राहुल गांधी के ट्रायल को लेकर उठते सवाल, उल्टी पड़ सकती है बीजेपी की रणनीति?

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शुक्रवार को गुजरात कोर्ट से मिली दो साल की सज़ा के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई । इस घटनाक्रम से कुछ ही घंटे पहले राहुल मल्लिकार्जुन खड़गे के घर दिखे ।

वहां विपक्षी दलों की बैठक थी और बैठक से बाहर आने के बाद राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे को संभालते हुए कहा कि ”अगर मैं आपको छूता भी हूं तो दिखाया जाता है कि मैंने आपकी पीठ पर अपनी नाक पोंछी है।”

राहुल गांधी यह बात बहुत अच्छे से जानते हैं कि वो किस कदर सत्ता में बैठी बीजेपी के आंख की किरकिरी बन गए हैं। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल बीजेपी के पप्पू नैरेटिव को भोंथरा करते रहे और जनता से सीधा संवाद बनाते दिखे।

इस बीच बीजेपी राहुल को लेकर सिलसिलेवार तरीके से हमलावर होती नज़र आई। शुक्रवार को उनकी संसद सदस्यता खारिज कर दी गई। सूरत में साढ़े चार साल पुराने एक केस में उन्हें दो साल की सज़ा सुनाई गई।

हालांकि कांग्रेस गुजरात के इस केस और ट्रायल को लेकर कई सवाल उठा रही है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सिलसिलेवार तरीके से कुछ बातें सामने रखी हैं। जिसमें वो कहते हैं कि पूरा जजमेंट 170 पेजों का है और गुजराती में है, जिसकी पूरी डिटेल्स अभी नहीं मिल पाई है,लेकिन कुछ सवाल हैं जिनको लेकर संशय हैं।  कांग्रेस का कहना है कि

1. मानहानि का अपना मूल सिद्धांत होता है,  किसी स्पष्ट व्यक्ति या किसी स्पष्ट चीज़ के विषय में मानहानि के आरोप लगते हैं। किसी व्यक्ति विशष के विरुद्ध स्पष्टता ना होने पर मानहानि नहीं लगाना चाहिए। ऐसे आरोप जो कि बहुत स्पष्ट नहीं है, बहुत व्यापक हैं और अपने आरोपों में बहुत बड़ी जनसंख्या को लेते हैं तो इसे मानहानि नहीं कहा जा सकता।

2. मानहानि के इस केस में जिस विषय में चुनौती दी गई है, उस वाक्य के बारे में कोई भी शिकायत दर्ज नहीं की गई, जिनके संबंध में वो वाक्य कहा गया।

3. जिनकी उन्हें ही शिकायत करनी होती है और ये बताना होता है कि किस प्रकार  व्यक्ति विशेष के कहने से उनकी मानहानि हुई।

3. जब फौजदारी मुकदमा होता है तो गलत नीति और विद्वेष की भावना सिद्ध करना ज़रूरी होता है। कांग्रेस का कहना है कि कोलार की स्पीच जनहित से जुड़ी है। वो राजनीति के बारे में है। कीमतों की बढ़ोतरी के बारे में है। बेरोज़गारी के बारे में है।कोई नहीं कह सकता कि वो स्पीच द्वेष की भावना, बदमिजाज़ी या Malice से जुड़ा है। यहां सदर्भ एकदम अलग था।

4. कांग्रेस का कहना है कि ये भी चेक करने की ज़रूरत है कि उनके संज्ञान में आया है कि ये मामला चार साल एक मजिस्ट्रेट के समक्ष था। जब तक वो वहां थे यानि अपने पद पर थे, तब वहां याचिकाकर्ता ने ऊपरी कोर्ट जाकर इस मामले में स्टे ले लिया। ये स्टे कई महीने तक रहा।

जब वो शख्स उस ओहदे से हट गए या फिर उनका ट्रांसफर हो गया। तब याचिका जो ऊपरी अदालत में डाली गई थी, उसे वापस ले लिया गया। यानी ये याचिका फिर से निचली अदालत में आ गई। कांग्रेस का कहना है कि वो इस मामले में पूरी प्रक्रिया को देखेगी।

5.कांग्रेस का कहना है कि इस मामले में कानून के प्रावधान 202 का सीधा उल्लंघन हुआ है। दरअसल जब किसी भी घटना की शिकायत कहीं और दर्ज होती है तो मजिस्ट्रेट उसकी शुरूआत करने से जांच करते हैं कि क्या वो अधिकार क्षेत्र में है कि नहीं? कांग्रेस का कहना है कि इस मामले में इसका उल्लंघन हुआ है।

6. कांग्रेस का कहना है कि आरोप सिद्ध करने के बाद सज़ा के लिए अलग से सुनवाई होती है, इस मामले में अलग से सुनवाई हुई जरूर। लेकिन 15-20 मिनट की सुनवाई के बाद अधिकतम सजा दी गई,इसकी पड़ताल हम कर रहे हैं।

कानून के जानकार भी इससे जुड़े कई मसलों पर सवाल उठा रहे हैं। न्यूज़ वेबसाइट द ब्लंट टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक राहुल गांधी का ट्रायल IPC की धारा 499 और 500 के मुताबिक है ही नहीं। सीनियर एडवोकेट जमीर शेख की मानें तो राहुल गांधी का कथन मोदी समुदाय के बारे में था ना कि किसी व्यक्ति विशेष के संबंध में। ऐसे में में IPC के जिन सेक्शन के तहत राहुल गांधी को लेकर जजमेंट और सज़ा का ऐलान दोनों आईपीसी की धारा 499 और 500 के प्रावधानों के साथ मेल नहीं खाते।

दरअसल इस मसले में गुजरात में पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ एक शिकायत दर्ज करवाई गई थी। विवादित कथन 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिया गया था।  

राजनीति के जानकार इस पूरे मसले को भी एक दूसरे नज़रिए ये देख रहे हैं। टेलीग्राफ अखबार के एक ओपिनियन लेख के मुताबिक बीजेपी लगातार एक रणनीति के तहत राहुल गांधी की छवि को लेकर आक्रामक रुख अपना रही है। राहुल गांधी को सज़ा की घोषणा के बाद बीजेपी के पहली पंक्ति के नेताओं के ट्विटर बयान राहुल गांधी को लेकर की गई हमलावर भाषा से पटे पड़े दिखे।

इस तीखे हमले के जरिए बीजेपी दो फायदों पर नज़र रख रही है। पहला वो इसे दो पर्सनैलिटी का संघर्ष बताना चाहती है। गांधी बनाम मोदी। चुनाव में इस तरह की रणनीति से बीजेपी के एजेंडे को फायदा होता है।

अब तक के चुनावी परिणाम ये बताने के लिए काफी हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को सीधे राहुल गांधी से लड़ने में फायदा ही हुआ है। बीजेपी को लगता है कि वो इतिहास को दोहरा सकती है। इसके साथ ही बीजेपी ये भी जानती है कि राहुल गांधी को विपक्षी दलों का अगुवा दिखाकर वो विपक्ष की एकजुटता की हवा निकालना चाहती है।

हालांकि बीजेपी इस बात से बेखबर है कि उसका ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है, इससे राहुल गांधी के उन आरोपों को सत्यता मिल जाती है जो वो देश में निरंकुशता को लेकर मोदी सरकार पर लगा रहे हैं।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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