गृह मंत्री अमित शाह के राज्यसभा में पंजाब के जरनैल सिंह भिंडरावाला पर दिए बयान के बाद सिख पंथक हलकों में प्रतिक्रिया सामने आई है। 21 मार्च 2025 को गृह मंत्री अमित शाह सरकार की आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता नीति के बारे में बोल रहे थे। गृह मंत्री ने कहा कि मार्च 2026 तक देश में नक्सलवाद को समाप्त कर दिया जाएगा। इस संदर्भ में अमित शाह ने कहा, “जो आने वाले खतरों को नहीं देखते, वो देश को खतरों से नहीं बचा सकते। जिनके हाथों में जिम्मेदारी होती है, वो खतरों को देखकर उगने से पहले समाप्त कर देते हैं।”
अमित शाह ने पंजाब का उदाहरण देते हुए कहा, “कुछ लोग पंजाब में भी भिंडरावाला बनाने की कोशिश कर रहे थे। प्रयास भी किया, आगे भी बढ़ रहे थे। पंजाब में हमारी सरकार नहीं थी, फिर भी गृह मंत्रालय ने दृढ़ निश्चय करके आज उन्हें आराम से असम की जेल में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करने की स्थिति में पहुंचा दिया है। हम देश में पॉलिटिकल आइडियोलॉजी से प्रेरित कोई खतरा उभरने नहीं देंगे। हम ऐसे खतरे को शुरुआत में ही खत्म कर देंगे।”
अमृतपाल सिंह, जो ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया बने थे, को 23 अप्रैल 2024 को सरकार द्वारा पंजाब के मोगा जिले के रोड गांव में गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी के लिए लगभग 37 दिन तक पुलिस बल अमृतपाल सिंह को ढूंढता रहा था और इस दौरान पंजाब में काफी हलचल रही। मार्च 2024 में एक धार्मिक समागम में भाग लेने के लिए जब अमृतपाल मोगा के रोड गांव में पहुंचने वाले थे, तब पुलिस ने उन्हें समर्थकों समेत घेर लिया था, जहां से वो बचकर निकल गए थे।
अमृतपाल पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया और गिरफ्तारी के बाद उन्हें असम की जेल में भेज दिया गया, जहां उनके संगठन के अन्य समर्थक भी बंद हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में अमृतपाल ने असम जेल से चुनाव लड़ा और वर्तमान में वह पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट से सांसद हैं।
सिख संस्थाओं को पूर्व में भी गृह मंत्री अमित शाह के एक वक्तव्य से गहरी ठेस लगी थी, जब अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर द्वारा उठाए गए बलवंत सिंह राजोआना की सजा को मृत्युदंड से आजीवन कारावास में बदलने की अपील के प्रश्न पर उन्होंने कहा था कि यह अपील स्वीकार्य नहीं हो सकती, क्योंकि यह अपील थर्ड पार्टी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा की गई है, न कि उनके पारिवारिक सदस्यों द्वारा। अमित शाह ने कहा था, “जिन्हें आतंकवाद के अपने कृत्यों पर कोई पश्चाताप नहीं, उन्हें किसी प्रकार की दया की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।”
बलवंत सिंह राजोआना 1995 में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या का अभियुक्त है। हालांकि, 2019 में सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश दिवस के उपलक्ष्य में केंद्र ने एक आदेश जारी किया था, जिसमें मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने और बंदी सिखों, जिनकी सजा पूरी हो चुकी थी, की रिहाई का जिक्र किया गया था।
सिख धर्म प्रचारक एवं विद्वान ज्ञानी बाबा बंता सिंह ने कहा है, “ऐसा बयान किसी कौम की खिलाफत करने के लिए देना उचित नहीं बनता।” उन्होंने एक सभा में कहा, “न तो श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करना कोई निषेधात्मक या निम्न कार्य है और न ही संत भिंडरावाला की बराबरी करने का प्रयत्न करना गलत है। आपको अगर 2027 के राज्य विधानसभा चुनाव में हिंदू भाइयों के वोट चाहिए, तो जो मर्जी बोल सकते हैं।
हर कौम के अपने नायक होते हैं, उन्हें खलनायक न बताएं। हम हिंदू नायकों को खलनायक नहीं कहते। भाईचारे की विरासत को कायम रखने के लिए ऐसे बयान शोभनीय नहीं हैं।” हिंदू वोटों को लेकर यह एजेंडा 80 के दशक में इंदिरा गांधी ने अपनाया था। उस दौर में संत भिंडरावाला का अपयश किया गया था।
हाल ही में किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए की गई कार्यवाही को उचित ठहराते हुए आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी सरकार के लगभग सभी मंत्रियों ने भी प्रदेश के व्यापार में हो रहे नुकसान और विकास में बाधा के लिए किसानों के धरने को ही जिम्मेदार ठहराया था। आम आदमी पार्टी ने शहरी और कस्बाई व्यापारी वर्ग, कर्मचारी वर्ग, युवा व अन्य वर्गों की हिमायत करते हुए किसानों के आंदोलन को कटघरे में खड़ा किया है।
दिल्ली में हार के बाद आम आदमी पार्टी के लिए एकमात्र बचे राज्य पंजाब में आगामी विधानसभा चुनावों में फिर से सफलता प्राप्त करना चुनौती बन गया है। इसी गंभीरता के चलते आम आदमी पार्टी ने पंजाब के लिए मनीष सिसोदिया को पार्टी का नया इंचार्ज नियुक्त किया है और सत्येंद्र जैन को सह-इंचार्ज बनाया है। पिछले विधानसभा चुनावों में किसान वर्ग के समर्थन से भारी सफलता पाने वाली आम आदमी पार्टी की राजनीतिक प्राथमिकताएं भी प्रदेश में बदली हुई स्पष्ट दिखाई दे रही हैं।
आम आदमी पार्टी ने नवंबर 2024 में पार्टी को प्रदेश में ‘मजबूत’ करने के लिए पार्टी के मुखिया के तौर पर भगवंत मान को हटाकर हिंदू चेहरा अमन अरोड़ा, विधायक सुनाम एवं कैबिनेट मंत्री, को नियुक्त किया था। उनके साथ ही दूसरे हिंदू चेहरा अमनशेर सिंह कलसी को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। लोकसभा 2024 के परिणामों के बाद और चार उपचुनावों के परिणामों से पहले ही आम आदमी पार्टी में एक भीतरी उथल-पुथल के चलते ये बदलाव किए गए थे।
अब सवाल यह भी उठने लगे हैं कि क्या आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब ही एकमात्र शरणस्थली बच गई है या केजरीवाल और अन्य वरिष्ठ नेताओं की दिल्ली में हार के बाद पंजाब नए अवसर की तलाश के लिए राजनीतिक धरातल बन गया है। दिल्ली की हार के सबक ने क्या आम आदमी पार्टी को पंजाब में नई राजनीतिक राह अपनाने के लिए विवश कर दिया है?
वर्ग विभाजन भाजपा का राजनीतिक पैंतरा माना जाता रहा है। भाजपा के लिए पंजाब में सत्ता हासिल करना बहुप्रतीक्षित लक्ष्य है। क्या अरविंद केजरीवाल पंजाब में कांग्रेस की बढ़ती सफलता पर अंकुश लगाने के लिए विकास और व्यापारी वर्ग के हितों को आगे रखने की प्रतिस्पर्धा में भाजपा के लिए उपयुक्त मैदान बनाने की गलती तो नहीं कर रहे हैं?
पंजाब में आम आदमी पार्टी के तीन साल के कार्यकाल में कोई बड़ी सफलता अभी तक सरकार के खाते में नहीं जुड़ी है। फरवरी 2027 में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं। अकाली दल विभाजन की त्रासदी में फंसा हुआ है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों के बाद नगर निकाय चुनावों में भी काफी बेहतर सफलता हासिल की है। भाजपा पंजाब में अपनी रणनीति में आगे बढ़ रही है और ऐलान कर चुकी है कि अबकी बार वह बिना किसी गठबंधन के अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी और पूरे प्रदेश में अपने प्रत्याशी उतारेगी। क्या आम आदमी पार्टी खुद को भाजपा की सफलता में सहायक होने के दंश से बचा पाएगी, यह भविष्य ही निर्धारित करेगा।
(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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