मणिपुर : ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का सबसे बेहतरीन मॉडल

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18 महीने से धू-धू कर जल रहे मणिपुर में पिछले दिनों कुछ ऐसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं, जो चीख-चीखकर बयां कर रही है कि जो घाव पिछले साल इस लंबे समय से शांत प्रदेश में नासूर बन चुका था, अब सिर्फ मवाद ही निकलने जा रहा है।

उत्तर-पूर्व से बाहर शेष भारत में राष्ट्रीय मीडिया को पढ़ेंगे तो यही समझ आएगा कि सीआरपीएफ के जवानों के साथ मुठभेड़ में 11 कुकी उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस खबर के साथ यह भी जुड़ा हुआ है कि एक जवान इस मुठभेड़ में घायल भी हुआ है।

इसमें बताया गया है कि पहले कुकी उग्रवादियों की ओर से फायरिंग की गई, जिसके जवाब में सीआरपीएफ के जवानों ने मोर्चा संभाला और आधे घंटे की मुठभेड़ के बाद पाया कि 11 उग्रवादी ढेर हो गये थे। 

लेकिन कनफ्लिक्ट ज़ोन की खबरें और वीडियोज कुछ और कहानी बयां कर रही हैं। सड़क किनारे एक जगह पर इन कथित उग्रवादियों की लाशों का ढेर देखा जा सकता है। कुकी इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलऍफ़) ने अपने लैटर हेड पर 12 नवंबर को जो बयान दिया है, उसके अनुसार पूरा मामला ही अलग है।

इस प्रेस रिलीज में सबसे पहले बृहस्पतिवार के दिन एक 31 वर्षीय शिक्षिका (हमार कुकी जनजातीय) को जलाकर मार डालने की घटना का जिक्र किया गया है।

इसमें कहा गया है कि मैतेई उग्रवादियों ने इस दौरान एक घंटे तक आगजनी को अंजाम दिया, लेकिन सीआरपीएफ की ओर से बचाव का कोई प्रयास नहीं किया गया, और वे अपने कैंप में बने रहे। यह घटना जिरिबाम जिले के ज़िरावान गांव की थी।

प्रेस रिलीज में आगे कहा गया है कि इसके बाद सोमवार 11 नवंबर को जब कुकी ग्राम रक्षा दल के वालंटियर्स अपनी ड्यूटी पर तैनात थे, तो सीआरपीएफ ने उन्हें धोखे से मार डाला। इस पत्र में साफ़ कहा गया है कि वालंटियर्स को साफ़ निर्देश दिए गये थे कि सुरक्षा बलों पर हमला नहीं करना है, क्योंकि ये दोनों जातीय समूहों के बीच में बफर के रूप में काम कर रहे हैं।

आईटीएलएफ के मुताबिक, यह कहीं से भी संभव नहीं लगता कि यदि दोनों पक्षों में हिंसक झड़प होती तो एकतरफा कुकी वालंटियर्स ही मारे जाते। इतनी बड़ी संख्या में मौतें पहली बार हुई हैं। आईटीएलएफ के अनुसार यह साफ़ तौर पर दर्शाता है कि सीआरपीएफ और मैतेई राज्य मशीनरी ने एकजुट होकर विलेज वालंटियर्स के सफाए को अंजाम दिया है।

आरोप तो ये भी हैं कि मणिपुर पुलिस ने म्हार कुकी शिक्षिका की हत्या का अभी तक संज्ञान नहीं लिया है, लेकिन सोमवार की मुठभेड़ का तत्काल जिक्र करते हुए क्या-क्या हथियार बरामद किये गये हैं, के बारे में विस्तार से सोशल मीडिया पर विवरण दे दिया गया था। यह साफ़ बताता है कि सीआरपीएफ और मणिपुर पुलिस किस सोच के तहत काम कर रही है। 

https://x।com/manipur_police/status/1855980506166489224

लेकिन, सोमवार की इस मुठभेड़ के साथ एक घटना और घटी थी, जिसका पता देश को अगले दिन चला। आज देश के सभी समाचारपत्रों में यह खबर प्रमुखता से छाई हुई है कि मणिपुर के जिरीबाम जिले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और पुलिस के साथ सोमवार को हुई मुठभेड़ के दौरान सशस्त्र उग्रवादियों ने तीन महिलाओं और तीन बच्चों, जिनमें एक आठ महीने का बच्चा भी शामिल है, का अपहरण कर लिया था। इसके साथ ही दो बुजुर्गों को जलाकर मार डालने की खबर से भी पूरा मणिपुर स्तब्ध है।

द हिंदू अख़बार के मुताबिक, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इस बाबत बताया है कि 13 मैतेई लोगों का एक समूह जून 2024 को अपने घरों से विस्थापित होकर यहां पर शरणागत था।

और अपनी सुरक्षा के लिए  ये लोग जकुराधोर में सीआरपीएफ कैंप और मुठभेड़ स्थल बोरो बेकरा पुलिस स्टेशन के आसपास रह रहे थे। इनमें से 8 लोगों का अपहरण कर लिया गया है, जबकि पांच अन्य लोगों को बाद में सुरक्षा बलों ने बचा लिया। 

इस प्रकार राज्य में अब तक 240 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मणिपुर के पुलिस महानिरीक्षक आई.के. मुइवा ने इंफाल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि, “कुल तीन महिलाएं और तीन नाबालिग लापता हैं। पुलिस उनका पता लगाने की कोशिश कर रही है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, हमने हमेशा सशस्त्र बलों को उनके घेरे को सीमित करने के लिए आगाह करने की कोशिश की है। लेकिन जब उन पर अत्याधुनिक हथियारों और रॉकेट लांचरों से हमला किया जाता है, तो जवाबी कार्रवाई भी हमारे आदेश का हिस्सा है। हमने एक प्राथमिकी दर्ज की है और अतिरिक्त बल भेजा गया है। तलाशी अभियान जारी है।” 

मणिपुर पुलिस के अनुसार, 11 नवंबर को जब कुकी उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ की घटना को अंजाम दिया जा रहा था, तो उस समय इलाके में और भी उग्रवादी मौजूद थे, जिन्होंने महिलाओं और बच्चों का अपहरण कर लिया और दो लोगों की हत्या कर दी।

इस बीच, कुकी छात्र संगठन (केएसओ) ने सीआरपीएफ के खिलाफ “असहयोग” का ऐलान कर दिया है, और जवानों को अपने शिविर परिसर को न छोड़ने की धमकी दी। केएसओ ने एक बयान में कहा है कि, “इस नोटिस का उल्लंघन करने वाले किसी भी सीआरपीएफ कर्मी को अपने जोखिम और जिम्मेदारी पर ऐसा करना होगा।

यह नोटिस तब तक लागू रहेगा जब तक सीआरपीएफ जिरीबाम में अपने बर्बर कार्यों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांग लेता।”

सोशल मीडिया पर विभिन्न कुकी संगठनों की ओर से जारी कई प्रेस विज्ञप्तियों में सीआरपीएफ और मणिपुर पुलिस के खिलाफ आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए मणिपुर पुलिस ने मंगलवार को एक बयान जारी कर इसे सिरे से ख़ारिज करते हुए अपनी ओर से सिलसिलेवार घटनाक्रम का ब्यौरा पेश किया है।

लेकिन असल सवाल तो यह है कि मणिपुर की यह आग डेढ़ साल बीत जाने के बाद शांत होने के बजाय अचानक से भभक क्यों उठी है?

भाजपा की डबल इंजन सरकार की भूमिका पर सवाल गहराते जा रहे हैं 

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और मोदी सरकार तो लोकसभा चुनाव से पहले ही खुद में इतना व्यस्त है कि उसके पास मणिपुर जैसे राज्य के बारे में विचार करने के लिए समय नहीं है। इस बार तो उसने दो लोकसभा सीट होने के बावजूद मणिपुर की ओर झांका तक नहीं, नतीजतन मैतेई और कुकी बहुल दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में चली गईं। 

कुछ हलकों में ऐसा माना जा रहा है कि मणिपुर में हालिया संकट के पीछे मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के कथित टेप कांड की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के राजी हो जाने के चलते खड़ा हुआ है।

कुछ माह पूर्व एक कथित टेप में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को कहते सुना गया था कि वे गृहमंत्री अमित शाह के साथ मणिपुर में बमबारी के बारे में आगाह कर रहे थे। 

इस मामले में एक सप्ताह पूर्व, कोर्ट की ओर से याचिकाकर्ता, कुकी ऑर्गेनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट को टेप की प्रमाणिकता के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने को कह दिया गया है। मामले की सुनवाई करने वाली पीठ में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे।

अगर याचिकाकर्ता का दावा सही पाया जाता है तो मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का जाना तय माना जा रहा है। वैसे भी राज्य में उनकी साख अब दोनों समुदायों के बीच में नहीं बची है। ऐसे में पुलिस प्रशासन और सीआरपीएफ की मदद से क्या नए सिरे से मणिपुर को आग में झोंका जा रहा है?

असम राइफल्स की विदाई क्यों हुई और सीआरपीएफ चीफ की भूमिका संदेहों के घेरे में कैसे?

इस सवाल को समझे बगैर मणिपुर की ताजा तस्वीर को समझना बेहद कठिन होगा। बता दें कि पिछले वर्ष जब पहली बार मैतेई-कुकी समुदाय के बीच हिंसक झड़प शुरू हुई थी तो मैतेई समुदाय की ओर से लगातार इस बारे में असंतोष जताया जा रहा था कि राज्य से असम राइफल्स को विदा किया जाये।

मणिपुर में मैतेई बहुसंख्यक हैं और राज्य की राजनीति में भी उनका प्रभुत्व बना हुआ है। 

मैतेई खुद को हिंदू मानते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में वे भी खुद को कुकी और नागा समुदाय की तरह अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने के लिए आंदोलनरत हैं।

इस समुदाय के उग्रवादी संगठन मैतेई लिपुन और अरम्बाई टैन्गोल का जिक्र हम पिछले डेढ़ साल से लगातार सुनते आ रहे हैं। ऐसा भी माना जाता है कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरपरस्ती में इन दोनों उग्रवादी संगठनों की राज्य में तूती बोलती है। 

संख्या बल के लिहाज से कुकी अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय है, जो अधिकांशतः पहाड़ी क्षेत्रों में आबाद है। इन्हीं पहाड़ियों पर अफीम की खेती, तस्करी और म्यांमार से आवाजाही का आरोप बीरेन सिंह की सरकार लगातार लगाती आ रही है, जिसे हिंदी प्रदेशों में राष्ट्रवाद की अलख जगाने के काम में लाया जा रहा है।

राज्य में हिंदू समुदाय की घटती जनसंख्या एक ऐसा मुद्दा है, जिसके आधार पर राज्य को हिंदू बनाम ईसाई (खासकर कुकी) में विभाजित करने की वर्षों की कोशिश पिछले साल कामयाब हो गई। 

लेकिन, नागा समुदाय की तह कुकी भी एक मार्शल रेस है, जो हमले का जवाब देने से खुद को रोक नहीं पाती। एक दूसरी वजह यह भी है कि इसकी अधिकांश आबादी अभी भी पहाड़ी क्षेत्रों में आबाद है, और आत्मरक्षा के लिए पारंपरिक हथियारों के साथ-साथ राइफल एवं अन्य अत्याधुनिक हथियारों से भी लैस है।

यहां पर यह जानना अति आवश्यक है कि मणिपुर से असम राइफल्स की टुकड़ी को अगस्त माह में ही विदा कर दिया गया था। इसकी जगह पर अगस्त से ही सीआरपीएफ की नियुक्ति कर दी गई थी।

दो गुटों में बंटे मणिपुर में यह पहले से तय मानकर चला जाता है कि मैतेई और कुकी बहुल क्षेत्रों में विपरीत समुदाय के सशस्त्र बलों के प्रमुख की नियुक्ति नहीं की जाएगी। लेकिन सीआरपीएफ के मामले में ऐसा नहीं किया गया।

कुकी समुदाय के लगभग सभी संगठनों ने अगस्त की शुरुआत में ही उप महानिरीक्षक (ऑपरेशन) प्रेमजीत हुइद्रोम की मैतेई मूल की नियुक्ति पर विशेष चिंता व्यक्त की थी। इस संबंध में जारी एक बयान में कहा गया था कि, “यह कदम विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि आने वाले दिनों में इसके भयावह नतीजे निकल सकते हैं।

सीआरपीएफ के उप महानिरीक्षक (संचालन) प्रेमजीत हुइड्रोम की नियुक्ति, जो कि एक मैतेई हैं, की वजह से चुराचांदपुर के समुदायों के बीच गंभीर चिंता पैदा करती है। क्या उनके नेतृत्व में सीआरपीएफ सभी समुदायों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष और भरोसेमंद हो सकती है।” 

इन संगठनों ने चेताया था कि असम राइफल्स बटालियन को हटाने से क्षेत्र में नाजुक शांति भंग हो सकती है और निवासियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। आज 3 माह बाद उनकी चिंता शत-प्रतिशत सही साबित हुई है। आज मणिपुर का आम मैतेई और कुकी, जो एक दूसरे की सीमा के भीतर जाने की सोच भी नहीं सकता, खुद को पूरी तरह से बंटा हुआ पा रहा है।

योगी आदित्यनाथ ने भले ही ‘बंटोगे तो कटोगे’ को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिहाज से उछाला था, लेकिन मणिपुर के कुकी-मैतेई तो इसके साफ भुक्तभोगी हैं। सौ टके का सवाल तो यह है कि आखिर इन्हें बांटा किसने?    

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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