मणिपुर सरकार ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष समेत चार पत्रकारों पर दर्ज किया एफआईआर

नई दिल्ली। मणिपुर सरकार ने देश के चार वरिष्ठ पत्रकारों पर जातीय हिंसा भड़काने का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज किया है। जिसमें एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI) की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर शामिल हैं। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने सोमवार को कहा कि ये लोग राज्य में जातीय हिंसा को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।

शनिवार को ईजीआई ने मणिपुर को लेकर एक रिपोर्ट साझा किया था। जिसमें मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा पर स्थानीय मीडिया पर “एकतरफा” रिपोर्ट करने की बात कही गई है। ईजीआई की फैक्ट फांइडिंग टीम ने 7 से 10 अगस्त के बीच मणिपुर का दौरा किया, जिसके बाद ये रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट के आने के बाद मणिपुर सरकार ने इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया। फैक्ट फांइडिंग टीम ने ये भी बताया कि कैसे लंबे समय तक इंटरनेट बंद रहने से उन्हें सही निर्णय लेने में दिक्कतें आई थी।

एक प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा कि ऐसे समय में जहां पर लोग मर रहे हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं। ऐसे में ईजीआई ने मणिपुर के सामने आए संकट की जटिलता, राज्य की पृष्ठभूमि और इतिहास को समझे बिना “पूरी तरह से एकतरफा” रिपोर्ट प्रकाशित की है।

Scroll की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एफआईआर में यह आरोप लगाया गया है कि ईजीआई की रिपोर्ट “झूठी, मनगढ़ंत और प्रायोजित थी।” इसमें कहा गया है कि रिपोर्ट में एक तस्वीर में कुकी के घर से धुआं उठता हुआ दिखाने का झूठा दावा किया गया है, जबकि वास्तव में यह एक वन अधिकारी का कार्यालय था। शिकायत में कहा गया है कि इस संबंध में, यह स्पष्ट है कि रिपोर्ट झूठी थी और “कुकी उग्रवादियों द्वारा प्रायोजित” थी।

हालांकि, ईजीआई ने रविवार को रिपोर्ट में फोटो कैप्शन को लेकर माफी मांगा है और जो “फोटो एडिटिंग” करने में गलत हो गया था और कहा कि एक अपडेटेड रिपोर्ट जल्द ही जारी की जाएगी।

सीएम बीरेन सिंह ने दावा किया है कि अगर उन्हें पता होता कि उनके राज्य में राज्य-विरोधी, राष्ट्र-विरोधी और सत्ता-विरोधी लोग जहर उगलने आने वाले हैं तो राज्य में उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जाता।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि इम्फाल में स्थानीय मीडिया के सुरक्षा बलों, विशेषकर असम राइफल्स की आलोचना करने का उल्लेख किया है। राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए रिपोर्ट में दिखाया है कि राज्य सरकार ने मणिपुर पुलिस को असम राइफल्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देकर सुरक्षा बल के इस अपमान का मौन समर्थन किया था।

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार को जातीय हिंसा के दौरान निष्पक्ष होकर हिंसा को रोकने का काम करना चाहिए था। लेकिन एक लोकतांत्रिक सरकार होने के तौर पर अपना कर्तव्य निभाने में विफल रही है। जिसे पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था। एक जाति का समर्थन करके सरकार ने हिंसा को बढ़ावा दिया। 

ईजीआई ने कहा, सामान्य परिस्थितियों में, पत्रकारों द्वारा की गई रिपोर्ट उनके संपादकों या स्थानीय प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा बलों के ब्यूरो प्रमुखों द्वारा जांच की जाती है, लेकिन संघर्ष के दौरान यह संभव नहीं था।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इंटरनेट प्रतिबंध ने मामले को और भी बदतर बना दिया है। सरकार द्वारा संचार नाकेबंदी का पत्रकारिता पर हानिकारक प्रभाव पड़ा क्योंकि इसका सीधा असर पत्रकारों की एक-दूसरे, उनके संपादकों और उनके स्रोतों के साथ संवाद करने में दिक्कत आ रही थी।

ईजीआई ने बताया कि राज्य नेतृत्व ने बिना किसी विश्वसनीय डेटा या सबूत के कुकी आदिवासियों के कुछ वर्गों को “अवैध अप्रवासी” और “विदेशी” बताया है। जबकि रिपोर्ट में इस बात को साफतौर पर रखा गया है कि 1901 से 2011 तक की दशकीय जनगणना में गैर-नागा (अन्य अल्पसंख्यक आदिवासी समुदाय) जनजातीय आबादी में कोई असामान्य वृद्धि देखने को नहीं मिला है।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने आफआईआर के खिलाफ बयान जारी किया

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर मणिपुर में जातीय झड़पों और हिंसा की मीडिया कवरेज पर ईजीआई की फैक्ट फांइडिंग समिति के तीन सदस्यों और उसके अध्यक्ष के खिलाफ पुलिस मामला दर्ज करने पर सरकार की आलोचना की है।

प्रेस क्लब ने अपने बयान में कहा कि “पुलिस ने सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए लागू की है, जबकि इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। कई मौकों पर शीर्ष अदालत ने यहां तक निर्देश दिया है कि इस प्रावधान के तहत किसी पर भी मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए। मणिपुर का पूरा मुद्दा मीडिया की भूमिका के इर्द-गिर्द घूमता है, और यह स्पष्ट है कि एडिटर्स गिल्ड ने जमीनी स्थिति और दबाई जा रही सूचनाओं की जांच के लिए एक फैक्ट फांइडिंग टीम भेजकर सराहनीय काम किया है।”

जमीनी स्थिति को छुपाने और बातों को दबाने को राज्य सरकार की “मजबूत रणनीति” देश के शीर्ष मीडिया निकाय को डराने-धमकाने के समान है। बयान में कहा गया है कि “ऐसे समय में जब हिंसाग्रस्त मणिपुर को सरकार के अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, ऐसे में राज्य सरकार के इस कदम से मामले और बिगड़ेंगे और इसे सच्चाई को दबाने के जानबूझकर किए गए प्रयास के रूप में देखा जाएगा।

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