गुरुवार के दिन एआईएमआईएम (AIMIM) चीफ और हैदराबाद सांसद, असदुद्दीन ओवैसी जब अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरे से लौट रहे थे, तो उस दौरान उनके काफिले पर फायरिंग की गई। यह फायरिंग उस दौरान हुई जब ओवैसी प्रदेश के पश्चिमी हिस्से हापुड़ जिले के पिलखुआ से एक सभा को संबोधित करने के बाद नोएडा जा रहे थे। मीडिया के पास इस घटना की सीसीटीवी वीडियो और फुटेज उपलब्ध हैं, जिसमें फायरिंग करने वाले हमलावरों को स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।
वीडियो में असदुद्दीन ओवैसी की गाड़ी छिजारसी टोल प्लाजा से गुजरती नजर आ रही है, तभी लाल रंग की टी-शर्ट में एक लड़का टोल पर खड़ी ओवैसी की गाड़ी के पास से हाथ में कुछ सामान लेकर गुजरता है। एकाएक अचानक से कार पर फायरिंग शुरू हो जाती है। हमलावर ओवैसी की गाड़ी पर फायरिंग करते हैं, और भागने की कोशिश करते हैं लेकिन उससे पहले एक हमलावर गाड़ी के सामने आ जाता है, और गाड़ी की टक्कर लगने से सड़क पर गिर जाता है। फायरिंग की घटना के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने मीडिया से बातचीत करते हुए सिलसिलेवार तरीके से पूरी घटना का बयान किया है। ओवैसी का कहना है कि, “यह एक सोची-समझी साजिश के तहत किया गया हमला है।”
लेकिन यदि पूरे घटनाक्रम को देखें तो तस्वीर कुछ और ही बयां करती है। ओवैसी ने कल इस घटना को लेकर शाम 6 बजे ट्वीट किया था, “कुछ देर पहले छिजारसी टोल गेट पर मेरी गाड़ी पर गोलियां चलाई गयीं, 4 राउंड फ़ायर हुए, 3-4 लोग थे, सब के सब भाग गए और हथियार वहीं छोड़ गए। मेरी गाड़ी पंक्चर हो गई, लेकिन मैं दूसरी गाड़ी में बैठ कर वहां से निकल गया। हम सब महफ़ूज़ हैं। अलहमदुलिलाह।”
इस पूरे घटनाक्रम के बारे में लोगों के मन में कुछ सवाल हैं, जो जायज़ भी हैं। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. महेंद्र सिंह का कहना है कि, “ओवैसी पर किया गया हमला उनकी राजनीतिक विरासत को विस्तार देने का एक विचार मात्र है। इस हमले के जरिए ओवैसी, मुस्लिमों को अपने पक्ष में लाना चाहते हैं, जिससे सपा का खेल खराब हो जाए। लेकिन इस घटनाक्रम का सत्य क्या है, इस बारे में लोगों के बीच में राय काफी अलग-अलग है।
टोल प्लाजा पर जहां कैमरों की सख्त निगरानी होती है, ऐसे में खुलेआम गोली चलाना कोई साधारण घटना नहीं है। रास्ते में हमलावरों को और भी मौके मिल सकते थे, लेकिन कैमरों की निगरानी में भला कौन ऐसा जोखिम उठाएगा! घटना के बाद हमलावरों का सरेंडर कर देना, घटनाक्रम के बारे में शक पैदा करता है। और सबसे अहम सवाल यह है कि, कार पर जब गोली चलायी गई तो गोली के निशान का गाड़ी पर कुछ एंगल बनना चाहिए। लेकिन कार पर फायरिंग के निशान दर्शाते हैं कि, गोली बेहद सूझ-बूझ के साथ चलाई गई है जिससे जान-माल का कोई नुकसान न हो, लेकिन मामला राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में छा जाए।”
तहसील बार एसोसिएशन हसनपुर के पूर्व अध्यक्ष और अधिवक्ता मुजाहिद चौधरी इस घटनाक्रम को ओछी राजनीति बताते हैं। घटना का हवाला देते हुए वे कहते हैं कि, “ओवैसी उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक भविष्य को तलाश रहे हैं, लेकिन इस प्रकार के घटनाक्रम से उनके राजनीतिक करियर को धक्का भी लग सकता है, इसका उन्हें शायद अंदाजा नहीं है। दरअसल ओवैसी इस हमले के जरिए मुस्लिम वोटरों को साधना चाहते हैं, लेकिन मुस्लिम वोटर सब समझते हैं।”
इसी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मेहताब अमरोही का कहना है कि, “इस तरह की घटनाएँ लोकतंत्र के लिय बेहद घातक हैं। भारतीय संस्कृति में चरमपंथ के लीये कोई स्थान नही है। देखने की बात यह है कि इन युवाओं को पथभ्रष्ट कौन कर रहा है? यह हमला ओवैसी पर नहीं, बल्कि पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है। जहां तक सुनियोजित हमले की बात है तो सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए, क्योंकि कल को किसी को भी निशाना बनाया जा सकता है। यह चिंता का विषय है।”
वहीं हापुड़ के छिजारसी टोल पर हुए हमले के मामले में गिरफ्तार आरोपी सचिन के बारे में भी कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। जानकारी के मुताबिक, सचिन शर्मा बादलपुर थानाक्षेत्र के दुरियाई गांव का है। उसके पिता विनोद कंपनियों में मजदूर मुहैया करवाते हैं। गुरुवार की सुबह सचिन घर से किसी काम से जाने की बात कहकर निकला था। रात को जब पुलिस आई तो घरवालों को इस घटना की खबर लगी। सचिन के पिता विनोद खुद इस घटना से अचंभित हैं। उसके पिता को इस घटना पर यकीन ही नहीं हो रहा कि ग्रेजुएशन में पढ़ने वाला उनका बेटा हमलावर बन गया है।
एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने शुक्रवार को कहा है कि, ओवैसी पर हमला करने वाले दोनों आरोपियों के खिलाफ पिलखुवा थाने में एफआईआर (FIR) भी दर्ज हो गई है। इसमें 307 (हत्या की कोशिश) की धारा लगाई गई है। एफआईआर ( FIR) में सचिन शर्मा और शुभम का नाम दर्ज है।
(स्वतंत्र पत्रकार प्रत्यक्ष मिश्रा की रिपोर्ट।)
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