आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप-मर्डर केस: रस्सा-कस्सी के बीच आशा की कुछ किरणें

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कोलकाता के चिकित्सकों और सरकार के बीच 40 दिनों से चल रही रस्सा-कस्सी का अंत कैसे होगा यह अभी भी समझ नहीं आ रहा है- न सर्वोच्च न्यायालय को, न सरकार को और न ही चिकित्सकों को। सीबीआई ने और समय मांगा, और कोर्ट ने उसे दिया भी है। सीजेआई ने 17 तारीख को कहा, “वे सो नहीं रहे हैं”। पर जूनियर डाक्टरों की ओर से बहस कर रहीं इंदिरा जय सिंह ने कहा कि “चिकित्सक काम पर नहीं जा पा रहे क्योंकि अपराधी वहीं घूम रहे हैं। अभी भी यह दावे के साथ कहा नहीं जा सकता कि आरजी कर के सभी अपराधी गिरफ्त में हैं।”

लोग न्याय की गुहार लगा रहे हैं-अभया के लिये, सबके लिये

कोलकाता के नागरिक भी इस बार अपनी पूरी क्षमता के साथ संघर्ष में शामिल हैं। ध्यान देने लायक बात यह है कि पहली बार मध्यम वर्ग अपने घरों से बाहर सड़कों पर दिन-रात आंदोलनरत है। उसका एक बड़ा हिस्सा चिकित्सकों के धरने पर खाना, पानी और तमाम आवश्यक वस्तुएं पहुंचा रहा है। गरीब चाय वाले और सड़क पर खाद्य सामग्री बेचने वाले समर्थन में आये हैं, और उनकी सेवा कर रहे हैं। ये दृश्य कुछ वैसे ही हैं जैसे हमने किसान आंदोलन और शाहीनबाग आंदोलन में देखे थे। लोग एक-दूसरे के संघर्ष से ही तो सीखते हैं।

आखिर, लोग उस डॉक्टर बेटी के बलात्कार और नृशंस हत्या को लेकर इस कदर आंदोलित हैं, कि लगता है जैसे उसमें वे अपने घर की बेटियों को देख रहे हैं; मध्यम वर्गीय परिवारों को एक ज़बर्दस्त झटका लगा है कि अब उनके घर की बेटियां अपने कार्यस्थल में, जिसे वे अपना दूसरा घर समझती थीं और संस्था के मुखिया को अपने अभिभावक जैसा सम्मान देती थीं, सुरक्षित नहीं रहेंगी। और, यह कि उनके साथ ऐसा क्रूर और जघन्य अपराध कभी भी हो सकता है, तब सरकार उनको सुरक्षा देना तो दूर, क्या अपराधियों की रक्षा करने में अपनी सत्ता को दांव पर लगाने को तैयार दिखेगी?

पर सरकार ने 9 तारीख की कोर्ट सुनवाई के बाद से ही यह नैरेटिव चलाया कि चिकित्सकों को काम पर लौट जाना चाहिये क्योंकि जनता का नुकसान हो रहा है। लोग मर रहे हैं। हमेशा से शासक डिवाइड ऐंड रूल की नीति चलाते रहे हैं। सरकार यह प्रयास करती रही है कि चिकित्सकों और जनता के बीच हितों का टकराव हो जाये, जिससे आरजी कर की घटना पर जारी संघर्ष एक जनउभार की शक्ल न ले, जैसा कि हो गया।

लड़ाई सम्पूर्ण चिकित्सा व्यवस्था के आमूल-चूल परिवर्तन के लिये

चिकित्सकों ने सही ही कहा है कि उनकी लड़ाई सम्पूर्ण चिकित्सा व्यवस्था के आमूल-चूल परिवर्तन के लिये और स्वास्थ सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार व दुराचार को खत्म करने की है। साथ ही मृत महिला चिकित्सक के लिये न्याय की भी है। लम्बे समय बंगाल में रहीं एक महिला प्रोफेसर मित्र का कहना था कि “नेपोटिज़्म तो वामफ्रंट सरकार के समय से चलने लगा था; और इससे भ्रष्टाचार के लिये जगह बनी। फिर ऐंटी इंकम्बेंसी का मुकाबला करके अपनी सत्ता बचाये रखने के लिये बाहुबलियों को पाला गया, जो हिंसा से चुनाव में वाम की जीत को सुनिश्चित करते थे। पर ये व्यवस्था के लिये बोझ बने और उसमें सड़ांध पैदा करने के लिये ज़िम्मेदार थे।”

क्या आज वह सड़ांध और भी कई गुना बढ गयी है, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे अधिक है? चिकित्सा व्यवस्था के भीतर जो सड़ांध पैदा हुई और लम्बे समय से संस्थाबद्ध होती गयी, अभी उसकी ऊपरी सतह पर जो कुछ दिखा है, उसे बदलने में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। पर उसकी तह में जाने से सत्ताधारी हमेशा घबराते रहे हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि बहुत से ऐसे गड़े मुर्दे निकल कर बाहर आ जायेंगे, जो जवाब देने से ज़्यादा सवाल खड़े करेंगे और सत्ता चलाने वालों के लिये शर्मिंदगी का कारण बनेंगे। ज़ाहिर है कि सत्ता समर्थन के बिना आरजी कर जैसी घटनाएं कतई नहीं होती हैं।

पिछली सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के बाद से अब तक घटनाक्रम

पहले हम बात करें सीबीआई की, जो अब तक दो स्टेटस रिपोर्ट तैयार कर सर्वोच्च न्यायालय को 9 सितम्बर और 17 सितम्बर को सौंप चुकी है, और अभी जांच में ही लगी है। 9 तारीख को कोर्ट ने कहा कि क्राइम सीन में तोड़-फोड़ और साक्ष्य नष्ट करना गम्भीर मामले हैं, और सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिये।

जहां तक उनके द्वारा हाल की कार्यवाही के रूप में सामने आया है, वह है

1. संदीप घोष, जिसपर पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोप हैं, को बलात्कार व हत्या के मामले में साक्ष्य नष्ट करने और प्राथमिकी 14 घंटे बाद दर्ज़ कराने के मामले में आरोपी बनाया गया है (इसे कोर्ट ने गम्भीरता से लिया था)।

2. ताला पुलिस थाने के ओसी अभिषेक मंडल को भी गिरफ्तार किया गया है। इन दोनों के बीच क्या मिलीभगत रही, जिसकी वजह से घोष ने मंडल को फोन करके 10.10 बजे अस्पताल बुलाया, फिर भी प्राथमिकी दर्ज़ करने को नहीं कहा, सीबीआई के अनुसार इसकी जांच करना बाकी है। अब तक इनपर साक्ष्य नष्ट करने, अपराध स्थल में गड़बड़ी करने, साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने, सरकारी नियमों का उल्लंघन करने, आपराधिक षडयंत्र रचने और जांचकर्ताओं को गुमराह करने के आरोप हैं, जिन्हें पुष्ट करने के बाद उपयुक्त धाराएं जोड़ी जायेंगी।

3. 9 तारीख की सुनवाई के बाद सीबीआई वकील रामबाबू कनौजिया ने अलिपुर में सीबीआई की विशेष अदालत को बताया था कि संदीप घोष व अन्य तीन लोग- बिप्लब सिंघा, अस्पताल विक्रेता; सुमन हाज़रा, अस्पताल विक्रेता; अफसर अली, सुरक्षा गार्ड, एक बड़े नेक्सस का हिस्सा हैं, जो गैर कानूनी वित्तीय लेन-देन में लिप्त हैं और आरजी कर अस्पताल में पैसे के बदले लाभ दिलाते हैं। इनपर भारतीय न्याय संहिता की धाराएं 420, 318(4), 338, 340(2), 61(2), भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7 लगाई गयी हैं, जो धोखाधड़ी, साक्ष्य नष्ट करने, दस्तावेज़ फोर्ज करने, ओरिजिनल दस्तावेज़ों का गैरकानूनी उपयोग करने, 2022-2023 में आरजी कर में धन का गबन करने, 84 अवैध नियुक्तियां और अपराधिक षडयंत्र से संबंधित हैं।

संदीप की वकील मीनाक्षी अरोड़ा का कहना था कि संदीप घोष के नाम को बलात्कार और हत्या के मामले से जोड़ना सरासर नाइंसाफी है। उन्होंने केस सीबीआई को सौंपने का भी विरोध किया। पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह कहना गलत है, क्योंकि घटना जब हुई, संदीप घोष ही प्रिंसिपल के पद पर थे। एक आरोपी होने के नाते उनकी कोई हैसियत नहीं है कि वह उच्च न्यायालय की इस केस को सीबीआई को सौंपने का विरोध करें।

4. सीबीआई ने पोस्ट मार्टम टीम से पूछताछ की है कि क्या हमला करने वालों में एक से ज़्यादा लोग हैं? क्योंकि 16 बाहरी और नौ अंदरूनी चोटें थीं। अभी तक यह पता नहीं चला कि बेटी का हिप बोन टूटा था या नहीं। फोरेंसिक मेडिसिन के प्रमुख आरजी कर की अपूर्वा बिस्वास के नेतृत्व में 3 सदस्यीय पोस्टमार्टम टीम बनी थी। न्यायिक मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में पोस्ट मार्टम की वीडियोग्राफी की गई। सीबीआई को वीडियो सौंपा गया। पर सवाल है कि सारी प्रक्रिया अपने ही अस्पताल में, अपने ही लोगों से क्यों कराई गयी? फोरेंसिक जांच एक्स्पर्ट भी अपने अस्पताल से ही क्यों बुलाये गये? इससे स्पष्ट हो जाता है कि दाल में कुछ काला है।

संजय राय के दांत काटने के नमूने फोरेंसिक लैब भेजे गए। एम्स में फोरेंसिक जांच हो रही है। सीबीआई ने संदीप की हिरासत का समय 3 दिन बढ़ा दिया था।

मृतक बेटी के माता पिता ने कहा कि पोस्ट मार्टम सूर्यास्त के बाद किया गया, जो कानूनन गलत है। प्राथमिकी दर्ज़ करने से पहले सामान जब्त किया गया, यह भी गलत है। पोस्ट मार्टम के समय बेटी के कपड़े शव के साथ नहीं भेजे गये और चालान नहीं भरा गया। सीज़र लिस्ट में कपड़ों की बात लिखी है, पर पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में वे “गायब” बताये गये हैं। इस पर कोर्ट ने भी सिब्बल से प्रश्न किया पर वे निरुत्तर थे। इससे पता चलता है कि जांच प्रक्रिया ही कितनी दोषपूर्ण है और धीमी भी।

वार्ता करने में सरकार ने बहुत देर की

कोर्ट ने डाक्टरों को 10 तारीख शाम तक काम पर लौटने को कहा था। और यह भी कि न जाने पर वह उन्हें अनुशासनात्मक कार्यवाही से नहीं बचा सकेगी। पर वे वापस नहीं लौटे। नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के एक इंटर्न ने कहा, “हमें डर नहीं है। वे हमारा वजीफा रोक सकते हैं।”

उन्होंने 5 मांगें रखी थीं जिन्हें न मानने पर वे आंदोलन बंद नहीं करेंगे, इसकी सार्वजनिक घोषणा भी कर दी।

जूनियर डाक्टरों की 5 मांगें

1. कोलकाता पुलिस आयुक्त विनीत गोयल, राज्य स्वास्थ्य सचिव, स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक, डीएमई और स्वास्थ्य सेवा निदेशक, डीएचएस का निलम्बन।

2. सभी दोषियों की पहचान और उनकी गिरफ्तारी। अपराध के उद्देश्य पर स्पष्ट बयान।

3. संदीप घोष के खिलाफ कार्रवाई।

4. सभी डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

5. सभी मेडिकल कॉलेजों में भय के राज का अंत।

सरकार की ओर से कुछ कार्यवाही हुई। मसलन- तापश घोष, डीन, छात्र कल्याण बीएमसीएच (बर्धवान) को हटाया गया; बिरुपाक्ष बिस्वास, पैथोलॉजी विभाग को निलंबित किया गया (दोनों ने डॉक्टरों और छात्रों को धमकाया था) और 9 छात्रों, 5 इंटर्न, 2 जूनियर और 2 सीनियर रेजिडेंट्स को जांच के अलावा परिसर में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाया गया। नूपुर घोष, प्रसूति विभाग का भी तबादला किया गया। पर इसके क्या आधार हैं, यह पता नहीं चलता। सभी सरकारी अस्पतालों में रोगी कल्याण समितियों को भंग किया गया। उनके बदले अब नयी समितियां बनेंगी, जो प्रिंसिपल की अध्यक्षता में होगी और जिसमें सीनियर, जूनियर डाक्टर, नर्स, पुलिस के अधिकारी और अन्य होंगे।

पर यह अब तक किसी को स्पष्ट नहीं हुआ कि वार्ता करने में सरकार की ओर से इतने लम्बे समय तक क्यों हिचकिचाहट रही? आखिर स्वास्थ्य विभाग के कार्यकलापों में ऐसा क्या था, जिसे छिपाने की ज़रूरत थी? क्या ममता जी, जो स्वयं स्वास्थ्य मंत्री हैं, स्वास्थ्य विभाग के लोगों के बारे में बहुत कुछ नहीं जानतीं, जैसा उनका कहना है- “आई डोंट नो दीज़ पीपल”। यह मान पाना मुश्किल लगता है, क्योंकि वह कोई साधारण महिला नहीं है।

उन्होंने सीपीएम की 3 दशक पुरानी सरकार को हटा दिया था और भाजपा की लाख कोशिशों के बावजूद उसे अपने राज्य में ताकत बनने नहीं दिया। वह तो अपने राज्य का चप्पा-चप्पा जानती हैं। क्या कुछ तत्वों को, जिनको उन्होंने अपने फायदे के लिये पहले काफी छूट दी और भ्रष्ट बनने के अवसर दिये, वे उनके हाथ से निकल गये और अपना सम्राज्य बना चुके हैं? क्या उनपर ममता का कंट्रोल ही नहीं रह गया है और वे फ्रैंकेनस्टाइन बन चुके हैं? क्या स्वास्थ्य सचिव ऐसी कुछ बातें जानता है जिन्हें छिपाने के लिये उसे पद पर बनाये रखना ज़रूरी है?

सांख्यिकी में एक थियोरी है स्टापिंग टाइम की। इसमें बताया जाता है कि किसी भी जारी प्रक्रिया में एक ऐसा समय आता है जब आपको आगे उसे चलाना बंद कर देना होता है; इस समय को पार करने के बाद आपके लाभ घटने लगते हैं। हर राजनीतिज्ञ को भी इससे गुज़रना पड़ता है। क्या ममता ने इस समय के आंकलन मे गलती कर दी है और भाजपा को प। बंगाल में अपने पैर पसारने का एक अच्छा मौका दे दिया है? यह तो समय ही बतायेगा।

कुछ लोगों का कहना है कि बंगाल के स्वास्थ्य व्यवस्था में नार्थ बेंगाल सिंडिकेट काफी मज़बूत माफिया शक्ति है, जिसके भीतर तक भ्रष्टाचार पैठा हुआ है और वह एक वैकल्पिक अर्थतंत्र का स्वामी भी है। क्या ममता उसको छेड़ना नहीं चाहतीं? क्योंकि यदि वह भाजपा की ओर चला जाता है, ममता को बुरी तरह क्षति पहुंचा सकता है। इसलिये वार्ता करने का फैसला लेने में एक माह से अधिक लग गये। उसके बाद भी लगातार चिकित्सकों की एक-एक मांग को लेकर मोल-तोल होता रहा।

11 सितम्बर को ममता ने एक बार इमोशनल अपील की। उन्होंने कहा कि उन्हें कुर्सी नहीं चाहिए। उन्हें मुख्यमंत्री पद नहीं चाहिए। उन्हें केवल तिलोत्तमा के लिए न्याय चाहिए। वह इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने लोगों से माफ़ी मांगी और कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि “आज यह मुद्दा खत्म हो जाएगा”।

13 सितम्बर को फिर बयान आया “सुप्रीम कोर्ट ने समय सीमा दी थी। कहा कि राज्य उसके बाद कार्रवाई कर सकता है। हम कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं (अहसान!)। सहन करना हमारा कर्तव्य है। मैंने अपने शीर्ष अधिकारियों के साथ 3 दिनों तक इंतज़ार किया। मुझे खेद है। मैं बंगाल के लोगों से माफ़ी मांगती हूं। जो लोग नबान्न आए और बात नहीं किये, मैं उनसे काम पर लौटने की अपील करती हूं। मरीजों की देखभाल करें”

“हमने बातचीत के लिए 15 डॉक्टरों को आमंत्रित किया, लेकिन 34 आए। हमने उन्हें अनुमति दी, लेकिन वे अंदर नहीं आए। कुछ सहमत हैं, लेकिन कुछ को बाहर से निर्देश मिल रहे हैं। वे सत्ता बदलना चाहते हैं (बीजेपी)। वे लाइवस्ट्रीमिंग चाहते हैं। इसकी अनुमति नहीं दे सकती, मामला सबजुडिस है। काम बंद होने के कारण 27 मरीज़ों की मौत हो गई है और 7 लाख लोगों को इलाज से वंचित होना पड़ा है।” ममता ने मृतकों में से प्रत्येक को 2 लाख रुपये का सांकेतिक मुआवजा देने की घोषणा भी की।

डॉक्टरों की बात

डाक्टर बोले, “हमें उनकी कुर्सी नहीं चाहिए, पर स्वास्थ्य सचिव द्वारा ईमेल लिखवाकर चिकत्सकों को अपमानित किया गया। स्वास्थ्य भवन तक बुलाया गया पर संख्या को 10 तक सीमित करने को कहा गया, फिर बढ़ाकर 15 किया गया। यह भी हमारा अपमान है।”

उधर चिकित्सकों ने 40 प्रतिनिधियों को लाने की बात कही थी (प। बंगाल में 26+9=35 मेडिकल कालेज व अस्पताल हैं) जब इसपर सहमति बनी तो लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति न देने की बात पर मामला दूसरी बार अटक गया। बाद में ममता एक मास्टरस्ट्रोक में अचानक धरनास्थल पर आ गयीं। उन्होंने कहा कि यह आखिरी अपील है… बतौर मुख्यमंत्री नहीं…एक दीदी के रूप में। वह बोलीं, “मैं आपके संघर्ष का सम्मान करता हूँ, मैं भी छात्र आंदोलनों से निकली हूँ। मैं किसी डॉक्टर पर कोई कार्यवाही नहीं करूँगी, आपकी समस्याओं का समाधान करूँगी, लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा।”

मीडिया ने कहा-यह पहली बार है कि कोई सीएम आंदोलनकारियों से बात करने गयी हो। पर यह ममता का बड़प्पन नहीं, आंदोलन की ताकत का असर था। चिकित्सकों ने इस पहल का स्वागत किया। पर तीसरी बार भी वार्ता लाइवस्ट्रीमिंग के सवल पर अटक गयी। डाक्टरों ने जब मिनिट्स लेने पर सहमति दी तो कहा गया कि देर हो चुकी है। फिर हताशा ही हाथ लगी।

कई लोगों को (जो विपक्ष के साथ हैं) मानते हैं कि आंदोलन भाजपा के समर्थन से चल रहा है, या उसे मजबूत कर रहा है। जबकि ऐसा शुरू से नहीं रहा है। डाक्टरों और महिला आंदोलनकारियों ने भाजपा समर्थित युवा आंदोलन और बाद में बंगाल बंद तथा ब्लाक स्तरीय आंदोलन की आलोचना की है और उससे दूरी बनाये रखा।

फिर भी घोर निराशा के एक क्षण में जूनियर डॉक्टर्स ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की। यह मुख्यमंत्री (13/9) के साथ बातचीत को खारिज करने के बाद हुआ। डाक्टरों ने उपराष्ट्रपति धनखड़ और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को भी पत्र लिखा। यह स्पष्ट नहीं है कि वे हस्तक्षेप की मांग से वे क्या हासिल करना चाहते थे, क्योंकि केस सर्वोच्च अदालत में था। साथ ही, सीबीआई जांच भी चल रही है। क्या वे चाहते थे कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन का भय दिखाकर ममता पर दबाव बनाये? क्या वे कोई केंद्रिय कानून की मांग करना चाहते थे? मीडिया में कुछ साफ-साफ नहीं लिखा गया।

“वाम और राम” एक नहीं

वाम दल और उसके जन संगठनों ने अलग से पुलिस आयुक्त विनीत गोयल के इस्तीफे की मांग को लेकर लालबाजार तक मार्च निकाला। भारी बैरिकेडिंग के कारण वे आगे न जाकर पूरी रात धरने पर बैठे रहे। टीएमसी के पूर्व सांसद कुणाल घोष ने कहा कि कुछ वामपंथी और अति वामपंथी ताकतें डॉक्टरों के नबान्न से लौटने पर उन पर हमला करने और सरकार और टीएमसी को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं।

उन्होंने एक ऑडियो क्लिप भी जारी किया, जिसमें ऐसी योजना पर चर्चा की जा रही है। इस ऑडियो के सिलसिले में संजीव दास और डीवाईएफआई नेता कलतान दासगुप्ता को गिरफ्तार किया गया है। कलतान को उच्च न्यायालय से जमानत मिली है। उच्च न्यायालय ने सरकार को फटकार भी लगायी, कि आगे उसकी गिरफ्तारी हो तो अदालत से अनुमति लेनी होगी। आखिर कुणाल के ऑडियो क्लिप की जांच के बिना गिरफ्तारी क्यों हुई?

रिक्लेम द नाइट मूवमेंट की प्रेस कॉन्फ्रेंस, सीजेआई को पत्र

4 सितम्बर को महिलाओं, ट्रांस और क्वीयर लोगों ने देशव्यापी प्रतिवाद दिवस मनाया था। 14 अगस्त से ठीक एक महीने बाद 14 सितम्बर को रिक्लेम द नाइट मूवमेंट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा कि भाजपा को आरजी कर बलात्कार का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है। वह बलात्कार की संस्कृति को लगातार बढ़ावा देती रही है। सीजेआई को देश भर से 1000 से अधिक हस्ताक्षरों के साथ खुला पत्र भी भेजा गया।

महिला-ट्रांस-क्वीयर लोगों का विरोध- आह्वान!

“आर जी कर में हुए जघन्य बलात्कार और हत्या की घटना को अभी तक न्याय नहीं मिला है। कुछ दोषियों को केवल गिरफ्तार किया गया है, न तो दोषी ठहराया गया है और न ही सजा सुनाई गई है। इस मामले में शामिल अन्य लोगों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है, उनके नाम भी सामने नहीं आए हैं। हालांकि, जन आंदोलन ने प्रशासन को मजबूर कर दिया है और कुछ घटनाक्रम हुआ हैं। फिर भी, लड़ाई जारी रहेगी। हम ‘त्योहारों के आह्वान’ से विचलित नहीं होंगे।“ उनका बयान था-सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सिंडिकेट राज को उखाड़ फेंकना होगा।

हम सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं और सभी हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए दिन-रात समान अधिकारों की मांग करते हैं।
हम कार्यस्थलों और समाज में महिलाओं, ट्रांस और क्वीयर के लिए बराबर सम्मान की मांग करते हैं। हम नियंत्रण और निगरानी को अस्वीकार करते हैं। रेप की संस्कृति को जड़ से खत्म करना होगा, जिसके लिये अधिक लोकतांत्रिक माहौल की ज़रूरत है।

विनती न करो, अधिकार की मांग करो

शनिवार, 15/9 को मार्च हुए। वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों, इंजीनियरों ने (करीब 500) कॉलेज स्क्वायर से न्यू मार्केट तक मार्च किया। सांस्कृतिक हस्तियों, फोटोग्राफरों, कलाकारों ने भी कॉलेज स्ट्रीट से श्यामबाजार तक मार्च किया। कोलकाता आंदोलनों का शहर बन गया है। रिमझिम सिन्हा, जिन्होंने रिक्लेम द नाईट मूवमेंट का आह्वान किया था, बोलीं, “हमें रात में आंदोलन को जारी रखना चाहिए, क्योंकि कई श्रमिकों की आजीविका त्यौहार के मौसम पर निर्भर करती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए।

रविवार को महारैली निकाली गयी; नारा था “आर्जी नोय, दाबि कोर” करुणामयी से स्वास्थ्य भवन तक इस प्रभावशाली रैली में जूनियर डॉक्टरों के साथ मानवता का सागर दिखायी पड़ा।

आंदोलन की आंशिक जीत

आंदोलन के दबाव में विनीत गोयल पुलिस आयुक्त, कोलकाता; डीसीपी (उत्तर), अभिषेक गुप्ता; डीएमई, देबाशीष हलधर; डीएचएस कौस्तव नायक का तबादला हुआ। पर अभी तक तबादले के कारण नहीं बताए गये। ममता के साथ 2 घंटे की बैठक सकारात्मक रही। राज्य सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का प्रस्ताव रखा, जिसमें स्वास्थ्य सचिव, डीजीपी, कोलकाता सीपी और जूनियर डॉक्टरों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, जो कॉलेज और अस्पताल परिसर की सुरक्षा और संरक्षा की जांच करेंगे। सभी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों का सुरक्षा ऑडिट किया जाएगा।

बुनियादी ढांचे, सीसीटीवी, रेस्ट रूम, शौचालय आदि के लिए 100 करोड़ अनुदान दिया गया। डॉक्टर बिरादरी से प्रतिनिधित्व के साथ प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र बनाने की बात हुई। विशिष्ट फॉर्मूलेशन (लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित छात्र संघ) के माध्यम से आगे के विचार-विमर्श के बाद धमकी संस्कृति को हटाया जा सकता है, यह माना गया। पर अब तक ग्राउंड पर बहुत कम काम हुआ है।

सीज़ वर्क के लिये सज़ा नहीं

17 तारीख को सीजेआई ने जोर देकर कहा कि जो छात्र मेडिकल में आते हैं, वे बहुत कम उम्र के होते हैं। उनकी सुरक्षा अत्यंत ज़रूरी है। यह ठेके पर काम करने वालों के बल पर नहीं हो सकता जिन्हें केवल 7 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाने वाला है। इसलिये रात्रिर साथी (रात के साथी, इस सरकारी व्यवस्था में रात में काम करने वाली महिला डॉक्टर्स के साथ महिला वोलेंटियर रहेगी) से इस अध्याय को हटाया जाये। बाकायदा पुलिस फोर्स की नियुक्ति हो।

सीजेआई ने पश्चिम बंगाल सरकार से यह भी कहा, “आप यह नहीं कह सकते कि महिला डॉक्टर रात में काम नहीं कर सकतीं, आपकी ड्यूटी सुरक्षा प्रदान करना है”। सुप्रीम कोर्ट ने चिकित्सकों के कार्य पर लौटने को उनके सुरक्षा के एहसास के साथ जोड़ा और उसपर हार्ड लाइन नहीं ली। पर काम पर लौटने को कहा।

जूनियर चिकित्सकों ने 20 सितम्बर को स्वास्थ्य भवन पर चल रहे धरने को ख़त्म कर दिया है। वे सीजीओ कॉम्प्लेक्स (सीबीआई ऑफिस) तक जुलूस लेकर गए और अगले 21 सितंबर, यानि शनिवार से इमर्जेंसी व एसेंशियल सर्विसेज के काम शुरू कर दिये हैं। वे ओपीडी में नहीं जायेंगे।

इस फ़ैसले की घोषणा करते हुए चिकित्सक बोले, “लोगों ने आन्दोलन के दौरान हमें बहुत प्यार दिया, इन दिनों वो (बाढ़ से) परेशानी में हैं तो अब वो प्यार लौटाने की बारी हमारी है”। बंगाल में कई इलाकों में बाढ़ की वजह से हालात बहुत ख़राब हैं। इस कारण यह फ़ैसला लिया गया है।

आंदोलन जारी रहेगा
पर आंदोलन खत्म नहीं हुआ है। इस बार बंगाल में आर-पार की लड़ाई है-अभी नहीं तो कभी नहीं का मूड है। एक सप्ताह के भीतर सरकार की ओर से ठोस कदम न दिखाई दिये तो चिकित्सक पुन: आंदोलन को नए रूप में चलाने के लिये कमर कसे हुए हैं। महिला, ट्रांस व क्वीयर भी रात सड़कों पर होंगे। जनता के बीच नई जागरूकता पैदा करने के लिये रात्रि चर्चा चलायेंगे। पश्चिम बंगाल में बलात्कार, हिंसा और सीनाजोरी की संस्कृति के विरुद्ध, आज़ादी और लोकतंत्र के लिये दीर्घकालिक संघर्ष का बिगुल बज चुका है।

(कुमुदिनी पति महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं)

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