प्रयागराज। हालिया संपन्न महाकुम्भ में श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने में योगी आदित्यनाथ सरकार की विफलता तथा बद-इन्तजामी से शहर में रोज़ाना लगे भीषण जाम का दर्द सिर्फ प्रयागराज शहर के निवासी ही ‘भोगने’ को विवश नहीं थे, इस दौरान जिले के हजारों सब्जी उत्पादक किसानों को भी बड़े आर्थिक नुकसान के बतौर इसका ‘दंश’ उठाना पड़ा। जब योगी आदित्यनाथ कुम्भ में कमाई की ‘सक्सेस स्टोरी’ बता कर बद-इंतजामी और अव्यवस्था पर सवाल उठाने वालों ‘सूअर’ और न जाने किन-किन उपाधियों से नवाज़ रहे हों, तब सब्जी उत्पादक किसानों की त्रासदी पर चर्चा जरूरी हो जाती है।
दरअसल, प्रयागराज मुख्यालय के लिए प्रत्येक दिशा से आने वाली ज्यादातर सडकों पर कुम्भ मेला के कारण रोजाना लगे भीषण जाम से जिले के सब्जी उत्पादक किसानों की सब्जियां समय से शहर की बड़ी मंडियों में नहीं पहुंच पायीं। इन्हीं मंडियों से बड़े सब्जी कारोबारियों द्वारा किसानों से सीधे सब्जियां खरीदकर प्रदेश के अन्य शहरों में भेजी जाती हैं, स्थानीय व्यापारी भी यहीं किसानों से मोलभाव करके सब्जियां खरीदते हैं। लेकिन भीषण जाम के कारण इन मंडियों में सब्जी व्यवसायी किसानों से सब्जियां नहीं खरीद पाए।
दरअसल, इस जाम ने शहर और जिले की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को गंभीर रूप से चौपट कर दिया था। इस कारण जिले से बाहर किसानों की सब्जियों की सप्लाई बंद हो चुकी थी। जो सब्जियां शहर और जिले में बाहर से आती थीं, उनकी सप्लाई भी बड़े स्तर पर प्रभावित हुई। इससे कुछ सब्जियों के दाम में जहां डेढ़ से दो गुना की बढ़ोत्तरी हुई वहीं, फलों की दुकानों पर दाम में चालीस फीसद से ज्यादा का उछाल देखा गया। हालांकि, इसके उलट जिले के स्थानीय किसानों की उत्पादित सब्जियां मिट्टी के भाव में स्थानीय कस्बाई बाजारों में ही खप सकीं, क्योंकि मांग के मुकाबले सप्लाई बहुत ज्यादा थी।
महाकुम्भ के इस सरकारी आयोजन में आम किसान को क्या मिला और उसने इस डेढ़ माह में क्या खोया पाया- इसका लेखा-जोखा बहुत हताश करता है। इस आयोजन ने प्रयागराज जिले के सब्जी उत्पादक किसानों की आर्थिक तबाही की जो पटकथा लिखी- उसकी सैकड़ों कहानियां जिले के छोटे और कस्बों-गांवों में लगने वाले सब्जी बाजारों में बिक्री के लिए खड़े गिड़गिड़ाते किसानों के बतौर देखा जा सकता था।
कस्बाई सब्जी मंडी में हरी सब्जियों की बिक्री के लिए आये किसानों का ग्राहकों से सब्जी खरीदने के लिए गिड़गिड़ाना वह क्रूर त्रासदी थी जिसकी पटकथा अपने सियासी लाभ के लिए योगी सरकार द्वारा धार्मिक आयोजन के नाम पर इस शहर में लिखी थी।
प्रयागराज जनपद के सोरांव तहसील के हथिगंवा ग्राम पंचायत के किसान राजमंगल पटेल ने हर साल की तरह इस साल भी दो एकड़ खेत में फूल गोभी और पत्ता गोभी की फसल उगाई थी। वह हर साल इस फसल को प्रयागराज के माघ मेले के दौरान कल्पवासियों के बीच सप्लाई करते थे (दारागंज क्षेत्र में सब्जी की दुकानों को सीधे सब्जी सप्लाई का काम करते थे)। ऐसा करके वह साल भर के लिए अपने परिवार के खाने-पहनने का कुछ हिस्सा जुगाड़ करते थे।
इस साल भी उन्होंने फसल उगाई। लेकिन, शहर में लगने वाले भीषण जाम के कारण इसे वांछित दुकानों तक पहुंचा नहीं पाए। चूंकि फसल के ख़राब होने का डर था, लिहाजा उन्होंने अपने कस्बे की सब्जी मंडी (हथिगंवा बाजार) में ही तैयार सब्जी को बिक्री के लिए रोजाना उतारा। लेकिन, उन्हें इसका लाभप्रद दाम नहीं मिल पाया।
वह कहते हैं कि हमारी मेहनत व्यर्थ हो गई और हम लागत भी नहीं निकाल पाए। वह सवाल करते हैं कि फूल गोभी के जिस एक फूल की औसत बीस रुपये कीमत हो अगर उसे तीन रुपये में बेचना पड़े तो किसान को क्या फायदा होगा? राजमंगल अपने इस नुकसान का ठीकरा जिला प्रशासन की ट्रैफिक नियंत्रण की बद-इंतजामी पर फोड़ते हैं।
उनके मुताबिक जाम के कारण ही वह अपनी फसल को उचित बाजार तक नहीं ले जा सके। बड़े लोडर वाहन जाम में घुसने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए वह शहर में सब्जी नहीं ले जा सके। छोटे वाहन भी तीन गुना तक किराया वसूल रहे थे जिससे सब्जी उत्पादक किसानों को ट्रांसपोर्ट काफी महंगा पड़ रहा था।
इसी गांव के दानी मौर्या, जिन्होंने एक एकड़ में खेत में पालक, मेथी और धनिया की फसल उगाई थी, शहर में भयानक जाम के कारण उत्पादित फ़सल को बहुत कम मात्रा में शहर में सप्लाई कर पाए। उन्हें अपने कस्बे के सब्जी बाजार में पालक दो रुपये किलो से भी कम रेट पर बेचना पड़ा। मेथी और धनिया तो मिट्टी के भाव बिकी। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि यह ख़राब होने वाली फसल है और जाम के कारण शहरी ग्राहक तक हम इसे नहीं पहुंचा पाए। जिले से बाहर सब्जी सप्लाई बंद होने से किसानो को तबाही के स्तर तक नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि सब्जी व्यवसायियों ने इसे खरीदने और सप्लाई का ‘रिस्क’ नहीं लिया।
यही नहीं, जिले के ही सोरांव कस्बे के किसान मोहन लाल मौर्या की त्रासदी थोड़ी अलग है। उन्होंने एक बीघा टमाटर की फसल दिसंबर महीने में ही तैयार कर ली थी। उन्हें उम्मीद थी कि कुम्भ मेले में सब्जी की मांग और रेट दोनों अच्छा रहेगा क्योंकि जिले की आबादी बढ़ने से मांग में इजाफ़ा होगा। उनके मुताबिक, दिसंबर के शेष पंद्रह दिन उन्होंने थोक भाव में टमाटर को जिले के बाहर भेजने में सफलता पाई और फसल की लागत तो किसी तरह निकाल ली, लेकिन जब लाभ कमाने का मौका आया तो शहर में लगे भीषण जाम के कारण उनका टमाटर शहर के सब्जी बाजार तक नहीं पहुंच पाया।
यही नहीं, सब्जी व्यापारियों ने इसे खरीदने से ही मना कर दिया क्योंकि राजमार्गों पर बड़े जाम के कारण टमाटर के सड़ने का डर था। परेशान होकर उन्होंने टमाटर की फसल को कस्बे के बाजार में दो रुपये किलो के भाव में बेच दिया, ताकि कुछ खर्च ही निकल आये।
जिले के कई किसानों का मुख्य व्यवसाय निर्यात के लिए ही सब्जियां उगाना है। यह एक बड़ी संख्या है। बहादुरपुर ब्लाक के कई किसान सिर्फ निर्यात के लिए सब्जियों की खेती करते हैं। कुछ किसान आर्गेनिक तरीके से सब्जियों की खेती करते हैं जिसे बंगलुरु, हैदराबाद और मुंबई के बाजारों में सप्लाई किया जाता है।
महाकुम्भ के कारण होने वाले भीषण जाम से उनकी हालत ज्यादा ख़राब हुई क्योंकि आर्गेनिक फसलों के उत्पादन का खर्च ज्यादा आया और उत्पादित फसल को बाहर भेजा ही नहीं जा सका। सब्जी व्यवसायियों और सप्लायर्स ने किसानों से फसल खरीदने से सीधे ही मना कर दिया क्योंकि जिले को चौतरफा जोड़ने वाली सडकों पर लोगों का रेला था। बहादुरपुर में उत्पादित गाजर को सऊदी अरब निर्यात किया जाता है, लेकिन जाम के कारण इसे केवल पच्चीस क्विन्टल की एक खेप भर भेजा जा सका। सब्जी व्यापारियों ने अगली खेप लेने से मना कर दिया।
यही नहीं, जिले के हनुमानगंज, चकिया, रतौरा, थरवई जैसे खेत्रों तथा कौशाम्बी जिले के कुछ ग्रामीण इलाकों जैसे मूरतगंज के कई किसान मटर, गाजर, बैगन, मटर, मिर्च की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। सारी सब्जियां शहर की मुंडेरा सब्जी मंडी में बड़े व्यवसायियों/सप्लायर्स के द्वारा खरीदी जाती हैं। फिर ये सब्जियां वाराणसी, नॉएडा, कानपुर, आगरा आदि शहरों तथा सऊदी अरब और अन्य देशों में निर्यात की जाती हैं।
सब्जी के बड़े व्यापारियों ने इन किसानों की फसलों के लेने से इनकार कर दिया क्योंकि वह इस भीषण जाम को देखकर इन सब्जियों के सही सलामत जिले के बाहर के उपभोक्ता बाजारों में पहुंच पाने को लेकर निश्चिन्त नहीं थे क्योंकि जाम के कारण सब्जियों का ट्रांसपोर्ट संभव नहीं था। इस कारण इन किसानों को ज्यादा उत्पादन के बावजूद नुकसान उठाना पड़ा।
शहर में सब्जी सप्लाई का चेन कैसे काम करता है और किसान इसमे कहां सेट होता है? इस सवाल पर राधे मोहन केसरवानी, जो खुद सब्जियों के सप्लायर हैं, विस्तार से समझाते हैं। वह एक उदहारण देकर कहते हैं कि फाफामऊ और हथिगंवा कस्बे की सब्जी मंडी में किसानों की फसल को बड़े व्यापारी सीधे खरीदते हैं और अपने नेटवर्क का प्रयोग करके आवश्यकतानुसार प्रदेश के दूसरे शहरों में गाड़ियों से भिजवा देते हैं। इससे किसान को तत्काल नकदी मिल जाती है। फिर यह सब्जी फुटकर विक्रेताओं को मिलती है।
हम लोग भी उन्हीं व्यापारियों से आवश्यकता की सब्जियां मंगवा लेते हैं। यह चेन विश्वास पर चलता है। वह बताते हैं कि इस बार हम लोगों ने जाम के कारण जिले से बाहर भेजने वाली सब्जी खरीदना बंद कर दिया। क्योंकि ट्रासपोर्ट की सुविधा प्रभावित हो चुकी थी।
इसका नुकसान किसानों को हुआ क्योंकि माल अधिक होने से उनकी सब्जियों के दाम गिर गए। एक अनुमान के मुताबिक जिले की कुल उत्पादित सब्जियों का तीस से चालीस फीसद तक बाहर भेजी जाती है। शेष स्थानीय खपत में प्रयोग होती है। सब्जी उत्पादन का दायरा साल दर साल बढ़ता जा रहा है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में स्थानीय सब्जी व्यवसायियों ने ई रिक्शा, ऑटो और छोटी गाड़ियों से शहर में सब्जी की आपूर्ति की कोशिश की। लेकिन इससे उपभोक्ताओं को महंगी सब्जियां मिलीं और उनका नुकसान हुआ। क्योंकि जाम के कारण व्यापारियों का ट्रांसपोर्ट में ज्यादा पैसा खर्च हुआ। रिक्शे और ऑटो वालों ने जाम के बीच शहर में सब्जियां सप्लाई के लिए तीन गुना तक पैसे वसूले हैं जिसे अंत में शहरी उपभोक्ताओं को महंगी सब्जी के बतौर वहन करना पड़ा।
भीषण जाम के कारण किसान अपनी फसल को बाजार और शहरी मंडियों तक ले जाने के लिए कितनी समस्याएं उठा रहे थे, इसका अंदाजा इस तथ्य से होता है कि ज्यादातर किसान रात के तीन बजे अपने घरों से दोपहिया वाहनों में सब्जियों को बांधकर निकलते थे, ताकि दस किमी की औसत दूरी को वह पांच घंटे में तय करके सुबह-सुबह शहर के बाहर लगने वाली थोक मंडी में पहुंच सकें और उत्पादित फसल का नकदीकरण करवा पायें।
चूंकि शहर में बड़े वाहनों की एंट्री जाम के कारण नहीं हो पा रही थी, इसलिए यह किसान बड़ी मात्रा में उत्पादित सब्जी को शहर की मंडी में नहीं ले जा सकते थे। इन दो पहिया वाहनों से किसानों को थोड़ी सहूलियत के साथ उनके ट्रांसपोर्ट का खर्च कम हो जाता था, लेकिन दुर्घटना का भय बना रहता था।
यही नहीं, प्रयागराज शहर में जाम के कारण बाहर से आने वाली सब्जी और फलों की सप्लाई बड़े स्तर पर प्रभावित हुई। इसके कारण फलों के भाव में बीस से तीस फीसद की वृद्धि हुई। प्याज, लहसुन, नीम्बू, कटहल, आंवला, लाल मिर्च और कई अन्य सब्जियां शहर में बाहर से आती हैं- इनके दाम में पच्चीस फीसद की बढ़ोत्तरी हुई थी।
कुल मिलाकर, महाकुम्भ के इस आयोजन का राजनीतिकरण करके सत्ता और हिंदुत्व ने इसे अपनी सफलता के बतौर प्रचारित भले किया, लेकिन सरकारी बद-इंतजामी के कारण मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को जहां पंद्रह से बीस किमी पैदल चलना पड़ा वहीं, भयानक जाम से शहर का आम आदमी अपने घरों में हॉउस अरेस्ट होकर काफी तनाव में रहा।
इस मेले ने जिले के सब्जी उत्पादक किसानों की आर्थिक कमर को भी तोड़ दिया। भले ही सत्ता और हिंदुत्व इस आयोजन के सहारे बहुसंख्यक हिन्दू मानस को अपने सियासी लाभ के लिए सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर ले जाएं, लेकिन जिले के किसानों की आर्थिक स्थिरता और रोजी-रोटी पर जो चोट हुई है- उसे ये किसान बहुत दिनों तक याद रखेंगे।
(हरे राम मिश्र स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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