वाराणसी, चंदौली। आंकड़े बता रहे हैं कि देश में मेहनतकश आबादी के एक बड़े वर्ग के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (PMSYM) से लाभार्थी कामगार मुंह फेरने लगे हैं। गुजरात से इस योजना को लांच करते समय पीएम मोदी ने कहा था कि “प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना (PMSYM) देश के लगभग 42 करोड़ श्रमिकों और कामगारों के जीवन स्तर में सुधार और भविष्य की बेहतरी की गारंटी होगी।”
योजना के शुरू होने के कुछ ही महीनों बाद कोरोना की मार से दुनिया के साथ भारत भी त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा। मेहनतकश वर्ग में फेरीवाले, सिर पर बोझ उठाने वाले, मोची, कूड़ा बीनने वाले, घरेलू कर्मकार, नौकर, रिक्शा चालक, ग्रामीण भूमिहीन श्रमिक, हथकरघा मजदूर, दिहाड़ी मजदूर, खेत मजदूर, सड़कों-घरों के निर्माण में जुटे मजदूर, रेहड़ी-ठेले-पटरी वाले, छोटे-मोटे व्यापारी और बुनकर के साथ हाड़तोड़ परिश्रम करने वाली जातियों के रोजगार छीन गए।
रोजगार ख़त्म होने के साथ महंगाई ने मजदूरों के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया। उन्हें दाना-पानी जुटाने के लिए सालों तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा, जो अब भी जारी है। नतीजतन, पैसे की तंगी और महंगाई में पिस रहे तकरीबन दो लाख कामगारों ने प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना की किश्त भरनी बंद कर दी। यह आंकड़े तब उभर कर सामने आये हैं, जब देश में आजादी का अमृतकाल चल रहा है।
पढ़े-लिखे युवाओं के सामने रोजगार का संकट है। किसानों की लागत नहीं निकल पा रही है। महंगी शिक्षा के चलते बहुसंख्यक आबादी परेशान है। जंगलों से आदिवासी और वनवासियों को बेदखल करने की कोशिश हो रही है। महिलाओं के प्रति अपराध में बढ़ोतरी हो रही है। दवाई और इलाज का खर्च नागरिकों के बजट से बाहर हो गया है। कुल मिलाकर किसी भी लोकतान्त्रिक देश में कोई भी जिम्मेदार सरकार इन सब सवालों से मुंह नहीं मोड़ सकती।
कामगारों के गिरते जीवन स्तर में सुधार और वृद्धावस्था में तीन हजार रुपये की पेंशन योजना एकबारगी अच्छा कदम प्रतीत हुई थी, लेकिन यह कोरोना की मार और कुछ सालों में कामगारों की उदासीनता से यह नीति निर्माताओं की अदूरदर्शिता का प्रमाण-पात्र बनकर रह गई है। मसलन; महंगाई, रोजगार के घटते विकल्प, कल-कारखानों से असंगठित श्रमिकों की छंटाई, बचत में कमी और काम-धंधे की किल्लत के कारण वे अपने अंशदान के 55 से 200 रुपये में से कुछ भी जमा करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
घर तो चल नहीं रहा, किश्त कैसे भरेंगे?
हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हैं। वाराणसी के मीरघाट निवासी 34 वर्षीय डोम कपिल चौधरी मणिकर्णिका पर शव (चिता) जलाने का काम करते हैं। कपिल जनचौक से कहते हैं कि “बेहताशा मंहगाई और आमदनी के घटने की वजह से परिवार का भरण-पोषण भी मुश्किल से हो रहा है। पूरे शिफ्ट (12 घंटे) में मैं पांच शवों को जलाकर 900 से 1100 रुपये कमाता हूं, जिसमें तीन-चार लोगों का हिस्सा लगता है। इतने पैसे कमाने के लिए छह घंटे से तक इस गर्मी में आग की लपट और ताप सहना पड़ता है। इसी रुपये से दाल, चावल, आटा, मसाला, ईंधन, बच्चे के लिए दूध और बूढ़े मां-बाप के दवा आदि खरीदनी पड़ती है।”
कपिल चौधरी आगे कहते हैं कि “इतनी मेहनत करने के बाद किसी तरह से सात लोगों का पेट तो भर जाता है लेकिन एक रुपये की बचत नहीं हो पाती है। कोई इमरजेंसी होने पर सेठ-साहूकारों से दो-चार हजार रुपये उधर भी लेने पड़ते हैं। अब आप ही बताइये कि कैसे प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना की किश्त भरेंगे? मेरे मोहल्ले में सैकड़ों दिहाड़ी और ‘शवकर्म’ से जुड़े श्रमिक हैं, जिनका आज की तारीख में घर चलाना ही दूभर है। पेंशन की बात तो छोड़ ही दीजिये। वाराणसी श्रम विभाग में 14,53,598 कामगार पंजीकृत हैं। इसमें से महज 15,764 कामगार ही प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना से जुड़े हैं।”
जीवन की बंजर जमीन पर फावड़े चलाने को मजबूर
बहरहाल, यह मजदूरों का ऐसा वर्ग है, जिनके हाथ-पैर जब तक चलते रहते हैं, तब तक स्वयं और परिवार के लिए रोटी-भोजन की व्यवस्था हो पाती है। तमाम जद्दोजहद के बाद भी कामगार अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, दवाई, शादी-विवाह, बचत और दूसरे तरह की सामाजिक जिम्मेदारियों में पिछड़ जाता है। बच्चों की शिक्षा के खर्च और परिवार की जरूरतों के बढ़ने पर वह अपनी सीमित आमदनी के चलते अपनी नई पीढ़ी को शैक्षिक, आर्थिक और राजनैतिक महत्त्व के पायदान पर नहीं पहुंचा पाता है।
नतीजन, अगली पीढ़ी भी भरण-पोषण के लिए मेहनत-मजदूरी और दिहाड़ी की बंजर जमीन पर फावड़े चलाने को बाध्य हो जाती है। इसके बाद से जीवन संघर्ष में जातिवाद का दंश, महंगाई का मायावी बोझ, कुपोषण, नशे के गिरफ्त में चले जाना, उम्र से पहले ही बूढ़ा हो जाना और बीमारी आदि के चलते उनका जीवन स्तर, मानक को छेदते हुए तहस-नहस के कगार पर जा पहुंचता है।
दूसरे दिन जनचौक की टीम चंदौली पहुंची। यूपी के उत्तरी-पूर्वी छोर बिहार राज्य से सटा चंदौली कृषि प्रधान जिला है। चंदौली में रबी और खरीफ सीजन में महिला-पुरुष श्रमिकों को दिहाड़ी मिल पाती है। सीजन के जाते ही श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। पेट पालने और परिवार को जिलाने के लिए यहां से लाखों की तादात में श्रमिकों की ‘पलायन एक्सप्रेस’ दिल्ली, लुधियाना, सूरत, मुंबई, पूणे, जालना, इंदौर, हैदराबाद, बंगलौर, तमिलनाडु की ओर चल पड़ती है।
और टूट गई मानधन योजना की किश्त
ताराजीवनपुर के पचीस वर्षीय पिंटू इन दिनों बरहनी विकासखंड के एक गांव में सीमेंट की ईंट बिछाने का काम करते हुए मिले। पिंटू बताते हैं कि “होली (मार्च) से पहले वे गुड़गांव (गुरुग्राम) की एक फैक्ट्री में 12 घंटे की शिफ्ट में काम करते थे। एक दिन की दिहाड़ी तीन से चार सौ रुपये होती थी। दो घंटा ओवर ड्यूटी करने पर सौ रुपये अधिक मिल जाते थे। जिससे भोजन का खर्च निकल जाता था। मैं अपने गांव से आठ-दस लोगों के साथ वहां गया था। होली पर वापस अपने गांव आ गए, तो वापस नहीं गया।”
पिंटू कहते हैं कि “यहां हम लोग मजदूर के तौर पर गांव और क़स्बे में सीमेंट की ईंट बिछाने, दिहाड़ी और ढुलाई आदि का काम करते हैं। रोड को समतल करने बाद, भक्सी, बजरी, बालू, ईंट को लेवल कर बिछाने के बाद दोनों और सीमेंट से इंटरलॉकिंग करने के बाद प्रति ईंट तीन रुपये मिलते हैं। एक टीम में सात से आठ मजदूर होते हैं। यह काम मेहनत का है, लेकिन अपना श्रम अपने जिले में रहता है और हम लोग अपने जनपद का विकास करते हैं।”
पिंटू बताते हैं कि “आमदनी भी परिश्रम के अनुरूप हो जाती है। कोरोना से पहले मैं भी मानधन योजना के लिए पंजीकरण कराया था, लेकिन 2020-21 में कोरोना का ग्रहण लगा तो काम-धंधा मिलना बंद हो गया। रुपये की व्यवस्था नहीं होने से मानधन योजना की किश्त भी टूट गई।”
कल काम मिलेगा या नहीं?
पिंटू आगे बताते हैं कि “दिक्कत सिर्फ इस बात की है कि बारिश शुरू होने और खेती का काम बंद होने पर हम लोग बेरोजगार हो जाते हैं। इसलिए गुजरात और गुड़गांव जाना पड़ता है। हम लोग जो कमाते हैं, दैनिक जरूरतों में ही ख़त्म हो जाता है, जो कुछ थोड़े रुपये बचते हैं, उसे घर भेजते हैं। इतनी बचत नहीं है कि बैंक या किसी योजना में निवेश करें। कोई जानकारी भी देने वाला नहीं है। दूसरी बात यह कि साल-दो साल रुपये जमा करने होते तो चलो एक बार हो जाता। यहां हम लोगों के लिए कल काम मिलेगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में आप ही बताइये 15-20 साल तक लगातार किश्त कैसे भर पाएंगे?”
यह कहते हुए पिंटू ने लम्बी सांस ली। उनके सहयोगी भी सिर हिलाकर सहमति जताई। चंदौली जनपद में कुल 8,32,278 कामगार श्रम विभाग में पंजीकृत हैं। इसमें से 6,767 श्रमिक ही मानधन योजना से जुड़े हैं।
योजना के बारे में पता नहीं
बिहार के कैमूर-भभुआ के रमेश, वाराणसी के अस्सी घाट पर फेरी कर बच्चों की मिठाई बेचते हैं। शाम तक बमुश्किल से 200-250 रुपये कमा लेते हैं। लेकिन, उनकों मानधन योजना जैसी स्कीम की कोई जानकारी ही नहीं है। वह जनचौक से कहते हैं “मुझे अपने धंधे से फुर्सत नहीं मिलती है। अस्सी घाट पर बच्चों की मिठाई बिक जाती है तो ठीक है। नहीं तो आसपास के मंदिरों और बाजारों में पैदल घूमकर बेचना पड़ता है। बड़ी मुश्किल से 200-250 रुपये एक दिन का कमा पता हूं।”
वो कहते हैं कि “सामने घाट में तीन लोग मिलकर एक कोठरी लिए हैं। फेरी के बाद ठीहे पर जैसे-तैसे भोजन बना पाते हैं। थकान के मारे टूट रहे बदन के बीच सीधे सुबह हो जाती है। फिर फेरी की तैयारी। हम लोगों को ऐसी किसी योजना की जानकारी नहीं है, जिसमें पेंशन का भी प्रावधान हो। हालात ऐसे हैं कि परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है, किश्त कहां से जमा करेंगे?”
कोई स्थाई ठिकाना नहीं
झारखण्ड के मनीष (35) और कुसुम (33) नौबतपुर-परेवां के एक ईंट भट्ठे पर मजदूर हैं। जिनसे प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसी कोई योजना की जानकारी उन्हें नहीं है। अपने नवजात बच्चे को कंधे पर दुपट्टे के सहारे बांधकर ईंट उतारने में जुटीं कुसुम ने कहा कि “हमारे पास बचत ही नहीं है कि योजना में इतने लम्बे समय तक निवेश करें। हम लोगों का कोई स्थाई ठिकाना भी नहीं है, आज इस भट्ठे पर हैं, तो चार-छह महीने बाद कौन जिले में काम की तलाश में जाना होगा मालूम नहीं।”
बहरहाल ये उदाहरण काफी हैं, कि पेंशन योजना में कहां रुकावट आ रही है और किन वजहों से कामगार रूचि नहीं ले रहे हैं।
सरकार भरे किश्त
पत्रकार राजीव सिंह के अनुसार “प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना के शुरू होने के बाद कुछ माह बाद देश में कोरोना की लहर फ़ैल गई। धड़ाधड़ कल-कारखानों के शटर गिरने लगे। इससे लाखों की तादात में मजदूर बेरोजगार हो गए। एक के बाद एक तीन कोरोना की लहर ने देश की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया। उद्योग-धंधों के बंद होने से माल आपूर्ति की चेन लगभग टूट गई।”
राजीव कहते हैं कि “सार्वजनिक खतरे जैसी स्थिति में लंबे समय तक लाखों-करोड़ों मजदूरों के बेरोजगार होने से भूखों मरने जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। कोरोनकाल में काम नहीं होने की वजह से काफी मजदूर मानधन योजना को सुचारू नहीं रख सके। बेहतर होता कि ऐसे मेहनतकश, जिनकी किश्त पैसे की कमी के चलते रुक गई है, उन्हें केंद्र या राज्य सरकार अपने मद से भरपाई कर मजदूरों के खून-पसीने के पैसों को डूबने से बचाना चाहिए।”
अमृतकाल में मूलभूत जरूरतों को तरस रहा मेहनतकश
मानवाधिकार और हाशिए पर पड़े समाज के उत्थान के लिए काम करने वाले बनारस के एक्टविस्ट डॉ. लेनिन कहते हैं कि “मेहनतकश समाज को आज देश के अमृतकाल में दो वक्त की रोटी, तन ढकने के कपड़े और जीवन को इंच-इंच आगे बढ़ाने के लिए लगातार कठोर परिश्रम करना पड़ता है। इसमें भी कई ऐसे हैं, जिनके रोजी-रोजगार की पुख्ता गारंटी नहीं है।”
लेनिन कहते हैं कि “देश में हाशिये पर पड़े करोड़ों लोग, स्मार्ट और आधुनिक समाज के मुंह पर तमाचा हैं। बहरहाल, मानधन योजना तो ठीक थी, लेकिन कोरोनाकाल में मजदूरों के अंशदान को सरकारी कोष से जमा किया जाना चाहिए था। यह भी देखने को मिला है कि देश का पैसा पूंजीपति लेकर विदेश भाग जा रहे हैं। बैंक कर्ज पर कर्ज दिए जा रहे हैं, और कर्ज की राशि माफ़ भी की जा रही है। ऐसे में केंद्र या राज्य के खजाने से मजदूरों के दो-तीन साल की किश्त भी जमा कर दी जाती तो क्या हो जाता?”
मानधन योजना का हो पुनर्मुल्यांकन
डॉ. लेनिन देश में जातिवाद और धर्म के बढ़ते कट्टरपन पर चोट करते हुए आगे कहते हैं कि “देश में आधारभूत और संरचनात्मक विकास मेहनतकश के श्रम से होता है। धर्म को आधार बनाकर राजनीति करने वालों को मजदूर, लाचार और पसमांदा समाज के हित के बारे में सोचना चाहिए। आप जिन्हें तकरीबन दो हजार सालों से दबाते-सताते आ रहे हैं, जब तक उनको जीवन की गारंटी नहीं दीजियेगा। और लोकतांत्रिक देश में उनकी उपेक्षा और उनके अधिकारों को हड़पकर धर्म कैसे बचा लीजियेगा?”
लेनिन कहते हैं कि “कोरोना में रोजगार चले गए और मंहगाई अब भी बेलगाम है। बदली हुई परिस्थिति में मेहनतकश वर्ग टिक नहीं पा रहा है। समय आ गया है कि प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना का पुनर्मूल्यांकन हो। तभी सही मायने में योजना कामगारों के साथ न्याय कर पाएगी। मौका दिए जाने पर यह वर्ग आशा से दोगुना रिजल्ट देता है। समाज में इसके कई उदहारण मौजूद है। बशर्ते की सरकार बेईमानी के दृष्टिकोण से मुक्त होकर काम करे।”
श्रमिकों को किया जाएगा जागरूक
चंदौली के श्रम प्रवर्तन अधिकारी दिलीप कुमार मौर्य ने यह बात स्वीकारते हुए बताया कि “जिले के श्रम विभाग में पंजीकृत कामगारों की संख्या के मुकाबले मानधन योजना में बहुत कम पंजीयन है। इसके लिए प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। श्रमिकों को योजना के प्रति जागरूक किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक जरूरतमंद लाभांवित हो सकें। अब कामगारों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया जाएगा कि यदि वे इस योजना से जुड़ते हैं, समय से निश्चित राशि का भुगतान करते हैं तो साठ साल बाद उन्हें पेंशन मिलेगी।”
मौर्य ने बताया कि “पीएम श्रम योगी मानधन योजना के तहत अठारह वर्षीय कामगार को 55 रुपये प्रतिमाह अंशदान जमा करना है। इसी तरह उन्नीस वर्षीय कामगार को 58 रुपये और चालीस वर्षीय श्रमिक को 200 रुपये प्रतिमाह जमा करने होंगे। योजना में उन श्रमिकों को लाभ मिलेगा, जिनकी आय प्रतिमाह 15000 रुपये अथवा इससे कम हो। साथ ही किसी अन्य पेंशन योजना के तहत वे लाभांवित न हो रहे हो।”
पूर्वांचल के दस जनपदों के आंकड़ों पर एक नजर
जनपद श्रम विभाग में योजना में पंजीकृत फीसदी में पंजीयन
पंजीकृत श्रमिक
वाराणसी 14,53,598 15,764 1.84
चंदौली 8,32,278 6,767 0.81
भदोही 12,23,41 3,856 3.15
बलिया 14,07,567 16,152 1.14
सोनभद्र 11,65,817 6,655 0.57
मिर्जापुर 10,64,323 7,822 0.73
मऊ 10,60,00 3,5000 33.01
आजमगढ़ 19,25,266 13,249 0.69
जौनपुर 21,41,393 11,784 0.55
गाजीपुर 18,20,098 10,343 0.56
उगाही पर आमादा सरकार
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता वैभव कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि “श्रमिक 55 से 200 रुपये मासिक, 15-20 साल लगातार जमा करेगा तो साठ साल बाद तीन हजार रुपये की मासिक पेंशन मिलेगी। आटा 20 से 40, तेल 80 से 200 और अरहर दाल 60 से 160 रुपये प्रति किलो हो गई है। बताइये आज से बीस-पच्चीस साल बाद इस तीन हजार की वैल्यू क्या होगी? हाशिये पर पड़े लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन इस सरकार ने तो इनसे भी उगाही शुरू कर दी है।”
वैभव कहते हैं कि “प्रधानमंत्री जनधन बैंक खाते खोलकर सीधे तौर पर जनता से 100, 200 और 500 रुपये की उगाही कराई गई। इन पैसों से अमीर-पूंजीपतियों को लोन दिया गया। ये पूंजीपति देश छोड़कर भाग गए और बैंकों की भी खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं है। मजदूर और गरीब लोगों के नाम पर छोटी-छोटी योजना चलाकर सरकार हाशिये के लोगों की जेब से रुपया निकलवा रही है। अब जब गरीब आदमी के पास बचत ही नहीं है, तो जमा कैसे करेगा? मानधन योजना में तीन-चार वर्षों में जो, दो लाख लोग घट गए हैं, इन दो लाख कामगारों के कंट्रीब्यूशन की कोई जिम्मेदारी लेने वाला नहीं है। इन श्रमिकों को तो अब कुछ मिलने वाला नहीं।”
पेंशन योजना और लुटेरा साहूकार
कांग्रेस प्रवक्ता वैभव कुमार त्रिपाठी आगे कहते हैं कि “जो योजना बनाने वाले लोग हैं, वे अनुभवहीन हैं। उन्हें इस बात का बिल्कुल ख्याल नहीं है कि आपात स्थिति से कैसे निबटा जाएगा? इस योजना से जुड़े जो श्रमिक हैं, साल-दो साल बेरोजगार रहेंगे तो अपना शेयर कैसे जमा कर पाएंगे? ऐसी स्थिति में सरकार की जिम्मेदारी तय की जानी थी। सरकार, श्रमिकों के शेयर का कंट्रीब्यूशन करती। दूसरी बात कि योजना में इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए था कि जब वे किसी कारणवश ड्रॉप आउट होंगे तो श्रमिकों के लिए क्या विकल्प मुहैया कराये गए हैं? बहरहाल, मानधन योजना को लेकर सरकार का जो रवैया है। वह बिल्कुल एक लुटेरे साहूकार सा प्रतीत हो रहा है।”
कैसे ले सकते हैं योजना का लाभ?
प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन पेंशन योजना में रजिस्ट्रेशन के लिए कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) सेंटर पर जाना होगा। इसके बाद वहां आधार कार्ड और बचत खाता या जनधन खाता जो भी है, उसकी जानकारी देनी होगी। प्रूफ के तौर पर पासबुक, चेकबुक या बैंक स्टेटमेंट दिखा सकते हैं। खाता खोलते समय ही नॉमिनी भी दर्ज करा सकते हैं।
एक बार आपकी डिटेल कंप्यूटर में दर्ज होने के बाद मंथली कांट्रीब्यूशन की जानकारी खुद मिल जाएगी। इसके बाद आपको अपना शुरुआती योगदान कैश के रूप में देना होगा। इसके बाद आपका खाता खुल जाएगा और श्रम योगी कार्ड मिल जाएगा। आप इस योजना की जानकारी 1800 267 6888 टोल फ्री नंबर पर ले सकते हैं।
(वाराणसी और चंदौली से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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