Friday, April 19, 2024

भारतीय पुलिस बलों में एससी-एसटी और महिलाओं का तय कोटा आज भी नहीं हो रहा पूरा

नई दिल्ली। पुलिस में महिलाओं और अनूसूचित जाति और जनजाति की भर्ती के तय प्रतिशत को देश और राज्य अभी तक पूरा नहीं कर पाया है। राष्ट्रीय स्तर पर, राज्यों में पुलिस बलों में 33 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी होने में अभी 24 साल और लगेंगे। ये तो थी देश और राज्यों की बात। इस मामले में झारखंड बेहद पीछे है। झारखंड को इस स्तर पर पहुंचने में पूरे 206 साल लग जाएंगे। ये आंकड़े 4 अप्रैल को टाटा ट्रस्ट की तरफ से जारी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022 के हैं।

यह राज्यों के पुलिस बलों को अलग-अलग संकेतकों के आधार पर रैंक करता है, जैसे कि कर्मियों के कुल स्वीकृत पद, रिक्त पदों पर महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के प्रतिनिधित्व के स्तर पर। कुल मिलाकर, इस मामले में तेलंगाना सबसे आगे है। 10 मिलियन से अधिक आबादी वाले राज्यों में तेलंगाना टॉप पर है, जबकि पश्चिम बंगाल का नंबर सबसे नीचे है।

खाली पदों की वर्तमान स्थिति

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के तीसरे संस्करण में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस बलों में स्वीकृत और वास्तविक संख्या के बीच का अंतर बेहद चिंताजनक है। रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, जनवरी 2020 (द्वितीय संस्करण) और जनवरी 2022 के बीच, पुलिस में कुल खाली पद स्वीकृत पद संख्या के 20.3 प्रतिशत से बढ़कर 22.1 प्रतिशत हो गई।

रिपोर्ट 25 रैंक वाले राज्यों के लिए अलग-अलग आधिकारिक स्रोतों से डेटा इकट्ठा करती है, उन्हें 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्य और सात छोटे आकार के राज्य (10 मिलियन तक की आबादी) वाले दो ग्रुप में बांटती है। यह रिपोर्ट बिना रैंक वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जानकारी भी देती है।

पुलिस कांस्टेबलों के मामले में जनवरी 2022 तक पश्चिम बंगाल का सबसे खराब प्रदर्शन था, जिसमें स्वीकृत पदों के 44.1 प्रतिशत पद खाली थे। वहीं केरल स्वीकृत पद संख्या के 4.6 प्रतिशत कॉन्स्टेबल रिक्तियों के साथ टॉप पर था। पुलिस अधिकारियों (सिविल के साथ-साथ जिला सशस्त्र रिजर्व पुलिस) के लिए, बिहार में स्वीकृत शक्ति के मुकाबले 53.8 प्रतिशत रिक्तियों का उच्चतम प्रतिशत है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि कुछ राज्य अपनी स्वीकृत पदों को कम कर देते हैं, जिसके कारण रिक्तियों का स्तर कम हो सकता है। जैसे, 2020 और 2022 के बीच, केरल ने सिविल पुलिस की स्वीकृत संख्या में 239 कर्मियों की कमी की, जिसके कारण रिक्तियों में कमी आ गई, लेकिन काम का बोझ बढ़ गया।

कितने राज्य महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए अपना कोटा पूरा करते हैं?

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘संवैधानिक समानता के तहत सभी राज्यों में जाति कोटा आरक्षण अनिवार्य है।’ हालांकि, आरक्षण लागू होने के वर्षों के बाद कर्नाटक अपने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के कोटा को पूरा करने वाला एकमात्र राज्य था। वहीं दूसरे राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अपने आरक्षण के लक्ष्यों को अभी तक पूरा नहीं कर पाए।

बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में, हरियाणा ने 131 प्रतिशत आरक्षण कोटा पर अनुसूचित जाति पुलिस अधिकारियों के प्रतिशत के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि उत्तर प्रदेश अपने कोटे के मुकाबले सिर्फ 43 प्रतिशत अनुसूचित जाति के अधिकारियों के साथ अंतिम स्थान पर रहा।

कांस्टेबुलरी कार्यबल के लिए, कर्नाटक में कोटे पर एससी कांस्टेबलों का प्रतिशत 116 प्रतिशत था, जबकि हरियाणा में सबसे कम 63 प्रतिशत था। जहां तक छोटे राज्यों का सवाल है, गोवा और सिक्किम ने अनुसूचित जाति के अधिकारियों और कांस्टेबलों के प्रतिशत के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया।

अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को पूरा करने के मामले में, कर्नाटक ने पुलिस अधिकारी स्तर अपने आरक्षित अनुपात से आगे जाकर 176 प्रतिशत पर पर सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। बिहार ने अपने 278 प्रतिशत कोटे पर एसटी कांस्टेबलों की भर्ती की, जबकि बड़े और मध्यम राज्यों में पंजाब में सबसे कम 0.01 प्रतिशत भर्ती हुई।

जब पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी की बात आती है, तो पुलिस बल में कितनी महिलाएं होनी चाहिए, इसके लिए ज्यादातर राज्यों का अपना खास कोटा होता है। जैसे, छह केंद्र शासित प्रदेशों और नौ राज्यों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। दूसरे राज्य जैसे अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा और बिहार में 35 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक लक्ष्य है।

केरल और मिजोरम सहित पांच राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कोई आरक्षण नहीं है। निष्कर्षों के अनुसार, कोई भी राज्य, जिसके पास 33 प्रतिशत मानदंड था, उसे पूरा नहीं कर पाया है।

हालांकि, बड़े और मध्यम राज्यों में, आंध्र प्रदेश में जहां महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं, ने 21.8 प्रतिशत भर्ती करके सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। जबकि झारखंड में महिलाओं की सबसे कम भर्ती 6.2 प्रतिशत रही। छोटे राज्यों में, हिमाचल प्रदेश 14 प्रतिशत पुलिस कर्मियों के साथ टॉप पर था, जबकि त्रिपुरा केवल 5.3 प्रतिशत के साथ अंतिम स्थान पर रहा।
केंद्र शासित प्रदेशों में, लद्दाख में पुलिस में 28.3 प्रतिशत महिलाएं थीं, जबकि जम्मू और कश्मीर में सिर्फ 3.3 प्रतिशत महिलाएं थीं।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य सीसीटीवी कितने पुलिस स्टेशनों में है?

दिसंबर 2020 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सभी पुलिस स्टेशनों के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि जिन मामलों में पुलिस की तरफ से बल प्रयोग के कारण गंभीर चोटें आईं या हिरासत में मौतें हुईं, उनकी सूचना रिकॉर्ड की जा सके।

रिपोर्ट में लिखित पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, मणिपुर, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में, राज्य में कुल संख्या के एक भी पुलिस स्टेशन में कम से कम एक सीसीटीवी कैमरा तक नहीं है। जनवरी 2022 तक, देश के कुल 17,535 पुलिस स्टेशनों में से केवल 73.5प्रतिशत (12,893) में कम से कम एक सीसीटीवी कैमरा लगा था।

(कुमुद प्रसाद जनचौक में सब एडिटर हैं।)

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