Sunday, March 26, 2023

आरएसएस के मिटाए से न मिट सकेगा जलियाँवाला बाग

यूसुफ किरमानी
Follow us:

ज़रूर पढ़े

जलियाँवाला बाग को ज़्यादा खूबसूरत बनाने के नाम पर उन निशानियों को मिटाया जा रहा है जिसकी वजह से 1919 में हुए खूनी जनसंहार को आज तक याद रखा गया। प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार 29 अगस्त को इसके नए स्वरूप का दिल्ली में बैठकर उद्घाटन किया। ग्लोबल एंड इंपीरियल हिस्ट्री के प्रोफ़ेसर किम ए. वैगनर ने इस पर एतराज जताया है। इसके अलावा देश में भी प्रबुद्ध लोगों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है।

jaliya2

अमृतसर का जलियाँवाला बाग भारत के लोगों के दिलो दिमाग़ पर छाया हुआ है। इससे पहले यहाँ जब जब भी जीर्णोद्धार का काम हुआ, इस बात का हमेशा ख़्याल रखा गया कि जलियाँवाला बाग के मूल चरित्र में कोई बदलाव नहीं आए।

jaliya3

इस बार वहाँ जो जीर्णोद्धार का काम हुआ, उसकी आड़ में उस रास्ते की निशानी को ख़त्म कर दिया गया, जिस पतली गली से जनरल डायर उस जगह घुसा और निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाने का आदेश दिया था। अब उस पतली गली को सजाकर उसमें महिला-पुरुषों की कलाकृति लगा दी गई है और ज़बरदस्त लाइटिंग कर दी गई है। आने वाली पीढ़ी के लोग जब कभी जलियाँवाला बाग आएँगे तो उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं होगा कि इस रास्ते से कभी जनरल डायर गुजरा था और उसने वो ख़ूँख़ार आदेश जारी किया था। लोगों के लिए वो कलाकृतियाँ होंगी जिसे तेज रोशनी में निहारते हुए लोग आगे बढ़ जाएँगे।

jaliya4

अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक़ जलियाँवाला बाग के नए स्वरूप का काम पीडब्ल्यूडी की देखरेख में हुआ, जिसका देश के गौरवशाली इतिहास से लेनादेना नहीं है। आमतौर पर अभी तक भारतीय पुरातत्व विभाग ऐसे काम कराता रहा है लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि पीडब्ल्यूडी से एक राष्ट्रीय हेरिटेज साइट का काम कराया गया है।

jaliya5

इतिहासकार किम ए. वैगनर का कहना है कि जलियाँवाला बाग के मूल स्वरूप से पहले भी छेड़छाड़ हुई है लेकिन ऐसी कोशिश नहीं हुई कि उसके मूल चरित्र को ही मिटा दिया जाए। अपनी किताब जलियाँवाला बाग में उन्होंने कभी लिखा था कि भारत जब आज़ाद हुआ तो इस जगह इसके मूल रूप में रखा जाना चाहिए था लेकिन जगह को खूबसूरत बनाने के चक्कर में छेड़छाड़ होती रही। अब जो हुआ वह मुझे स्तब्ध कर गया है।

jaliya6

यूके पंजाब हेरिटेज एसोसिएशन के फ़ाउंडर अमनदीप मादरा ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के पत्र की प्रति साझा करते हुए कहा है कि शुक्र है ऐसी घटनाएँ ऐसे पत्रों के ज़रिए सुरक्षित रहेंगी, बेशक अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान को जलियाँवाला बाग से क्यों न मिटा दिया जाए। इतिहास ने दर्ज किया है कि 1919 में अमृतसर की इस घटना के विरोध में टैगोर ने वायसराय को अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का वह पत्र आज भी सुरक्षित है और जलियाँवाला बाग में अंग्रेजों की हरकत बताने के लिए काफ़ी है।

jaliya7

आरएसएस के लोगों पर अंग्रेजों की मुखबिरी के आरोप प्रमाण सहित सामने आ चुके हैं। लोग सोशल मीडिया पर सवाल पूछ रहे हैं कि क्या आरएसएस ने अंग्रेजों से कोई गुप्त समझौता किया था जिसमें जनरल डायर के पाप धोने का वादा किया गया था? याद रखिए, एक दिन यही संघी रणनीतिकार भगत सिंह की शहादत की निशानियों को भी मिटा देंगे।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest News

गांधी जी की मानहानि करने के जुर्म में जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को अदालत कब सजा देगी: डा.सुनीलम

जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने 23 मार्च को ग्वालियर में शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव...

सम्बंधित ख़बरें