Wednesday, April 24, 2024

टाटा-मिस्त्री विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया टाटा के हक में फैसला

टाटा संस के चेयरमैन पद से शापूरजी पलोनजी ग्रुप के सायरस मिस्त्री को हटाने के निर्णय को उच्चतम न्यायालय ने सही ठहराया है और एनसीएलएटी के फैसले को खारिज कर दिया है। राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (NCLAT) ने साइरस मिस्त्री को चेयरमैन के पद पर बहाल करने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने मामले में कानून के सभी सवालों के जवाब में टाटा संस की अपील को अनुमति दे दी और एनसीएलएटी के आदेश को रद्द कर दिया। शापूरजी पलोनजी समूह और साइरस मिस्त्री द्वारा दायर अपील खारिज कर दी गई।

उच्चतम न्यायालय ने माना कि मिस्त्री के खिलाफ टाटा संस बोर्ड की कार्रवाई अल्पसंख्यक शेयरधारकों के उत्पीड़न या कुप्रबंधन के समान नहीं था। पीठ ने यह भी कहा कि यह टाटा और मिस्त्री के लिए खुला है कि वे अपनी अलगाव की शर्तों को पूरा करें। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि शेयरों का मामला टाटा और शापूरजी पलोनजी ग्रुप दोनों मिलकर निपटाएं। चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रह्मण्यन की पीठ ने यह फैसला सुनाया।

टाटा सन्स की अर्जी पर उच्चतम न्यायालय  ने पिछले साल 10 जनवरी को एनक्लैट यानी कंपनी मामलों के अपीलेट ट्रिब्यूनल के फ़ैसले पर रोक लगाई थी। पीठ ने 17 दिसंबर को इस मामले पर फैसला रिजर्व कर लिया था, जो आज सुनाया गया। पीठ ने इस मामले में टाटा समूह की तरफ से जारी सभी याचिकाएँ मंजूर कर लीं और माना कि साइरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन और एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर के पद से हटाने का फैसला सही था। इस मामले से जुड़े सभी कानूनी सवालों के जवाब टाटा समूह के पक्ष में हैं और टाटा समूह की सभी अर्जियाँ मंजूर की जाती हैं।

इससे पहले मामले की आखिरी सुनवाई के दिन यानी 17 दिसंबर को शापुरजी पल्लोनजी समूह यानी एसपी ग्रुप ने पीठ के समक्ष कहा था कि अक्टूबर 2016 में टाटा सन्स की बोर्ड मीटिंग में सायरस मिस्री को हटाए जाने की कार्रवाई एकदम एक खूनी खेल की तरह थी, जिसमें उनपर घात लगाकर हमला किया गया था। उनकी तरफ से यह दलील भी दी गई कि टाटा ग्रुप का यह काम कॉरपोरेट गवर्नेंस के नियमों के ख़िलाफ़ था और इससे टाटा सन्स के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन की भी अवहेलना होती है। जवाब में टाटा सन्स की तरफ से कहा गया था कि इस फैसले के पीछे कोई भी ग़लत काम नहीं हुआ और बोर्ड को ऐसा फैसला करने का पूरा अख्तियार था।

दरअसल, टाटा संस ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के 18 दिसंबर, 2019 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें टाटा संस लिमिटेड के चेयरमैन के रूप में सायरस मिस्त्री की बहाली का आदेश दिया था। इस पर 10 जनवरी 2020 को उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी थी। मिस्त्री टाटा सन्स के सबसे युवा चेयरमैन थे। मिस्त्री परिवार की टाटा सन्स में 18.4 फीसदी की हिस्सेदारी है। वो टाटा ट्रस्ट के बाद टाटा संस में दूसरे बड़े शेयर होल्डर्स भी हैं।

एनसीएलएटी ने अपने दिसंबर 2019 के फैसले में कहा था कि 24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस की बोर्ड बैठक में चेयरपर्सन के पद से साइयस मिस्त्री को हटाना गैर-कानूनी था। साथ ही यह भी निर्देश दिया था कि रतन टाटा को पहले से कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए, जिसमें टाटा संस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के बहुमत के फैसले या एजीएम में बहुमत की आवश्यकता होती है।

सायरस मिस्त्री ने दिसंबर 2012 में टाटा संस के प्रेसिडेंट का संभाला था और 24 अक्टूबर 2016 को कंपनी के बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स के बहुमत से पद से हटा दिया गया। इसके बाद 6 फरवरी 2017 को बुलाई गई एक बोर्ड बैठक में शेयरहोल्डर्स ने मिस्त्री को टाटा संस के बोर्ड से हटाने के लिए वोट किया। तब एन चंद्रशेखरन ने टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला।

मामले को लेकर दो शापूरजी पल्लोनजी कंपनियों ने मिस्त्री को हटाने और अल्पसंख्यक शेयरधारकों के उत्पीड़न और कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल का रुख किया। ये दोनों कंपनियां टाटा संस में शेयरहोल्डर्स हैं। हालांकि जुलाई 2018 में एनसीएलएटी ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसके खिलाफ पल्लोनजी कंपनियों ने अपील दायर की थी।

अपील में शापूरजी पलोनजी कंपनियों ने कहा कि एनसीएलएटी मिस्त्री को कुछ महत्वपूर्ण राहत देने में विफल रहा। इसलिए मिस्त्री कंपनियों को टाटा संस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर द्वारा गठित सभी समितियों में प्रतिनिधित्व का हकदार होना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय  के फैसले पर टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने फैसले का स्वागत करते हुए कोर्ट का धन्यवाद किया और कहा कि यह कोई जीत या हार का मामला नहीं। पोस्ट में उन्होंने लिखा यह मेरी ईमानदारी और ग्रुप के नैतिक आचरण पर लगातार हमलों के बाद, कोर्ट द्वारा टाटा संस की सभी अपीलों को बरकरार रखने का निर्णय उन मूल्यों और नैतिकता का सत्यापन है, जो हमेशा ग्रुप के मार्गदर्शक सिद्धांत रहे हैं। यह हमारी न्यायपालिका द्वारा प्रदर्शित निष्पक्षता और न्याय को दर्शाता है।

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