लोकसभा और विधानसभाओं में SC/ST आरक्षण की अवधि बढ़ाने की संवैधानिकता जांचेगा सुप्रीम कोर्ट, 21 नवंबर को सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के लिए दिए जा रहे आरक्षण को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई के लिए 21 नवंबर की तारीख तय की है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ संविधान (104वें) संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता पर फैसला करेगी, जिसके तहत एससी/एसटी के लिए राजनीतिक आरक्षण को दस साल के लिए और बढ़ा दिया गया है।

इसके साथ ही पीठ ने साफ किया है कि वह पहले के संशोधनों के माध्यम से एससी/एसटी आरक्षण के लिए दिए गए पिछले विस्तार की वैधता पर विचार नहीं करेगा। मामले में कुछ मुद्दे तय किए गए हैं- जिसमें 1. क्या संविधान (104वां संशोधन) अधिनियम 2019 असंवैधानिक है? 2. क्या अनुच्छेद 334 के तहत आरक्षण की अवधि की समाप्ति के लिए निर्धारित अवधि को बढ़ाने के लिए संशोधन की घटक शक्तियों का प्रयोग संवैधानिक रूप से वैध है? पीठ ने साफ किया कि तैयार किया गया दूसरा मुद्दा, संविधान में 104वें संशोधन से पहले किए गए संशोधनों की वैधता पर असर नहीं डालेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “104वें संशोधन की वैधता इस सीमा तक निर्धारित की जाएगी कि यह एससी और एसटी पर लागू होता है, क्योंकि एंग्लो इंडियंस के लिए आरक्षण संविधान के प्रारंभ से 70 वर्षों की समाप्ति पर समाप्त हो गया है।” इसके अलावा, पीठ ने मामले के कॉज-टाइटल बदलकर “In Re: संविधान के अनुच्छेद 334” कर दिया। दस्तावेजों का सामान्य संकलन 17 अक्टूबर 2023 को या उससे पहले दाखिल किया जाएगा। लिखित प्रस्तुतियां 7 नवंबर 2023 को या उससे पहले दाखिल की जाएंगी। सुनवाई 21 नवंबर 2023 को सूचीबद्ध की जाएगी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी आर्यमा सुंदरम ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या संशोधनों ने संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए कि क्या प्रतिनिधित्व की कमी के संबंध में कोई मात्रात्मक डेटा था जो संशोधनों को उचित ठहराता हो; अन्यथा, संशोधन “स्पष्ट मनमानी” के दोष से ग्रस्त होंगे।

सुंदरम में तर्कों पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि “आप कह रहे हैं कि एक समुदाय के लिए सीटें आरक्षित करना दूसरे समुदाय को उससे वंचित कर देता है और इस प्रकार यह बुनियादी ढांचे के खिलाफ है।”

संविधान के अनुच्छेद 334 में प्रावधान है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एससी/एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षण संविधान के प्रारंभ से दस साल बाद, यानी 1960 से प्रभावी नहीं होगा। आरक्षण की अवधि को दस वर्ष तक और बढ़ाने के लिए प्रावधान में समय-समय पर संशोधन किया गया है। ये याचिकाएं वर्ष 2000 में संविधान (79वें) संशोधन अधिनियम, 1999 को चुनौती देते हुए दायर की गई थीं, जिसने अनुच्छेद 334 के प्रावधान में “संविधान के प्रारंभ से 50 वर्ष” शब्द को “संविधान के प्रारंभ से 60 वर्ष” के साथ प्रतिस्थापित करके राजनीतिक आरक्षण को अगले दस वर्षों के लिए बढ़ा दिया था।

सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने 2003 में इस मामले को 5 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया। 2009 में संसद ने छठी बार अनुच्छेद 334 में संशोधन किया और एससी/एसटी और एंग्लो-इंडियन समुदायों के लिए आरक्षण को अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया।

2019 में संविधान में 104वां संशोधन किया गया और इसने “70 वर्ष” शब्द को “80 वर्ष” से प्रतिस्थापित करके लोकसभा और विधानसभाओं में एससी-एसटी सीटों को समाप्त करने की समय सीमा को दस साल तक बढ़ा दिया। इस संशोधन ने इसकी अवधि न बढ़ाकर एंग्लो इंडियंस के लिए आरक्षण को भी समाप्त कर दिया।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।) 

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