Tuesday, April 16, 2024

मनरेगा बजट में 29  हजार करोड़ की कटौती पर संसदीय समिति ने जताई चिंता 

मनरेगा के तहत मजदूरी ग्रामीण समाज के सबसे कमजोर तबकों के लिए रोजी-रोटी का साधन तो है ही, इन तबकों को आत्मसम्मान से जीने का अवसर भी उपलब्ध कराती है। नरेंद्र मोदी की  सरकार ने इस बार के बजट में इस मद में सिर्फ 60 हजार करोड़ रूपया उपलब्ध कराया है।

संसद की स्थायी समिति ने इसका संज्ञान लेते हुए कहा है कि 2023-24 के बजट में केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना की धनराशि में 29 हजार 400 करोड़ की कटौती की है। ग्रामीण विकास और पंचायती राज की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “समिति इस बात  से चिंतित है कि मनरेगा के लिए बजट अनुमान 2023-24 के संशोधित अनुमानों  की तुलना में 29,400 करोड़ रुपये कम कर दिया गया है। 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को संचालित करने वाला अधिनियम ग्रामीण आबादी के ऐसे वंचित वर्गों को ‘काम का अधिकार’ प्रदान करता है जो रोजगार की तलाश में हैं।

डीएमके सदस्य कनिमोझी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा, “यह बेरोजगारों को राहत प्रदान करने का अंतिम उपाय है। खास कर उन लोगों के लिए जिनके पास खुद को और उनके परिवार के सदस्यों  का पालन-पोषण करने लिए कोई अन्य साधन नहीं है।”

रिपोर्ट में कहा गया है: “मनरेगा की भूमिका और महत्व (कोविड -19) महामारी के दौरान दिखाई दी। यह इस संकट के समय में जरूरतमंदों के लिए आशा की किरण के रूप में सामने आया। इस दौरान ग्रामीण क्षेत्र में पलायन करके लौटे मजदूरों के लिए यह अंतिम सहारा बना।ठ

इसके लिए इसके बजट में  वृद्धि की गई। 2020-21 के बजट में इसके लिए 61 हजार 500 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया था, लेकिन इसे बढ़ाकर 1 लाख 11 हजार 500 करोड़ रूपया करना पड़ा। इसी तरह 2021-22 में बजट में इसके लिए 73 हजार करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया था, लेकिन इसे बढ़ाकर 99 हजार 117 करोड़ रूपया करना पड़ा।

बजट में वृद्धि बताती है कि मनरेगा के तहत मजदूरी की कितनी अधिक मांग है और महामारी के दौरान पलायन करके लौटे मजूदूरों और ग्रामीण मजदूरों के जीवन में इसका क्या महत्व है।

“चल रहे वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान भी मनरेगा  के लिए धनराशि को संशोधित चरण में बढ़ाकर 89,400 करोड़ रुपये किया गया। जबकि  बजट में इसके लिए सिर्फ 73,000 करोड़ रुपये का प्रावधान था। इस बार के बजट ( 2023-24) में सिर्फ 60 हजार करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।

जबकि केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा इसके लिए 98 हजार करोड़ रूपए की मांग की गई थी। पिछले बजट ( संशोधित चरण)  की तुलना में इस बार 29 हजार 400 करोड़ की कटौती की गई है। केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा मांग के संदर्भ में देखें तो यह कटौती 38 हजार करोड़ रूपए की है।

संसद की इस स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि “मनरेगा के तहत धन के कम आवंटन के औचित्य को समझने में असमर्थ है”। समिति का यह भी कहना है कि मनरेगा को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन किया जाना चाहिए। 29 हजार 400 करोड़ रूपए की जो कटौती की गई है, उस पुनर्विचार किया जाना चाहिए और धनराशि बढ़ाई जानी चाहिए।

समिति ने यह बात स्वीकार किया है कि मनरेगा एक मांग संचालित योजना है। जिसका निहितार्थ है कि ग्रामीण समाज के जितने भी मजदूर (जॉब कार्डधारी) इस योजना के तहत काम की मांग करेंगे, सरकार को उनको काम देना पड़ेगा। कम से कम सौ दिन का काम।

लेकिन व्यवहार में ऐसा होता नहीं है। अक्सर बजट प्रावधानों के अनुसार ही काम दिया जाता है। समिति ने यह सवाल भी पूछा है कि जब ग्रामीण विकास विभाग ने 98 हजार करोड़ रूपए की मांग की थी, तो क्यों बजट में सिर्फ 60 हजार करोड़ रूपए का ही प्रावधान किया गया।

समिति ने यह भी सवाल पूछा कि आखिर ग्रामीण विकास विभाग किस आधार पर इस अनुमान पर पहुंचा कि मनरेगा के तहत सिर्फ 98 हजार करोड़ रूपए की जरूरत है।

संसद की स्थायी समिति ने पुरजोर तरीके से सिफारिश की है कि ग्रामीण विकास विभाग के इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के तरह रोजगार की अत्यधिक मांग है। उस मांग के अनुसार बजट आवंटन की मांग ग्रामीण विकास विभाग को करना चाहिए।

राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली ऐप के माध्यम से अनिवार्य उपस्थिति (मजदूरों की) के बारे में मंत्रालय के नई व्यवस्था के बारे में संसद की स्थायी समिति ने कहा है कि यह व्यवस्था मनरेगा के तहत रोजगार और भुगतान के मार्ग में अवरोध बनकर खड़ी होगी। रिपोर्ट में कहा गया है, “समिति वास्तविक समय में काम के दौरान कैप्चरिंग ऐप की शुरूआत के लिए विभाग द्वारा महसूस की जाने वाली आवश्यकता के बारे में तथ्यों से अनजान नहीं है … लेकिन इस व्यवस्था के दूसरे पक्ष पर ध्यान दिया जाना चाहिए…।

एक दिन में दो वास्तविक समय की तस्वीरों को कैप्चर करने की कवायद, स्मार्टफोन की उपलब्धता, उचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और  ‘इन’ और ‘आउट’ उपस्थिति के लिए निर्धारित समय पर मनरेगा श्रमिकों का आना-जाना। ऐसे कारक हैं, जो मजदूरी करने और भुगतान पाने के मार्ग में अवरोध खड़ा करेंगे।

संसद की स्थायी समिति ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि मनरेगा मजदूर समाज के सबसे वंचित तबकों से आते हैं। उनका तकनीकी ज्ञान, भाषा और औपचारिक शिक्षा ऐसी नहीं होती कि वे ऐसे ऐप आसानी से संचालित कर सके। ऐसे में ऐप संचालित करने के लिए उन्हें किसी दूसरे पर निर्भर रहना पड़ेगा।  यह नए तरह के भ्रष्टाचार और जटिलता को जन्म देगा।

समिति ने तीन  सिफारिशें भी की हैं। पहली यह कि मंहगाई को देखते हुए मनरेगा की मजदूरी बढ़ाई जानी चाहिए। दूसरा पूरे देश में मनरेगा मजदूरों को समान मजदूरी के भुगतान के बारे में कोई तरीका निकालना चाहिए। तीसरा न्यूनतम 100 दिनों की मजदूरी की गारंटी की सीमा को बढ़ाना चाहिए।

( जनचौक के स्टॉफ रिपोर्टर आजाद शेखर की रिपोर्ट )

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