Friday, April 19, 2024

सामूहिक दुष्कर्म मामले में पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति सहित 3 को उम्र कैद

सपा सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति और दो अन्य साथियों आशीष शुक्ला व अशोक तिवारी के साथ खनन का ठेके देने के नाम पर एक महिला से कई बार सामूहिक दुष्कर्म करने और उसकी बेटी से भी रेप की कोशिश करने और उन्हें जान से मारने की धमकी देने का इल्जाम था।

यूपी के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति समेत 03 लोगों को एक महिला से बलात्कार के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। शुक्रवार को लखनऊ की एक विशेष अदालत ने ये फैसला सुनाया। अदालत ने प्रत्येक दोषी पर 02 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। जिस समय फैसला सुनाया गया, उस समय प्रजापति और 02 अन्य दोषी अशोक तिवारी और आशीष शुक्ला अदालत में मौजूद थे।

सपा सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति को सामूहिक दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। सपा एमएलए को विशेष अदालत ने शुक्रवार देर शाम को यह सजा सुनाई। गायत्री के दो अन्य साथियों आशीष शुक्ला व अशोक तिवारी को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। तीनों पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। विशेष न्यायाधीश पवन कुमार राय ने 10 नवंबर को अपने दिए गए फैसले में तीनों को दोषी करार दिया था। इस मामले के चार दीगर मुल्जिम गायत्री के गनर रहे चंद्रपाल, पीआरओ रुपेश्वर उर्फ रुपेश व एक वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी के बेटे विकास वर्मा और अमरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था।

चित्रकूट की पीड़ित महिला ने 18 फरवरी, 2017 को लखनऊ के गौतम पल्ली थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आरोप लगाया था कि सपा सरकार में खनन मंत्री रहे गायत्री प्रजापति समेत सभी आरोपियों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और उसकी नाबालिग बेटी के साथ भी दुष्कर्म का प्रयास किया। रिपोर्ट में कहा गया था कि खनन का कार्य दिलाने के लिए आरोपियों ने महिला को लखनऊ बुलाया। इसके बाद कई जगहों पर उसके साथ दुष्कर्म किया गया। महिला का इल्जाम है कि उसने घटना की विस्तृत रिपोर्ट पुलिस महानिदेशक को सौंपी लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया था।

इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने गायत्री की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें बचाव साक्ष्य पेश करने की अर्जी को ट्रायल कोर्ट से खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने यह आदेश गायत्री के बेटे अनिल के जरिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर दिया था। याचिका में एमपी-एमएलए न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बचाव साक्ष्य पेश करने की अर्जी को खारिज कर दिया गया था।

अभियोजन पक्ष ने मामले में 17 गवाह पेश किए थे। अदालत ने तीनों को दोषी ठहराते हुए लखनऊ के पुलिस आयुक्त को उन परिस्थितियों का पता लगाने का भी निर्देश दिया गया है, जिनमें बलात्कार पीड़िता और दो अन्य गवाहों ने मुकदमे के दौरान बार-बार अपने बयान बदले।

प्रजापति के पास अखिलेश यादव कैबिनेट में परिवहन और खनन विभाग थे और उन्हें मार्च 2017 में गिरफ्तार किया गया था। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गौतमपल्ली पुलिस स्टेशन में मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद से पूर्व मंत्री जेल में हैं।

पीड़ित महिला ने दावा किया था कि मंत्री और उसके साथी अक्टूबर 2014 से उसके साथ बलात्कार कर रहे हैं लेकिन जब जुलाई 2016 में उसकी नाबालिग बेटी से छेड़छाड़ और बलात्कार की कोशिश की गई, तब उसने इन लोगों के खिलाफ शिकायत करने का फैसला किया।

गायत्री प्रजापति पर इस संगीन मामले के अलावा खनन घोटाले के भी आरोप लगे, इसी के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें पद से हटा दिया था। हालांकि सितम्बर 2016 में जब उन्हें दोबारा कैबिनेट में शामिल किया तो उन्होंने सबके सामने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के पैर छुए थे। ऐसा करने पर विरोधी पार्टियों ने कई सवाल भी उठाए थे।

गायत्री प्रजापति को गिरफ्तारी के साढ़े तीन साल बाद 04 सितंबर 2020 को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली। बेल बॉन्ड भर भी नहीं पाए थे कि सात दिन में ही फिर गिरफ्तार कर लिए गए। ये गिरफ्तारी जालसाजी के एक मामले में हुई थी, जिसकी एफआईआर एक वकील ने दर्ज कराई थी। एफआईआर में वकील ने गायत्री प्रजापति और पीड़ित महिला को आरोपी बनाया था।

इस मामले में गायत्री प्रसाद प्रजापति के जेल जाने के कुछ समय बाद पीड़ित महिला ने कई बार अपने बयान बदले। साल 2018 में यूपी पुलिस ने पीड़ित महिला पर आरोप लगाए कि गायत्री की ओर से उसे कुछ आर्थिक लाभ मिले हैं। वो पूर्व मंत्री से कई बार जेल में मिलने भी गई थी। उसी दौरान महिला ने प्रजापति के पक्ष में एक बयान भी दिया था जो काफी चर्चा में रहा था। उसका कहना था, “गायत्री प्रसाद मेरे लिए पिता की तरह हैं, रिश्ते को राजनीतिक लाभ के लिए कलंकित किया जा रहा है।”

इसके बाद साल 2019 में महिला ने गौतमपल्ली थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई। इसमें उसने आरोपी मंत्री गायत्री प्रजापति को क्लीनचिट दे दी। महिला का कहना था कि राम सिंह और उसके साथियों ने उसकी बेटी को जान से मारने की धमकी देकर पूर्व मंत्री के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। पीड़िता के मुताबिक इस मामले का मुख्य आरोपी राम सिंह है, जिसने पूर्व खनन मंत्री पर खनन का पट्टा देने के लिए दबाव डाला था। पट्टा न मिलने पर उसने प्रजापति को रेप केस में फंसा दिया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)  

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।