Friday, April 19, 2024

सीपी कमेंट्री: हो गया मोदी की मुसीबतों का आगाज़!

‘इंडिया दैट इज भारत‘ के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस पद पर काबिज होने की 26 मई को सात बरस पूरे करते ही बड़ी तेजी से सामने आ रहे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम से उनके ‘अछे दिन‘ बुरे दिन में बदलने शुरू हो गये हैं। पुरानी कहावत है ‘मुसीबत आती है तो चारों तरफ से आती है ‘। मोदी जी की मुसीबतों का आगाज तो हो गया है। अंजाम खुदा जाने। या फिर यूं कहिए उनका भविष्य अब राम भरोसे है।

कोरोना कोविड महामारी से देश भर के लोगों के सामने खड़ी मुसीबतों को लेकर केन्द्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ही नहीं बल्कि उसकी लिखित तौर पर स्वघोषित मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सामने भी मोदी जी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी सियासी भविष्य को लेकर ‘ चिंतन ‘ बैठकों के दौर शुरू हो गये हैं।

आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की चेतावनी

राजधानी दिल्ली में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई ऐसी ही बैठक में आरएसएस की तरफ से उसके सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने मोदी जी से तुरंत कोई कारगर उपाय करने को कहा। बैठक में खुद मोदी जी के साथ सत्ता, धन और बाहुबल से सियासी ‘ चाणक्यगिरी ‘ के कारण चर्चित उनके खासम खास नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी बुलाया गया था। लेकिन इसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की पेशी नहीं हुई।

इस बीच, समझा जाता है मोदी जी महामारी से उत्पन्न स्थिति के लिये अपनी जिम्मेवारी से बचने के लिए जुगत की तलाश में हैं। वह महामारी से मरे असंख्य लोगों के उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में बहा दिए गए और इस नदी के सैकड़ों मील के तटवर्ती क्षेत्रों में रेत में गाड़ देने से दुनिया भर में मची खलबली का ठीकरा योगी जी पर ही फोड़ना चाहते हैं।

लंदन के ‘द गार्जियन‘ की कुछ दिनों पहले की रिपोर्ट में रेत में कम से कम एक लाख शव दफन होने का अनुमान था। प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार ‘ न्यूयार्क टाइम्स ‘ की हालिया रिपोर्ट में प्रामाणिक सांख्यिकी प्रक्रिया से करीब 10 लाख शव दफन होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

आबादी के हिसाब से हिंदुस्तान के इस सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हाल में सम्पन्न पंचायत चुनाव में शिक्षकों समेत सैकड़ों चुनावकर्मियों के महामारी से मर जाने या कोविड पॉजिटिव हो जाने से स्थिति बहुत खराब मानी जा रही है। अगले कुछ माह में ही निर्धारित उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के कारण भी भाजपा और आरएसएस के आला नेताओं के माथे पर चिंता की खिंची लकीरें लाख छुपाए छुप नहीं रही हैं।

सीबीआई नियुक्ति में चीफ जस्टिस रमना का हस्तक्षेप

सुप्रीम कोर्ट के नये चीफ जस्टिस एन वी रमना के हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप मोदी जी को महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक रह चुके और जन्मना झारखंड के एक गांव के बाशिंदे सुबोध कुमार जायसवाल को सोमवार देर शाम केंद्रीय जांच ब्यूरो का नया निदेशक नियुक्त करने पर विवश हो जाना पड़ा।

सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिये उच्च अधिकार प्राप्त तीन सदस्यीय स्थाई समिति की नई दिल्ली में सात लोक कल्याण मार्ग अवस्थित प्रधानमंत्री आवास पर शाम को हुई। बैठक में पहली बार बुलाये गये चीफ जस्टिस रमना ने शोर्ट लिस्टेड सूची में से मोदी जी के दो प्रिय अफसर केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के महानिदेशक और और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) के प्रमुख वाय सी मोदी के नाम पर मंजूरी देने से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने इंगित किया कि सुस्थापित नियमावली के अनुसार इस पद पर उन अफसरों की नियुक्ति कत्तई नहीं की जा सकती है जिनका सेवा काल छह माह से कम बचा है।

जस्टिस रमना।

प्रधानमंत्री द्वारा सीबीआई निदेशक के फरवरी, 2021 से ही रिक्त पद पर नियुक्ति के लिये कई माह विलम्ब से बुलाई बैठक में उक्त समिति के पदेन सदस्य के रूप में आये लोकसभा में कांग्रेस और विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी चीफ जस्टिस रमना की तरह ही चयन प्रकिया के लिये नाम शोर्टलिस्टिंग के मोदी सरकार के तौर तरीकों को गलत ठहराया तो इस चयन में केवल जायसवाल ही उपयुक्त बचे थे।

मोदी जी को अंतत: 1985 बैच के इंडियन पुलिस सर्विस (आईपीएस)  के अफसर जायसवाल के नाम पर ही अपनी स्वीकृति देनी पड़ी। अस्थाना इसी बरस 31 अगस्त को और वाय सी मोदी भी 30 मई 2021 को ही रिटायर हो रहे हैं। फिलहाल सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक प्रवीण सिन्हा निदेशक का काम संभाल रहे हैं। उन्हें यह कामचलाऊ जिम्मेवारी सीबीआई निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला के फरवरी 2021 में रिटायर होने पर सौंपी गई थी।

सुबोध कुमार जायसवाल

जायसवाल ने महाराष्ट्र के बहुचर्चित ‘तेलगी फर्जी रेवन्यू स्टाम्प घोटाला ‘ और  ‘मालेगांव आतंकी ब्लास्ट‘ मामले की जांच की थी जिसमें भाजपा की भोपाल से निर्वाचित लोकसभा सदस्य प्रज्ञा ठाकुर अभियुक्त हैं। अब्दुल करीम तेलगी की पत्नी को गिरफ्तारी से बचाने मुंबई के तब पुलिस कमिश्नर आर के शर्मा ने रिश्वत मांगी थी जिस पर उन्हें जायसवाल ने गिरफ्तार किया था। आर के शर्मा बाद में जमानत पर छूट गये थे।

किसान आंदोलन को 12 प्रमुख सियासी दलों का समर्थन

मोदी जी के राजकाज की सातवीं वर्ष गांठ पर 26 मई, 2021 को किसानों के राजधानी दिल्ली के बोर्डर को हर तरफ से 25 सितंबर, 2020 से घेराव के 181 वें दिन आयोजित ‘राष्ट्रीय  प्रतिरोध‘ के आह्वान का विपक्षी कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों समेत 12 प्रमुख सियासी दलों के समर्थन से इस सरकार की चूलें हिलने की कगार पर पहुंच गई हैं।

देश का खजाना लगभग खाली

देश का खजाना लगभग खाली है। विदेश से कोविड वैक्सीन आयात करने का भी खर्च जुटाने के लिए धन की किल्लत पड़ गई है। ये खबर लगभग दबा दी गई कि मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के उस सुरक्षित कोष से कम से कम एक लाख करोड़ रुपए निकलवाने का फरमान जारी कर दिया है जिसे जल्दी हाथ नहीं लगाया जाता है। उस फरमान पर 75 हजार करोड़ रुपए निकाल भी लिए गए।

ट्विटर के भारत कार्यालय पर दिल्ली पुलिस का छापा

वैश्विक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा , छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और अन्य भाजपा नेताओं के कांग्रेस का बिल्कुल फर्जी ‘ टूलकिट ‘ इस्तेमाल करने पर उन्हें दंडित करने की ट्विटर की कार्रवाई पर मोदी सरकार के इशारे पर बदले की भावना से उसके गुड़गांव आदि के दफ्तरों पर दिल्ली पुलिस के छापे के विरुद्ध दुनिया भर में नागरिक समाज की तीखी प्रतिक्रिया ने आग में घी का काम किया है।

पंजाब नेशनल बैंक घोटाला का जिन फिर बोतल से बाहर

जैसे कि ये सब काफी नहीं था पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में 11 हज़ार करोड़ रूपये के 2017 में हुए घोटाला के भारत से भगोड़ा घोषित मुख्य अभियुक्त मेहुल चोकसी के इंटरपोल के जारी पीले कार्ड ( नोटिस ) पर कैरिबियाई देश अंटिगुआ में पकडे जाने के विदेशी घटनाक्रम से नया मोड़ आ गया है।

पीटीआई ने 26 और 27 मई के बीच की ठीक आधी रात अंटिगुआ की मीडिया के हवाले से खबर दी कि मेहुल चोकसी को वहां की पुलिस के हवाले करने के बाद भारत प्रत्यर्पण के जरिये भारत भेजा जा सकता है। पर उसे बचाने का तंत्र भी काम पर लग गया है, उसके वकील विजय अग्रवाल के अनुसार वह अंटीगुआ का नागरिक बन चुका है। इसलिये उसे भारत नहीं भेजा जा सकता है।

मोदी राज में हुआ पीएनबी घोटाला दुनिया के सबसे बड़े खरीददार देश, भारत के बाज़ार में ‘ लम्पट पूंजीवाद ‘के काले कारनामों की महज एक बानगी थी जो किन्हीं कारणों से पकड़ ली गई। इस ख़ास किस्म के उत्तर-आधुनिक पूंजीवाद की तेजी से पैर पसारती प्रवृत्तियां और उनके दीर्घकालिक बुरे परिणाम को घोटाला की पृष्ठभूमि को जाने बगैर ठीक से समझा नहीं जा सकता। इन प्रवृत्तियों का घुन किसी एक-दो बैंक में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण वित्त-व्यवस्था को लग चुका है। इसने लूट-पाट में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक शायद ही किसी बैंक को बख्शा है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने कुछ अर्सा पहले स्वीकार किया कि लम्पट पूंजीवाद के घोटाले बाजों ने उसे भी चूना लगाया है।

पीएनबी को उसके शेयर भाव गिरने से कम से कम 3000 करोड़ रूपये का अतिरिक्त नुकसान हुआ है।

भारत का सर्वप्रथम स्वदेशी बैंक, लाला लाजपत राय और भगत सिंह की भूमिका

पीएनबी कोई मामूली बैंक नहीं है। यह अविभाजित भारत का सर्वप्रथम स्वदेशी बैंक है। इसकी स्थापना स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय ( 1865 -1928 ) की पहल पर वर्ष 1895 में लाहौर के अनारकली बाज़ार में की गई थी। उन दिनों लाहौर, एशिया का प्रमुख शैक्षणिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक ही नहीं वाणिज्यिक केंद्र भी था।

ब्रिटिश हुक्मरानों की दासता के खिलाफ अवामी संघर्ष में शहीदे -आज़म भगत सिंह (1907 -1931)  को अविभाजित भारत के प्रमुख सूबा ,पंजाब की राजधानी लाहौर की ही जेल में फांसी पर चढ़ाया गया था। उन्होंने लाहौर में ही अपने सहयोगी, शिवराम राजगुरु के संग मिल कर ब्रिटिश हुक्मरानी के पुलिस अफसर जॉन सैंडर्स को यह सोच गोलियों से भूना था कि वही ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट है जिसके आदेश पर लाठी चार्ज के बाद दिल का दौरा पड़ने से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी।

इन क्रांतिकारियों ने लाहौर की दीवारों पर पोस्टर लगा खुली घोषणा की थी। उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया है। शहीद भगत सिंह के ‘ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ‘ में शामिल और लाहौर कांस्पिरेसी केस -2 में कालापानी की सज़ा भुगत कर जीवित बचे अंतिम स्वतन्त्रता संग्रामी शिव वर्मा (1904 -1997 ) ने लख़नऊ में मार्च 1996 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा की उपस्थिति में एक सम्मलेन के उद्घाटन सम्बोधन में खुलासा किया था कि उनके संगठन ने आज़ादी की लड़ाई के नए दौर में ‘ बुलेट के बजाय बुलेटिन ‘ का इस्तेमाल करने का निर्णय कर भगत सिंह को 1929 में दिल्ली की सेंट्रल असेंबली की दर्शक दीर्घा से बम – पर्चे फ़ेंक और नारे लगाकर आत्म -समर्पण करने का निर्देश दिया था ताकि उनके कोर्ट ट्रायल से स्वतन्त्रता संग्राम के उद्देश्यों की जानकारी पूरी दुनिया को मिल सके।

लेकिन भारत के इन स्वतन्त्रता संग्रामियों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद भारत के प्रथम स्वदेशी बैंक को देसी लम्पट पूँजीवाद के घोटालेबाज , राजसत्ता के ही प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संरक्षण में लूट लेंगे। वो बैंक मामूली नहीं है और ये घोटालेबाज भी मामूली नहीं है। वे बैंक और उसके लाखों राजकीय पेंशन धारियों और लाखों अन्य ग्राहकों की इतनी बड़ी धनराशि का घोटाला कर सैलानियों के अंदाज़ में विदेश फरार हो गए।

मेहुल चोकसी का भांजा नीरव मोदी

इनमें से एक, नीरव मोदी का जलवा अभूतपूर्व है।वह भारत से विदेश फरार हो जाने के बाद छिपता नहीं है बल्कि वहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दावोस में व्यावसाइयों के प्रतिनिधिमंडल में आधिकारिक रूप से शामिल होकर दर्प की मुद्रा में सामूहिक फोटो भी खिंचवा लेता है। फिर जब हो हल्ला मचता है तो अमरीका से दो -टूक ऐलान कर देता है वह कुछ भी लौटाने वाला नहीं है और कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। इस मामले में वह भारत के लम्पट पूँजीवाद का सिरमौर नज़र आता है। वह भारत के बैंकों को करोड़ों रूपये का चूना लगाकर विदेश फरार हुए भाजपा -समर्थित पूर्व राज्यसभा सदस्य और शराब कारोबार के स्तम्भ रहे , विजय माल्या से एक कदम आगे है। वह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को चार हज़ार करोड़ रूपये की चपत लगाकर , भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ( अब दिवंगत ) और राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रशस्ति -पत्र जैसे दस्तावेज के आधार पर फरार होकर लन्दन में ऐश में लिप्त ललित मोदी से कई कदम आगे है। और क्यों न हो ? वह कोई साधारण गुजराती -मोदी नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी के साथ दावोस मे भगोड़ा नीरव मोदी

नीरव मोदी , भांडा फूटने के खतरे को यूं ही नहीं भांप जाता है। वह भांडा फूटने के पहले ही और देश में बवाल मचने की स्थिति को भी भांप लेता है। वह अपनी और अपने आकाओं की खाल बचाने के लिए सुनियोजित तरीके से विदेश फरार हो जाता है। लेकिन विदेश पहुँच कर वहाँ भी राजसत्ता के हम -उपनाम सिरमौर, प्रधानमंत्री मोदी के साथ गलबहियां डालता है। उसका सीधा पारिवारिक संबंध उद्योगपति मुकेश अम्‍बानी से है।नीरव मोदी के भाई का विवाह प्रधानमंत्री मोदी के करीबी उद्योगपति मुकेश अम्‍बानी की भांजी के साथ हुआ है। इस विवाह के उपलक्ष्य में मुकेश अम्‍बानी ने मुंबई में अपने विशाल आवास में भव्य पार्टी की मेजबानी की थी जिसमें देश की आर्थिक राजधानी के नामी -गिरामी लगभग सारे लोगों ने हाजिरी दी थी।

नव वर्ष के आगमन पर जब पहली जनवरी 2018 को दुनिया भर के लोग एक -दूसरे को बधाई दे रहे थे, नीरव मोदी भारत से भाग गया। उसी दिन उसका भाई निशल मोदी भी देश से फरार हो गया। नीरव मोदी के मामा, मेहुल चोकसी 4 जनवरी को भागे।  उसकी पत्नी अमि भी 6 जनवरी को भाग निकली। किसी को कोई शक ना हो इसलिए वे अलग -अलग भागे।

कहते हैं कि नीरव मोदी ने विदेश में प्रधानमंत्री मोदी से अलग से भी मुलाक़ात की। इसके बाद ही घोटाला की भनक पीएनबी को मिली और मामला छानबीन के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को 29 जनवरी के हाथ आया। राजसत्ता कार्रवाई करने का स्वांग रचती है। सत्तारूढ़ भाजपा के भोंपू प्रवक्ता ने महज यह कह पल्ला झाड़ लिया कि उनकी पार्टी का इस घोटालेबाज से कोई लेना -देना नहीं है।  वित्त मंत्रालय के बैंकिंग विभाग में तत्कालीन संयुक्त सचिव लोक रंजन ने कह दिया यह कोई बड़ा मामला नहीं है और ऐसी स्थिति नहीं है जिसे कहा जाए कि हालात काबू में नहीं हैं। देश के तब गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘ सिंह गर्जना ‘ की ” अगर जरुरत पड़ी तो उसको अमरीका से खींच लाएंगे ” । लेकिन मोदी सरकार के न्यायिक आला अधिकारी ने इस घोटाले की समुचित जांच की याचना के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका का ताल ठोंक कर विरोध किया।

लम्पट पूंजीवाद

यही है लम्पट पूंजीवाद जिसके गोरखधंधा में उसका अपना धन नहीं लगा होता है। लेकिन वह राजसत्ता के संरक्षण में फल- फूल रहे इस गोरखधंधा के जरिये पराया धन -माल हड़प लेता है। पीएनबी घोटाला का मुख्य आरोपी , मेहुल चोकसी और नीरव मोदी इस लम्पट पूंजीवाद का सिर्फ एक सर्वनाम है। यह लंपट पूंजीवाद , मोदीराज में उत्कर्ष पर है।

भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्त अधिकृत जानकारी के अनुसार मोदी सरकार के गठन के बाद पहले साल 15 हजार करोड़ रुपये , दूसरे साल 16 हजार करोड़ रूपये और तीसरे साल 18 हजार करोड़ रूपये फ्रॉड में डूबे। मोदी सरकार के अब  तक के सात बरस के राज में  बैंकों में फ्रॉड से कुल कितनी रकम डूबी है इसकी अधिकृत जानकारी तत्काल उपलब्ध नहीं है।इसमें फ्रॉड का नया रिकॉर्ड दर्ज होना तय है। क्योंकि अकेले पीएनबी फ्रॉड की रकम मोदी राज के पिछले किसी भी साल से ज्यादा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने पीएनबी घोटाला को लेकर मौन साध लिया।लेकिन आम लोग भी समझ गए हैं कि पीएनबी घोटाला के आरोपियों के हाथ बहुत लंबे है। सरकार की तरफ से कहा तो जा रहा है कि आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है। पीएनबी के दस अधिकारी बर्खास्त किये जा चुके हैं। निशाल मोदी और मामा मेहुल चोकसी पर कथित 280 करोड़ के फर्जीवाड़े के मामले में पीएनबी की शिकायत पर मुकदमा दर्ज किया गया है।

पीएनबी ने 13 फरवरी को खुलासा किया उसे दक्षिणी मुंबई की अपनी कॉर्पोरेट शाखा में 11000 करोड़ के फर्जी लेनदेन का पता चला है जिसमें हीरा व्‍यवसायी और जौहरी नीरव मोदी की कंपनियों की भूमिका है।

नीरव मोदी गुजराती परिवार की पैदाइश हैं और बेल्जियम में पले-बढ़े हैं। दुनिया भर में उसका हीरे का रिटेल कारोबार है। उसके न्‍यूयॉर्क के मेडिसन अवेन्‍यू में 2015 में खोले शो -रूम के उद्घाटन समारोह में अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रम्‍प भी शामिल थे। फोर्ब्‍स पत्रिका की अरबपतियों की सूची में नीरव मोदी 57वें नंबर पर दर्ज हैं।

पीएनबी घोटाला पकड़े जाने के कुछ ही समय बाद प्रधानमंत्री मोदी के साथ दावोस में दिखा। विभिन्न भारतीय कम्पनियों के मुख्य कार्य अधिकारी ( सीईओ ) का जो प्रतिनिधिमंडल गया था उसमें वह भी शामिल था।

रोटोमैक कम्पनी के एक और घोटालेबाज कोठारी का नाम उभरा। वह लम्पट पूंजीवाद के सबसे बड़े प्रतिनिधि और प्रधानमंत्री मोदी के खासम ख़ास, गौतम अडानी का समधी है। खबर है कि दो साल पहले 7 हजार करोड़ लेकर विदेश भागा विनसम कम्पनी का जतिन मेहता भी अडानी का समधी है!

पीएनबी, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा राष्‍ट्रीयकृत बैंक है। विशाल धनराशि का यह महाघोटाला इसी बैंक में क्यों पकड़ा गया है ? क्या दूसरे बैंकों में ऐसे घोटाले की कोई आशंका नहीं है ? अगर अन्य बैंकों में भी ऐसे घोटाले हुए हैं, या होते जा रहे हैं तो उनको अभी तक क्यों नहीं पकड़ा जा सका हैं ? कब तक पकड़े जा सकेंगे ऐसे तमाम घोटाले ? ऐसे तमाम घोटाले पकड़ भी लिए तो क्या होगा ? क्या -क्या हो सकता है ? क्या चाह कर भी बिल्कुल नहीं हो सकेगा ? इन तमाम प्रश्नों के उत्तर एक झटके में शायद ही खुल सकें। सारे प्रश्न और उनके उत्तर भी आपस में गुत्थम-गुत्था हैं और प्याज के छिलकों की तरह एक -एक कर ही निकाले जा सकते हैं जिस प्रक्रिया में समयांतर स्वाभाविक है।

(सीपी झा वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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