संपूर्ण क्रांति की तलाश में बेरोजगारी और गरीबी मुक्त भारत आंदोलन के जनक थे राजीव

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छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की राष्ट्रीय टीम, भौतिक विज्ञान के शिक्षक और संपूर्ण क्रांति आंदोलन के प्रमुख साथी राजीव (राजीव हेम केशव) की जब से डायलिसिस होने और बाद में वेंटीलेटर पर होने की खबर मिली तब से ही मैं बहुत चिंतित था। वे डेंगू के इलाज के लिए कई दिनों से अस्पताल में भर्ती थे।

कल जब मुंबई से गुड्डी ने बताया कि पुतुल जी की तबीयत बिगड़ गई है। तब मैंने साथियों से पूछा तो पता चला कि कभी भी, कुछ भी हो सकता है। अंततः आज सुबह चेन्नई पहुंचने पर पता चला कि राजीव जी नहीं रहे। आश्रम से फोन आया तब और विस्तार से अनु ने जानकारी दी।

जब भी मैं लखनऊ जाता था राजीव जी से हजरतगंज में जहां वे कोचिंग क्लास लेते थे, वहां जाकर मिला करता था। तमाम सारे कार्यक्रमों की योजना पिछले कुछ वर्षों में हमने मिलकर बनाई थी। बीच में वे काफी समय मां की सेवा में व्यस्त रहे। कुछ महीने पहले ही उनकी मां का देहांत हुआ है।

लखनऊ में जब आलोक भाई और उषा विश्वकर्मा द्वारा चलाए जाने वाले आश्रम में मेरा आना-जाना शुरू हुआ तब राजीव जी से ज्यादा मुलाकात होने लगी।

लखनऊ में इस बार जब मैं गया, तब मैत्री आश्रम में ही राजीव जी से लंबी बातचीत हुई। असल में उन्होंने देश के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के उद्देश्य से एक पुस्तिका तैयार की थी, जिस पर वे अलग-अलग राज्यों में जाकर चर्चा कर रहे थे।

हमारे बीच यह तय हुआ था कि हरियाणा चुनाव के दौरान तीन चार शहरों में जाकर रोजगार के मुद्दे को चुनावी चर्चा में लाने का प्रयास करने के उद्देश्य से बैठकें करेंगे, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। इसके बाद पुणे के राष्ट्रीय लोकतांत्रिक अभियान के सम्मेलन में उम्मीद थी कि वे मिलेंगे लेकिन वहां भी मुलाकात नहीं हो सकी।

राजीव जी की व्यक्ति के तौर पर जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। अपने मित्रों की मदद के लिए वे सदैव तैयार रहते थे। एक बार मैं लखनऊ आया तब बीमार पड़ गया, उन्होंने मेरा इलाज कराया था।

लखनऊ में आलोक जी के साथ मिलकर उन्होंने जिस आश्रम की कल्पना की, उससे उन्होंने मेरे सहित देश के तमाम लोगों को जोड़ा। आश्रम को संघर्ष और रचना का वैचारिक केंद्र बनाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजीव जी की सृजनशीलता बहुआयामी थी। वे बहुत सुनियोजित तौर पर किसी भी कार्यक्रम या आंदोलन को गढ़ा करते थे। उनकी एक और खूबी यह थी कि वे अपने साथियों से उनकी क्षमता के अनुसार काम लेना जानते थे, वह भी बिना दबाव के स्वेच्छा पूर्वक। वे मृदुभाषी भी बहुत थे।

मुझे दुख है कि मैं उनके अंतिम दर्शन नहीं कर सका।

साथी तेरे सपनों को मंजिल तक पहुंचाएंगे!

(डॉ. सुनीलम किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

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