मणिपुर इस वक्त दो गुटों में लड़ाई की वजह से जल रहा है, और एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह की लड़ाई का ज्यादा दिन तक चलना उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं होता है। क्योंकि इससे लोगों का कानून व्यवस्था से भरोसा उठने का खतरा पैदा हो जाता है।
पिछले डेढ़ महीने से संघर्षरत मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जारी लड़ाई पर उसका पड़ोसी राज्य मिजोरम अपनी पूरी नजर बनाये हुए है। ऐसा मिजोरम से राज्यसभा सांसद और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता वनलालवेना का कहना है। उनका कहना है जब पड़ोसी राज्य आंतरिक कलह से जूझ रहा हो तो ऐसा करना जरूरी हो जाता है।
आपको बता दें कि मिजोरम राज्य के लोगों का कुकी समुदाय के साथ जातीय संबंध हैं, और शायद यही वजह है कि 3 मई को हिंसा शुरू होने के बाद मिजोरम के कई राजनेताओं ने पार्टी की हद से बाहर जाकर कुकी द्वारा किए गए “अलग प्रशासन” की मांग का खुलकर समर्थन किया है। और इस मांग को लेकर सार्वजनिक घोषणा भी की है। मिजोरम के नेताओं के इस रुख के बाद मणिपुर के प्रमुख समुदाय मैतेई से जुड़े लोग इस बात की आलोचना करने लगे।
मिजोरम और मणिपुर के कुकी समुदाय के आपसी रिश्तों का हवाला देते हुए मिजोरम के नेता कुकी के पक्ष में बोलने से परहेज नहीं कर रहे हैं। उनमें सबसे मुखर मिजोरम से राज्य सभा सांसद के वनलालवेना हैं, जो सत्ताधारी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के सदस्य हैं। उन्होंने कहा है कि मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिये राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए।
मिजो नेशनल फ्रंट केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए की सहयोगी है। द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बात करते हुए वनलालवेना ने कहा कि केंद्र को मणिपुर में तत्काल हस्तक्षेप कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए। सांसद वनलालवेना का कहना था कि लोग तो मिजोरम में भी रहते हैं लेकिन वहां ऐसी स्थितियां नहीं खड़ी हो रही हैं।
और कितने दिन तक चलेगी ये हिंसा? सवाल का जवाब देते हुए सांसद वनलालवेना कहते हैं कि मौजूदा समय में दो ऐसी चीजें हैं जो तत्काल मणिपुर में शांति स्थापित कर सकती हैं, वो हैं दोनों समुदायों की मांगों को पूरा करना। मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के लिए एक अलग प्रशासन बनाना होगा, क्योंकि दोनों समुदायों को एक दूसरे से सुरक्षा की जरूरत है। मणिपुर में मैतेई लोगों कि संख्या कुकी के मुकाबले ज्यादा है, लेकिन उन्हें भी सुरक्षा की जरूरत है।
उन्होंने दूसरी बात राष्ट्रपति शासन के बारे में की। उनका कहना था कि मणिपुर में इसे तत्काल लागू कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लंबे समय से यहां हिंसा जारी है और अभी किसी को नहीं पता है कि ये कब तक चलने वाली है- ऐसे में कानून व्यवस्था खूंटी पर टंग जाए उससे पहले केंद्र को यहां राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए और बीरेन सिंह सरकार को हटा देना चाहिए। लिहाजा केंद्र को किसी भी हालत में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए।और हालात को संभालने के लिए सूबे को केंद्रीय बलों के हवाले कर देना चाहिये।
आगे उन्होंने कहा कि यही दो तरीके हैं जिससे मणिपुर में शांति को फिर से बहाल किया जा सकता है, और लोग भी तभी एक सामान्य जीवन जी सकेंगे।
पत्रकारों के एक सवाल कि मणिपुर से विस्थापित 10,000 लोग मिजोरम में शरण ले रहे हैं।और राज्य इसका कैसे मुकाबला कर रहा है? के जवाब में उन्होंने कहा कि “ये आंकड़े तो कुछ भी नहीं हैं, शरणार्थियों के तौर में हमारे पास उससे कहीं ज्यादा लोग हैं। मणिपुर के अलावा, हमारे पास म्यांमार से 30,000 से अधिक शरणार्थी हैं। इसके अलावा बांग्लादेश से भी 2,000 शरणार्थी वहां मौजूद हैं।हम उनकी मदद करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं… लेकिन हम अमीर राज्य नहीं हैं। महामारी ने भी अपना कहर बरपाया है”।
उनका कहना था कि गैर-सरकारी संगठनों ने दान अभियान के माध्यम से कुछ धन एकत्रित किया है- लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।मिजोरम के एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में धन हासिल करने के लिए केंद्रीय गृह सचिव से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल से गृह सचिव ने कहा कि मणिपुर से विस्थापित हो रहे लोगों की रक्षा करना केंद्रीय मंत्रालय का कर्तव्य था। उन्होंने मदद करने का भरोसा दिया है। हालांकि उन्होंने अभी तक किसी राशि का जिक्र नहीं किया है।
इंडियन एक्सप्रेस के एक दूसरे सवाल मिजोरम सरकार ने मणिपुर से विस्थापित लोगों की मदद के लिए क्या विशिष्ट कदम उठाए हैं? का जवाब देते हुए सांसद वनलालवेना कहते हैं कि मणिपुर से “आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों” को संभालने के लिए एक पैनल गठित किया गया है। स्कूलों में बच्चों के प्रवेश के लिए आधिकारिक सर्कुलर भी जारी कर दिया गया है। हम उन्हें कम से कम प्राथमिक शिक्षा देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह मुश्किल है। उदाहरण के लिए जो बच्चे एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे, हम उन्हें शामिल नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास भी ज्यादा सीटें नहीं हैं… हमारे पास सिर्फ एक ही मेडिकल कॉलेज है।
उन्होंने बताया कि मिज़ो स्टूडेंट यूनियन, मिज़ो ज़िरलाई पावल, और यंग मिज़ो एसोसिएशन जैसे एनजीओ सामूहिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए शिविर लगा रहे हैं, दान अभियान चला रहे हैं। एक तरह से मानें तो इस वक्त इनका काम और इनकी सेवा राज्य सरकार से भी कहीं ज्यादा है।
मणिपुर के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी करने के मिजोरम पर लगे आरोपों के जवाब में राज्यसभा सांसद ने कहा कि हमें हस्तक्षेप करना होगा। क्योंकि कुकी हमारे भाई-बहन हैं। हम उन्हें प्यार करते हैं क्योंकि वे हमसे प्यार करते हैं। मैंने ट्विटर पर यहां तक लिखा कि अगर उन्हें (मणिपुर की मिजो एथनिक ट्राइब्स) लगता है कि उनका प्रतिनिधित्व करने वाला उनका अपना सांसद नहीं है, तो मैं उनका सांसद हूं।
एक पड़ोसी राज्य होने के नाते इस तरह की कलह को आप अपने पास आने का मौका नहीं देना चाहते हैं, इससे पहले कि इस तरह के आग की चिंगारी दूसरे राज्य को जलाना शुरू कर दे, आपको इसे रोकना होगा। आप यह सोचकर मुंह नहीं फेर सकते हैं, कि यह मणिपुर राज्य की समस्या है।