नई दिल्ली/ लखनऊ। आज जब सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर इस बात को साफ कर रहा था कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करना किसी का मूल अधिकार है और उससे किसी को वंचित नहीं किया जा सकता है। उसी समय यूपी की योगी सरकार मेगसेसे पुरस्कार विजेता और सोशलिस्ट पार्टी के नेता संदीप पांडेय को पहले रोका और फिर गिरफ्तार कर लिया क्योंकि वह लखनऊ के घंटाघर से शहर में ही स्थित उजरियांव तक पैदल यात्रा करना चाहते थे। लेकिन लखननऊ पुलिस ने इसकी इजाजत उनको नहीं दी। और उन्हें गिरफ्तार कर ठाकुरगंज थाने लेती गयी।

यूपी पुलिस का यह केवल आज का कारनामा नहीं है। जब से नागरिकता संशोधन कानून लागू हुआ और उसके खिलाफ सूबे में प्रदर्शन शुरू है तभी से सूबे के खाकीदारी प्रदर्शनकारियों से इसी तरह से निपट रहे हैं। पुलिस की इस बर्बरता का ही नतीजा है कि सूबे में अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि पुलिस इन सारी मौतों को क्रास फायरिंग में हुई मौत बताती है। लेकिन सच्चाई यह है कि ज्यादातर मौतें पुलिस की गोलियों से हुई हैं। और इसको छिपाने के लिए पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक मृतकों के परिजनों को नहीं दी।

इसी तरह की घटना चौरीचौरा से चले सत्याग्रहियों से साथ भी घटी। दिल्ली राजघाट तक की यात्रा करने के मंसूबे से चले इन 10 युवक-युवतियों को गाजीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। पहले तो इतनी कड़ी शर्तें रख दी गयीं कि किसी के लिए जमानत ले पाना ही मुश्किल था। बाद में जब उन लोगों ने जेल के भीतर अनशन शुरू कर दिया और बाहर से भी दबाव पड़ा तो आज गाजीपुर पुलिस ने उनमें से कुछ को गाड़ी में बैठाकर सीधे बनारस के लंका पर छोड़ दिया।
लेकिन सत्याग्रहियों के हौसले अभी टूटे नहीं हैं। उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखने का फैसला किया है। बीएचयू के लंका गेट पर विश्वविद्यालय के छात्रों ने उनका पूरे जोशो-खरोश से स्वागत किया। बताया जा रहा है कि उनके कुछ साथी गाजीपुर से यात्रा जारी रखते हुए वाराणसी पहुंच रहे हैं और फिर वाराणसी में सभी इकट्ठा होकर आगे की यात्रा तय करेंगे।
संदीप पांडये की गिरफ्तारी की कई संगठनों और पार्टियों ने निंदा की है। सीपीआई एमएल ने कहा है कि एक बार फिर योगी सरकार का जनविरोधी चेहरा सामने आ गया है। उसने उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है।
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