वाराणसी, उत्तर प्रदेश। यू पी के बनारस में बीएचयू आईआईटी की एक छात्रा से जुड़े बहुचर्चित गैंगरेप मामले में दो आरोपियों को जमानत मिलने के बाद बीएचयू के छात्रों और महिलाओं में भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है। बहुचर्चित गैंगरेप मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो आरोपियों को सशर्त जमानत दे दी है, जबकि तीसरे आरोपी की जमानत पर सुनवाई 16 सितंबर को होगी।
बनारस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। लंका थाना पुलिस ने पिछले साल नवंबर में गैंगरेप में तीन जिन अभियुक्तों कुणाल पांडेय, आनंद उर्फ अभिषेक चौहान और सक्षम पटेल को गिरफ्तार किया था, वो सभी बीजेपी के आईटी सेल के पदाधिकारी थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट से दो अभियुक्तों कुणाल और आनंद को जमानत मिलने के बाद बीएचयू के स्टूडेंट्स काफी आक्रोशित हैं। छात्रों ने 02 सितंबर को विश्वनाथ मंदिर पर प्रतिरोध सभा की और लंका गेट तक आक्रोश मार्च निकाला। वहीं कांग्रेस से जुड़ी महिलाओं ने मैदागिन स्थित डाकघर में पहुंचकर प्रधानमंत्री को चूड़ियां भेजी और गुस्से का इजहार किया।
आंदोलनकारी महिलाओं ने आक्रोश जताते हुए कहा कि जब पूरा देश महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों से उबाल पर है, ऐसे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा IIT-BHU के दुष्कर्म आरोपियों को जमानत देना न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
इस बीच सपा मुखिया और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव ने बीजेपी पर जोरदार प्रहार किया है और उन्होंने गैंगरेप के आरोपियों को छह महीने के अंदर जमानत दिए जाने की घटना को निंदनीय बताया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा गैंगरेप के दो अभियुक्त कुणाल और आनंद को जमानत दिए जाने से आक्रोशित बीएचयू के स्टूडेंट्स ने विश्वनाथ मंदिर के सामने प्रतिरोध सभा की। बाद में लंका गेट तक आक्रोश मार्च भी निकाला। प्रतिरोध सभा में गुस्से का इजहार करते हुए स्टूडेंट्स ने कहा कि सामूहिक दुष्कर्म के तीनों आरोपी सत्तारूढ़ दल बीजेपी के आईटी सेल से जुड़े हैं।
एक ओर बीजेपी, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा देकर चुनाव लड़ती है, दूसरी ओर, अपने ही पार्टी में बलात्कारियों को संरक्षण देने से नहीं चूकती। इससे पार्टी की महिला विरोधी सोच स्पष्ट होती है। जब कैंपस में गैंगरेप की घटना सामने आई, तो जिला और बीएचयू प्रशासन ने इसे दबाने की पूरी कोशिश की।
लेकिन छात्रों के निरंतर आक्रोश और विरोध के कारण बीजेपी सरकार की पुलिस को आरोपियों को गिरफ्तार करना पड़ा। इसलिए इन अपराधियों को मिली जमानत पर छात्र समुदाय में जबरदस्त गुस्सा है।
प्रतिरोध सभा में शामिल छात्राओं ने कहा कि अगर देश को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना है, तो हमें न्यायप्रिय और संवेदनशील लोगों को आगे आकर अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। वक्ताओं कहा कि पीड़ित छात्रा आईआईटी की स्टूडेंट्स है और संभव है कि इस मामले को रफा-दफा करने के लिए उसके ऊपर दबाव बनाया जा रहा हो।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर दुष्कर्म के आरोपियों की जमानत रद्द करे। साथ ही गैंगरेप के तीनों अभियुक्तों को कड़ी सजा दे। वक्ताओं ने यह भी कहा कि आज की परिस्थिति में, जब सत्ता के संरक्षण में बलात्कारियों को सजा से बचाया जा रहा है। ऐसे में जनता को खुद ही अपनी जिम्मेदारी समझते हुए सड़क पर उतरकर महिला विरोधी मानसिकता का विरोध करना होगा।
आक्रोश मार्च और सभा का संचालन इप्शिता ने किया, जबकि भगत सिंह स्टूडेंट्स मोर्चा के महेंद्र और अन्य साथियों ने कविता, भाषण, और गीत के माध्यम से दुष्कर्म की संस्कृति के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया। मार्च में काजल, आकांक्षा, सिद्धि, निधि, अंकिता, वंदना, आदर्श, सुधीर, मोहित, मुकेश, अविनाश, ऋषिकेश समेत सौ से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया।
पीएम को भेजी चूड़ियां
IIT-BHU की छात्रा के साथ दुष्कर्म के आरोपी भाजपा पदाधिकारियों की जमानत के खिलाफ बनारस ज़िला और महानगर महिला कांग्रेस ने 03 सितंबर (मंगलवार) को प्रदर्शन किया। बाद में महिला प्रदर्शनकारियों ने कोतवाली के पास डाकघर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चूड़ियां भेजकर अपना विरोध दर्ज कराया।
इस कार्यक्रम का संयोजन ज़िलाध्यक्ष महिला कांग्रेस अनुराधा यादव और महानगर अध्यक्ष महिला कांग्रेस पूनम विश्वकर्मा ने किया।
महिला कांग्रेस के ज़िलाध्यक्ष अनुराधा यादव और महानगर अध्यक्ष कांग्रेस पूनम विश्वकर्मा ने कहा, “देश में लगातार हो रही कलंकित घटनाओं के बाद मोदी सरकार दुराचारियों को बचाने में जुटी हुई है। रिपोर्ट दर्ज होने में कई दिनों का समय लग जाता है, जब तक जनता सड़क पर उतरकर न्याय की मांग न करे, तब तक कोई कार्रवाई नहीं होती।
अनुराधा ने कहा, बीजेपी सरकार आरोपियों को संरक्षण देती है, जिससे उनके हौसले बुलंद होते हैं। पीएम के संसदीय क्षेत्र में भाजपा के पदाधिकारी बलात्कार के आरोपियों को कुछ ही दिनों में जमानत दे दी गई।”
पीएम को चूड़ियां भेजे जाने पर महिला कांग्रेस ने कहा, ” मोदी जी, हम महिलाओं द्वारा भेजी गई चूड़ियां आप ज़रूर पहनें, क्योंकि अब देश की बहन-बेटियों को आपसे कोई उम्मीद नहीं रह गई है।”
विरोध प्रदर्शन में अनुराधा यादव, पूनम विश्वकर्मा, रेनू चौधरी, शाइस्ता याशमीन, राजकुमारी देवी, मनोरमा प्रजापति, मीना, आरती विश्वकर्मा, याशमीन, रीता पटेल, मंशा देवी, आरती, शकुंतला पाल, कुमकुम वर्मा, शकुंतला पटेल, सरिता वर्मा, नगमा, सरिता, हेना, सुशीला देवी, सोनी, मीनू, सुनीता, लक्ष्मी, बबिता, शबनम, आरती सरोज, कमरजहां समेत दर्जनों महिलाएं उपस्थित रहीं।
अखिलेश ने बीजेपी को घेरा
IIT-BHU छात्रा गैंगरेप मामले के दो आरोपियों को जमानत मिलने के बाद जब आरोपी अपने घर पहुंचे तो गैंगरेप के दोनों आरोपियों को लोगों ने फूल-माला से स्वागत किया। इस मुद्दे पर सपा चीफ अखिलेश यादव ने बीजेपी को चौतरफा घेरने का काम किया। उन्होंने बीजेपी से सवाल पूछते हुए कहा कि भाजपाई परंपरानुसार आरोपियों को फूल-मालाओं से स्वागत हुआ है। बीजेपी इस बारे में देश की बहन-बेटियों से कुछ कहना चाहेगी?
अखिलेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ”भाजपा की आईटी सेल के पदाधिकारी के रूप में काम करने वाले बीएचयू गैंग रेप के तीन आरोपियों में से दो को जमानत मिलने की ख़बर निंदनीय भी है और चिंतनीय भी। सवाल ये है कि दुष्कर्म करने वालों की कोर्ट में लचर पैरवी करने का दबाव किसका था”।
पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे कहा “ये देश की बेटियों का मनोबल गिराने की शर्मनाक बात है कि न केवल ये बलात्कारी बाहर आ गये बल्कि ऐसी भी खबरें हैं कि भाजपाई परम्परानुसार इनका फूल-मालाओं से स्वागत भी हुआ है। भाजपा इस बारे में देश की बहन-बेटियों से कुछ कहना चाहेगी?”
“आशा है सच्ची पत्रकारिता करने वाली सभी महिला एंकर इसके बारे में अपना एक शो ज़रूर करेंगी। इस अति संवेदनशील मामले में तो हम भाजपा-संबद्ध उन तथाकथित ‘ईमानदार’ पत्रकारों से भी, रस्म अदायगी के स्तर पर ही सही, उनके महिला होने के नाते, इतनी उम्मीद तो कर सकते हैं कि वो बोलेंगीं नहीं लेकिन इस जमानत को सही ठहराने के लिए कुतर्क करने वाले भाजपाई प्रवक्ताओं को कम से कम टोकेंगी तो, उन सबसे इससे ज्यादा की उम्मीद रखना बेमानी है।”
IIT-BHU परिसर में तीन युवकों ने एक नवंबर 2023 को बीटेक की तृतीय वर्ष की छात्रा से गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया था। दो नवंबर को छात्रा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसको लेकर छात्रों ने जमकर प्रदर्शन किया था। पिछले साल हुई इस वारदात को लेकर बीएचयू के छात्रों ने काफी बवाल काटा था।
पुलिस पर दबाव बढ़ा तो वारदात के तीन महीने बाद संदिग्ध आरोपियों को अरेस्ट किया। आरोपितों के परिजन अब दावा कर रहे है कि पुलिस ने अपना गुडवर्क दिखाने के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाया था।
अब तक क्या हुआ?
बीएचयू आईआईटी की एक छात्रा से जुड़े बहुचर्चित गैंगरेप की वारदात एक नवंबर 2023 की रात को हुई थी, जिसके बाद बनारस में भारी विरोध प्रदर्शन हुए थे। पीड़िता के समर्थन में कैंडल मार्च भी निकाले गए थे। पहले, बनारस पुलिस ने इस मामले को केवल छेड़छाड़ के तहत दर्ज किया था, लेकिन बाद में मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान के आधार पर गैंगरेप की धाराएं जोड़ी गईं।
पुलिस की केस डायरी के अनुसार, पीड़ित छात्रा बीएचयू आईआईटी में बीटेक के दूसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। घटना की रात, लगभग डेढ़ बजे, वह अपने हॉस्टल से निकलकर स्मृति छात्रावास की ओर जा रही थी, जब तीन बाइक सवार युवकों ने उसे और उसके मित्र रितेश को घेर लिया। आरोपियों ने रितेश को भगाने के बाद पीड़िता के साथ छेड़छाड़ और अभद्रता की।
घटना के बाद, बीएचयू में तनावपूर्ण माहौल बन गया। आरोपियों ने घटना का वीडियो भी बना लिया था, और पीड़िता ने पुलिस को सूचित किया। इसके बाद पुलिस ने छेड़छाड़ की धाराओं में मामला दर्ज कर जांच शुरू की। पीड़िता के बयान के बाद, पुलिस ने केस में गैंगरेप की धाराएं जोड़ीं, जिससे आरोपियों की गिरफ्तारी का दबाव बढ़ गया।
पुलिस ने 30 दिसंबर 2023 की रात तीन संदिग्ध आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिनकी पहचान कुणाल पांडेय, आनंद उर्फ अभिषेक चौहान, और सक्षम पटेल के रूप में हुई। तीनों को जेल भेज दिया गया, लेकिन लोअर कोर्ट में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद, तीनों ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन किया।
आरोपियों के वकीलों ने उन्हें निर्दोष बताते हुए तर्क दिया कि पुलिस ने दबाव में आकर उन्हें गिरफ्तार किया, जबकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं थे। हाईकोर्ट ने यह माना कि जब तक दोष साबित नहीं होता, तब तक जेल में रखने का सिद्धांत अपवाद होना चाहिए। इस आधार पर, कोर्ट ने कुणाल पांडेय और आनंद उर्फ अभिषेक चौहान को सशर्त जमानत दे दी, जबकि सक्षम पटेल की जमानत पर 16 सितंबर को सुनवाई होगी।
अभियुक्तों की कैसे हुई जमानत?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 जुलाई को आनंद उर्फ अभिषेक चौहान और 4 जुलाई को कुणाल पांडेय को जमानत प्रदान की थी। वाराणसी जिला जेल से कुणाल की रिहाई 24 अगस्त को हुई, जबकि आनंद को 29 अगस्त को रिहा किया गया। जमानत की शर्तों को पूरा करने में दोनों आरोपियों को लगभग दो महीने का समय लग गया।
तीसरे आरोपी सक्षम पटेल की जमानत अर्जी पर सुनवाई 16 सितंबर को होगी। इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रही है, जहां पहले ही तीनों आरोपियों की जमानत अर्जी दो बार खारिज हो चुकी है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर दो आरोपियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत कैसे मिल गई?
वेब पोर्टल भास्कर लिखता है कि पांच ऐसी वजहें थीं, जिनका फायदा आरोपियों को मिला:
1. सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे
अभिषेक और कुणाल पांडे के वकीलों ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल सामान्य और सीधे-सादे लोग हैं और वे केस से संबंधित किसी भी सबूत से छेड़छाड़ नहीं करेंगे।
कमी क्या रही: सरकारी वकील यह साबित नहीं कर पाए कि आरोपियों के जेल से बाहर आने पर सबूतों को प्रभावित करने की संभावना है। उनका तर्क रूटीन बयान जैसा लग रहा था, लेकिन ठोस लॉजिक का अभाव था।
2. गवाहों पर प्रभाव डालने का खतरा
घटना के समय छात्रा की मदद करने वाले एक छात्र, एक प्रोफेसर, और एक गार्ड जैसे महत्वपूर्ण गवाह इस मामले में हैं, जिन्होंने आरोपियों की पहचान की थी।
कमी क्या रही: आरोपियों के बाहर आने के बाद गवाहों को प्रभावित करने की संभावना को सरकारी वकील द्वारा मजबूती से प्रस्तुत नहीं किया गया।
3. कोई अन्य अपराध नहीं करेंगे
पीड़िता के बयान के अनुसार, आरोपियों ने उसे आक्रामक तरीके से दबोचा था, जिससे यह संभावना बढ़ती है कि वे फिर से किसी वारदात को अंजाम दे सकते हैं।
कमी क्या रही: सरकारी वकील यह साबित नहीं कर पाए कि आरोपियों की आपराधिक प्रवृत्ति के कारण उन्हें जमानत नहीं मिलनी चाहिए।
4. न्यायिक प्रक्रिया से भागने का खतरा
गिरफ्तारी के बाद, आरोपी जेल में रहे और अदालत की तारीखों पर पेश होते रहे। उनके वकीलों ने लिखित में दिया कि जमानत मिलने के बाद भी वे अदालत में पेश होते रहेंगे।
कमी क्या रही: अदालत में यह तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सका कि जमानत पर बाहर आने के बाद आरोपी न्यायिक प्रक्रिया से भागने की कोशिश कर सकते हैं।
5. पीड़िता को डराने-धमकाने का खतरा
पीड़िता अभी भी काशी में रह रही है और उसे आरोपियों से अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता है। जेल में रहते हुए आरोपी उसे प्रभावित नहीं कर सकते थे, लेकिन जमानत पर बाहर आने के बाद वे उसे सीधे या परोक्ष रूप से डराने की कोशिश कर सकते हैं।
कमी क्या रही: पीड़िता की सुरक्षा को लेकर उसके बयान में जताई गई आशंका को अदालत में ठोस रूप से प्रस्तुत नहीं किया जा सका, जिससे अदालत को यह विश्वास नहीं हुआ कि उसकी जान को वास्तव में खतरा है।
राजनीति की धुरी या चुनिंदा न्याय?
IIT-BHU की छात्रा के साथ गैंगरेप के दो अभियुक्तों को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद न सिर्फ न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाया जा रहा है, बल्कि योगी सरकार पर भी उंगली उठाई जा रही है, जो कुख्यात अपराधियों पर शिकंजा करने के लिए लगातार बुल्डोजर का इस्तेमाल कर रही है।
अभी हाल में जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में बुल्डोजर की कार्रवाई के खिलाफ याचिका दायर करते हुए उस पर रोक लगाने की मांग उठाई है। याचिका में कहा गया है कि हाल ही में यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बुलडोजर कार्रवाई का उल्लेख करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने का आरोप भी लगाया गया है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया, “किसी का घर सिर्फ इसलिए कैसे ध्वस्त किया जा सकता है क्योंकि वह आरोपी है?” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति दोषी भी है, तो भी कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता।
यूपी में बुलडोजर एक्शन की शुरुआत का श्रेय योगी आदित्यनाथ की सरकार को दिया जाता है। हालांकि, कई ऐसे आपराधिक मामले सामने आए हैं, जहां बुलडोजर की मांग उठने के बावजूद कार्रवाई नहीं की गई। इस संदर्भ में विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार राजनीतिक हित साधने के लिए बुलडोजर का उपयोग करती है।
आइए, उन प्रमुख घटनाओं पर नजर डालते हैं, जहां बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं किया गया।
IIT-BHU की छात्रा से गैंगरेप के मामले में बुल्डोजर की कार्रवाई नहीं किए जाने से पर योगी सरकार पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। बीएचयू कैंपस में गैंगरेप के आरोपी कुणाल पांडे, अभिषेक चौहान और सक्षम पटेल को पुलिस ने जब गिरफ्तार कर जेल भेजा तब भी उनके घरों पर बुल्डोजर चलाने के लिए विपक्ष ने जोर-शोर से मांग उठाई। इस मामले में किसी भी आरोपी के घर पर बुलडोजर एक्शन नहीं हुआ।
सवाल दर सवाल
इसी तरह साल 2017 में योगी सरकार के आने के बाद उन्नाव का रेप कांड एक बड़ा राजनैतिक मुद्दा बना। तत्कालीन भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर रेप का आरोप लगा। पीड़िता को एफआईआर दर्ज कराने के लिए लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करना पड़ा।
बाद में सेंगर को गिरफ्तार कर सीबीआई जांच के बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गई। लेकिन इस पूरे मामले में सेंगर या उनके करीबियों के घर पर कोई बुलडोजर नहीं चला।
23 जुलाई 2023 को लखनऊ के मंत्र थाना क्षेत्र में रितिक पांडे की हत्या दबंगों द्वारा कर दी गई। आरोपियों की गिरफ्तारी के बावजूद, इन पर कोई बुलडोजर एक्शन नहीं हुआ। कानपुर में 2 जून 2021 को बीजेपी के पदाधिकारी नारायण सिंह भदौरिया ने पुलिस कस्टडी से एक शातिर अपराधी को भगा दिया।
नारायण सिंह पर 25,000 का इनाम घोषित किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कोई बुलडोजर कार्रवाई नहीं की गई।
कानपुर में 9 सितंबर 2023 को किसान बाबू सिंह ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने बीजेपी नेता आशु दिवाकर पर उनकी जमीन हड़पने का आरोप लगाया था। लेकिन आशु दिवाकर पर कोई बुलडोजर कार्रवाई नहीं की गई।
कानपुर में 23 सितंबर 2023 को बीजेपी पार्षद अंकित शुक्ला पर एक सिख व्यापारी की आंख फोड़ने का आरोप लगा। गिरफ्तारी के बावजूद, बुलडोजर कार्रवाई से परहेज किया गया।
सब इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या कर दी गई। आरोपियों की गिरफ्तारी हुई, लेकिन बुलडोजर एक्शन नहीं लिया गया। जुलाई 2023 में बरेली में कांवड़ यात्रा के दौरान हिंसा हुई। बुलडोजर एक्शन के कारण एसएसपी प्रभाकर चौधरी का तबादला कर दिया गया।
इससे पहले 03 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी में गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा ने किसानों को अपनी जीप से रौंद दिया। इस मामले में भी बुलडोजर कार्रवाई नहीं हुई।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कहते हैं, “योगी सरकार का बुलडोजर सिर्फ विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं के आतंकित करने के लिए ही किया जा रहा है। यूपी में रेप और हत्या के तमाम ऐसे संगीन मामले हैं जिसमें सरकार ने बुलडोजर एक्शन नहीं लिया”।
“अपराध के मामले में बीजेपी से जुड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं पर बुलडोजर एक्शन लेने में यूपी सरकार आखिर क्यों हिम्मत नहीं जुटा रही है?”
“सच यह है कि बुलडोजर का इस्तेमाल सिर्फ चुनिंदा मामलों में ही किया जाता है। इसमें सरकार की मंशा सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने की होती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि ईमानदारी से काम करें और सच्चे मन से न्याय के दरवाजे को खोंले। अपराधी चाहे जिस दल के हों, सभी को कड़ा दंड दिया जाए। गैंगरेप जैसे मामलों में अपराधियों को कुछ ही दिनों के अंदर अगर जमानत पर छोड़ा जाएगा तो जनता के बीच से तल्ख सवाल तो जरूर उठेंगे? “
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)