श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के खिलाफ दलील देने वाले कॉलेज शिक्षक का निलंबन रद्द कर दिया है। राजनीति विज्ञान के सीनियर लेक्चरर जहूर अहमद भट्ट का निलंबन उस वक्त हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट केंद्र के 2019 में उठाए गए कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने ये जानने की कोशिश की कि क्या निलंबन उनकी अदालत में उपस्थिति से जुड़ा हुआ था और ये सुझाव देते हुए कि इसे ‘प्रतिशोध’ के रूप में देखा जा सकता है, कोर्ट ने संकेत दिया कि अगर ऐसा है तो ये हल्का दृष्टिकोण दिखाता है।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने रविवार को निलंबन आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही भट्ट को “अपने मूल पोस्टिंग स्थान पर वापस रिपोर्ट करने” के लिए कहा गया है। यह निर्णय केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 370 मामले में अपनी दलील पूरी करने से एक दिन पहले आया है। पिछले चार सालों में यह पहला मामला है, जब जम्मू-कश्मीर में कोई सरकारी आदेश रद्द किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से लेक्चरर को पांच जजों की संविधान पीठ के सामने पेश होने के कुछ दिनों बाद निलंबित करने को लेकर उपराज्यपाल से बात करने के लिए कहा था।
जहूर अहमद भट्ट के पास कानून की डिग्री भी है। उन्होंने अदालत के सामने 2019 के उस कदम के खिलाफ दलील दी, जिसने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को छीन लिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। इसके बाद जम्मू-कश्मीर शिक्षा विभाग ने सिविल सेवा नियमों, सरकारी कर्मचारियों के आचरण नियमों और छुट्टी नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए उन्हें निलंबित कर दिया।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया, जिसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को इस पर गौर करने और उपराज्यपाल से बात करने को कहा। सिब्बल ने अदालत को बताया कि भट्ट ने अदालत में पांच मिनट तक बहस की, जिसके कारण 25 अगस्त को उन्हें निलंबित कर दिया गया। सिब्बल ने बताया, “उन्होंने दो दिन की छुट्टी ली, वापस चले गए और निलंबित कर दिए गए।”
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “अटॉर्नी जनरल, जरा देखिए कि क्या हुआ है। इस अदालत में पेश होने वाले किसी व्यक्ति को अब निलंबित कर दिया गया है। इस पर नजर डालें। एलजी से बात करें।” उन्होंने पूछा, “अगर कुछ और है तो यह अलग है, लेकिन उनके आने और फिर निलंबित होने का क्रम इतना नजदीक क्यों है।”
संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एस. के. कौल ने दलीलों और निलंबन आदेश के बीच “निकटता” की ओर इशारा किया, जिसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने स्वीकार किया कि “निश्चित रूप से समय उचित नहीं था।” पीठ के एक अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई ने भी कहा कि सरकार की कार्रवाई प्रतिशोध हो सकती है।
मेहता ने बताया कि अन्य मुद्दे भी थे, जिनके कारण उनका निलंबन हुआ। और भट्ट विभिन्न अदालतों में पेश हुए हैं। इस पर सिब्बल ने तर्क दिया कि फिर उन्हें पहले ही निलंबित किया जाना चाहिए था, अब क्यों। वरिष्ठ वकील ने कहा कि भट्ट जम्मू-कश्मीर में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं और 2019 के कदम के बाद से यह उनके लिए मुश्किल हो गया था क्योंकि उनके छात्र लोकतंत्र पर सवाल उठा रहे थे।
(जे पी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)