Friday, March 29, 2024

गोहत्या कानून का दुरुपयोग; गोबर की बरामदगी पर हो रहा केस; निष्पक्ष जांच नहीं हुई: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को उत्तर प्रदेश गोवध अधिनियम के तहत दर्ज अपराध में अग्रिम जमानत दे दी। कोर्ट ने पाया कि अभियुक्त के खिलाफ मामला दंड कानून के दुरुपयोग का एक स्पष्ट उदाहरण था और यह कि राज्य ने मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की। आरोपी का नाम जुगाड़ी उर्फ निजामुद्दीन है। जस्टिस मो. फैज आलम खान ने कहा कि किसी भी आरोपी व्यक्ति के कब्जे से या मौके से न तो प्रतिबंधित पशु और न ही उसका मांस बरामद किया गया था और जांच अधिकारी ने केवल एक रस्सी और कुछ मात्रा में गाय का गोबर एकत्र किया था।

कोर्ट ने कहा, “… कुछ चश्मदीदों के बयान हैं, जिन्होंने दावा किया है कि उन्होंने आरोपी व्यक्तियों को बछड़े के साथ जमील के गन्ने के खेत की ओर जाते देखा। गायों और बछड़ों को पालतू जानवरों के रूप में रखना गांवों में जाति, पंथ और धर्म के बावजूद एक आम बात है। राज्य का कर्तव्य निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना है, जो इस न्यायालय की राय में वर्तमान मामले में नहीं किया गया है।

इसके साथ ही कोर्ट ने आरोपी को जमानत दे दी और साथ ही पुलिस महानिदेशक को जांच अधिकारियों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया, ताकि सामान्य तौर पर सभी आपराधिक मामलों और गोहत्या से संबंधित मामलों में निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जा सके।

अदालत अभियुक्त-निजामुद्दीन की गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर गोवध निवारण अधिनियम की धारा 3/5/8 के तहत मामला दर्ज किया गया है। मौजूदा मामले की एफआईआर प्रार्थी सहित चार नामजद अभियुक्तों के खिलाफ दर्ज करायी गयी थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि 16 अगस्त, 2022 को शाम साढ़े सात बजे जमील के गन्ने के खेत में प्रतिबंधित पशु का वध किया गया था और जब प्रथम शिकायतकर्ता मौके पर पहुंचा तो उसे एक रस्सी और बछड़े का अधपचा गोबर मिला।

एफआईआर में यह भी कहा गया कि कुछ ग्रामीणों ने नामजद आरोपितों को एक बछड़े को जमील के गन्ने के खेत की ओर ले जाते हुए देखा था। महत्वपूर्ण बात यह है कि जांच अधिकारी ने कोई भी प्रतिबंधित पशु या गाय की संतान का कोई मांस बरामद नहीं किया और मौके पर केवल गाय का गोबर पाया गया और जब उसे फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया तो फॉरेंसिक लैब, लखनऊ ने एक रिपोर्ट दे दी, जिसमें कहा गया था कि फोरेंसिक लैब गाय के गोबर का विश्लेषण करने के लिए नहीं है।

उपरोक्त बातों पर ध्यान देते हुए खंडपीठ ने पाया कि एफआईआर केवल आशंका और संदेह के आधार पर दर्ज की गई थी और इस तथ्य के बावजूद आरोप पत्र भी दायर किया गया था कि गाय के गोबर और एक रस्सी के अलावा, मौके से कुछ भी बरामद नहीं हुआ था। यह देखते हुए कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और यह कि पर्याप्त शर्तें रखकर निचली अदालत के समक्ष उसकी उपस्थिति सुरक्षित की जा सकती है, पीठ ने याचिका को स्वीकार कर लिया।

गौरतलब है कि भारत के संविधान में गो-हत्या पर रोक का प्रावधान है लेकिन इस पर अलग अलग राज्यों के अलग कानून भी हैं। भारत के संविधान में गोहत्या पर रोक का प्रावधान है लेकिन इस पर अलग अलग राज्यों के अलग कानून भी हैं।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्यों को गायों और बछड़ों की हत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया गया है। 26 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गाय हत्या कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। भारत में 29 राज्यों में 20 में गो-हत्या या गोमांस बिक्री को प्रतिबंधित करने संबंधी अलग-अलग नियम हैं।

दस राज्यों- केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और एक केंद्र शासित राज्य लक्षद्वीप में गो-हत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वहां ये बाजार में बिकता भी है और खाया भी जाता है। ये वहां के रेस्टोरेंट और होटलों में भी परोसा जाता है। यहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड और भैंस का मांस खुले तौर पर बाज़ार में बिकता है और खाया जाता है। आठ राज्यों और लक्षद्वीप में तो गो-हत्या पर किसी तरह का कोई क़ानून ही नहीं है। असम और पश्चिम बंगाल में जो क़ानून है उसके तहत उन्हीं पशुओं को काटा जा सकता है जिन्हें ‘फ़िट फॉर स्लॉटर सर्टिफ़िकेट’ मिला हो। ये उन्हीं पशुओं को दिया जा सकता है जिनकी उम्र 14 साल से ज़्यादा हो, या जो प्रजनन या काम करने के क़ाबिल ना रहे हों।

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक़ इनमें से कई राज्यों में आदिवासी जनजातियों की तादाद 80 प्रतिशत से भी ज़्यादा है। इनमें से कई प्रदेशों में ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या भी अधिक है।

भारत में मौजूदा मांस निर्यात नीति के अनुसार, गोमांस (गाय, बैल का मांस और बछड़ा) का निर्यात प्रतिबंधित है। इसे निर्यात करने की अनुमति नहीं है। केवल भैंस, बकरी, भेड़ और पक्षियों के मांस को निर्यात की अनुमति है।

26 मई, 2017 को, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पूरे देश में पशु बाजारों में वध के लिए मवेशियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगा था।लेकिन जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध को निलंबित कर दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार ने गो-हत्या निरोधक कानून को कड़ा कर दिया है। अब गो-हत्या के दोषी को 10 साल तक की जेल और 5 लाख तक जुर्माना भरना होगा। पहले इसके लिए 7 साल की जेल का प्रावधान था। अब सिर्फ गो-हत्या नहीं बल्कि तस्करी में भी कड़ी सजा का प्रावधान है।

गाय को चोट पहुंचाने या उसकी जान को खतरे में डालने वाला कोई भी काम करना सजा की वजह बन सकता है। यही नहीं तस्करी या चोट पहुंचाने जैसे मामलों में पीड़ित गाय का एक साल तक का खर्च भी दोषी को उठाना होगा। अगर कोई दोबारा गो-हत्या कानून के तहत दोषी पाया गया तो सजा डबल हो जाएगी। गो तस्करी में ड्राइवर और गाड़ी मालिक को भी सजा होगी।

गुजरात में गो-हत्या करने वालों को उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है। गुजरात सरकार ने गुजरात पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2011 को कुछ साल पहले पारित किया था। गुजरात में कानून में नए संशोधनों के तहत इससे जुड़े सभी अपराध अब ग़ैर ज़मानती हो गए।सरकार उन गाड़ियों को ज़ब्त कर लेगी, जिनमें बीफ़ ले जाया जाएगा।

हरियाणा में गो-हत्या पर लाख रुपए का जुर्माना और 10 साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है। महाराष्ट्र में गो-हत्या पर 10,000 रुपए का जुर्माना और पांच साल की जेल की सज़ा है। छत्तीसगढ़ के अलावा इन सभी राज्यों में भैंस के काटे जाने पर कोई रोक नहीं है।

कुछ राज्यों में सज़ा और जुर्माना कुछ नरम है। जेल की सज़ा छह महीने से दो साल के बीच है जबकि जुर्माने की अधितकम रक़म सिर्फ़ 1,000 रुपए है। ये वो राज्य हैं जहां गोहत्या पर आंशिक प्रतिबंध है। ये हैं- बिहार, झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा और चार केंद्र शासित राज्यों- दमन और दीव, दादर और नागर हवेली, पांडिचेरी, अंडमान ओर निकोबार द्वीप समूह।

इसके पहले वर्ष 2020 में भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने के लिए उत्तर प्रदेश गो-हत्या निरोधक कानून, 1955 के प्रावधानों के लगातार दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त कर चुका है। गो-हत्या कानून को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि निर्दोष लोगों के खिलाफ गोहत्या निरोधक कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। लोगों को नाहक फंसाया जा रहा है।

कोर्ट ने कहा था कि जो भी मांस बरामद होता है उसे गोमांस के रूप में दिखाया जाता है, बिना इसकी जांच या फॉरेंसिक प्रयोगशाला द्वारा विश्लेषण किए बगैर।अधिकांश मामलों में, मांस को विश्लेषण के लिए नहीं भेजा जाता है। व्यक्तियों को ऐसे अपराध के लिए जेल में रखा गया है जो शायद किए नहीं गए थे।

भारत की 80 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी हिंदू है जिनमें ज़्यादातर लोग गाय को पूजते हैं। लेकिन ये भी सच है कि दुनियाभर में ‘बीफ़’ का सबसे ज़्यादा निर्यात करने वाले देशों में भारत एक है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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