प. बंगाल के अधिकारियों के खिलाफ लोकसभा विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही पर रोक

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (19 फरवरी) को पश्चिम बंगाल राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और तीन अन्य अधिकारियों के खिलाफ 13 और 14 फरवरी को संदेशखाली क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन के दौरान उनके खिलाफ कथित दुर्व्यवहार को लेकर भाजपा सांसद सुकांत मजूमदार द्वारा दायर शिकायत पर शुरू की गई लोकसभा विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही पर रोक लगा दी।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने भगवती प्रसाद गोपालिका आईएएस (डब्ल्यूबी के मुख्य सचिव), शरद कुमार द्विवेदी आईएएस (जिला मजिस्ट्रेट, उत्तर 24 परगना जिला), राजीव कुमार आईपीएस (डब्ल्यूबी डीजीपी), डॉ. हुसैन मेहेदी रहमान आईपीएस (पुलिस अधीक्षक, बशीरहाट, उत्तर 24 परगना जिला) और पार्थ घोष (अतिरिक्त एसपी, बशीरहाट, उत्तर 24 परगना जिला) द्वारा दायर रिट याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया।

याचिकाकर्ताओं द्वारा तत्काल सुनवाई की मांग के बाद पीठ ने सुबह 10.30 बजे इसे पहले आइटम के रूप में लिया। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अधिकारियों को आज सुबह 10.30 बजे लोकसभा विशेषाधिकार समिति के सामने पेश होने के लिए कहा गया है।

वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि संदेशखाली क्षेत्र में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत कर्फ्यू लगाया गया था और कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए डॉ. मजूमदार और भाजपा समर्थक इस क्षेत्र में एकत्र हुए। उन्होंने कहा कि डॉ. मजूमदार की पुलिस अत्याचार की शिकायत झूठी है क्योंकि वीडियो से पता चल रहा है कि पार्टी कार्यकर्ताओं ने पुलिस अधिकारियों पर हमला किया।

याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया कानूनी मुद्दा यह है कि संसदीय विशेषाधिकार राजनीतिक गतिविधियों तक विस्तारित नहीं होंगे और लोकसभा सचिवालय ने अधिकारियों को नोटिस जारी करके अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर काम किया है। उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव, डीजीपी और जिला मजिस्ट्रेट जैसे अधिकारी भी कार्यक्रम स्थल पर मौजूद नहीं थे। वकीलों ने कहा कि डॉ. मजूमदार द्वारा 15 फरवरी को लोकसभा अध्यक्ष को भेजी गई शिकायत पर तेजी से कार्यवाही शुरू की गई है और अधिकारियों को आज पेश होने के लिए समन जारी किया गया है।

सिब्बल ने दलील दिया कि किसी सदस्य को विशेषाधिकार तभी उपलब्ध होते हैं, जब सदन में भाग लेने के दौरान संसद सदस्य के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में बाधा उत्पन्न होती है। विशेषाधिकार तब उपलब्ध नहीं होता है जब वह किसी संसदीय कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा हो। यह राजनीतिक गतिविधि के लिए उपलब्ध नहीं है। आप वहां (संदेशखाली) जाते हैं, 144 के आदेश का उल्लंघन करते हैं और फिर शिकायत करते हैं कि यह विशेषाधिकार का उल्लंघन है!

सिंघवी ने कहा कि विशेषाधिकार एक सांसद के रूप में आपके काम की रक्षा के लिए हैं। अन्यथा, हर मामले में विशेषाधिकार का उल्लंघन होगा, किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

चीफ जस्टिस ने पूछा “विशेषाधिकारों का उल्लंघन इसलिए है क्योंकि उनका आरोप है कि संसद सदस्य घायल हो गए?”

सिंघवी ने कहा, “वीडियो में दिखाया गया है कि वह पुलिस की गाड़ी के बोनट पर कूदता है। भाजपा में उसके सहयोगी उसे खींचते हैं। पुलिस उसे अस्पताल ले जाती है।”

उन्होंने विशेषाधिकार हनन की शिकायत पर झारखंड के एसपी को लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी समन पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के 2020 के आदेश का हवाला दिया। राजा रामपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया गया।

सिब्बल ने कहा, “किसी भी मामले में, विशेषाधिकार राजनीतिक गतिविधियों पर लागू नहीं हो सकते।”

लोकसभा सचिवालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवाशीष भरूखा ने पीठ को सूचित किया कि अधिकारियों को “आरोपी” के रूप में नहीं बुलाया गया है और नोटिस केवल तथ्यों का पता लगाने और सबूत प्राप्त करने के लिए था। वकील ने बताया कि अध्यक्ष ने नियमानुसार डॉ. मजूमदार की शिकायत विशेषाधिकार समिति को भेज दी।

भरूखा ने कहा, “एक बार जब विशेषाधिकार समिति को नोटिस मिलता है, तो वह उन लोगों को बुलाती है जो मौखिक साक्ष्य के प्रयोजनों के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं। यह पहला चरण है। यह पहली बैठक है। यह एक प्रारंभिक चरण है।” सिंघवी ने तब कहा कि यह अधिकार क्षेत्र की अंतर्निहित कमी का मुद्दा था।

पीठ ने रिट याचिका पर 4 सप्ताह के भीतर वापसी योग्य नोटिस जारी करते हुए राज्य के अधिकारियों के खिलाफ लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी नोटिस के अनुसरण में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी।

कोर्ट ने आदेश में कहा, “15 फरवरी 2024 के कार्यालय ज्ञापन के अनुसरण में आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी।”

डॉ. मजूमदार ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि उनके खिलाफ लाठीचार्ज किया गया था और जब वह बोनट पर थे तो पुलिस वाहन को जानबूझकर स्टार्ट किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वह गिर गए। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि पुलिस ने जानबूझकर उन्हें उचित चिकित्सा उपचार देने में देरी की।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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