वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम 2025 की वार्षिक बैठक 20-24 जनवरी तक स्विट्जरलैंड के दावोस में शुरू हो चुकी है। हर वर्ष जनवरी माह में होने वाली इस बैठक में दुनिया के सबसे अमीर लोग और राष्ट्राध्यक्ष उपस्थित होते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के खात्मे के साथ तीसरी दुनिया के देशों को एक-एक कर औपनिवेशिक दासता से भले ही मुक्ति मिल गई हो, लेकिन 21वीं सदी तक आते-आते यह बात शीशे की तरह साफ़ हो गई कि नवउदारवादी अर्थनीति के जरिये गरीब मुल्कों के शोषण को जारी रखना कहीं बेहतर रणनीति थी।
इस मौके पर ऑक्सफैम रिपोर्ट-2025 ने कुछ ऐसे चौंकाने वाले खुलासे किये हैं, जो इससे पहले कभी भी देखने को नहीं मिले थे।
वर्ष 2023 की तुलना में 2024 में अरबपतियों (डॉलर में) की संपत्ति तीन गुना तेजी से बढ़ी है। इससे पता चलता है कि दुनियाभर के देशों में धनिकतंत्र के आगे संसदीय लोकतंत्र से चुनी जाने वाली सरकारों का कोई जोर नहीं बचा है, और देशों की आर्थिक नीतियां बड़ी पूंजी के दिशानिर्देशों पर चलने लगी हैं।
अगले एक दशक के भीतर दुनिया को पहले पांच खरबपति (ट्रिलियन डॉलर) मिलने जा रहे हैं। बता दें कि अभी तक इस मुकाम तक कोई भी नहीं पहुंच सका था।
इन्फोर्मा कनेक्ट अकैडमी की रिपोर्ट बताती है कि अरबपति से खरबपति बनने की इस रेस में पहले स्थान पर टेस्ला के मालिक एलन मस्क हैं, जिनकी नेट वर्थ 2024 में 195 बिलयन डॉलर थी। 2027 तक मस्क के पहले खरबपति बन जाने की उम्मीद की जा रही है।
दूसरे स्थान पर भारत के गौतम अडानी हैं, जिनकी नेट वर्थ भले ही घटकर 84 बिलियन डॉलर हो चुकी है, लेकिन 122.86% वार्षिक ग्रोथ रेट को देखते हुए उनके 2028 तक दुनिया के दूसरे खरबपति (ट्रिलियनेयर) बन जाने की उम्मीद है। तीसरे स्थान पर NVIDIA कंपनी के जेन्सेन हुआंग, चौथे स्थान पर इंडोनेशिया के प्रजोगो पंगेस्टु और पांचवें स्थान पर लक्ज़री और फैशन ब्रांड के मालिक बर्नार्ड अर्नाल्ट के 2030 तक पांचवें ट्रिलियनेयर बनने की उम्मीद है।
2024 में अरबपतियों की संपत्ति में कुलमिलाकर 2 ट्रिलियन डॉलर का इजाफ़ा हुआ है। 204 नए अरबपति बने हैं, जो बताता है कि दुनियाभर में औसतन हर सप्ताह 4 नए अरबपति बने हैं। यहां पर अरबपति का अर्थ है 8600 करोड़ रूपये की संपत्ति।
हर अरबपति की संपत्ति में सप्ताह में औसतन 20 लाख डॉलर की वृद्धि हुई है, जबकि शीर्ष पर मौजूद टॉप 10 बिलिनेयर की संपत्ति में प्रतिदिन 10 करोड़ डॉलर (860 करोड़ रूपये रोजाना) की दर से बढ़ोत्तरी हुई है।
2023 में पश्चिमी मुल्कों के सबसे अमीर 1% लोगों को तीसरी दुनिया के द्वारा वित्तीय प्रणाली के माध्यम से 263 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया गया है, जो प्रति घंटे 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक बैठता है।
रिपोर्ट में औपनिवेशिक भारत से बर्तानवी हुकूमत की लूट विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसके मुताबिक, उपनिवेशवाद के सौ वर्षों के दौरान ब्रिटेन के द्वारा भारत से निकाले गए 64.82 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर में से 33.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर सबसे अमीर 10% लोगों के पास चले गए।
यह रकम इतनी बड़ी है कि यह लंदन को 50 पाउंड के नोटों से तकरीबन चार गुना से अधिक ढकने के लिए पर्याप्त होगा।
वहीं दूसरी तरफ, साधनहीन गरीबों की संख्या जस की तस बनी हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आज विश्व बैंक की गरीबी रेखा 6.85 अमेरिकी डॉलर (PPP) के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या जो 1990 में लगभग 3.6 अरब थी, में कोई कमी नहीं आई है। आज वैश्विक आबादी के 44% हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
एक तरफ दुनिया के 44% लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीने को मजबूर हैं, तो दूसरी तरफ सबसे अमीर 1% लोगों के पास दुनिया की 45% दौलत का मालिकाना है। विश्व में हर दस में से एक महिला अत्यंत गरीबी (औसतन रोजाना 2.15 डॉलर PPP से नीचे) में रह रही है, जो कि पुरुषों की तुलना में 2.43 करोड़ अधिक संख्या है।
विश्व बैंक द्वारा किए गए शोध से यह भी पता चलता है कि मानवता का केवल 8% हिस्सा ऐसे देशों में रहता है जहां गरीबी-अमीरी का अनुपात औसत से कम है।
अधिकांश अरबपतियों की ज़्यादातर संपत्ति उन्हें विरासत में हासिल हुई है। 60% अरबपतियों को या तो यह विरासत में हासिल हई है, या क्रोनी कैपिटल, भ्रष्टाचार या मोनोपली के जरिये इसे हासिल किया गया है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि हमारी बेहद गैर-बराबरी वाली दुनिया में औपनिवेशिक वर्चस्व का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसका फ़ायदा बड़े पैमाने पर सबसे अमीर लोगों को मिलता आया है।
वहीं दूसरी तरफ, बेहद निर्धन, नस्लीय भेदभाव के शिकार लोगों, महिलाओं और हाशिए पर पड़े समूहों का बड़े पैमाने पर संगठित तरीके से शोषण किया जाता रहा है, जो आज भी बदस्तूर जारी है।
रिपोर्ट में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि मौजूदा वैश्विक परिवेश अभी भी कई मायनों में औपनिवेशिक स्वरूप लिए हुए है। एक औसत बेल्जियम के पास एक औसत इथियोपियाई की तुलना में विश्व बैंक के भीतर 180 गुना ज़्यादा वोटिंग पावर है।
यह सिस्टम आज भी ग्लोबल साउथ से ग्लोबल नार्थ में 1% सुपररिच लोगों तक प्रति घंटे 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर की दर से धन को खींचता है।
ऑक्सफैम रिपोर्ट ने निष्कर्ष के तौर पर कहा है कि इस स्थिति को उलटना होगा। उन लोगों को मुआवजा दिया जाना चाहिए जिन्हें क्रूरता से गुलाम और उपनिवेश बनाया गया।
दुनियाभर से गरीबी को खत्म करने के लिए हमारी आधुनिक औपनिवेशिक आर्थिक प्रणाली को मौलिक रूप से ज्यादा समरूप बनाने पर जोर देना चाहिए। इसकी लागत सबसे अमीर लोगों को उठानी चाहिए जिन्हें इसका सबसे अधिक लाभ हासिल होता रहा है।
लेकिन क्रूर सच्चाई तो यह है कि ऑक्सफैम रिपोर्ट पिछले कुछ वर्षों से हर साल प्रकाशित होती है, लेकिन 70 के दशक से नव-उदारवादी अर्थव्यवस्था के अधीन दुनिया भर के देश अधिकाधिक गैर-बराबरी की खाई को बढ़ाने वाली नीतियों पर ही काम कर रहे हैं।
सोवियत संघ के विघटन के बाद से पश्चिमी देशों की बड़ी पूंजी ने न सिर्फ तीसरी दुनिया के मुल्कों को अपने शोषण का अड्डा बनाया है, बल्कि गरीब देशों को भी लिबरल इकॉनमी के मकड़जाल में फांस उन देशों में भी दलाल, क्रोनी पूंजीपतियों की एक श्रृंखला को पनपाने में मददगार साबित हुए हैं, जो अपने-अपने देशों की राजनीतिक प्रणाली को पूरी तरह से अपने काबू में करते जा रहे हैं।
भारत इसका जीता जागता उदाहरण है। वर्ना कोई वजह नहीं थी कि 32 ट्रिलियन डॉलर और 40 करोड़ आबादी वाली अमेरिकी अर्थव्यवस्था से जहां पहली बार एलन मस्क पहला खरबपति बनने जा रहा है, तो उसके अगले ही वर्ष 4 ट्रिलियन और 145 करोड़ आबादी वाले देश से अगले ही वर्ष दुनिया के अमीर दूसरे खरबपति की आस लगाये बैठे हैं।
भारत जैसे गरीब मुल्क के लिए यह कितनी भयावह खबर है कि 4 ट्रिलियन में से 1 ट्रिलियन अर्थात 25% संपत्ति सिर्फ एक परिवार के अधिकार क्षेत्र में होने जा रही है, और हम गा रहे हैं कि भारत विश्वगुरु बनने जा रहा है?
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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