ग्राउंड रिपोर्ट: मिर्जापुर में नहरों का जाल, फिर भी सिंचाई के लिए किसान बेहाल

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मिर्जापुर। देश की आजादी के बाद अनाज का उत्पादन बढ़ाने और किसानों को सशक्त करने के लिए सिंचाई के संसाधनों को मजबूत करने का महती कार्य किया गया था। कहा गया कि अन्नदाता समृद्धशाली रहेगा तो लोगों को अन्न की समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा। इसी उद्देश्य से नहरों का जाल बिछाकर सिंचाई की व्यवस्था को मजबूत करने की कोशिश की गई। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे कमलापति त्रिपाठी ने मिर्जापुर के किसानों के दर्द को करीब से देख कर नहरों का जाल बिछाने का काम किया था। उनके द्वारा बिछाए गए नहरों के जाल के जरिए आज भी किसानों के खेतों तक सिंचाई के लिए पानी मुहैया होता है। यह अलग बात है कि नहरों के समुचित रख-रखाव और सफाई के अभाव में किसानों को समय पर पानी न मिल पाता।

इस समय जिले के किसान धान की खेती की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए धान के बेहन (बीज) खेतों में डाले जा रहे हैं, ताकि इसके बाद धान की रोपाई हो सके। जिन किसानों के पास सिंचाई के अपने निजी संसाधन हैं वह तो धान की खेती के तैयारी में जुट गए हैं, लेकिन जिन किसानों की निर्भरता नहरों और बांधों के पानी पर है, वह परेशान दिख रहे हैं। सबसे ज्यादा परेशानी पहाड़ी क्षेत्र के किसानों को है। उन्हें धान की खेती करने के लिए पानी की जरूरत है लेकिन नहरों में पानी की बजाय धूल नजर आ रही है।

परेशान किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। कहने को तो मॉनसून का आगाज हो चुका है, लेकिन खेतों में पर्याप्त मात्रा में पानी नजर नहीं आने से वो मायूस नजर आ रहे हैं। हलिया क्षेत्र के किसान अभिनेष प्रताप सिंह कहते हैं कि “बूंदा-बांदी के पानी से किसानों का भला होने वाला नहीं है, जब तक भरपूर मात्रा में बरसात न हो और नहरों में पानी न हो, धान की खेती संभव नहीं है।” वह जिले की बदहाल नहरों की व्यथा बताते हुए कहते हैं कि “किसान अन्नदाता होने के साथ-साथ बेचारा भी बना हुआ है। कभी मौसम, तो कभी सूखे की मार सहता है। किसान कब खुशहाल होगा यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है।”

नहरों में पानी नहीं

नहरों की मरम्मत नहीं होने से संकट

मिर्जापुर के पहाड़ी विकास खंड क्षेत्र में पिछले कई साल से हिनौती बांध से निकली नहरों में सीपेज व मरम्मत का कार्य न होने से टेल तक पानी पहुंच पाना कठिन होने लगा है। जिसके चलते तकरीबन 10-12 गांवों के किसान पानी के अभाव में खेतों की सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। धान की खेती की तैयारी में जुटे किसानों को बरसात के पानी से आस लगानी पड़ रही है। बता दें कि पहाड़ी क्षेत्र में नहरों से सिंचाई की क्षमता 2156 हेक्टेयर है, लेकिन किसान पानी के अभाव में 50 हेक्टेयर भूमि पर खेती करने के लिए सोचते हैं।

सिंचाई व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किसानों ने समय-समय पर मिर्जापुर नहर प्रखंड के अधिकारियों के अलावा इलाकाई जन-प्रतिनिधियों तक गुहार लगाई है। बावजूद इसके समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। नहरों की मरम्मत व पर्याप्त मात्रा में पानी छोड़ने की मांग को लेकर पिछले वर्ष किसान 18 किलोमीटर की पद यात्रा कर जिला मुख्यालय पहुंचे थे और मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन भी जिलाधिकारी को सौंपे थे। लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पाया।

हिनौती बांध से निकले परसनपुर, चांदलेवा व टेढ़ा नहरों की मरम्मत पिछले कई वर्षों से नहीं होने और गुरखूली नदी पर स्थित साइफन जाम होने से तीन किलोमीटर लंबी नहर में जगह-जगह सीपेज हो गया है। जिसके चलते समय-समय पर बांध से छोड़ा जाने वाला दो तिहाई पानी तो व्यर्थ में बह जाता है। हेड पर बसे एक-दो गांवों को छोड़कर टेल पर बसे टेढ़ा, गुरखुली, पथरहां, चांदलेवा, सगबना, परसनपुर, नवानगर, कठनई आदि गांवों के किसान पिछले कई वर्षो से सिंचाई की समस्या से जूझ रहे हैं।

सूखी नहर

सिंचाई की समस्या से जूझ रहे किसानों में रोष है। उनका कहना है कि चुनाव के दौरान सांसद, विधायक नहरों में टेल तक पानी पहुंचाने की बात तो करते हैं, लेकिन चुनाव बीतने के बाद वे अपना वायदा भूल जाते हैं। अनशन-प्रदर्शन के बावजूद कोई ध्यान नहीं दे रहा है। किसानों का कहना है कि सीपेज की समस्या दूर करने तथा टेल तक पानी पहुंचाने की मांग पर संबंधित अधिकारी हमेशा बजट के अभाव की बात कहते हैं।

मरम्मत के अभाव में पहाड़ी ब्लॉक क्षेत्र से गुजरी नहरें समतल हो गई हैं। किसान राजेंदर कहते हैं कि “नहर के रखरखाव के अभाव में खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। नहरों में समय से न तो पानी छोड़ा जाता है और ना ही नहरों की सफाई पर ध्यान दिया जाता है।” 

नहरों पर नहीं, मॉनसून पर निर्भर है सिंचाई

मिर्जापुर के अति पिछड़े पहाड़ी इलाकों के किसान धान की नर्सरी डालने के लिए मॉनसून की प्रतीक्षा करते हैं। नहर व माइनर क्षतिग्रस्त होने के कारण टेल तक पानी नहीं पहुंच पाता है। जिले के हलिया ब्लाक क्षेत्र के नदी, नाले, बंधी, तालाब भी सूख गए हैं। बेलन नदी में पानी कम होने के कारण सहजी गांव के पास बनी लिफ्ट नहर भी बंद पड़ी है। इस लिफ्ट नहर से छह गांवों में सिंचाई होती है। सहजी के लोगों का कहना है कि ‘नदी में पानी बहुत कम है। लिफ्ट नहर का पंप चलाते ही एयर लेने के कारण बंद हो जाता है।”

लगभग सूख चुकी नदियां

हलिया क्षेत्र के अधिकांश इलाकों में किसानों को सिंचाई संकट का सामना करना पड़ रहा है। सुखड़ा बंधा से निकली नहर सिकटा पवारी, अमदह, भटपुरवा, बोधीपुर, बबुरा कलां, मुडेल में समाप्त हुई है। जिनमें पानी के बजाय धूल उड़ रही है। यही हाल अन्य नहरों-माइनरों का भी है। सुकरा से पटेहरा तक नहर की लंबाई लगभग 20 किलोमीटर है। सिकटा, पवारी कलां, गड़बड़ा, सेमरा कला, लालापुर, बिलरा, पटेहरा गांव के किसानों की उम्मीद इस नहर से जुड़ी हुई है, लेकिन उम्मीदों पर नहर ने पानी फेर दिया है।

नहर की सफाई के नाम पर लाखों का खेल

खेतों की सिंचाई के संसाधनों में नहरों से सिंचाई को सबसे उपयुक्त साधन माना गया है। नदियों में बांध बनाकर नहरें निकाली जाती हैं, और फसली सीजन में बांध से नहरों में पानी छोड़कर किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाता है। मिर्जापुर जिले में गंगा नदी के सखौरा पंप कैनाल, नारायनपुर पंप कैनाल के अलावा सिरसी, खजुरी, अदवा, बेलन बलौदा और मेजा बांध के जरिए नहरों के रास्ते किसानों के खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था बनी है।

लेकिन तीन-चार दशक पूर्व बने नहरों-माइनरों की मरम्मत व रखरखाव के नाम पर सिर्फ बजट पास होता आया है। ठोस काम नहीं होने से कई दशकों पूर्व बने नहरों की हालत जर्जर हो चुकी है। नहरों की साफ सफाई के नाम पर घास-फूस, पेड़-पौधे छीलकर लाखों का वारा-न्यारा कर लिया जाता है, लेकिन टेल तक पानी पहुंचेगा कि नहीं इसे सोचने-समझने की जरूरत नहीं समझी जाती। कुछ ऐसा ही हाल बांध-बंधों का भी है जो सीपेज की समस्या से जूझ रहे हैं। जो पानी किसानों के खेतों में बहना चाहिए वह सीपेज होने के चलते बेकार में बह जाता है।

नहर की सफाई के नाम पर घास फूस साफ करते मजदूर

टूटे हुए हैं नहरों के झाल

जिले में सिरसी बांध से निकली लहंगपुर रजवाहा के मझियार माइनर की हालत यह है कि माइनर में लगाये गये सब गुलाबा गायब हो गये हैं और पानी रोकने के लिए बनाए गए झाल टूट गये हैं। कई बार अधिकारियों के यहां शिकायत करने पर भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया। यही हाल बामी माइनर, गंगहरा खुर्द माइनर, कोल्हुआ माइनर का है।

लहंगपुर गांव निवासी प्रभाशंकर दुबे बताते हैं कि “लहंगपुर रजवाहा के टेल तक पानी नहीं पहुंचता है। कहने के लिए नहर बनाई गई है, लेकिन किसानों के पानी के लिए नहीं, सिर्फ अधिकारियों की जेब भरने के लिए। और तो और जो झाल टूटी हैं या माइनर टूट फूट गये हैं उसको बनवाने के लिए सिंचाई विभाग के पास धन नहीं है। नहर की सिल्ट सफाई के लिए धन है लेकिन सिल्ट सफाई के नाम पर सिर्फ घास कटवाई जाती है जो मौके पर जाकर देखा जा सकता है।”

बरसात शुरू होने से ऐन पहले नहरों की सफाई और मरम्मत का कार्य प्रारंभ कराया जाता है जो हास्यास्पद ही नहीं बल्कि जांच का विषय है, लेकिन दुर्भाग्य है कि इस पर जिम्मेदार लोगों का ध्यान नहीं जाता है या वह जानकर भी नजर अंदाज करते हैं। इन दिनों जिले के कई स्थानों पर नहरों में मरम्मत का कार्य चल रहा है जिसे देखकर मन में एक ख्याल आता है कि आखिरकार यह कार्य बरसात से कई महीने पहले क्यों नहीं कराये जाते हैं।

नहर की मरम्मत करते मजदूर

सिंचाई विभाग के सेवानिवृत्त मुलाजिम नाम ना छापे जाने की शर्त पर ‘जनचौक’ को बताते हैं कि इसके पीछे भी गहरा रहस्य छुपा हुआ है, जो बरसात के पानी के साथ बह जाता है। इससे आम के आम गुठलियों के दाम भी निकल आते हैं यानी काम भी हो जाता है दाम भी मिल जाता है। दूसरे यदि कभी किसी ने जांच करने का साहस किया भी तो बरसात बहाना बन जाता है और बचाव के रूप में ढाल भी।

(मिर्जापुर से संतोष देव गिरि की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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विनोद कोचर
विनोद कोचर
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10 months ago

जनचौक के जरिये स्वस्थ, निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की अलख जगाने के लिए धन्यवाद💐