Saturday, April 27, 2024

केजरीवाल सरकार पहुंची सुप्रीम कोर्ट, केंद्र के अध्यादेश पर तत्काल रोक लगाने की मांग

नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र सरकार के अध्यादेश पर कानूनी लड़ाई शुरू हो चुकी है। अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को केंद्र के अध्यादेश की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। अपनी याचिका में आप सरकार (AAP) ने अध्यादेश को “असंवैधानिक” माना है और इसके कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की है।

याचिका में दिल्ली सरकार ने यह तर्क दिया है कि “ केंद्र सरकार का अध्यादेश दिल्ली के लिए स्थापित संघीय, लोकतांत्रिक शासन का उल्लंघन करता है।”

इसमें दावा किया गया है कि यह “संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत केंद्र के पास प्रदत्त अध्यादेश बनाने की शक्तियों का दुरुपयोग है।”

अधिवक्ता शादान फरासत के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, “आक्षेपित अध्यादेश संघीय, वेस्टमिंस्टर-शैली के लोकतांत्रिक शासन की योजना को नष्ट कर देता है, जो अनुच्छेद 239एए में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (एनसीटीडी) के लिए संवैधानिक रूप से गारंटीकृत है।”

इसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 239एए की योजना के तहत, उप-राज्यपाल (LG) को केवल जीएनसीटीडी के विधायी और कार्यकारी क्षेत्र से बाहर आने वाले मामलों में विवेक प्राप्त है और अन्य सभी मामलों (सेवाओं ) में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं।

आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की स्थापना के लिए अध्यादेश जारी करने के लिए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है और इस कदम को “अदालत की अवमानना” करार दिया है।

केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में ग्रुप-ए अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकरण बनाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 लागू किया था। आप सरकार सेवाओं पर नियंत्रण के लिए अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन बता रही है।

केंद्र सरकार का यह अध्यादेश, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंपने के एक हफ्ते बाद आया, जिसमें दानिक्स कैडर के ग्रुप-ए अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के हस्तांतरण और अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण स्थापित करने का उल्लेख है।

11 मई, 2023 के शीर्ष अदालत के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग एलजी के कार्यकारी नियंत्रण में थे।

आप सरकार और केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले उप-राज्यपाल के बीच लगातार टकराव को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने नौकरशाहों पर नियंत्रण रखने वाली निर्वाचित सरकार के महत्व पर जोर दिया। इसमें कहा गया है कि इस तरह के नियंत्रण के बिना, सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

इससे पहले दिन में, आप ने घोषणा की थी कि केजरीवाल तीन जुलाई को आईटीओ स्थित पार्टी कार्यालय में केंद्र के अध्यादेश की प्रतियां जलाने का नेतृत्व करेंगे। हालांकि, पार्टी ने बाद में अपने बयान को संशोधित करत हुए कहाकि उसने अध्यादेश के खिलाफ आंदोलन और विरोध प्रदर्शन में केजरीवाल और आप का वरिष्ठ नेतृत्व में भाग नहीं लेगा और, क्योंकि मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

आप ने इससे पहले 11 जून को अध्यादेश के खिलाफ एक विशाल रैली का आयोजन किया था। पार्टी ने घोषणा की है कि “5 जुलाई को सभी 70 संसदीय क्षेत्रों में अध्यादेश की प्रतियां जलाई जाएंगी। 6 जुलाई से 13 जुलाई के बीच दिल्ली के कोने-कोने में अध्यादेश की प्रतियों को आग लगाई जाएगी। सात उपाध्यक्ष यह सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें दिल्ली के हर क्षेत्र में जलाया जाए।”

आप के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया था कि केंद्र इस “काले अध्यादेश” के माध्यम से दिल्ली पर “अवैध” नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर रहा है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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