को कुकी समुदाय के नेताओं पर अपने फैसले थोपने के बजाय उनसे परामर्श करना चाहिए था।

एएफएसपीए के खिलाफ मेरा संघर्ष मणिपुर के सभी लोगों, राज्य के सभी समुदायों- कुकी, नागा और मैतेई के लिए था। यह सिर्फ मैतेई लोगों के लिए नहीं था। 2004 के बाद, जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इंफाल शहर से एएफएसपीए हटा दिया, तो उस समय के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह जेएनआईएमएस अस्पताल में मुझसे मिलने आए थे, जहां मुझे कैदी के रूप में रखा गया था, और मुझसे अपनी भूख हड़ताल खत्म करने का अनुरोध किया था। वरिष्ठ नर्सों सहित अन्य लोगों ने भी मुझ पर अपना संघर्ष छोड़ने का दबाव डाला। लेकिन उस समय मैंने उनसे कहा-पहाड़ियों और आदिवासी लोगों के बारे में क्या? AFSPA हटने से उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा। मैंने उनसे कहा कि मैं अपना संघर्ष तब तक जारी रखूंगी जब तक पूरे राज्य से एएफएसपीए नहीं हट जाता।

अब जब मैं खबरें देखती हूं तो खुद को असहाय महसूस करती हूं। दूसरों को अपमानित करने और यौन उत्पीड़न के अपने कृत्य से, अपराधी क्या हासिल करना चाह रहे थे?

शर्मिला एक कार्यकर्ता हैं जो सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल से भूख हड़ताल पर थीं।

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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