राम विराजमान की तर्ज़ पर कृष्ण विराजमान गढ़ लिया गया है। कृष्ण विराजमान की सखा रंजना अग्निहोत्री की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने याचिका दायर की है। याचिका ‘भगवान श्रीकृष्ण विराजमान’ और ‘स्थान श्रीकृष्ण जन्म भूमि’ के नाम से दाखिल की गई है। जन्म भूमि परिसर को लेकर मथुरा की कोर्ट में दायर किए गए सिविल मुकदमे में 13.37 एकड़ पर दावा करते हुए स्वामित्व मांगा गया है और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। याचिका में बताया गया है कि जिस जगह पर शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी है, वही जगह असल कारागार है, जिसमें भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।
भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की सखा रंजना अग्निहोत्री की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने याचिका दायर की है। याचिका में जमीन को लेकर 1968 के समझौते को गलत बताया है। यह केस भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, कटरा केशव देव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर की ओर से अंतरंग सखी के रूप में अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य भक्तों ने दाखिल किया है।
1968 समझौता क्या है?
मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्म भूमि से लगी हुई बनी है। साल 1951 में श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं।
इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें (मुस्लिम पक्ष को) उसके बदले पास की जगह दे दी गई। तब से सब कुछ ‘1968 समझौते’ के तहत ही चलता चला आ रहा है।
श्रीकृष्ण जन्म भूमि न्यास ने मामले से किया किनारा
श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संस्थान ट्रस्ट (श्रीकृष्ण जन्म भूमि न्यास) के सचिव कपिल शर्मा ने कहा कि ट्रस्ट से इस याचिका या इससे जुड़े लोगों से कोई लेना-देना नहीं है। इन लोगों ने अपनी तरफ से याचिका दायर की है। हमें इससे कोई मतलब नहीं है।
बता दें कि हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन हिंदू महासभा के वकील रहे हैं और उन्होंने राम जन्म भूमि केस में भी हिंदू महासभा की पैरवी की थी, जबकि रंजना अग्निहोत्री लखनऊ में वकील हैं। बताया जा रहा है कि जिस तरह राम मंदिर मामले में नेक्स्ट टू रामलला विराजमान का केस बनाकर कोर्ट में पैरवी की थी, उसी तरह नेक्स्ट टू भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के रूप में याचिका दायर की गई है।
‘अदालतें ऐतिहासिक गलतियां नहीं सुधार सकतीं’: संविधान पीठ
9 नवंबर 2019 को अयोध्या राम मंदिर केस में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ‘स्पेशल वर्शिप प्रोविजन-1991’ का जिक्र करते हुए कहा था, “अदालतें ऐतिहासिक गलतियां नहीं सुधार सकतीं।”
राम मंदिर पर फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने देश के तमाम विवादित धर्म स्थलों पर भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया था। अपने 1,045 पेज के फैसले में 11 जुलाई, 1991 को लागू हुए प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 का जिक्र करके स्पष्ट संदेश दिया था कि काशी और मथुरा में जो मौजूदा स्थिति है वही बनी रहेगी उसमें किसी भी तरह के बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है।
तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने अपने फैसले में देश के सेक्युलर चरित्र की बात करते हुए कहा था कि 1991 का यह कानून देश में संविधान के मूल्यों को मजबूत करता है। संविधान पीठ ने देश की आजादी के दौरान मौजूद धार्मिक स्थलों के जस के तस संरक्षण पर भी जोर देकर कहा था कि देश ने इस एक्ट को लागू करके संवैधानिक प्रतिबद्धता को मजबूत करने और सभी धर्मों को समान मानने और सेक्युलरिज्म को बनाए रखने की पहल की है।”
कब और क्यों बना था यह एक्ट
यह कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। साल 1991 में केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने किसी धार्मिक स्थल पर बाबरी मस्जिद जैसा विवाद न हो, इसके लिए उस वक्त ‘प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991’ कानून पास करवाया था। प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 के मुताबिक, “15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज, और भविष्य में, भी उसी का रहेगा।” चूंकि यह एक्ट अयोध्या विवाद की वजह से लाया गया था अतः इस एक्ट से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को बाहर रखा गया था, क्योंकि तब तक यह विवाद देश की अदालत में पहुंच गया था।
अधिनियम को दी गई चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने याचिका दाखिल करके पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 (Place of Worship Special Provisions Act 1991) को चुनौती दी है। याचिका में काशी-मथुरा विवाद को लेकर कानूनी कार्रवाई को फिर से शुरू करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस एक्ट को कभी चुनौती नहीं दी गई और न ही किसी कोर्ट ने न्यायिक तरीके से इस पर विचार किया।
बता दें कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कानून किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)
+ There are no comments
Add yours