Friday, April 19, 2024

बहुजन समाज की सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देकर ही RSS-BJP को हराया जा सकता है: बहुसंख्यक बुद्धिजीवी सम्मेलन  

देश में आरएसएस के बढ़ते वर्चस्व और भाजपा द्वारा बहुजन राजनीतिक पार्टियों के अस्तित्व को खत्म करने के आक्रामक अभियान के बीच बहुसंख्यक बुद्धिजीवी गोलमेज सम्मेलन हुआ। इस कार्यक्रम में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए बुद्धिजीवियों ने शिरकत की। कार्यक्रम में बहुजन समाज के बुद्धिजीवी, नेता,लेखक, प्रोफेसर, शोधार्थी और एक्टिविस्टों ने हिस्सेदारी की।

साल 2024 में होने वाले चुनाव के मुख्य केंद्र में रखते हुए गोलमेज सम्मेलन की थीम “बहुजनवादी, समाजवादी, राजनीति के 2014, 2017, 2019, 2022 में लगातार हो रही हार के कारणों एवं समाधानों पर विमर्श और परिचर्चा” रखी गई। 

बहुजन पार्टियों की लगातार हार पर चर्चा

इस सम्मेलन में सबसे अधिक चर्चा बहुजन पार्टियों की लगातार हार और भाजपा के बढ़ते विस्तार पर हुई। साल 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अच्छे प्रदर्शन के बाद भी हार के कारणों और बहुजन समाजवादी पार्टी का पत्ता  पूरी तरह से साफ हो जाना भी गंभीर चर्चा बिषय बना।

इसके अलावा कई और मुद्दों पर भी विचार-विमर्श हुआ

  • राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र के अभाव
  • 2024 लोकसभा चुनाव में सभी विपक्षी  पार्टियों को एक साथ चुनाव लड़ने के लिए महागठबंधन करना
  • समाजवादी और बहुजनवादी पार्टियों में भाई-भतीजावाद का चलन
  • लंबे समय तक पार्टियों के अध्यक्ष का न बदलना
  •   ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण 
  • अतिपिछड़ी जातियों का एक बड़ा वोट बैंक भाजपा की तरफ जाना
  • अतिपिछड़ी जातियों के विशेष मुद्दे 

गोलमेज सम्मेलन में आए कुछ लोगों ने एक स्वर में यह बात मानी कि कुछ गंभीर कमजोरियां विपक्षी पार्टियों में है। जिसके कारण आज आरएसएस और भाजपा इतनी तेजी से बढ़ रही है।

पूर्व सांसद संजय सिंह चौहान ने यह सवाल उठाया कि आखिर क्यों अंबेडकरवादी और समाजवादी विचारधारा की पार्टियां कट्टरपंथी हिंदूवादी पार्टी के सामने टिक नहीं पा रही हैं। 2024 के चुनाव में क्या होगा। अगर दोबारा से आरएसएस-भाजपा की सरकार आती है तो क्या लोकतंत्र बचा रह पाएगा? इस पर मंथन करने की जरूरत है। उन्होंने आरक्षण का जिक्र करते हुए कहा कि भाजपा दलित- पिछड़ों के खिलाफ है। जिसका नतीजा है कि मात्र 24 घंटे के अंदर सरकार ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण संवैधानिक प्रथा से परे हटकर पास कर दिया था।

उन्होंने कहा भाजपा ने पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों में बिखराब पैदा कर अपने चंगुल में लिया है। यह सच में चिंता का विषय है। जिस हिसाब से दलित, पिछड़ी जातियां भाजपा की तरफ बढ़ रही हैं, यह आने वाले समय के लिए खतरे की घंटी हैं। इसलिए सभी दलित,पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को इनके खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना होगा। तभी 2024 में इसका कोई हल निकल सकता है।

सम्मेलन में शामिल हुए ज्यादातर लोगों ने दलित, पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों में आरएसएस के बढ़ते प्रभाव पर भी मंथन भी किया। जिसमें बार-बार यही बात कही गई कि इतनी बड़ी ताकत से लड़ने के लिए सबसे पहले सभी जातियों को एक साथ आना होगा। दूसरा विपक्षी पार्टियों को जमीनी स्तर पर काम करना होगा। पीछे छूट गई जातियों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना होगा। यहां तक की बड़ी प्रतिष्ठित पार्टियों में लंबे समय से चले आर रही श्रेणीबद्धता को तोड़ना होगा।

साल 2025 में आरएसएस की स्थापना को 100 साल पूरे होने वाले हैं। इससे पहले हिंदूवादी संगठन देश में हिंदुत्व के परचम को और मजबूत करने की तैयारी में हैं। हिंदू राष्ट्र बनाने की लगातार बात कही जा रही है। आरएसएस का यह सारा काम दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के बिना पूरा हो पाना मुश्किल है।

इसलिए आरएसएस ने मार्च में हुई अपनी शीर्ष निकाय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की सालाना बैठक में साल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जाति के मुद्दे पर जोर देने का निर्णय लिया है। जिसके लिए एक साल तक जातिगत भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाने का फैसला किया है। जिसमें मुख्य तौर पर छुआछूत से लड़ने, सभी को मंदिरों में प्रवेश दिलाने, श्मशान घाट तक सभी जातियों के लोगों की पहुंच, शादियों में मेलजोल बढ़ाने, एक साथ बैठकर खाना खिलाने पर जैसे मुद्दों पर काम किया जाएगा।

रविवार को बहुसंख्यक गोलमेज सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने एक तरफ भाजपा और आरएसएस के बढ़ते प्रभाव पर तो बातचीत की और दूसरी ओर बहुजन पार्टियों की कमजोरियों और गलतियों पर भी चर्चा की।

पूर्व आईएएस तपेंद्र प्रसाद शाक्य ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमें सबसे पहले अपने बीच में भी बदलाव करना होगा। अगर हम बदलाव नहीं करेंगे तो आरएसएस ऐसे ही हमारा फायदा उठाता रहेगा। आज दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियां आपस में ही लड़ रही हैं। हमें सबसे पहले इसे ही खत्म करना होगा। सभी जातियों को साथ आना होगा।

बहुजन राजनीति पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि अगर हमें  बदलाव चाहिए तो पहले पार्टियों में बदलाव लाना सबसे जरूरी है। पार्टियों में सभी जातियों का प्रतिनिधित्व होना जरूरी है। पार्टियों को अध्यक्षों में बदलाव होना चाहिए। लंबे समय तक पार्टियों में एक ही जाति, एक ही परिवार का सदस्य अध्यक्ष या अन्य पद पर बना रहता है। जिस जाति की पार्टी होती है उसी के लोग हर काम में आगे हो जाते हैं। वह कहते हैं अगर यही स्थिति रही तो भाजपा और आरएसएस पर फतह पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए हमें अगर साल 2024 में बदलाव चाहिए तो नारों से नहीं जमीन पर उतकर काम करना होगा। 

( पूना मसीह जनचौक में रिपोर्टर हैं।)

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