न्यूज़क्लिक पर लगे सनसनीखेज आरोप और उनका सच

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न्यूज़ आउटलेट न्यूज़क्लिक के संस्थापक एवं संपादक, प्रबीर पुरकायस्थ पिछले कई महीनों से जेल के सीखचों के पीछे हैं। कल 30 अप्रैल को उनके बारे में दो खबरें देखने को मिलीं। इसमें एक थी सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस बी।आर गवई और संदीप मेहता की पीठ के द्वारा दिल्ली पुलिस के द्वारा प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और अगले ही दिन 6 बजे तड़के ही मजिस्ट्रेट के सामने पेशी के पीछे की मंशा को लेकर प्रश्न।

दूसरी खबर, दिल्ली पुलिस के हवाले से है, और इसमें चौंकाने वाले दावे पेश किये गये हैं। पहली खबर पर तो दो-तीन प्रतिष्ठित समाचारपत्रों ने खबर चलाई है, लेकिन दूसरी खबर पर तो देश का मीडिया नमक-मिर्च लगाकर आज इसे सबसे प्रमुखता से दिखा रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि आपने एक दिन पहले ही शाम 5 बजकर 45 मिनट पर पुरकायस्थ को गिरफ्तार किया, और अगले दिन सुबह 6 बजे ही उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया। आपके सामने पूरा दिन पड़ा था। आपने उनके बचाव के लिए उनके वकील को सूचित करना भी जरुरी नहीं समझा? इस हड़बड़ी की क्या वजह है?

लेकिन आज किसी भी राष्ट्रीय न्यूज़ मीडिया में हमें सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिल्ली पुलिस को लगाई गई फटकार की खबर देखने-पढ़ने को नहीं मिलेगी। असल में हमारे सामने प्रतिदिन सैकड़ों खबरें आकर गुजरती रहती हैं। बहुत सी खबरों का हमारे रोजमर्रा के जीवन से कोई संबंध नहीं होता। इनमें से कई खबरें तो सिर्फ इसलिए प्लांट की जाती हैं, जिससे हमारे अंदर भय, आशंका और अनिश्चितता को पैदा किया जा सके। देश के खिलाफ किसी अदृश्य साजिश की बू आये और हमारे भीतर के देशप्रेम को आसानी से भयादोहन कर राजनीतिक स्वार्थ साधा जा सके। ऐसा नहीं है कि यह इसी दौर में हो रहा है। इससे पहले भी देश ने देखा है कि किस प्रकार 80 के दशक में पंजाब समस्या को खड़ा किया गया और बाद में देश की एकता और अखंडता की रक्षा के नाम पर तबकी  एकमात्र सशक्त नेता इंदिरा गांधी के हाथों को मजबूती प्रदान करने के लिए इस भय का इस्तेमाल किया गया।

2024 भी इसका अपवाद नहीं है। आज किसी एक समस्या से नहीं बल्कि नाना प्रकार की कुचेष्टाओं से इसी बात को साबित करने का प्रयास जारी है कि इस देश का भला सिर्फ एक ही आदमी सबसे अच्छे से कर सकता है। देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए कश्मीर से लेकर छत्तीसगढ़ में हमारे जवान ऑपरेशन चलाये जा रहे हैं, जिनका आम चुनाव के बाद शायद ही दोहराव देखने को मिले। फिलवक्त, कांग्रेस के घोषणापत्र से भाजपा और उसके शीर्षस्थ नेतृत्व को मुस्लिम लीग की बू आ रही है और  साथ ही माओवादियों के एजेंडे की महक भी। ये दोनों चीजें बड़े ही सधे अंदाज में चल रही हैं, और कथित राष्ट्रीय मीडिया दिन-रात इस एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। 

लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि फिलहाल दो चरण के चुनावों के बाद भी आम मतदाता गुमसुम बना हुआ है। मतदान केंद्र पर पहली बार वोटर बने मतदाता ने अपना उत्साह नहीं दिखाया है, जिसके नतीजे भारत के नीति-नियंताओं को बेहद चिंता में डाल रहे हैं। इसी कड़ी में झोले से एक और तोहफा न्यूज़क्लिक का भी है, जिसे समझने के लिए यदि सिलसिलेवार नहीं समझा गया, तो आम पाठक के लिए तय कर पाना बेहद मुश्किल है कि असल में माजरा क्या है?

न्यूज़क्लिक मामले पर एक संक्षिप्त परिचय 

मामला यह है कि पिछले वर्ष 3 अक्टूबर को न्यूज़क्लिक नामक एक न्यूज़ वेबसाइट, जिसका मुख्यालय दक्षिणी दिल्ली में है, के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती को दिल्ली पुलिस द न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के आधार पर हिरासत में ले लेती है। उनके खिलाफ यूएपीए के तहत धाराएं लगाई जाती हैं। द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि एक अमेरिकी मूल के नागरिक और व्यवसायी नेविल रॉय सिंघम ने न्यूज़क्लिक को मनी लांड्रिंग के माध्यम से करोड़ों रूपये मुहैया कराए। इसके एवज में न्यूज़क्लिक ने कथित तौर पर चीन के समर्थन में अपनी वेबसाइट का इस्तेमाल कर भारत विरोधी खबरें चलाईं। चीन की कोविड नीति का समर्थन किया और भारत में कोविड-19 महामारी पर सरकार की नीति की आलोचना की। यही नहीं भारत के नक्शे से कश्मीर को गायब कर भारत विरोधी मुहिम को चलाने का काम किया। बता दें कि नेविल रॉय सिंघम मूलतः श्रीलंका के हैं, और फिलहाल अमेरिकी नागरिक हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से चीन में रहकर अपने व्यापार और समाजवाद के प्रचार-प्रसार के अभियान में सक्रिय हैं। 

इन आरोपों को आधार बनाकर भारत में न्यूज़क्लिक पर कार्रवाई की गई। इसके साथ देश के कई प्रतिष्ठित पत्रकार भी जुड़े थे, और दिल्ली पुलिस उनके घरों में पूछताछ के लिए गई और घंटों थाने में रखकर तफ्तीश की गई। न्यूज़क्लिक के बैंक अकाउंट को सीज किया हुआ है। लेकिन एक सवाल उठता है कि जिस अमेरिकी अखबार की एक रिपोर्ट का सहारा लेकर भारत के एक मीडिया संस्थान को ही लगभग पूरी तरह से पंगु बना दिया गया है, उसी अमेरिका ने अपने नागरिक नेविल रॉय सिंघम के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई करने की पहले क्यों नहीं की?

बहरहाल, हम वापस लौटते हैं और देखते हैं कि दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की अदालत के सामने वे कौन से साक्ष्य पेश किये हैं, जिसके आधार पर आज कथित राष्ट्रीय मीडिया इस मुद्दे को तूल देने पर आमादा है? 

विभिन्न मीडिया स्रोतों से जानकारी मिल रही है कि दिल्ली पुलिस ने लगभग 8,000 पेज की अपनी पूरक चार्जशीट में अब ऐसे सुबूत पेश किये हैं, जो बेहद चौंकाने वाले हैं। चार्जशीट में दावा किया गया है कि न्यूज़क्लिक के 5 स्टाफ ने पुलिस को इस बारे में गवाही दी है कि इस फंडिंग का इस्तेमाल लश्कर आतंकी संगठन को फंड करने से लेकर 2020 में दिल्ली के शाहीन बाग़ में हुए एंटी-सीएए प्रोटेस्ट को सफल बनाने में इस्तेमाल किया गया था। 

इस पूरक चार्जशीट को दिल्ली पुलिस ने इसी माह के पूर्वार्ध में अदालत को सौंप दिया था, लेकिन कल मंगलवार के दिन अदालत ने इसका संज्ञान लिया। अब इस पर सुनवाई 31 मई को होनी है। ध्यान रहे, इस तारीख तक दिल्ली में सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका होगा। 

इस चार्जशीट में 207 गवाहों के नामों का उल्लेख है, जिसमें से 8 लोगों के नामों को पुलिस ने संरक्षण दिया हुआ है। दिल्ली पुलिस के अनुसार, इनमें से 5 न्यूज़क्लिक से जुड़े हैं जबकि तीन का संबंध इस मामले से है। न्यूज़क्लिक के एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती के बारे में पहले ही यह खबर थी कि उन्होंने सरकारी गवाह बनना कुबूल कर लिया है, इसलिए उनके बयान को भी प्रमुखता दी जानी तय है। सरकारी गवाह बन जाने के बाद अमित चक्रवर्ती को अदालत ने क्षमादान दे दिया था, और दिल्ली पुलिस के मुताबिक अब वे इस मामले में गवाह हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।

द इंडियन एक्सप्रेस, द प्रिंट और एनडीटीवी सहित तमाम मीडिया संस्थानों के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में आरोप लगाया है कि प्रबीर पुरकायस्थ ने एंटी-सीएए/एनआरसी प्रोटेस्ट के दौरान न सिर्फ न्यूज़क्लिक के माध्यम से भ्रामक अभियान चलाने का काम किया था, बल्कि उन्होंने दंगाइयों के बीच पैसे बांटने के लिए अपने कर्मचारियों का इस्तेमाल तक किया। इन दंगाइयों में से कुछ को पहले ही यूएपीए के विभिन्न मामलों में गिरफ्तार किया जा चुका है। इन गवाहों की पहचान को सुरक्षित रखते हुए दिल्ली पुलिस ने उनके हवाले से दावा किया है कि सीएए आंदोलन के दौरान पुरकायस्थ ने मुस्लिम समुदाय को भड़काने के लिए अपने कर्मचारियों को घटनास्थल पर जाने के निर्देश दिए थे, ताकि हिंसा और दंगा भड़क सके। दंगाइयों के बीच धन वितरण के लिए उनके द्वारा अपने कर्मचारियों को पैसे दिए गये थे। 

इन आरोपों पर न्यूज़क्लिक ने अपने वेबपेज पर विस्तार से खंडन किया है। लेकिन उसकी शिकायत यह है कि मामला अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद मीडिया ट्रायल जारी है और तमाम मीडिया संस्थान दिल्ली पुलिस की चार्जशीट को लेकर अपने मन-मुताबिक निष्कर्ष निकाल रही हैं, जबकि इनमें से अधिकांश ने न्यूज़क्लिक का जवाब जानने की जहमत तक नहीं उठाई है। न्यूज़क्लिक की ओर इसे इस नई चार्जशीट पर कहा गया है कि उसके और प्रबीर पुरकायस्थ के खिलाफ लगाये गये आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और उनका किसी प्रकार की आतंकी कार्रवाई से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा है और न ही इसका कोई सुबूत ही किसी के पास है। न्यूज़क्लिक का साफ़ मानना है कि कल 30 अप्रैल को पहली बार अदालत ने चार्जशीट का संज्ञान लिया, और इसी दौरान अदालती कार्रवाई को प्रभावित करने और जनसाधारण में पूर्वाग्रह को कैसे स्थापित किया जाये, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने चार्जशीट को चुनिंदा तरीके से मीडिया में लीक कराने का काम किया है। चार्जशीट में जो भी आरोप लगाये गये हैं वे जांच अधिकारी की अपनी सोच से अधिक कुछ नहीं है, जिसे अदालत में पूरी ताकत के साथ चुनौती दी जायेगी।  

दिल्ली पुलिस की नई चार्जशीट में लगाये गये आरोप और न्यूज़क्लिक का जवाब 

चार्जशीट में एक गवाह के हवाले से दावा किया गया है कि प्रबीर, चक्रवर्ती और न्यूज़क्लिक के कुछ अन्य सदस्य का धुर मार्क्सवादी और माओवादी विचारधारा रही है। इन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से पैसा मिलता है, इस बारे में मुझे जानकारी मिली।  

इसके जवाब में न्यूज़क्लिक का दावा है कि प्रबीर पिछले 50 वर्षों से भी अधिक समय से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी से जुड़े रहे हैं। ऐसे में उनके माओवादियों या लश्करे तैयबा जैसे किसी भी संगठन या उससे जुड़े व्यक्ति को वित्तीय या किसी भी प्रकार की मदद का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। उनकी अब तक की राजनीतिक गतिविधियां और दृष्टिकोण सार्वजनिक जीवन में पहले से ही एक खुली किताब की तरह है। 

चार्जशीट में एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से न्यूज़क्लिक पर यह भी आरोप लगाया गया है कि सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शन के दौरान पुरकायस्थ ने एक कर्मी को शाहीन बाग जाकर शर्जील इमाम और उसके सहयोगियों को पैसे देने का निर्देश दिया था, ताकि उनका विरोध प्रदर्शन जारी रह सके। इस पैसे से वे लोग हथियार और अन्य सामान खरीदकर हिंसा और दंगा फैला सकते थे। इसी प्रकार के आरोप चांद बाग़ और किसान आंदोलन को लेकर भी लगाये गये हैं और कहा गया है कि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के विरोध प्रदर्शन को न्यूज़क्लिक के द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई। 

इस पर न्यूज़क्लिक का कहना है कि अन्य मीडिया संगठनों की तरह हमने भी देश में चलने वाले सभी प्रमुख घटनाक्रमों को कवर करने का काम किया है, जिसमें किसानों का विरोध प्रदर्शन और एंटी सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शन भी शामिल है। हमारे पत्रकारों का सारा काम सार्वजनिक जीवन में सबके सामने है। न्यूज़क्लिक या पुरकायस्थ ने इन विरोध प्रदर्शनों के लिए न कोई धन दिया और न ही दंगा भड़काने में कोई मदद की है। 

चार्जशीट में पुरकायस्थ पर इस बात के भी आरोप लगे हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान उनके द्वारा ऐसे लेख और वीडियो जारी किये गये हैं, जिनमें भारत के द्वारा निर्मित टीके के बारे में कमियां निकाली गई हैं, जबकि चीनी वैक्सीन को भारतीय वैक्सीन से बेहतर बताया गया है। 

इसके जवाब में न्यूज़क्लिक ने अपनी सफाई में कहा है कि कोविड-19 महामारी के दौरान न्यूज़क्लिक ने इस पर विभिन्न हलकों से विशेषज्ञों के साथ चर्चा की और लेख प्रकाशित किये थे। इस सभी में एक साझा बिंदु यह था कि कैसे महामारी के प्रबंधन को कैसे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ बेहद सुरक्षित एवं सर्वसुलभ सार्वभौमिक टीकाकरण को संभव बनाया जा सकता है। प्रबीर पुरकायस्थ पिछले कई दशकों से उन विभिन्न विज्ञान एवं तकनीकी समूहों के हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र हमेशा स्वदेशी उत्पादन क्षमता को मजबूत कर आत्म-निर्भरता की वकालत की है। उन्होंने इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स की बाधाओं के खिलाफ अपनी बात रखी है, जो टीकों को गरीबों की पहुंच से दूर रखने का काम करती आई हैं। इन सभी तथ्यों को न्यूज़क्लिक के अनेकों लेखों और वीडियोज में देखा और परखा जा सकता है। 

एक अन्य गवाह के हवाले से आरोप है कि उसने प्रबीर को यह कहते सुना था कि भारत के मानचित्र से कश्मीर को हटाने से कश्मीरी युवाओं को भड़काने में मदद मिलेगी, और मैंने उन्हें यह कहते हुए भी सुना था कि वे विभिन्न आतंकी गुटों के संपर्क में हैं। एक बार तो मैंने देखा था कि दो-तीन कश्मीरी न्यूज़क्लिक के कार्यालय आये थे, जिन्हें अमित ने प्रबीर के निर्देश पर नोटों से भरा बैग सौंपा था। इस पैसे का मकसद लश्कर के आतंकियों को हिंसा फैलाने और अन्य आतंकी गतिविधियों को जारी रखने के लिए किया गया था। 

इन आरोपों को सिरे से नकारते हुए न्यूज़क्लिक का कहना है कि ये सारे आरोप पूरी तरह से निराधार हैं पूरी तरह से झूठे हैं। हमारा लश्कर या ऐसे किसी भी आतंकी संगठन की किसी भी आतंकी कार्रवाई से कभी कोई संबंध नहीं रहा है और न ही इसका कोई सुबूत ही किसी के पास मौजूद है। न्यूज़क्लिक के कार्यालय में आतंकवादियों को नोटों का बैग सौंपने को वे अदालत में चुनौती देने जा रहे हैं। उनका साफ़ मानना है कि कल 30 अप्रैल को पहली बार अदालत ने चार्जशीट पर संज्ञान लिया, और इसी दौरान अदालती कार्रवाई को प्रभावित करने और जनसाधारण में पूर्वाग्रह को कैसे स्थापित किया जाये, के मकसद से दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने चार्जशीट को चुनिंदा तरीके से मीडिया में लीक कराने का काम किया है। चार्जशीट में जो भी आरोप लगाये गये हैं उसे जांच अधिकारी के ख्याली पुलाव से अधिक तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए, जिसे अदालत में पूरी ताकत के साथ चुनौती दी जायेगी।जहां तक मानचित्र का प्रश्न है, न्यूज़क्लिक के मुताबिक, हमने अपने सभी न्यूज़ बुलेटिनों और लेखों में नियम के मुताबिक ही मानचित्रों का उपयोग किया है। हमारे सभी काम को सार्वजनिक क्षेत्र में आज भी देखा जा सकता है। 

दिल्ली पुलिस की 8,000 पेज की चार्जशीट और 8 संरक्षित गवाहों के आधार पर न्यूज़क्लिक पर जो घमासान देखने को मिल रहा है, उसका आधार तो असल में द न्यूयॉर्क टाइम्स का वह लेख ही है। ऐसे तमाम लेखों को हम अमेरिका और यूरोप के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपते देखते हैं, जिनका जोरदार खंडन हमारा विदेश मंत्रालय आजकल हर सप्ताह करता है। असल बात तो यह है कि इससे पहले भी दो-दो बार न्यूज़क्लिक के दफ्तर और पुरकायस्थ के निजी आवास पर आयकर छापा मार चुकी है, और एक-एक हिसाब का ब्यौरा उनके पास मौजूद था। जब सारे कागजात और सॉफ्टवेयर पहले ही जांच के दायरे में थे, और न्यूज़क्लिक का मामला अदालत में था तो एक विदेशी अखबार के लेख पर इतनी बड़ी कार्रवाई और अब 8,000 पेज की चार्जशीट से क्या साबित होने जा रहा है? शायद लंबे समय तक इससे एक नैरेटिव को खड़ा करने में मदद मिल सके, कि जो हमारी विवेकसम्मत आलोचना आज भी जारी रखें हैं, उनका हश्र इसी प्रकार होने जा रहा है। सावधान, यहां हमीं सच हैं और जो इसे नहीं मानेंगे, वे सोच भी नहीं सकते कि उनके खिलाफ क्या-क्या आरोप मढ़े जा सकते हैं?

(रविंद्र पटवाल लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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