Friday, March 29, 2024

सुशांत केसः सीबीआई जांच शुरू होते ही प्लांट की जाने लगीं खबरें

दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों टिप्पणी की थी कि पुलिस जनता की राय बनाने के लिए मीडिया का सहारा नहीं ले सकती है। अनजाने में ही दिल्ली हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी से पुलिस ही नहीं बल्कि सीबीआई और एनआईए जैसी जांच एजेंसियों की जांच की कार्यप्रणाली की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। अब सुशांत सिंह मामले में सीबीआई ने यह खेल फिर शुरू किया है ताकि देश भर को लगे कि हत्यारा या आत्महत्या के लिए उकसाने वाला बस पकड़ में आने ही वाला है।

मसलन बिना अधिकारिक बयान या स्रोत के आज 22 अगस्त को मीडिया में खबर प्लांट हुई है कि सुशांत केस में सीबीआई को शक है कि पोस्टमॉर्टम या तो सही तरीके से नहीं हुआ, या रिपोर्ट गड़बड़ है। इसमें यह भी दावा किया गया है कि सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई की जांच तेज हो गई है।

सुशांत का पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर और एक्सपर्ट की टीम से सीबीआई के अफसर पूछताछ करेंगे। कहा गया है, “बताया जा रहा है कि सीबीआई, मुंबई पुलिस से भी पोस्टमॉर्टम को लेकर सवाल-जवाब करेगी। मुंबई पुलिस से सीबीआई पूछेगी कि उन्होंने दूसरे डॉक्टर या एक्सपर्ट से क्यों नहीं संपर्क किया। विशेषज्ञों द्वारा सीबीआई को बताया गया है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मृत्यु के समय जैसी महत्वपूर्ण जानकारी का उल्लेख नहीं किया गया है।”

वास्तविकता में सुशांत सिंह जैसे ओपन एंड शट मामले में सीबीआई क्या सुशांत सिंह के परिजनों के मनोनुकूल रिपोर्ट दे पाएगी इस पर बहुत बड़ा प्रश्नचिंह है, क्योंकि कई बहुचर्चित लेकिन ब्लाईंड मामलों में सीबीआई जांच का रिपोर्ट कार्ड ऋणात्मक रहा है। मसलन महाराष्ट्र में अंधविश्वास का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की हत्या का मामला है।

कोर्ट द्वारा कई बार फटकार लगाए जाने के बाद भी सीबीआई इस मामले में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। सात साल पहले 20 अगस्त के दिन गोली मारकर दाभोलकर की हत्या कर दी गई थी। सुशांत सिंह प्रकरण की जांच सीबीआई को दिए जाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार ने ट्वीट किया, “आशा करता हूं, इस जांच का अंजाम नरेंद्र दाभोलकर हत्या मामले जैसा नहीं होगा।”

इसी तरह सीबीआई नवरुणा कांड की सात साल से जांच कर रही है और आज तक पता नहीं चला कि ब्रह्मेश्वर मुखिया का कातिल कौन है? ये दोनों मामले बिहार के हाईप्रोफाइल हत्याकांडों में शामिल हैं। पुलिस से लेकर सीबीआई भी आज तक मुखिया के कातिल को नहीं ढूंढ पाई है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 14 फरवरी 2014 को सीबीआई ने मुजफ्फरपुर के बहुचर्चित नवरुणा कांड में प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार जांच के लिए मोहलत दी। सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर 2019 को सीबीआई को जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा था। डेडलाइन के महज 15 दिन पहले सीबीआई ने गुत्थी सुलझाने में मदद करने वाले को 10 लाख का इनाम देने की घोषणा की है।

सुशांत सिंह राजपूत।

नवरुणा चक्रवर्ती, उम्र 12 वर्ष, पुत्री अतुल्य चक्रवर्ती, जवाहर लाल रोड, मुजफ्फरपुर का अपहरण 18/19 सितंबर 2012 की रात में खिड़की तोड़ कर किया गया। 26 नवंबर 12 को घर के सामने नाले से लाश मिली। नवरुणा कांड में जिला पुलिस की और से कार्रवाई नहीं होने की स्थिति में भारी दबाव के बाद राज्य सरकार ने सीआईडी को जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। सीआईडी जांच में भी जब कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की अनुशंसा की।

राज्य सरकार की अनुशंसा पर सीबीआई ने पहले से कई केस का दबाव बताते हुए जांच से इनकार कर दिया। इसी बीच नवरुणा से जुड़े लॉ के छात्र अभिषेक रंजन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट  के आदेश के बाद सीबीआई लगभग सात साल से मामले की जांच कर रही है।

31 जनवरी से बिहार पुलिस महकमे का कार्यभार संभाल चुके नए डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय नवरुणा केस को लेकर सुर्खियों में आए थे।

ये घटना बिहार के मुजफ्फरपुर की है। 18-19 सितंबर 2012 की बीच रात 12 साल की बच्ची नवरुणा का अपहरण उसके घर से हुआ था। उसके कमरे की खिड़की का ग्रिल काटकर इसे अंजाम दिया गया। अपहरण के बाद 26 नवंबर 2012 को घर से सटे नाले से उसकी हड्डियां बरामद हुई थीं। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था।

इस केस की जांच करने वाले अधिकारियों में एक गुप्तेश्वर पांडेय भी थे। वो उस समय मुजफ्फरपुर के आईजीपी थे। नवंबर 2018 में सीबीआई ने नवरुणा केस की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट से समय बढ़ाने की मांग की थी। सीबीआई के एप्लीकेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए आखिरी छह महीने का वक्त दिया था।

सीबीआई ने जिस एप्लीकेशन के आधार पर वक्त मांगा है, उसमें इस केस से जुड़े कुछ अफसरों की जांच का जिक्र किया गया था। उन अफसरों में गुप्तेश्वर पांडेय का नाम भी शामिल है। सीबीआई की दलील है कि तफ्तीश का दायरा नौकरशाह-माफिया की मिलीभगत तक बढ़ाने के लिए उन्हें और वक्त चाहिए। जब जांच सीबीआई ने शुरू की तो उसने भी कई गिरफ्तारियां कीं, लेकिन नवरुणा के कातिल का पता लगाने में अब तक सीबीआई नाकाम रही है।

इसी तरह एक वक्त जातीय संघर्ष की आग में सुलगते बिहार में सवर्णों के सबसे बड़े हथियारबंद संगठन रणवीर सेना सुप्रीमो की हत्या को आठ साल हो चुके हैं। एक जून 2012 को हुए इस हत्याकांड के बाद पहले बिहार पुलिस ने जांच की। बाद में परिवार वालों की मांग पर जिम्मा सीबीआई को दिया गया।

कातिलों का सुराग देने वालों को 10 लाख रुपये इनाम देने की भी घोषणा की गई, लेकिन आज तक ये पता नहीं चला कि एक प्रतिबंधित संगठन के सुप्रीमो के जिस्म में पांच गोलियां दाग कर उन्हें मौत के घाट उतारने वाले थे कौन? कौन था इस मर्डर का मास्टरमाइंड? जुलाई 2013 में सीबीआई ने ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड की जांच शुरू की। छह साल के अंदर लगातार पांच बार इनाम के पोस्टर भी लगवाए जा चुके हैं, लेकिन, उपलब्धि जीरो है। दस लाख रुपये के इनाम की राशि भी सीबीआई को मुकाम तक नहीं पहुंचा सकी है।

एक जून 2012 की सुबह भोजपुर जिले के खोपिरा गांव के रहने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया शहर के कतीरा इलाके में अपने आवास के बाहर सुबह की सैर पर निकले थे। इसी दौरान हथियारबंद अपराधियों ने उन्हें रोक कर पांच गोलियां मारीं। इस हत्याकांड के बाद भोजपुर से लेकर पटना तक सुलग गया। हाल ये हो गया कि आरा शहर पुलिस के हाथ से निकलता दिख रहा था। मुखिया समर्थकों ने सारा शहर और कानून अपने हाथ में ले लिया था। कई सरकारी गाड़ियां फूंक दी गईं थीं।

90 के दशक में बिहार की धरती रक्तचरित्र की गवाह बनी। जातीय संघर्ष के नाम पर मारकाट मची हुई थी। नक्सली जब जहां चाहें वहां लोगों की हत्या कर रहे थे। ऐसे में कई किसानों के समर्थन से ब्रह्मेश्वर मुखिया ने सितंबर 1994 में सवर्णों के नाम पर रणवीर सेना का गठन किया। रणवीर सेना और मुखिया पर आरोप लगा कि बारा और सेनारी का बदला लेने के लिए 1997 की एक दिसंबर को लक्ष्मणपुर बाथे में 58 लोगों को मौत के घाट उतारा गया।

इसके बाद बथानी टोला समेत कुछ और नरसंहारों में भी रणवीर सेना पर आरोप लगे। ब्रह्मेश्वर मुखिया को उस वक्त तक 277 लोगों की हत्या और उनसे जुड़े 22 अलग-अलग मामलों का आरोपी बनाया गया था। इनमें से 16 मामलों में उन्हें साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था, जबकि बाकी छह मामलों में मुखिया को जमानत मिल गई।

अंततः 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीबिशन रोड से ब्रह्मेश्वर मुखिया को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। नौ साल जेल की सजा काटने के बाद 8 जुलाई 2011 को उनकी रिहाई हुई। जेल से छूटने के बाद ब्रह्मेश्वर मुखिया ने 5 मई 2012 को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से संस्था बनाई और कहा कि वो मुख्यधारा में आकर अब किसानों के हित की लड़ाई लड़ेंगे। इसके एक महीने बाद ही उनकी हत्या कर दी गई।

इस हाईप्रोफाइल मर्डर केस में कई बड़े लोगों के नाम सामने आए, लेकिन अभी तक यही पता नहीं चला कि ब्रह्मेश्वर मुखिया पर गोली चलाने वाले हमलावर कौन थे। ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड की गुत्थी आठ साल बाद आज भी उलझी हुई ही है।

दरअसल पिछले एक-डेढ़ दशक में सीबीआई ने बिहार के कई मामले हाथ में लिए हैं, जिनमें से ज्यादातर में सीबीआई के हाथ खाली रहे हैं। सीबीआई ने जिन मामलों में जांच की है उनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिसने बिहार की राजनीति को हिलाकर रख दिया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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